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डेलावेयर के विल्मिंगटन में क्वॉड शिखर सम्मेलन के दौरान 21 सितंबर को राष्ट्रपति बाइडेन के साथ प्रधानमंत्री मोदी की द्विपक्षीय बातचीत भारत-अमेरिका संबंधों में निवर्तमान राष्ट्रपति के द्वारा निभाई गई भूमिका को उजागर करती है.
इसका लेखा-जोखा केवल अनेक क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच तालमेल और सहयोग को सूचीबद्ध करके नहीं किया जा सकता है. इसमें वो शामिल है जो भारत लंबे समय से चाहता रहा है- अमेरिकी प्रशासन से ये समझ कि भारत सबसे हटकर है और अमेरिका दूसरे देशों को लेकर जो नीतिगत कदम उठाता है वो ज़रूरी नहीं कि भारत पर भी लागू हो.
क्वॉड के आधार के रूप में भारत के द्वारा निभाई जा रही भूमिका में भी दिखता है जहां वो एकमात्र ऐसा सदस्य है जो अमेरिका का सैन्य सहयोगी नहीं है. इसका मतलब एक अमेरिकी नागरिक की हत्या की साज़िश में शामिल होने की कथित भारतीय गलती से असहजता से निपटना भी है.
इसका मतलब एक प्रमुख रक्षा साझेदार के रूप में भारत को समायोजित करना है, भले ही भारत अमेरिका का एक औपचारिक सैन्य सहयोगी नहीं है और अपने सैन्य उपकरणों के एक बड़े हिस्से के लिए वो रूस पर निर्भर बना हुआ है. इसी तरह इसमें रूस-यूक्रेन युद्ध और रूसी तेल की बड़े पैमाने पर ख़रीद को लेकर भारत के बारीक रवैये को स्वीकार करना शामिल है. ये क्वॉड के आधार के रूप में भारत के द्वारा निभाई जा रही भूमिका में भी दिखता है जहां वो एकमात्र ऐसा सदस्य है जो अमेरिका का सैन्य सहयोगी नहीं है. इसका मतलब एक अमेरिकी नागरिक की हत्या की साज़िश में शामिल होने की कथित भारतीय गलती से असहजता से निपटना भी है.
अगर सबूत की ज़रूरत थी तो ये अपने शहर डेलावेयर के विल्मिंगटन में राष्ट्रपति बाइडेन के द्वारा प्रधानमंत्री मोदी के गर्मजोशी से स्वागत में उपलब्ध थी जहां उन्होंने छठे क्वॉड शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया और साथ ही अपने अमेरिकी समकक्ष के साथ द्विपक्षीय बातचीत की.
इतिहास
बिल क्लिंटन से शुरू होकर अमेरिका के अलग-अलग राष्ट्रपतियों ने अपने-अपने ढंग से प्रगतिशील और व्यवस्थित तरीके से भारत का कार्ड खेला है. तत्कालीन विदेश उप मंत्री स्ट्रोब टैलबोट और विदेश मंत्री जसवंत सिंह के बीच बातचीत ने भारत-अमेरिका संबंधों की जटिलताओं को सुलझाया जो अप्रसार से जुड़ी पाबंदियों के मुद्दे पर तनावपूर्ण हो गए थे. लेकिन अमेरिका की रणनीति में भारत के महत्व को साफ तौर पर बताने का श्रेय जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन को जाता है.
2004 में सामरिक साझेदारी में अगले कदम के साथ शुरू होकर संबंध तेज़ी से आगे बढ़े और 2005 में भारत-अमेरिका के बीच परमाणु समझौते को मंज़ूरी दी गई. परमाणु मुद्दा भारत और अमेरिका के लिए गले में अटकी गोली की तरह था लेकिन परमाणु समझौते ने दोनों देशों को सफलतापूर्वक इसे निगलने में मदद की. साथ ही इससे वो सामरिक संबंध तैयार करने में सहायता मिली जो हम आज देख रहे हैं और जिसे उसी समय हस्ताक्षरित “अमेरिका-भारत रक्षा संबंध के लिए नई रूप-रेखा” के द्वारा व्यक्त किया गया था.
आज के संबंधों की कुछ सकारात्मकता ओबामा प्रशासन के दौरान ही दिखाई दे रही थी. भारत ने बड़ी मात्रा में अमेरिका से सैन्य उपकरणों को ख़रीदने की शुरुआत की. इससे भी महत्वपूर्ण बात ये थी कि अमेरिका ने रक्षा व्यापार एवं तकनीक की पहल को लेकर ख़ुद को प्रतिबद्ध किया.
