2004 एक महत्वपूर्ण वर्ष है क्योंकि इस साल 50 से ज़्यादा देशों में चुनाव हो रहे हैं. इन देशों में दुनिया का सबसे पुराना (अमेरिका) और सबसे बड़ा (भारत) लोकतंत्र भारत शामिल हैं. अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और 2022 में दोनों देशों के बीच सामानों एवं सेवाओं का द्विपक्षीय व्यापार 191 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया. ये साझेदारी साझा उद्देश्यों, लोकतांत्रिक मूल्यों और दोनों देशों की समृद्धि पर आधारित है जिसमें स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र समेत मानव विकास के लगभग सभी क्षेत्र शामिल हैं. गैर-संचारी रोग (नॉन-कम्युनिकेबल डिज़ीज़), संक्रामक बीमारियां, स्वास्थ्य प्रणाली एवं सेवाओं में मज़बूती और मां एवं शिशु की सेहत सहयोग के प्रमुख क्षेत्र रहे हैं जैसा कि 2010 में विश्व स्वास्थ्य सभा के दौरान जेनेवा में अमेरिका-भारत स्वास्थ्य पहल की शुरुआत के दौरान दोहराया गया था.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत-अमेरिका के बीच सहयोग के उपाय
द्विपक्षीय वैक्सीन पहल कार्यक्रम, क्षमता निर्माण कार्यक्रमों जैसे कि एपिडेमिक इंटेलिजेंस सर्विस (EIS), किफायती स्वास्थ्य देखभाल समाधान, आयुर्वेद और फार्मेसी के तहत स्वास्थ्य क्षेत्र में लगातार अनुसंधान से जुड़ा तालमेल रहा है. अमेरिका में बिकने वाले लगभग 40 प्रतिशत जेनेरिक फॉर्मूलेशन की सप्लाई भारत करता है. भारत की दवा कंपनियां अमेरिका में लगभग 14 जगहों में मैन्युफैक्चरिंग का काम करती हैं और उनके दवा प्लांट अमेरिका में फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) का अनुपालन करने में सबसे आगे हैं. भारत-अमेरिका स्वास्थ्य संवाद दोनों देशों के बीच स्वास्थ्य क्षेत्र में कई मौजूदा सहयोग पर चर्चा करने के लिए एक प्लैटफॉर्म मुहैया कराता है. 2021 के भारत-अमेरिका स्वास्थ्य संवाद के दौरान स्वास्थ्य एवं जैव चिकित्सा विज्ञान में सहयोग की स्थापना के लिए समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर हुए. इंटरनेशनल सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन रिसर्च (ICER) की स्थापना में सहयोग के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) और अमेरिका की एजेंसी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) के संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शियस डिज़ीज़ (NIAID) के बीच MoU पर भी हस्ताक्षर किए गए.
भारतीय प्रधानमंत्री की राजकीय यात्रा और दूसरे वैश्विक मंचों जैसे कि G20, क्वॉड और I2U2 के माध्यम से अमेरिका और भारत चिकित्सा विज्ञान, डायग्नोस्टिक्स और वैक्सीन के अलग-अलग क्षेत्रों में स्वास्थ्य सहयोग को बढ़ावा देने में शामिल हैं.
भारतीय प्रधानमंत्री की राजकीय यात्रा और दूसरे वैश्विक मंचों जैसे कि G20, क्वॉड और I2U2 के माध्यम से अमेरिका और भारत चिकित्सा विज्ञान, डायग्नोस्टिक्स और वैक्सीन के अलग-अलग क्षेत्रों में स्वास्थ्य सहयोग को बढ़ावा देने में शामिल हैं. इसके अलावा पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन एवं मानव स्वास्थ्य पर ध्यान और रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस) इंडो-पैसिफिक क्षेत्र और दुनिया के दूसरे हिस्सों में वैश्विक स्वास्थ्य शासन व्यवस्था, स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वास्थ्य कूटनीति को सुदृढ़ करने के लिए मज़बूत साझेदारी की तरफ ले गया है. हालांकि व्यापार मुद्दों जैसे कि जेनरलाइज़्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस (GSP) और मेडिकल उपकरणों के आयात को लेकर भारत और अमेरिका के बीच मतभेद हैं. अमेरिका के द्वारा मार्च 2019 में भारत को अपने जेनरलाइज़्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस (GSP) से हटाने की घोषणा ने स्वास्थ्य समेत कई क्षेत्रों में अमेरिका-भारत सहयोग पर असर डाला. भारत ने मेडिकल उपकरणों के आयात/बाज़ार तक पहुंच में असमानता, जिसका आरोप अमेरिका ने लगाया था, को कम करने के लिए भी कदम उठाए हैं.
