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जैसा कि चीन ने समुद्र पर वर्चस्व कायम करने के लिए निगाहें टिका रखी हैं, इसलिये वह नई और जटिल स्थितियों को समझने की क्षमता वाली सैन्य प्रणालियों के जरिए सागर की गहराइयों यानी डीप सी क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है, जिससे उनके हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में परमाणु संतुलन की दृष्टि से व्यापक सामरिक निहितार्थ होंगे।
‘द चाइना क्रॉनिकल्स’ सीरीज में यह 76वां लेख है।
ऐसा मालूम पड़ता है कि अंतर्राष्ट्रीय नीतिगत मंडलियों में इस बात पर सर्वसम्मति बढ़ती जा रही है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इन्टेलिजन्स — AI) प्रौद्योगिकियों का सैन्य इस्तेमाल ‘अपरिहार्य’ है। यह कथित अनिवार्यता मुख्य रूप से पी-5 देशों — यानी चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस की उपज है — जो सक्रिय रूप से AI के सैन्य अनुप्रयोगों यानी मिलिट्री एप्लीकेशन्स का अनुसरण कर रहे हैं, जबकि उसी समय उनके विकास और उत्पादन पर प्रतिबंधों का विरोध भी कर रहे हैं। ऐसी प्रौद्योगिकियों की खोज बिल्कुल स्पष्ट है: AI सिस्टम्स द्वारा गति, घातकता और प्रभावशीलता के संदर्भ में होने वाले लाभ आगे आने वाले दशकों में उन्हें सैन्य वर्चस्व का अनिवार्य घटक बना देंगे।
लिहाजा AI हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका को प्रमुख शक्ति की पदवी से अपदस्थ करने की चीन की सामरिक नीति का महत्वपूर्ण भाग है। चीन ने चूंकि समुद्र पर वर्चस्व कायम करने पर निगाहें टिका रखी हैं, इसलिये वह नई और जटिल स्थितियों को समझने की क्षमता वाली सैन्य प्रणालियों (यानी इन्टेलिजन्साइज्ड — (智能) मिलिट्री सिस्टम्स) के जरिए महासागर की गहराइयों यानी डीप सी क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है, जिसके हिंद-प्रशांत सामरिक परमाणु संतुलन के लिए व्यापक निहितार्थ होंगे। चीन दक्षिणी चीन सागर में अपनी चौकियों और पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में उनके व्यापक सामुद्रिक प्रभाव के जरिए तेजी से अपनी सामुद्रिक सैन्य पैंठ बढ़ाता जा रहा है। चीन की महत्वाकांक्षाएँ समुद्र की गहराइयों तक फैली हुई हैं। पिछले कुछ वर्षों में, चीन ने कथित तौर पर मैरियाना ट्रेंच में अकूस्टिक सेंसर्स लगा दिए हैं, मानवरहित AI पनडुब्बियों का विकास शुरू कर दिया है और वह दक्षिण चीन सागर में AI द्वारा संचालित डीप सी बेस की योजना बनाने में जुटा हुआ है।
चीन दक्षिणी चीन सागर में अपनी चौकियों और पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में उनके व्यापक सामुद्रिक प्रभाव के जरिए तेजी से अपनी सामुद्रिक सैन्य पैंठ बढ़ाता जा रहा है।
नीतिगत हलकों में पूरी जानकारी के साथ इस बात का विश्लेषण किया जा रहा है कि चीन की अंडर वॉटर क्षमताएं कुछ सामरिक लक्ष्यों को पूरा करती हैं: पहला, वे चीन को उसके विरोधियों से संबंधित विदेशी जहाजों का पता लगाने में समर्थ बनाती हैं और दूसरा, वे चीन की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने में योगदान देती हैं। चीन के डीप सी आईए क्षमताओं की तह तक जाने का प्रमुख कारण आने वाले परमाणु हमलों का सटीक रूप से पता लगाने के लिए उसका चिंतित रहना है। साथ ही, खासतौर पर अनेक परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों वाले दौर में — परमाणु रणनीति की मूलभूत दुविधा, यह है कि एक मजबूत विरोधी के खिलाफ अपने स्वयं के परमाणु हथियारों को सुरक्षित करने का प्रयास जो इस मामले में अमेरिका है — इससे सिस्टम के अन्य परमाणु शक्ति संपन्न देशों के लिए पहले हमले संबंधी अस्थिरता उत्पन्न होगी। दूसरे शब्दों में कहें, तो महासागर की गहराई तक जाकर परमाणु हथियारों को बचाने में समर्थ बनने की चीन की कोशिश — चाहे या अनचाहे रूप से भारत के साथ परमाणु संतुलन में अस्थिरता का कारण बनेगी। भारत पहले से ही AI और अन्य दोहरे — इस्तेमाल वाली उभरती प्रौद्योगिकियों में चीन के बढ़ते निवेश का ध्यान रख रहा है। जैसा कि जनरल बिपिन रावत ने कहा है, “उत्तरी सीमा पर हमारे विरोधी आर्टिफिशियन इन्टेलिजेंस और साइबर युद्ध पर काफी पैसा खर्च कर रहे हैं। हम भी पीछे नहीं रह सकते।”
