Author : Navdeep Suri

Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत-यूएई के बीच घनिष्ठ संबंध जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करेंगे

जहाज़रानी पोत परिवहन, ख़रीद-फरोख़्त और केसर: जम्मू-कश्मीर में प्रदर्शित भारत-यूएई रणनीतिक साझेदारी
जहाज़रानी पोत परिवहन, ख़रीद-फरोख़्त और केसर: जम्मू-कश्मीर में प्रदर्शित भारत-यूएई रणनीतिक साझेदारी

जब जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल (एलजी) श्री मनोज सिन्हा ने 6-7 जनवरी 2022 को संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) का दौरा किया, तो यह केवल दुबई एक्सपो में भारत मंडप में जम्मू-कश्मीर सप्ताह मनाने के लिए नहीं था. ये दौरा प्रमुख सरकारी नेताओं और व्यापारियों के साथ उनकी बैठकों के ज़रिए केंद्र शासित प्रदेश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आमंत्रित करने और पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के बाद, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की सरकार की कोशिशों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना गया. यह बात बेहद महत्वपूर्ण है कि उपराज्यपाल द्वारा निवेश लाने की कोशिशें जी-7 अर्थव्यवस्था के बजाय संयुक्त अरब अमीरात पर केंद्रित रहीं हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2015 में दोनों देशों के रिश्तों को ठीक करने की ओर क़दम बढ़ाया. अबू धाबी की उनकी यात्रा, 1981 के बाद से किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा यह पहली यात्रा थी जो संयुक्त अरब अमीरात के विशेष शासक शेख मोहम्मद बिन जायद के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाने के लिए ज़रूरी थी. 

इस विकास की शुरूआत भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच, घनिष्ठ रणनीतिक साझेदारी हुई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2015 में दोनों देशों के रिश्तों को ठीक करने की ओर क़दम बढ़ाया. अबू धाबी की उनकी यात्रा, 1981 के बाद से किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा यह पहली यात्रा थी जो संयुक्त अरब अमीरात के विशेष शासक शेख मोहम्मद बिन जायद के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाने के लिए ज़रूरी थी. पिछले एक दशक में, शेख मोहम्मद ने एक बेहतरीन और निर्णायक नेता के रूप में अपनी छवि बनाने के लिए कई काम किए हैं. वह कठिन मुद्दों पर अपना पक्ष रखने से कभी पीछे नहीं हटे. यह बात स्पष्ट रूप से उस वक्त सामने आई जब यूएई ने स्वर्गीय सुषमा स्वराज को 1 मार्च, 2019 को अबू धाबी में, इस्लामिक सहयोग संगठन की मंत्रिपरिषद की बैठक के 46वें सत्र में, सम्मानित अतिथि के रूप में आमंत्रित किया. 26 फरवरी को बालाकोट हवाई हमले के कुछ दिनों बाद, पाकिस्तान ने द्विपक्षीय रूप से संयुक्त अरब अमीरात का विरोध किया और यूएई के इस क़दम के आड़े आने के लिए, ओआईसी में अपने हितों का इस्तेमाल किया. लेकिन अमीरात का नेतृत्व दबाव के बाद भी नहीं झुका. पाकिस्तान ने अपनी ओर से किसी को न भेजकर उद्घाटन सत्र का बहिष्कार करके अपना विरोध दर्ज किया, जबकि वहीं दूसरी ओर भारत को उच्च स्तर पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने का मौका मिला. 

पाकिस्तान के सभी हथकंडे विफल

इसके मुश्किल से पांच महीने बाद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की कार्रवाई ने पाकिस्तान को एक बार फिर से आश्चर्यचकित कर दिया. पाकिस्तान ने ओआईसी के सदस्यों पर दवाब बनाने और भारत की हर तरह से निंदा करने की कोशिश की, लेकिन नई दिल्ली ने अपनी बेहतरीन कूटनीति से उनके सारे वार खाली कर दिए. 6 अगस्त, 2019 को अबू धाबी ने चतुराई दिखाते हुए अपना बयान जारी किया. अबू धाबी इस विषय पर टिप्पणी करने वाला पहला अरब राष्ट्र बना और उन्होंने कहा कि उन्हें इस गतिविधि के बारे में पता है और वह ‘जम्मू और कश्मीर राज्य से संबंधित निर्णय को भारतीय संविधान द्वारा निर्धारित आंतरिक मामले के रूप में देखते हैं. ‘ संयुक्त अरब अमीरात की स्थिति पर पाकिस्तान द्वारा पैदा किए गए सारे संदेह 24 अगस्त को उसी वक्त दूर हो गए, जब प्रधानमंत्री मोदी संयुक्त अरब अमीरात के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ऑर्डर ऑफ़ जायद प्राप्त करने अबू धाबी पहुंचे.