स्वास्थ्य के निर्धारकों में भारत-अमेरिका के बीच सहयोग के उपाय
स्वास्थ्य से परे स्वच्छ ऊर्जा, अंतरिक्ष, रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में भारत-अमेरिका द्विपक्षीय सहयोग और निवेशों ने स्वास्थ्य परिणामों को प्रभावित किया है. कोविड-19 महामारी, वैश्विक संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, कार्बन फुटप्रिंट, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार, व्यापार एवं तकनीक की चिंताएं और सतत विकास लक्ष्यों (SDG) में प्रगति की कमी जैसी चुनौतियां स्वास्थ्य क्षेत्र पर असर डालने वाले ज़रूरी व्यापक मुद्दे हैं. एक व्यापक सहयोग की रणनीति के रूप में हेल्थ-इन-ऑल-पॉलिसी (HIAP) का दृष्टिकोण मौजूदा अनिश्चित और चुनौतीपूर्ण वैश्विक परिस्थितियों में भारत-अमेरिका के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए एक अवसर प्रदान करता है. हालांकि इसमें प्रगति सामाजिक एवं आर्थिक निर्धारकों, राजनीतिक नेतृत्व, राजनीतिक इच्छाशक्ति और राजनीतिक प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है. इस प्रकार 2024 चुनाव के नतीजे भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति और वैश्विक परिणामों की निरंतरता के लिए महत्वपूर्ण हैं.
अनिश्चित समय में लगातार सहयोग की आवश्यकता
वैक्सीन उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल के निर्यात पर रोक लगाने के लिए अमेरिका के द्वारा रक्षा उत्पादन अधिनियम (DPA) का उपयोग करना, पर्यावरण से जुड़े संरक्षण को वापस लेना एवं लोगों के स्वास्थ्य पर इसका असर, पेरिस समझौते से अमेरिका का अलग होना, कोविड-19 महामारी के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को अमेरिकी फंड पर रोक, अमेरिका-चीन संघर्ष, नेटो-EU चर्चा और पश्चिम एशिया, यूरोप, अफ्रीका एवं पूर्वी एशिया में जारी भू-राजनीतिक तनावों को लेकर अमेरिका के रुख ने उसकी वैश्विक धारणा बदल दी है. इस बीच अपनी बहु-व्यवस्थित विदेश नीति, निर्णायक कूटनीति और G20 शिखर सम्मेलन के दौरान ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) की आवाज़ के रूप में अपनी पहचान के साथ भारत ने मौजूदा विश्व व्यवस्था में ख़ुद को नए सिरे से स्थापित किया है. भारत और अमेरिका में राजनीतिक नेतृत्व ने मौजूदा भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक बदलाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हालांकि अलग-अलग पहलुओं एवं प्राथमिकताओं के बावजूद ग्लोबल सप्लाई चेन, मोबिलिटी (गतिशीलता) और व्यापार को प्रभावित करने वाली मानवीय परिस्थितियों और स्वास्थ्य सुरक्षा के मुद्दों का समाधान करने के लिए बातचीत और आम सहमति की ज़रूरत है. संदर्भ पर विचार करते हुए चुनाव के इस निर्णायक साल में भारत और अमेरिका में राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका वैश्विक सार्वजनिक कल्याण और वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु है. चूंकि दुनिया को एक ज़्यादा मज़बूत, अनुकूल वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के ढांचे की आवश्यकता है, ऐसे में भारत और अमेरिका अपनी मज़बूतियों का लाभ उठाकर और आम सहमति पर पहुंच कर दुनिया भर में आजीविका को बचाने के लिए तालमेल करके इस परियोजना का नेतृत्व कर सकते हैं.
भारत और अमेरिका में राजनीतिक नेतृत्व ने मौजूदा भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक बदलाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हालांकि अलग-अलग पहलुओं एवं प्राथमिकताओं के बावजूद ग्लोबल सप्लाई चेन, मोबिलिटी (गतिशीलता) और व्यापार को प्रभावित करने वाली मानवीय परिस्थितियों और स्वास्थ्य सुरक्षा के मुद्दों का समाधान करने के लिए बातचीत और आम सहमति की ज़रूरत है.