इसके बावजूद चीन की डीप सी AI क्षमताओं के बारे में भारत की बुनियादी चिंता इस बात को लेकर होनी चाहिए कि विशेषकर परमाणु प्रणालियों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता को लेकेर चीन के नीतिगत हलकों में किसी तरह की चिंता दिखाई नहीं दे रही है। यूं तो चीन उभरती प्रौद्योगिकियों को तेजी से विकसित और सेना में एकीकृत करने के लिए “असैन्य-सैन्य मिश्रण” की नीति का बढ़-चढ़ कर पालन करता है, लेकिन यह अब तक स्पष्ट नहीं है कि यह एकीकरण करते समय इस तथ्य पर विचार किया गया है या नहीं कि प्रौद्योगिकियां विफल भी हो सकती हैं। 2017 की सीएनएएस रिपोर्ट में इस ओर इशारा किया गया है कि चीन के सामरिक चिंतकों का मानना है कि AI द्वारा मानव का स्थान लिया जाना “निश्चित” है, कमांड निर्णय लेने में भी। बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स द्वारा AI और स्वायत्तता के बारे में की गई चीन के साहित्य की समीक्षा में झूठी चेतावनी और सोचसमझ की गई कार्रवाई के विपरीत परमाणु हमलों का पता लगाने में असमर्थ होने जैसी बड़ी चिंता की ओर इशारा किया गया है।
यूं तो चीन उभरती प्रौद्योगिकियों को तेजी से विकसित और सेना में एकीकृत करने के लिए “असैन्य-सैन्य मिश्रण” की नीति का बढ़-चढ़ कर पालन करता है, लेकिन यह अब तक स्पष्ट नहीं है कि यह एकीकरण करते समय इस तथ्य पर विचार किया गया है या नहीं कि प्रौद्योगिकियां विफल भी हो सकती हैं।
स्टानिस्लाव पेत्रोव और वसिली अर्खिपोव जैसे व्यक्तियों की शीतयुद्ध के दौर की अनेक कहानियां हैं, जिनकी सूझबूझ ने सोवियत संघ और अमेरिका के बीच परमाणु युद्ध टालने में मदद की। उतनी ही संख्या हाल के दशकों की मशीन और कम्प्यूटर के नाकाम होने की विनाशकारी घटनाओं की भी है, जिनके घातक परिणाम हुए। साधारण सा तथ्य यह है कि बेशक हम AI को “बुद्धिमान” मानते हैं, लेकिन उसकी बुद्धिमत्ता काफी हद तक क्षेत्र विशेष से सम्बंधित है यानी यह संकुचित दायरे में और सीमित लक्ष्यों के लिए काम करती है। हालांकि परमाणु प्रतिरोधकता का क्षेत्र अविश्वसनीय रूप से जटिल है: न सिर्फ अपनी विलक्षण परमाणु नीति और सामरिक सन्दर्भ वाले विविध देश मौजूद हैं, बल्कि उनकी प्रतिरोधकता सेना, कूटनीतिक और आर्थिक संघटकों से भी उत्पन्न हुई है। इन सब बातों की समझ रखने वाले किसी इंसान को साथ जोड़े बिना केवल AI द्वारा संचालित परमाणु प्रतिरोधकता का विनाशकारी होना निश्चित है।
चीन की सैन्य AI आरएंडडी (R&D) की अबाधित मालूम पड़ने वाली रफ्तार के बारे में चीनी शैक्षणिक समुदाय में भी चिंता प्रकट की जाने लगी है। AI और राष्ट्रीय सुरक्षा के संबंध में चीनी चिंतन के बारे में सीएनएएस 2019 की रिपोर्ट में निम्नलिखित मुख्य चिंताओं पर रोशनी डाली गई है: पहला, AI का इस्तेमाल करने से कम लोगों के हताहत होने की वजह से सैन्य नीति निर्धारकों का ऐसी जोखिमपूर्ण कार्रवाइयां करने का हौंसला बढ़ गया है, जिसको वैसे उन्होंने टाल दिया होता। दूसरा, AI सिस्टम्स के इस्तेमाल संबंधी मानदंडों के अभाव की परिणति गलत धारणा और अवांछित प्रसार में हो सकती है।
भारत को इसका अनुसरण करने की बजाए, इस संभावना का लाभ उठाना चाहिए।
भारत को इसका अनुसरण करने की बजाए, इस संभावना का लाभ उठाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र समझौते के तत्वावधान में कुछ परम्परागत हथियारों (सीसीडब्ल्यू) जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों के बारे में मानदंड निर्धारित करने में भारत की अग्रणी भूमिका पहला सकारात्मक कदम है।
मानक स्तर पर, प्रमुख मानदंड निर्धारित करने वाले निकायों में शामिल भारतीय राजनयिकों को इस बात पर बल देना चाहिए कि AI परमाणु कमांडर की भूमिका नहीं निभा सकती। इसलिए, कोई भी परमाणु प्रणाली पूरी तरह स्वायत्त नहीं होनी चाहिए और बल प्रयोग के बारे में सभी निर्णयों में आवश्यक तौर पर ह्यूमन चेन ऑफ कमांड को शामिल किया जाना चाहिए। भारत को AI एल्गोरिथ्म की पारदर्शिता और व्याख्या का आकलन करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के सृजन को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।
AI क्षेत्र में मानदंडों का सृजन अपने आप में एक दौड़ है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नौसैनिक वर्चस्व कायम करने की चीन की इच्छा से प्रेरित समुद्र की गहराइयों में अस्थिरता पैदा करने की उसकी संभावित भूमिका के लिए प्रौद्योगिकियों की त्वरित तैनाती के खिलाफ है।
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Trisha Ray is an associate director and resident fellow at the Atlantic Council’s GeoTech Center. Her research interests lie in geopolitical and security trends in ...
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