Author : Damya Bhatia

Published on Dec 29, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत का कारोबार जगत जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर उठाए जाने वाले निर्णायक क़दमों के साथ-साथ टिकाऊ वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में भारत के जुड़ाव में अहम भूमिका निभाएगा

टिकाऊ वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं और नेट-ज़ीरो से जुड़े बदलावों को लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ता हिंदुस्तान!
टिकाऊ वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं और नेट-ज़ीरो से जुड़े बदलावों को लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ता हिंदुस्तान!

2021 में ग्लासगो में COP26 सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने 2070 तक नेट-ज़ीरो हासिल करने के भारत के इरादे का ऐलान किया था. विश्व निर्यात में वैश्विक मूल्य श्रृंखला (GVC) का हिस्सा 50 फ़ीसदी से भी ज्यादा है, लिहाज़ा मज़बूत आर्थिक वृद्धि के लिए किसी भी देश को GVCs के साथ तगड़े संपर्कों की दरकार होती है. “फ़ैक्ट्री एशिया” से बेहद क़रीबी के बावजूद भारत GVCs से एकीकरण के मामले में अपने प्रतिस्पर्धियों से काफ़ी पिछड़ गया है. इस संदर्भ में रुकावटी कारकों में जलवायु कार्रवाई और बड़ी मात्रा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित करने में भारत की नाकामी शामिल है. सिविल सोसाइटी और निवेशकों की ओर से लगातार बढ़ते दबाव के बीच कई अगुवा बहुराष्ट्रीय कंपनियां और GVCs अपने आपूर्तिकर्ताओं की कार्बन छाप (footprints) घटाने की जुगत लगा रहे हैं. भारत इस दिशा में ज़रूरी पहल कर सकता है. इसके लिए जलवायु के हिसाब से चतुराई भरे तौर-तरीक़ों, समावेशी उत्पादन और कनेक्टिविटी का सहारा लिया जा सकता है. इससे भारतीय कारोबारों को भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर मिल जाएगा. इस तरह GVCs को डिकार्बनाइज़ करने की पहल नेट-ज़ीरो की ओर परिवर्तनकारी क़वायद को बढ़ावा देने के साथ-साथ मज़बूत आर्थिक बढ़त हासिल करने के लिए भी अहम है. इस लेख में हम इस बात पर ग़ौर करेंगे कि आख़िर क्यों भारतीय कारोबार जगत जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर कार्रवाई की अगुवाई करेगा. साथ ही इस पर भी नज़र दौड़ाएंगे कि कैसे इन तौर-तरीक़ों से वो टिकाऊ और मज़बूत GVCs के साथ भारत के जुड़ाव का वाहक बनेगा. 

Deloitte के ग्लोबल 2022 CxO सस्टेनेबिलिटी सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 80 फ़ीसदी से ज़्यादा एक्ज़ीक्यूटिव्स मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन पर प्रतिक्रिया जताने के मामले में दुनिया बेहद नाज़ुक मोड़ पर खड़ी है. ये कारोबारी पर्यावरणीय, सामाजिक और प्रशासकीय (ESG) से जुड़ी क़वायदों में शामिल हो चुके हैं.