पूर्व राजनयिक अब्दुल बासित, जिन्होंने 2014 से 2017 तक, दिल्ली में उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया, उन्होंने अपने यूट्यूब ब्लॉग में पाकिस्तान की भावना को व्याख्यायित करते हुए कहा, “यह [एमओयू पर हस्ताक्षर] पाकिस्तान और जम्मू और कश्मीर दोनों के संदर्भ में भारत के लिए एक बड़ी सफलता है

पिछले दो सालों के दौरान, इस्लामाबाद ने सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों का समर्थन पाने के लिए अपने सारे हथकंडे आज़मा लिए, लेकिन उसे कोई फायदा नहीं मिला है. जब रियाद ने अनुच्छेद 370 के समाप्त होने के एक साल पूरा होने पर, ओआईसी के विदेश मंत्रियों के एक विशेष सत्र को बुलाने के अपने प्रस्ताव से इंकार कर दिया, तो पाकिस्तान ने और भी हल्की चाल का सहारा लिया. पाकिस्तान के अनुसार, वो तुर्की और मलेशिया जैसे समान विचारधारा वाले देशों के साथ काम कर सकता है, क्योंकि ये सभी देश उसके विचार के अधिक समर्थक थे. लेकिन पाकिस्तान की यह चाल भी बुरी तरह से उल्टी पड़ी क्योंकि रियाद ने 3.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तेल ऋण सुविधा को बंद कर दिया और अगस्त 2020 में तीन बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋणों को जल्द से जल्द चुकाने की बात कही. इस्लामाबाद द्वारा आमतौर पर की जाने वाली धमाकेदार बयानबाज़ी और देश की नाजुक आर्थिक स्थिति की वास्तविकता के बीच जो खाई है, वह पूरी तरह से स्पष्ट थी. यहां तक कि पाकिस्तानी जनरल बाजवा को सउदी अरब को शांत करने के लिए रियाद की आपातकालीन यात्रा करने के पर मजबूर होना पड़ा.

ज़मीनी स्तर पर स्थिर व बेहतरीन माहौल के अलावा बाहरी वातावरण सकारात्मक रहने से सरकार को आर्थिक विकास को आगे ले जाने के लक्ष्य से जुड़े कई साहसिक कदम उठाने में मदद मिली. साल 2021 के अक्टूबर महीने में, गृह मंत्री अमित शाह की कश्मीर घाटी की यात्रा के दौरान, श्रीनगर में प्रमुख निवेश प्रस्तावों पर चर्चा करने के लिए, दुबई से एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल की मेज़बानी हुई. 18 अक्टूबर को, प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि “जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने आज दुबई सरकार के साथ, रियल एस्टेट विकास, इंडस्ट्रियल पार्क, आईटी टावरों, बहुउद्देशीय टावरों, लॉजिस्टिक, मेडिकल कॉलेज, सुपरस्पेशलिटी अस्पतालों और भी बहुत कुछ के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं. एक महत्वाकांक्षी परियोजना से जुड़े प्रस्तावों से परे इस समझौता ज्ञापन का वास्तविक महत्व इस बात में था कि इस पर ‘आधिकारिक’ रूप से दुबई सरकार में शासक न्यायालय के महानिदेशक मोहम्मद इब्राहिम अल शैबानी और जम्मू-कश्मीर सरकार में उद्योग के प्रमुख सचिव रंजन प्रकाश ठाकुर द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे.

इस संबंध में पाकिस्तान की प्रतिक्रिया उम्मीद के मुताबिक ही रही. विश्लेषकों ने सहयोगी खाड़ी देशों के समर्थन के छूट जाने के लिए सत्तारूढ़ दल को ज़िम्मेदार ठहराया और वहीं पाकिस्तान के सोशल मीडिया पर #BoycottUAE अभियान के साथ, अबू धाबी के नेतृत्व को आड़े हाथों लिया गया. पूर्व राजनयिक अब्दुल बासित, जिन्होंने 2014 से 2017 तक, दिल्ली में उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया, उन्होंने अपने यूट्यूब ब्लॉग में पाकिस्तान की भावना को व्याख्यायित करते हुए कहा, “यह [एमओयू पर हस्ताक्षर] पाकिस्तान और जम्मू और कश्मीर दोनों के संदर्भ में भारत के लिए एक बड़ी सफलता है. जैसा कि ओआईसी के सदस्यों ने हमेशा कश्मीर पर पाकिस्तान की संवेदनाओं को सबसे आगे रखा है… अतीत में, उन्होंने कभी भी पाकिस्तान को यह महसूस नहीं कराया कि कश्मीर मुद्दे पर मुस्लिम राष्ट्र और ओआईसी हमारे पीछे नहीं खड़े हैं. हो सकता है कि वे पूरी तरह से खुलकर सामने न आए हों, लेकिन उन्होंने कश्मीर के मुद्दे पर हमारी भावनाओं को आहत करने की कभी कोशिश नहीं की.”

