Author : Aditya Pandey

Published on Dec 17, 2021 Updated 0 Hours ago

ये अमेरिका के हित में है कि वो रूसी मिसाइल सिस्टम हासिल करने के लिए भारत पर आर्थिक प्रतिबंध नहीं लगाए. इसकी वजह ये है कि भारत और अमेरिका- दोनों देश इस क्षेत्र में चीन के उदय को रोकना चाहेंगे.

इंडियन एयरफोर्स का एस-400 मिसाइल सिस्टम: साइड इफेक्ट के साथ एक बूस्टर डोज़

अक्टूबर 2018 में तत्कालीन भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) प्रमुख एयर चीफ मार्शल बी एस धनोआ (Chief Air Chief Marshal BS Dhanoa) ने रूस (Russia) से एस-400 मिसाइल सिस्टम (S-400 Missile System) की ख़रीदारी को भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) के लिए “एक बूस्टर डोज़ की तरह” बताया था. आज भले ही ‘बूस्टर डोज’ शब्द कोविड-19 वैक्सीन (Covid_19 Vaccine) के साथ जुड़ा हो लेकिन वायुसेना प्रमुख (Indian Air Force Chief) ने एक अलग संदर्भ में इसका ज़िक्र किया था. एस-400 ‘ट्रायम्फ’ मिसाइल, जिसका उन्होंने उल्लेख किया था, दुनिया भर में सेना की ताक़त बढ़ाने वाली मानी जाती है और लंबा वक़्त बीत जाने के बाद भी सबसे आधुनिक प्लैटफॉर्म में इसकी गिनती होती है. साथ ही ये मिसाइल सिस्टम ख़बरों में भी है क्योंकि अमेरिका भारत पर एकतरफ़ा आर्थिक प्रतिबंधों की धमकी देकर रूस के साथ इस समझौते को रद्द करने का दबाव डाल रहा है. अमेरिका अपनी विधायिका और उद्योगों से विरोध का सामना करने के बावजूद ऐसा कर रहा है.

 अमेरिका भारत पर एकतरफ़ा आर्थिक प्रतिबंधों की धमकी देकर रूस के साथ इस समझौते को रद्द करने का दबाव डाल रहा है. अमेरिका अपनी विधायिका और उद्योगों से विरोध का सामना करने के बावजूद ऐसा कर रहा है.

एस-400 एक लंबी दूरी का ज़मीन से हवा में मार करने वाला मिसाइल (एलआर-एसएएम) सिस्टम है जिसे रूस की सरकारी कंपनी अल्माज़-एंटे ने विकसित किया है. इसमें कई हवाई टारगेट को गिराने की क्षमता है जिनमें स्टेल्थ लड़ाकू विमान, बॉम्बर्स, क्रूज़ और बैलिस्टिक मिसाइल के साथ-साथ अनमैन्ड एरियल व्हीकल (यूएवी) भी शामिल हैं. इसमें चार अलग-अलग तरह की मिसाइल हैं जो 400 किलोमीटर तक की रेंज के बियॉन्ड विज़ुअल रेंज (बीवीआर) टारगेट पर आक्रमण कर सकते हैं और इसमें दो अलग तरह के रडार सिस्टम भी हैं जो 600 किलोमीटर तक की रेंज में हवाई लक्ष्य का पता लगा सकते हैं और एक साथ 80 हवाई टारगेट पर निशाना साध सकते हैं.

एस-400 की ख़रीदारी क्षेत्रीय स्थायित्व के संदर्भ में महत्वपूर्ण हो जाती है. पिछले साल लद्दाख में भारतीय सेना और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिकों के बीच झड़प के बाद चीन ने हथियारों और सैन्य बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने का आदेश दिया. इसमें वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपनी एस-400 बटालियन की तैनाती भी शामिल है. इन परिस्थितियों में संघर्ष होने पर भारतीय वायुसेना की मुश्किल बढ़ सकती है और दोनों देशों के बीच सामरिक अंतर बढ़ जाता है.

भारत ने इस सिस्टम की ख़रीदारी करते समय अपने पश्चिमी पड़ोसी को भी ध्यान में रखा है. पाकिस्तान के पश्चिमी सीमांत पेशावर और पूर्वी सीमांत लाहौर को ले लीजिए. दोनों के बीच हवाई दूरी 385 किलोमीटर से ज़्यादा नहीं है जो कि एस-400 की रडार और फायरिंग रेंज के भीतर ही है. 

भारत ने इस सिस्टम की ख़रीदारी करते समय अपने पश्चिमी पड़ोसी को भी ध्यान में रखा है. पाकिस्तान के पश्चिमी सीमांत पेशावर और पूर्वी सीमांत लाहौर को ले लीजिए. दोनों के बीच हवाई दूरी 385 किलोमीटर से ज़्यादा नहीं है जो कि एस-400 की रडार और फायरिंग रेंज के भीतर ही है. इस तरह पाकिस्तान में ‘सामरिक गहराई’ की कमी है. भारतीय वायुसेना के द्वारा एस-400 सिस्टम की तैनाती से एक साथ पाकिस्तान और चीन में हवाई हलचल की पहचान और उस पर निशाना साधा जा सकता है. भारतीय वायुसेना के द्वारा एस-400 मिसाइल सिस्टम की तैनाती उसकी मौजूदा स्वदेशी रूप से विकसित बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (बीएमडी) को मज़बूत कर सकती है और ज़मीन, हवा एवं अंतरिक्ष आधारित सेंसर के साथ वो सैन्य तैनाती का अनुमान लगा सकती है. साथ ही इस क्षेत्र में सामरिक स्थायित्व को बनाए रख सकती है.

