Author : Sameer Patil

Published on Jul 28, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत और अमेरिका के बीच उभरती तकनीक़ों को लेकर हुए मौजूदा समझौतों का अर्थ यह है कि तकनीक़ ही इन दोनों के बीच संबंधों का आधार रहेगी.

भारत-अमेरिका सामरिक संबंध: तकनीक़ी साझीदारी के ज़रिये रणनीतिक गठबंधन की बानगी!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही में हुई संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा से दोनों देशों के बीच तकनीक़ी सहयोग नई ऊंचाइयों तक पहुंच गया है. हालांकि यात्रा को लेकर ध्यान के केंद्र में दो मुख्य रक्षा समझौते थे: जीई एफ 414 इंजन का साझा-उत्पादन और जनरल अटॉमिक्स एमक्यू-9 बी सी गार्डियन ड्रोन की खरीदारी, लेकिन भारत और अमेरिका में कई अन्य उभरती हुई और रणनीतिक तकनीक़ों में सहयोग को मज़बूत करने पर भी सहमति बनी है. ये तकनीकें न केवल दोनों देशों के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं बल्कि उन्हें बदलती हुए अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने में भी मदद करेंगी. इन तकनीक़ों पर आधारित समझौतों के द्वारा, नई दिल्ली और वॉशिंगटन अपनी ‘वैश्विक रणनीतिक साझेदारी’ को आगे बढ़ाने के लिए सुदृढ़ आधार स्थापित कर रहे हैं.

मोदी की यात्रा के दौरान हुए समझौते आईसीईटी  साझेदारी के अगले स्तर का प्रतिनिधित्व करते हैं. हालांकि आने वाले महीनों में इन समझौतों को लागू किया जाना कई कारकों पर निर्भर करेगा, जिसमें यह शामिल है कि अमेरिका से किस स्तर तक तकनीक़ का स्थानांतरण होता है और  रणनीतिक निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाएं लागू होती हैं

एक साल पहले महत्वपूर्ण और उभरती हुई तकनीक़ (Critical and Emerging Technology- iCET) पर की गई पहल ने तकनीक़ी सहयोग के लिए बुनियादी माहौल का निर्माण किया था. मोदी की यात्रा के दौरान हुए समझौते आईसीईटी  साझेदारी के अगले स्तर का प्रतिनिधित्व करते हैं. हालांकि आने वाले महीनों में इन समझौतों को लागू किया जाना कई कारकों पर निर्भर करेगा, जिसमें यह शामिल है कि अमेरिका से किस स्तर तक तकनीक़ का स्थानांतरण होता है और  रणनीतिक निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाएं लागू होती हैं, लेकिन यह तय है कि दोनों देशों के बीच गहरे सहयोग का आधार तो तय हो ही गया है. भारत और अमेरिका दोनों ही अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हुए बेहद महत्वपूर्ण भूराजनैतिक बदलाव और भारत के तकनीक़ के क्षेत्र में रूपांतरण के मौक़े का फ़ायदा उठा रहे हैं.

तकनीक़ी सहयोगों के आयाम की परिभाषा  

मई 2022 में, भारत और अमेरिका ने आईसीईटी की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच रणनीतिक तकनीक़ी साझेदारी और रक्षा-औद्योगिक सहयोग को बढ़ाना था. दोनों देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषदों ने नेतृत्व में इसे टेक्नोलॉजी अनुसंधान और विकास में लगे कई शोध संस्थानों की सहायता से धरातल पर उतारा जा रहा है. जनवरी 2023 में भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल के अमेरिका दौरे के दौरान, दोनों पक्षों ने आईसीईटी पर औपचारिक रूप से हस्ताक्षर किए. उन्होंने तकनीक़ी सहयोग को तेजी से बढ़ाने के लिए कई संयुक्त शोध पहलों की घोषणा भी की. इनमें एआई, क्वॉन्टम तकनीकें, उन्नत वायरलेस (advanced wireless, ), वृहद क्षमता की गणनाएं (High-Performance Computing), अंतरिक्ष तकनीकें, जैव प्रौद्योगिकी और अगली पीढ़ी के दूरसंचार जैसे कई मुख्य तकनीकें शामिल थीं. इनके अलावा, रक्षा तकनीक़ के क्षेत्र में, दोनों पक्षों ने एक “इनोवेशन ब्रिज” (नवाचार के एक सेतु) की घोषणा भी की, जिससे अमेरिकी और भारतीय रक्षा स्टार्टअप्स को जोड़ा जा सके.