अलग-अलग मोर्चे पर सहयोग

जनवरी में एलजी मनोज सिन्हा की दुबई की यात्रा, अक्टूबर में श्रीनगर में हुई बैठकों को समझने और संयुक्त अरब अमीरात के साथ नए सहयोग के रणनीतिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए ज़रूरी थी. उनकी यात्रा के दौरान विभिन्न निवेश संबंधी वादों को अंतिम रूप दिया गया जिनमें से तीन आर्थिक महत्व के साथ-साथ राजनीतिक प्रतीकवाद के नज़रिए से भी ज़रूरी हैं.

एमार (Emaar) मध्य पूर्व के सबसे बड़े रियल एस्टेट ग्रुप में से एक है और इसके पोर्टफोलियो में दुबई का मशहूर बुर्ज खलीफा शामिल है. यह साल 2000 में अपने आईपीओ तक, पूरी तरह से दुबई सरकार के अधिकार में था. इसके साथ ही, इस ग्रुप में सरकार का 24.3 प्रतिशत हिस्सा है जिससे सरकार सबसे बड़ी एकल शेयरधारक बनी हुई है. इस ग्रुप ने श्रीनगर के 5,00,000 वर्ग फुट में विशाल ‘एमार मॉल’ बनाने का वादा किया है. इसके अलावा जिस 15 एकड़ की ज़मीन पर यह मॉल बनना है, उसका चयन कर लिया गया है और अब इस पर जल्द ही काम शुरू होने की संभावना है. एमार समूह के संस्थापक और अध्यक्ष मोहम्मद अलब्बार ने कहा: “हम जम्मू और कश्मीर के निवासियों और पर्यटकों को आने के लिए, एक विश्व स्तरीय मॉल बनाना चाहते हैं. उम्मीद है कि यह जल्द से जल्द बनकर तैयार हो जाए. एमार जम्मू और श्रीनगर में अचल संपत्ति, हॉस्पिटेलिटी और वाणिज्यिक तथा रेज़िडेंशियल प्रोजेक्ट में अन्य निवेशों पर भी विचार कर रहा है.

केंद्र सरकार ने श्रीनगर को एक प्रमुख हवाई अड्डा घोषित करके एक अच्छा कदम उठाया है, लेकिन अब निजी जेट विमानों को सीधे लैंडिंग की अनुमति देकर इस काम को और आगे बढ़ा सकते हैं. 

डीपी वर्ल्ड (DP World) दुनिया की सबसे बड़ी शिपिंग और लॉजिस्टिक्स कंपनियों में से एक है और पहले से ही इसके कंटेनर टर्मिनलों और अंतर्देशीय कंटेनर डिपो के माध्यम से भारत में बड़ी संख्या में मौजूद हैं. यह दुबई सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है और इसके जेबेल अली फ्री जोन ने दुबई को क्षेत्रीय व्यापार का केंद्र बनाने में ज़रूरी भूमिका निभाई है. डीपी वर्ल्ड ने जम्मू-कश्मीर में एक मल्टी-मोडल अंतर्देशीय कंटेनर टर्मिनल और कोल्ड स्टोरेज सुविधाएं देने का वादा किया है, जो कश्मीरी उत्पादों को राष्ट्रीय और वैश्विक बाजारों तक पहुंचने में एक ज़रूरी भूमिका निभा सकता है. अक्टूबर में एमओयू पर हस्ताक्षर करने के बाद, श्रीनगर मीडिया से बात करते हुए, डीपी वर्ल्ड के अध्यक्ष और सीईओ सुल्तान अहमद बिन सुलेयम ने इस बात की ओर इशारा किया कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों द्वारा खड़ी की जा सकने वाली मुश्किलों से पूरी तरह से वाकिफ़ हैं. हम जम्मू-कश्मीर को भारत से जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हम जानते हैं कि यह कैसे करना है; हम बाधाओं को जानते हैं.”