अमेरिका की नाराज़गी

लेकिन अमेरिका क्यों ग़ुस्से में है? इसकी वजह ये है कि रूस का एस-400 मिसाइल सिस्टम इस वक़्त सबसे आधुनिक एयर डिफेंस प्लैटफॉर्म है और इसकी लागत पश्चिमी देशों के इसी तरह के मिसाइल डिफेंस सिस्टम से लगभग आधी है, उदाहरण के तौर पर लॉकहीड मार्टिन का टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एयर डिफेंस (थाड) सिस्टम. इसके अलावा एस-400 मिसाइल सिस्टम में वो क्षमता है जिससे नैटो के स्टेल्थ लड़ाकू विमानों जैसे एफ-22 और एफ-35 के साथ-साथ फायर मिसाइल का पता ज़मीन से चार मीटर ऊपर लगाया जा सके जिससे कि उनके उड़ने से पहले ही उन्हें नष्ट किया जा सके. शायद यही वो कारण हैं जिसकी वजह से अमेरिका नाराज़ है. एस-400 का संचालन करने वालों में नैटो का सहयोगी तुर्की और आधिपत्य फैला रहा चीन शामिल है जिनका आगे बढ़ना शांतिपूर्ण नहीं कहा जा सकता है.

ऊपर बताए गए कारणों के साथ ‘आर्थिक प्रतिबंधों के ज़रिए अमेरिका के विरोधियों के मुक़ाबले’ के अधिनियम (सीएएटीएसए) ने अमेरिका को हालात का जायज़ा लेने के लिए प्रेरित किया. सीएएटीएसए एक अमेरिकी संघीय क़ानून है जिसके तहत ईरान, उत्तर कोरिया और रूस के साथ-साथ उन देशों पर भी आर्थिक प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है जो इन तीन देशों के साथ इंटेलिजेंस और रक्षा के क्षेत्र में द्विपक्षीय व्यापार में शामिल हैं. जब से भारत और रूस के बीच एस-400 मिसाइल सिस्टम ख़रीदने के मुद्दे को लेकर बातचीत सामने आई है तब से अमेरिका ने भारत पर भी आर्थिक प्रतिबंध लगाने का अपना इरादा जताया है. लेकिन अमेरिका इस बात को भूल जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एस-400 को लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ 2016 में ही द्विपक्षीय बातचीत शुरू कर दी थी जबकि सीएएटीएसए 2017 में अस्तित्व में आया. किसी क़ानून को बीते हुए समय से लागू करना सिर्फ़ और सिर्फ़ भारत और अमेरिका के बीच दोस्ताना संबंधों को नुक़सान पहुंचा सकता है जो कि फिलहाल प्रगति की राह पर है.

सीएएटीएसए एक अमेरिकी संघीय क़ानून है जिसके तहत ईरान, उत्तर कोरिया और रूस के साथ-साथ उन देशों पर भी आर्थिक प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है जो इन तीन देशों के साथ इंटेलिजेंस और रक्षा के क्षेत्र में द्विपक्षीय व्यापार में शामिल हैं. 

लेकिन अमेरिका भी घरेलू दबाव का सामना कर रहा है. अमेरिकी सीनेट और अमेरिका-भारत बिज़नेस काउंसिल के सदस्यों ने राष्ट्रपति बाइडेन से अनुरोध किया है कि भारत को ‘राष्ट्रीय हित में छूट’ दी जाए क्योंकि ये अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा हित में है. इस छूट का प्रावधान सीएएटीएसए में भी है. उदाहरण के लिए सीनेट में भारतीय कॉकस ने कहा, “हम मानते हैं कि सीएएटीएसए आर्थिक प्रतिबंधों को लागू करने का भारत के साथ सामरिक साझेदारी पर नुक़सानदायक असर हो सकता है. साथ ही इसको लागू करने से रूस के द्वारा हथियारों की बिक्री को रोकने का उद्देश्य भी पूरा नहीं होगा.”

चीन बना साझा ख़तरा

एक अग्रणी अमेरिकी थिंक टैंक स्टिमसन सेंटर ने ‘एक परिपक्व रक्षा साझेदारी की तरफ़’ शीर्षक से अपनी रिपोर्ट में दलील दी है कि “सीएएटीएसए आर्थिक प्रतिबंधों का भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण नुक़सानदेह असर होगा जो संबंधों को एक दशक पीछे ले जाएगा.” लेकिन व्हाइट हाउस की ओर से आर्थिक प्रतिबंधों से छूट पर फ़ैसला लिया जाना अभी बाक़ी है.

दोनों देश आज चीन के रूप में साझा ख़तरे का सामना कर रहे हैं जिसके लिए उन्हें एक-दूसरे की सहायता की ज़रूरत है ताकि एक नियम आधारित व्यवस्था को सुनिश्चित किया जा सके. 

भारत और अमेरिका के बीच सामरिक संबध पिछले एक दशक से ज़्यादा समय से आगे की तरफ़ बढ़ रहा है और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 20 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा का है. ये द्विपक्षीय व्यापार भविष्य में अभी और आगे बढ़ेगा. दोनों देश आज चीन के रूप में साझा ख़तरे का सामना कर रहे हैं जिसके लिए उन्हें एक-दूसरे की सहायता की ज़रूरत है ताकि एक नियम आधारित व्यवस्था को सुनिश्चित किया जा सके. भारत के लिए ये समय की ज़रूरत है कि उप महाद्वीप में शक्तियों के संतुलन को बरकरार रखा जाए. एस-400 प्लैटफॉर्म सुनिश्चित करेगा कि चीन इस बात को माने कि एलएसी पर सैनिकों की तैनाती बनाए रखना बेकार है. एक शांतिपूर्ण इंडो-पैसिफिक सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है. संयोग की बात है कि ये अमेरिका के लिए भी एक रास्ता है.

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