प्रधानमंत्री मोदी की हाल ही की यात्रा के दौरान घोषित अधिकतर समझौते और साझेदारियां आईसीईटी योजना के आगामी चरण का ही प्रतिनिधित्व करते हैं. द्विपक्षीय समझौतों में कई महत्वपूर्ण तकनीक़ों को शामिल किया गया है और उन्हें आगे ले जाने के लिए नए तंत्र बनाए गए हैं. इनमें से सबसे महत्वपूर्ण हैं:

ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क (ओआरएएन) प्रणालियां: भारत और अमेरिका ने ओआरएएन प्रणाली को विकसित और लागू करने के लिए संयुक्त कार्य समिति स्थापित की है. इस सार्वजनिक-निजी क्षेत्र की संयुक्त शोध पहल का नेतृत्व भारत के भारत 6जी (Bharat 6G) और अमेरिका के नेक्सट जी (US Next G) द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा. भारत 6जी एक तकनीक़ नवोन्वेष (innovation) समूह है जिसे दूरसंचार विभाग ने स्थापित किया है और जो उद्योग, स्टार्टअप, शैक्षिक संस्थान, शोध प्रयोगशालाओं, मानकीकरण इकाइयों और संबंधित सरकारी एजेंसियों को एक मंच पर लाता है. चीनी टेलीकॉम कंपनियों जैसे हुवावे और जेटीई की 5जी में पकड़ को देखते हुए ओआरएएन के क्षेत्र में यह साझेदारी महत्वपूर्ण है. चीनी 5जी तकनीक़ जो प्रमुखत- हार्डवेयर के स्वामित्व पर आधारित है के विपरीत, ओआरएएन एक “नेटवर्क मॉडल बनाता है जो सिग्नल-प्रोसेसिंग फंक्शन्स को दोहराता है.” इसलिए, ओआरएएन पर भारत-अमेरिकी सहयोग टेलीकॉम नेटवर्क के लिए उपकरणों की अधिक प्रतिस्पर्धी और सुरक्षित आपूर्ति को स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. ऐसा माना जा रहा है कि इससे इस क्षेत्र में सक्रिय अलग-अलग तरह के खिलाड़ियों और व्यापारियों को एकत्र  किया जा सकेगा, जो एक नई अंतर-संचालित (interoperable- ऐसी प्रणाली जिसमें अलग-अलग तरह कंप्यूटरों और नेटवर्कों के एक साथ काम करने की क्षमता हो) टेलीकॉम नेटवर्क विकसित करने के लिए साथ आएं. इस प्रयास को जापान, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया के समान प्रयासों के साथ जोड़े जाने की भी संभावना है.

क्वॉन्टम कंप्यूटिंग: दोनों देश संयुक्त रूप से भारत-अमेरिका क्वॉन्टम समन्वय तंत्र स्थापित करने के लिए तैयार हो गए हैं जो सार्वजनिकऔर निजी क्षेत्रों के सहयोगपूर्ण शोध में मदद करेगा. भारत पहले से ही एंटेंगलेमेंट एक्सचेंज और यूएस क्वॉन्टम इकोनॉमिक डेवलपमेंट कॉन्सोर्टियम के साथ जुड़ा हुआ है, जिससे क्वॉन्टम कंप्यूटिंग के क्षेत्र में कई देशों से आदान-प्रदान संभव हो गया है. बता दें कि क्वॉन्टम तकनीक़ का एनक्रिप्शन, क्रिप्टोग्राफी, एयरोस्पेस इंजीनियरिंग, सेंसरों, मॉडलिंग, सिमुलेशन आदि पर बहुत दूरगामी प्रभाव पड़ता है. 

इस तकनीक़ी साझेदारी को आकार दिए जाने में एक चीज़ साफ़ हो जाती है और वह यह कि भारतीय निजी क्षेत्र तकनीक़ी एडेंडा को आगे बढ़ाने में भागीदारी कर रहा है. यह अच्छे संकेत है और द्विपक्षीय संबंधों की तकलीफ़देह दिक्कतों को दूर ठीक करता है. 

एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता): दोनों देशों ने क्वॉन्टम, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और वायरलेस तकनीक़ों पर और आगे मिलकर शोध करने के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं. अमेरिका-भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी धर्मार्थ (Endowment ) निधि के दो मिलियन डॉलर की अनुदान से बना है जिसका उद्देश्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता और क्वॉन्टम तकनीक़ों के संयुक्त विकास और उसका व्यावसायीकरण है. ख़ास बात यह है कि कृत्रिम बुद्धिमता पर गहराते सहयोग का संदर्भ यह है कि भारत के कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक सहयोग का अध्यक्ष है, जहां कृत्रिम बुद्धिमत्ता को ज़िम्मेदार, नैतिक और विश्वसनीय बनाने के लिए वैश्विक प्रयाग किए जा रहे हैं. 