स्वास्थ्य प्रणाली, जलवायु सामर्थ्य एवं आपदा सामर्थ्य के बुनियादी ढांचे, डिजिटल स्वास्थ्य तकनीकों, महामारी की तैयारी, तकनीक के ट्रांसफर और संघर्ष प्रबंधन में सहयोग के संभावित क्षेत्रों को विधिवत प्राथमिकता देकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में रणनीतिक साझेदारी और सहयोग को सक्षम बनाया जा सकता है. ये आने वाले वर्षों में निवेश, सहयोग और प्रगति के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र होंगे. इसे 14वें ट्रेड पॉलिसी फोरम के दौरान भी दोहराया गया जहां मेडिकल उपकरणों की उपलब्धता, प्रमुख सामग्रियों की ख़रीद को जोखिम से अलग करना एवं विविध बनाना, रुकावट को कम करने के लिए अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के द्वारा निरीक्षण में बढ़ोतरी, मूल्यांकन एवं मान्यता देने वाले संस्थानों की आपसी स्वीकार्यता और एक साझा सुविधाजनक तंत्र (ज्वाइंट फेसिलिटेटिव मेकेनिज़्म या JFM) की स्थापना व्यापार से जुड़ी कुछ पहल थी जो दोनों देशों के बीच स्वास्थ्य सहयोग को मज़बूत कर सकती हैं. इसके अलावा बिना लाइसेंस की दवाइयों, मेडिकल उपकरणों और रसायन के व्यापार को रोकने के लिए 2023 में आयोजित “ऑपरेशन ब्रॉडर स्वोर्ड” अवैध व्यापार से निपटने और लोगों की स्वास्थ्य की रक्षा की दिशा में आपसी हितों का संकेत देता है.
भारत में चुनाव के नतीजे आ गए हैं और अमेरिका में नतीजों की भविष्यवाणी करना अभी मुश्किल है लेकिन भारत और अमेरिका के बीच स्वास्थ्य क्षेत्र में मज़बूत प्रतिबद्धता और सहयोग को लोगों की व्यापक भलाई के लिए आने वाले वर्षों में न सिर्फ़ बनाए रखना चाहिए बल्कि मज़बूत भी करना चाहिए.
दोनों देशों के बीच राजनीतिक नेताओं के हितों और प्राथमिकताओं के स्वस्थ मिलन के लिए साझेदारी को गहरा और व्यापक बनाकर तालमेल के मौजूदा क्षेत्रों को बढ़ाना महत्वपूर्ण हो जाता है. अमेरिका के द्वारा वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा एवं कूटनीति ब्यूरो की शुरुआत और भारत की स्वास्थ्य से जुड़ी पहल जैसे कि आरोग्य मैत्री, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, इंडिया स्टैक और कोविन प्लैटफॉर्म के साथ वैश्विक स्वास्थ्य शासन व्यवस्था में सहयोग को आने वाले नेतृत्व के दृष्टिकोण और कदमों के साथ मज़बूत किया जा सकता है. भारत-अमेरिका संबंधों का निहितार्थ दो वैश्विक किरदारों और दुनिया को प्राभावित करता है. हेल्थ-इन-ऑल-पॉलिसी के द्वारा की गई सिफारिश के अनुसार दूसरे क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी तैयार करते समय स्वास्थ्य परिणामों की छानबीन करना भी नेताओं के लिए महत्वपूर्ण है.
नया दौर
भारत में चुनाव के नतीजे आ गए हैं और अमेरिका में नतीजों की भविष्यवाणी करना अभी मुश्किल है लेकिन भारत और अमेरिका के बीच स्वास्थ्य क्षेत्र में मज़बूत प्रतिबद्धता और सहयोग को लोगों की व्यापक भलाई के लिए आने वाले वर्षों में न सिर्फ़ बनाए रखना चाहिए बल्कि मज़बूत भी करना चाहिए. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, संप्रभुता के सम्मान, समानता और सहयोग की पहल, प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष प्रबंधन में आपसी लाभ पर निर्भर करता है. स्वास्थ्य की रक्षा दुनिया भर में संघर्ष को ख़त्म करने और मानवीय कूटनीति को बढ़ाने में भी मदद कर सकती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस के शब्दों में कहें तो “शांति के बिना लोग स्वस्थ नहीं हो सकते और स्वास्थ्य के बिना शांति नहीं हो सकती”. मौजूदा अनिश्चित समय में अमेरिका और भारत- दोनों के बीच सहयोग दुनिया भर में शांति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से स्वास्थ्य प्रणाली के ढांचे को मज़बूत करके और मानवीय उपायों में निवेश करके वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली की अनुकूल बहाली को निर्धारित करने के लिए एकीकृत और कुशल दीर्घकालिक कदमों को लागू करने पर ध्यान दे सकता है. ये तभी संभव हो सकता है जब अलग-अलग मंचों, राजनीतिक प्रतिबद्धताओं, उत्तरदायित्व में भारत-अमेरिका के बीच आपसी संबंधों का उपयोग किया जाए और नियमित रूप से भारत-अमेरिका स्वास्थ्य संवाद हो.
(संजय एम. पट्टनशेट्टी मणिपाल के मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (MAHE) में प्रसन्ना
स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डिपार्टमेंट ऑफ ग्लोबल हेल्थ गवर्नेंस के प्रमुख हैं.)
(अनिरुद्ध इनामदार प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी में रिसर्च
फेलो हैं.)
(हेलमट ब्रैंड मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (MAHE) के प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के फाउंडिंग डायरेक्टर हैं.)
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