आज के संबंधों की कुछ सकारात्मकता ओबामा प्रशासन के दौरान ही दिखाई दे रही थी. भारत ने बड़ी मात्रा में अमेरिका से सैन्य उपकरणों को ख़रीदने की शुरुआत की. इससे भी महत्वपूर्ण बात ये थी कि अमेरिका ने रक्षा व्यापार एवं तकनीक की पहल को लेकर ख़ुद को प्रतिबद्ध किया. इस पहल ने रक्षा तकनीक के क्षेत्र के किरदार के रूप में उभरने की भारत की इच्छा को पूरा किया. 2015 में ओबामा की भारत यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने “एशिया पैसिफिक और हिंद महासागर क्षेत्र के लिए साझा रणनीतिक दृष्टिकोण” पर हस्ताक्षर किए. ये पहल बाद में इंडो-पैसिफिक संबंधों को आगे ले गई. रक्षा रूप-रेखा समझौते का नवीनीकरण किया गया और 2016 में भारत को प्रमुख रक्षा साझेदार माना गया.
ट्रंप प्रशासन के दौरान आधिकारिक स्तर के संपर्कों में बढ़ोतरी हुई और अब इसने दोनों देशों के विदेश एवं रक्षा मंत्रियों के बीच नियमित रूप से “2+2” बैठकों का रूप ले लिया है. कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए. भारत ने 2016-2020 के बीच तीन बुनियादी समझौतों- लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA), कम्युनिकेशन कंपैटिबिलिटी एंड सिक्युरिटी एग्रीमेंट (COMCASA) और बेसिक एक्सचेंज कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA)- पर हस्ताक्षर किए. भविष्य में रक्षा उद्योग के क्षेत्र में तालमेल की भूमिका तैयार करते हुए भारत को “स्ट्रैटेजिक ट्रेड ऑथराइजेशन टियर 1 (STA-1)” का दर्जा प्रदान किया गया और फिर 2019 में इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी एग्रीमेंट (ISA) पर हस्ताक्षर किए गए
ये ट्रंप ही थे जिन्होंने आख़िरकार “एशिया पैसिफिक” का नाम “इंडो-पैसिफिक” करके और यहां तक कि अमेरिकी पैसिफिक कमांड का नाम इंडो-पैसिफिक कमांड रखकर भू-राजनीति में बदलाव की धारणा के लिए अमेरिका को प्रतिबद्ध किया. इसके बाद ट्रंप प्रशासन के दौरान ही 2017 में क्वॉड में नई जान फूंकी गई.
बाइडेन का युग
इसलिए बाइडेन प्रशासन के पास संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त आधार था और ऐसा ही किया भी गया. बाइडेन ने अमेरिका में कायाकल्प करने वाला राष्ट्रपति बनने की कोशिश की. उन्होंने चीन की चुनौती का जवाब देने के लिए अमेरिका की गठबंधन रणनीति को सहारा देने और उसकी विज्ञान एवं तकनीकी क्षमता और औद्योगिक क्षमता का फिर से निर्माण करने की कोशिश की.
बाइडेन प्रशासन को काफी पहले समझ में आ गया कि अमेरिकी की रणनीति में भारत की अनूठी भूमिका है. भारत अमेरिका का एक औपचारिक सैन्य सहयोगी नहीं था लेकिन इसके बावजूद उसे अमेरिका की किसी भी इंडो-पैसिफिक रणनीति का आधार बनना था. इस तरह क्वॉड, जिसे बाइडेन ने आगे बढ़ाकर नेताओं के स्तर वाला एक संस्थान बना दिया, को सार्वजनिक भलाई का सामान मुहैया कराने वाले संगठन के रूप में चीन की चुनौती का सीधा मुकाबला करने की एक बड़ी योजना की ओर ले जाया गया. मई 2022 में क्वॉड के महत्वपूर्ण टोक्यो शिखर सम्मेलन के साझा बयान में शांति एवं स्थिरता, कोविड-19 पर ज़ोर के साथ वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा, इंफ्रास्ट्रक्चर, जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा, महत्वपूर्ण एवं उभरती तकनीकों का उपयोग, अंतरिक्ष से जुड़ा उपयोग, समुद्री क्षेत्र में जागरूकता और प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना एवं मानवीय राहत शामिल था. ये ऐसा क्वॉड था जिसके साथ भारत जुड़ सकता था और उसने ऐसा किया भी. भारत ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को उपहार के रूप में वैक्सीन की डोज़ देने में सक्रिय भूमिका अदा की.