राष्ट्रीय नवाचार विकास तंत्रों से जुड़ना: भारत और अमेरिका ने भी घोषणा की है कि वे अपने-अपने स्टार्टअप तंत्रों को जोड़ने के लिए एक नए “इनोवेशन हैंडशेक” को शुरू करेंगे. रक्षा क्षेत्र में, पहले घोषित “इनोवेशन ब्रिज” पर आधारित, दोनों पक्षों ने इंडिया-यूएस डिफेंस एक्सेलरेशन इकोसिस्टम या इंडस-एक्स (INDUS-X) की शुरुआत की है जो विश्वविद्यालयों, इंक्यूबेटर्स (incubators), कॉर्पोरेट, विशेषज्ञ समूह (think tanks) और निजी निवेश हितधारकों का एक नेटवर्क बनाता है.

इन पहलों की शुरुआत करने के लिए भारत और अमेरिका सिलिकॉन वैली और भारत के बढ़ते हुए रक्षा नवाचार तंत्र के बीच पहले से फल-फूल रहे वाणिज्यिक सहयोग का लाभ उठा रहे हैं. कई भारतीय स्टार्टअप्स में अमेरिकी वेंचर कैपिटल फर्मों की भागीदारी है. इनमें सेलेस्टा कैपिटल (Celesta Capital) (टॉन्बो इमेजिंग, बेंगलुरु), एक्सेल (Accel) (एक्सियो बायोसोल्यूशंस, बेंगलुरु) और डब्ल्यूआरवी कैपिटल WRV Capital (आइडिया फोर्ज, मुंबई) शामिल हैं।

इस तकनीक़ी साझेदारी को आकार दिए जाने में एक चीज़ साफ़ हो जाती है और वह यह कि भारतीय निजी क्षेत्र तकनीक़ी एडेंडा को आगे बढ़ाने में भागीदारी कर रहा है. यह अच्छे संकेत है और द्विपक्षीय संबंधों की तकलीफ़देह दिक्कतों को दूर ठीक करता है. हालांकि, इस सहयोग का महत्व भारतीय निवेश के अमेरकी तकनीक़ी ढांचे में निवेश कए जाने से कहीं अधिक है. इस तकनीक़ी सहयोग के विस्तार से न सिर्फ़ भारत की तकनीक़ क्षेत्र की ताक़त प्रदर्शित होती है बल्कि यह दोनों देशों के बीच एक तकनीक़ी मूल्य श्रृंखला साझेदारी बनाने की भी उम्मीद की जा रही है. यह सरकार के भारतीय तकनीक़ में विश्वास को भी दिखाता है जिसने डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे जैसे उन्नत लेकिन किफायती तकनीक़ी नवाचारों के लिए रास्ता बनाया है. 

निश्चित रूप से, पिछले समय का गंभीरता से आकलन करने पर नज़र आता है कि जहां तक भारत-अमेरिकी तकनीक़ी सहयोग का संबंध है इसमें कई बार हुई शुरुआतें गलत साबित हुईं हैं. इसलिए, इस सहयोग की आगे की प्रगति पर अमेरिका की सरकार के कई गतिमान तत्वों का प्रभाव पड़ेगा, ख़ासकर रक्षा संबंधी तकनीक़ और अमेरिकी अफ़सरशाही का भारत को लेकर रुख़. हालांकि, यह भी सच है कि उभरती तकनीक़ों पर मौजूदा समझौतों का अर्थ यह है कि भारत-अमेरिका  संबंधों का मुख्य तत्व अब तकनीक़ ही होगा. पीएम मोदी की यात्रा से पहले दोनों पक्षों का ट्रैक 1 और 1.5 का जो विचारविमर्श हुआ है उससे संकेत मिलते हैं कि राजनीतिक और अफ़सरशाही की इच्छा है कि ये अनुबंध ठीक से फलें और चिरस्थाई हों. यह भारत-अमेरिकी संबंधों में एक उल्लेखनीय परिवर्तन को दर्शाता है, क्योंकि पहले नई दिल्ली को अक्सर वॉशिंगटन से रणनीतिक क्षेत्र और तकनीक़ को लेकर इनकार ही मिलता रहा है.


समीर पाटिल ऑब्ज़़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में एक वरिष्ठ अध्येता हैं.

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