जलवायु और पर्यावरण को अहमियत देने के फ़ायदे

Deloitte के ग्लोबल 2022 CxO सस्टेनेबिलिटी सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 80 फ़ीसदी से ज़्यादा एक्ज़ीक्यूटिव्स मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन पर प्रतिक्रिया जताने के मामले में दुनिया बेहद नाज़ुक मोड़ पर खड़ी है. ये कारोबारी पर्यावरणीय, सामाजिक और प्रशासकीय (ESG) से जुड़ी क़वायदों में शामिल हो चुके हैं. दुनिया आचार संबंधी विकल्प अपनाने और अपने पर्यावरणीय पदचिन्हों से विकास को जुदा करने के उपायों पर अमल के लिए कारोबार पर ज़्यादा से ज़्यादा निर्भर हो गई है. मौजूदा दौर में जलवायु परिवर्तन अनेक तरह से कंपनियों को प्रभावित करते हैं. इनमें भौतिक जोख़िमों (जैसे मौसम के उग्र मिज़ाज के चलते क्रियाकलापों पर पड़ने वाले प्रभाव) से लेकर परिवर्तन की प्रक्रिया में पैदा होने वाले जोख़िम (जो जलवायु परिवर्तन पर समाज की प्रतिक्रिया से पैदा होते हैं) तक शामिल हैं. तमाम उद्योगों के कारोबारी पोर्टफ़ोलियो में निम्न-कार्बन समाधानों की ओर परिवर्तनकारी क़वायद दुनिया में उत्सर्जन से जुड़ी तस्वीर में भारी गिरावट ला सकती है. साथ ही इन उपायों से जलवायु से उपजी बाधाओं को निम्न स्तर पर लाने, अप्रत्यक्ष उत्सर्जनों से निपटने में कारोबारों की मदद और कुल मिलाकर कारोबारों को और ज़्यादा टिकाऊ भी बनाया जा सकता है. महिंद्रा ग्रुप के CEO अनीश शाह के मुताबिक, “एक नए प्रकार के ROCE (यानी जलवायु और पर्यावरण पर परिणाम) का विचार धीरे-धीरे प्रासंगिक होता जा रहा है. कारोबार जगत ना सिर्फ़ कैसे और क्या उत्पादित करें, बल्कि सामाजिक और वित्तीय संदर्भों में इनका मोल कैसे लगाया जाए, ये बात भी इससे प्रभावित होती है.” टिकाऊ विकास की ओर प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करने के लिए ESG के स्कोर मज़बूत मिश्रण का काम करते हैं. मोटा मुनाफ़ा कमाने वाली वैसी कंपनियां जिनके ESG स्कोर निम्न हैं वो पूंजीगत प्रवाह गंवाने का जोख़िम झेल रहे हैं. दूसरी ओर अपने कार्बन पदचिन्ह कम करने का जागरूक निर्णय लेने वाली कंपनियां विदेशी निवेशकों और तमाम फ़ंड से भारी-भरकम निवेश हासिल कर रहे हैं. फंड्स और विदेशी निवेशकों से मिले ये निवेश भारत को अपने GVC जुड़ावों को मज़बूत बनाने में मदद कर सकते हैं. इसके अलावा ये जलवायु के हिसाब से बेहतर उत्पाद में भविष्य में और निवेश बढ़ाने में मददगार साबित हो सकते हैं. G20 सतत वित्त कार्य दल (SFWG) के ब्योरे के मुताबिक नेट-ज़ीरो परिवर्तन हासिल करने के लिए निजी संस्थाओं द्वारा प्रतिबद्धताओं की बाढ़ आ चुकी है. वैसे तो इन कारोबारों के पास डिकार्बनाइज़ेशन की स्पष्ट योजनाएं हैं लेकिन टिकाऊ लक्ष्यों के हिसाब से निवेश का तालमेल बिठाने के लिए मौजूदा साधनों और रुख़ों में परिवर्तनकारी नज़रिए का अभाव है. ये रुख़ वित्तीय संस्थाओं को वैश्विक अर्थव्यवस्था के बड़े और व्यापक हिस्से में निवेश से रोकता है. ग़ौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन में मदद के लिए इस तरह का निवेश ज़रूरी होता है. इसमें मौजूदा कार्बन-गहन कारोबार शामिल हैं. इस कड़ी में निजी क्षेत्र द्वारा तय की गई प्रतिबद्धताओं के प्रभावी क्रियान्वयन में मदद करने में SFWG जैसे समूह भूमिका अदा कर सकते हैं. G20 देशों द्वारा मज़बूत परिवर्तनकारी ढांचे से ना सिर्फ़ इन निवेशों को बढ़ावा मिलेगा बल्कि पहले से ठोस और टिकाऊ GVC संपर्क हासिल करने में भी सहायता मिलेगी. अब भारत को G20 की अध्यक्षता मिलने वाली है, ऐसे में वो एक मज़बूत टिकाऊ वित्तीय ढांचे के रोडमैप पर ज़ोर दे सकता है और उसे ऐसी क़वायद करनी भी चाहिए. इससे निजी क्षेत्र को निम्न-कार्बन पोर्टफ़ोलियो की ओर आगे बढ़ने में मदद मिल सकती है.

भारत की विशाल कारोबारी समूह में से एक इम्पिरियल टोबैको कंपनी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (ITC) की मिसाल लेकर हम जलवायु के हिसाब से चतुराई भरे उत्पादन में निवेश के लाभ देख सकते हैं. ITC ने अपने क्लाइमेट-स्मार्ट कार्यक्रमों और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को अपनाने की क़वायदों के ज़रिए भारत में कृषि क्षेत्र की तस्वीर बदलने में अहम योगदान दिया है.