भारत-अमेरिका संबंधों में गुणात्मक बदलाव की शुरुआत 2022-23 में हुई. एक स्तर पर ये बदलाव पिछले दो दशकों के दौरान की गई कोशिशों का नतीजा था.
भारत-अमेरिका संबंधों में गुणात्मक बदलाव की शुरुआत 2022-23 में हुई. एक स्तर पर ये बदलाव पिछले दो दशकों के दौरान की गई कोशिशों का नतीजा था. दूसरे स्तर पर देखें तो ये बदलाव चीन के संबंध में भारत की तत्काल ज़रूरत का परिणाम था. महत्वपूर्ण बात ये है कि भारत-अमेरिका के संबंधों में परिवर्तन अमेरिका की नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक नीति के साथ अच्छी तरह मेल खाता है. इस नीति के बारे में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा कि ये नई औद्योगिक रूप-रेखा पर आधारित होगी जो उभरती तकनीकों के दोहन के साथ-साथ हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने और अमेरिका की सप्लाई चेन को अपने करीबी देशों के नज़दीक स्थापित करने पर ज़ोर देती है.
भारत और अमेरिका ने मई 2022 में उस समय एक बड़ा कदम उठाया जब टोक्यो में क्वॉड शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों देशों ने महत्वपूर्ण और उभरती तकनीकों के लिए पहल (iCET) का एलान किया. ये पहल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), क्वांटम कंप्यूटिंग, सेमीकंडक्टर और वायरलेस टेलीकम्युनिकेशन के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की एक सहयोगी रूप-रेखा है. इस प्रक्रिया को दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों- अजित डोभाल और जेक सुलिवन- ने आगे बढ़ाया.
आठ महीने बाद 23 जनवरी 2023 को iCET की पहली बैठक वाशिंगटन DC में आयोजित हुई जिसमें दोनों देशों के विज्ञान एवं तकनीक से जुड़े शीर्ष संस्थान और अधिकारी शामिल हुए. 17 जून 2024 को दिल्ली में इसकी दूसरी बैठक तक दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग को गहरा और व्यापक करने की तरफ एक प्रमुख निकाय के रूप में iCET की एक स्पष्ट तस्वीर उभरने लगी. बैठक के साथ एक बिज़नेस राउंड टेबल का आयोजन भी हुआ जिसने प्राइवेट सेक्टर के निवेश और साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (CEO) और थॉट लीडर्स को एकजुट किया.
कई क्षेत्रों में प्रयास जारी है लेकिन GE-414 जेट इंजन के उत्पादन के लिए GE-HAL के बीच समझौते जैसी कुछ सफलता पहले ही हासिल हो चुकी है.
21 सितंबर को मोदी और बाइडेन के बीच वार्ता के बाद जारी साझा बयान में उन उपलब्धियों की सूची बनाई गई है जो पिछले कुछ वर्षों के दौरान किए गए प्रयासों का परिणाम हैं. इनमें रक्षा और हाईटेक इस्तेमाल के मक़सद से इन्फ्रारेड, गैलियम नाइट्राइड और सिलिकॉन कार्बाइड चिप बनाने के लिए सेमीकंडक्टर फेब्रिकेशन प्लांट की स्थापना शामिल है. ग्लोबल फाउंड्रीज़ के ज़रिए एक और परियोजना इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), गाड़ियों के AI और डेटा सेंटर से जुड़ी चिप मैन्युफैक्चरिंग में रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिए GF कोलकाता पावर सेंटर की स्थापना थी.
इसके अलावा बयान में अमेरिका-भारत रक्षा औद्योगिक सहयोग रोडमैप के तहत की गई प्रगति के बारे में बताया गया. इसमें जेट इंजन समझौते के साथ-साथ गोला-बारूद और ज़मीनी आवागमन की प्रणाली बनाने को लेकर सहयोग को प्राथमिकता दी गई है.
जब आप पीछे मुड़कर क्लिंटन के समय से भारत-अमेरिका रणनीतिक और रक्षा संबंधों की राह पर नज़र डालते हैं तो कुछ ऐसे मौके हैं जहां सफलता हासिल हुई थी और उसके बाद स्थिरता आ गई थी. लेकिन बाइडेन के ज़माने में जो चीज़ उल्लेखनीय रही है वो है तेज़ी के साथ मुद्दों का निपटारा जो अपार संभावनाओं के साथ भविष्य के द्वार को खोलता है.
मनोज जोशी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डिस्टिंग्विश्ड फेलो हैं.
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