 

केरल में जन्मे युसूफ अली एमए ने अबू धाबी में जिस लूलू ग्रुप (The Lulu Group) की शुरुआत की वह मध्य पूर्व में सबसे बड़ा रिटेल ग्रुप बन गया है. बढ़ती संख्या में 220 से अधिक लूलू हाइपरमार्केट का एक विशाल नेटवर्क, जम्मू-कश्मीर से बागवानी, ताजा उपज, हस्तशिल्प और अन्य उत्पादों के लिए, एक पहले से तैयार बाज़ार प्रदान कर सकता है. एलजी मनोज सिन्हा और यूएई के विदेश व्यापार मंत्री डॉ. थानी अल जायौदी की उपस्थिति में युसुफ अली ने कहा कि उनके ग्रुप ने पहले चरण में 200 करोड़ रुपए का निवेश करने की योजना बनाई है और एक फूड प्रोसेसिंग और पैकेजिंग सुविधा और एक हाइपरमार्केट बनाने के लिए, आगे विस्तार के लिए ठीक इतनी ही राशि के निवेश को तय किया है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि स्थानीय युवाओं को रोजगार के बहुत सारे अवसर मिलेंगे और स्थानीय किसान समुदाय को भी मदद मिलेगी. डॉ. थानी ने कहा कि इससे जम्मू-कश्मीर और संयुक्त अरब अमीरात के बीच, व्यापार संबंधों बढ़ेंगे और वह “जल्द ही श्रीनगर में लुलु प्रोसेसिंग केंद्र बनाने पर विचार कर रहे हैं.” इस आयोजन के दौरान दोनों सरकारों के वरिष्ठ प्रतिनिधियों की मौजूदगी में लुलु हाइपरमार्केट में कश्मीर के जीआई टैग वाले केसर को लांच करने वाली तस्वीर ने एक मज़बूत संदेश दिया. 

हवाई यात्रा की सुविधा 

दूसरा ज़रूरी घटनाक्रम गो फर्स्ट द्वारा श्रीनगर-शारजाह की सीधी उड़ान का शुभारंभ था. पाकिस्तान ने इस बाबत एक बार फिर अपना संकीर्ण नज़रिया दिखाते हुए ओवरफ्लाइट क्लीयरेंस देने से इंकार कर दिया जिससे यात्रा के समय को 40 मिनट बढ गया. हालांकि  पाकिस्तान के इस बर्ताव से उड़ान में कोई प्रभाव नहीं पड़ा. यह उड़ान न केवल घाटी के निवासियों के खाड़ी देशों तक जाने के लिए बल्कि ताज़ा उपज और बागवानी से जुड़े उत्पादों की आवाजाही के लिए एक आसान रास्ते के रूप में सामने आई है. हालांकि, ओमिक्रॉन से जुड़े प्रतिबंधों ने इस उड़ान को अस्थायी रूप से प्रभावित किया है. यह उड़ान संयुक्त अरब अमीरात के साथ उभरते संबंधों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकती है. केंद्र सरकार ने श्रीनगर को एक प्रमुख हवाई अड्डा घोषित करके एक अच्छा कदम उठाया है, लेकिन अब निजी जेट विमानों को सीधे लैंडिंग की अनुमति देकर इस काम को और आगे बढ़ा सकते हैं. इसके चलते मोहम्मद अलब्बार, सुल्तान बिन सुलेयम और युसूफ अली जैसे प्रमुख व्यापारिक नेताओं के लिए अपनी परियोजनाओं से जुड़े दौरों के लिए, अपने निजी जेट से श्रीनगर आन-जाने का रास्ता साफ़ होगा.

राजनीतिक स्तर पर आवश्यक ज़मीनी काम किया जा चुका है. अब आने वाले कुछ महीने इन परियोजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए, दिल्ली और श्रीनगर से ज़रूरी सहायता और सुविधाओं को लेकर महत्वपूर्ण होंगे. उनकी सफलता एक ऐसा ज़बरदस्त प्रभाव पैदा करेगी जिससे अन्य निवेशक आकर्षित हो सकते हैं और कश्मीरी अर्थव्यवस्था को वास्तविक प्रगति मिल सकती है. असामाजिक तत्व इस संबंध में समस्या खड़ी करने की कोशिश करेंगे लेकिन अगर सरकार पूरी तरह से इस परियोजनाओं को अमल में लाने पर ध्यान केंद्रित करती है, तो उनके मंसूबे कभी सफल नहीं होंगे. कुल मिलाकर संयुक्त अरब अमीरात और भारत के बीच बनी यह रणनीतिक साझेदारी आश्चर्यजनक रूप से जम्मू और कश्मीर के लिए, आशा की किरण बन सकती है.

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