भारत और कृषि मूल्य श्रृंखलाएं   

भारत के कृषि क्षेत्र को मिसाल के तौर पर ले सकते हैं. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा है. हालांकि देश के सकल मूल्य वर्धन (GVA) में इस क्षेत्र का योगदान केवल 20 प्रतिशत है और कृषि के वैश्विक व्यापार में भारत का हिस्सा महज़ 3 प्रतिशत है. भारत में कृषि उत्पादकता के सामने जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों के नुक़सान का ज़बरदस्त ख़तरा है. हार्वर्ड बिज़नेस रिव्यू में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक 2050 तक वैश्विक खाद्य मांग में 59-98 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने की संभावना है. जलवायु परिवर्तन जैसे कारक पर्याप्त खाद्य उत्पादन को मुश्किल बना देंगे. आर्थिक वृद्धि को बरक़रार रखने और उसके साथ-साथ वैश्विक व्यापार में भारत के हिस्से को बढ़ाने के लिए भारतीय कंपनियों द्वारा जलवायु के नज़रिए से चतुराई भरे उत्पादन में निवेश करना निहायत ज़रूरी हो जाता है. भारत की विशाल कारोबारी समूह में से एक इम्पिरियल टोबैको कंपनी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (ITC) की मिसाल लेकर हम जलवायु के हिसाब से चतुराई भरे उत्पादन में निवेश के लाभ देख सकते हैं. ITC ने अपने क्लाइमेट-स्मार्ट कार्यक्रमों और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को अपनाने की क़वायदों के ज़रिए भारत में कृषि क्षेत्र की तस्वीर बदलने में अहम योगदान दिया है. इनमें ITC मेटा मार्केट फ़ॉर एडवांस्ड एग्रिकल्चर रूरल सर्विसेज़ (ITC MAARS) जैसे कार्यक्रम शामिल हैं. जलवायु के हिसाब से समझदारी भरी खेती पर ITC के रणनीतिक ज़ोर से गेहूं, चावल, मसालों और तंबाकू पत्तों के निर्यात में ठोस बढ़ोतरी हुई है. इससे एक नया और टिकाऊ राजस्व प्रवाह तैयार हुआ और किसानों को फ़ायदा पहुंचा है. आज ITC MAARS जैसे कार्यक्रम भारत में मज़बूत और टिकाऊ प्रतिस्पर्धी कृषि मूल्य श्रृंखलाएं तैयार करने की दिशा में अहम क़दम साबित हो रहा है.

कृषि से परे नज़रिया

भारत के GVC संपर्कों को मज़बूत बनाने की क़वायद में जलवायु के नज़रिए से समझदारी भरी उत्पादन प्रक्रिया की अहमियत के मद्देनज़र कृषि केवल एक हिस्सा है. भारत की अन्य बड़ी कॉरपोरेट इकाइयां जैसे- रिलायंस इंडस्ट्रीज़, महिंद्रा एंड महिंद्रा और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ आदि भी कार्बन न्यूट्रल बनने के लिए भारी-भरकम निवेश कर रहे हैं. ऐसे कार्यक्रम व्यापक रूप से कनेक्टिविटी और उत्पादन प्रक्रियाओं में सुधार लाएंगे. साथ ही छोटी इकाइयों द्वारा इन्हें अपनाए जाने के लिए ठोस उदाहण की तरह भी उभरेंगे. 

आपूर्ति श्रृंखलाओं को कार्बन-रहित बनाने और मज़बूत सतत वित्त परिवर्तन ढांचे विकसित करने की व्यवस्थाओं पर व्यापक स्तर की परिचर्चाओं को प्रोत्साहित करने में भारत की भावी G20 अध्यक्षता एक और अवसर का काम कर सकती है. ऐसी क़वायद नेट-ज़ीरो की ओर भारत के बदलाव के लिए प्रोत्साहनकारी क़दम साबित हो सकती है. 

 

कार्बन तटस्थता की ओर व्यापक रूप से मुड़ने से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भी भारत में संयंत्र स्थापित करने और/या  आपूर्तिकर्ताओं को बढ़ाने का संकेत मिलेगा. इतना ही नहीं इससे इंटरनेशनल फ़ाइनेंस कॉरपोरेट जैसी विकासपरक संस्थाओं को भारत में निजी क्षेत्र में और ज़्यादा निवेश करने की प्रेरणा मिलेगी. साथ ही वो देश में मज़बूत GVC संपर्कों के उत्प्रेरक के तौर पर भी काम कर सकेंगे. आपूर्ति श्रृंखलाओं को कार्बन-रहित बनाने और मज़बूत सतत वित्त परिवर्तन ढांचे विकसित करने की व्यवस्थाओं पर व्यापक स्तर की परिचर्चाओं को प्रोत्साहित करने में भारत की भावी G20 अध्यक्षता एक और अवसर का काम कर सकती है. ऐसी क़वायद नेट-ज़ीरो की ओर भारत के बदलाव के लिए प्रोत्साहनकारी क़दम साबित हो सकती है. लिहाज़ा भारतीय कारोबारों द्वारा आने वाले वर्षों में किए गए योगदान, 2070 तक भारत के नेट-ज़ीरो लक्ष्य को हासिल करने लायक बनाने में मददगार हो सकते हैं.  


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