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बढ़ते टैरिफ और जियोपोलिटिकल बदलाव के बीच, भारत अपनी आर्थिक संप्रभुता की रक्षा और विश्व व्यापार में अपनी भूमिका को नया रूप देने के लिए घरेलू बाज़ारों का लाभ उठाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.
Image Source: Getty Images
आजकल वैश्विक व्यापार ढांचा अभूतपूर्व तनाव की स्थिति से गुजर रहा है क्योंकि जियोपोलिटिकल आवश्यकताएं आर्थिक प्राथमिकताओं पर हावी होती जा रही हैं. राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा भारत से होने वाले सभी इम्पोर्ट पर लगाए गए व्यापक टैरिफ, ट्रंप द्वारा पुतिन के साथ विवादास्पद बातचीतों के बाद विकसित हो रहे अमेरिका-रूस संबंधों और भारत के घरेलू मैन्युफैक्चरिंग के लक्ष्यों का मेल एक जटिल ढांचे को जन्म देता है. इस परिस्थिति का सामना करने के लिए एक नई नीतिगत सोच और प्रतिक्रिया की ज़रूरत है.
नई दिल्ली का यह दावा कि भारत का ऊर्जा इम्पोर्ट एक आवश्यकता है जबकि अमेरिका और यूरोपीय संघ का रूस के साथ व्यापार नॉन-एसेंशियल वस्तु है, व्यापार आंकड़ों पर आधारित है.
भारत के रूस से ऊर्जा इम्पोर्ट का मूल तर्क यह था कि रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद पारंपरिक आपूर्ति यूरोप की ओर मोड़ दी गई थी, लेकिन यह तर्क अधिक जटिल हो गया है क्योंकि अमेरिका का रुख़ चुनावी मुद्दों और भारत को व्यापार रियायत देने के लिए मजबूर करने के प्रयासों से प्रेरित बयानबाजी और दबाव की ओर जाता नज़र आ रहा है. नई दिल्ली का यह दावा कि भारत का ऊर्जा इम्पोर्ट एक आवश्यकता है जबकि अमेरिका और यूरोपीय संघ का रूस के साथ व्यापार नॉन-एसेंशियल वस्तु है, व्यापार आंकड़ों पर आधारित है. ये आंकड़े यह साफ़ करते हैं कि रूस-भारत व्यापार कारोबार 2022 में 32.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2023 में 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाएगा, जिसमें रूसी एक्सपोर्ट में मुख़्य रूप से तेल, उर्वरक और मेटल्स शामिल हैं.
ट्रम्प के "लिबरेशन डे" टैरिफ, जो सभी अमेरिकी इम्पोर्ट पर बेसलाइन 10 प्रतिशत शुल्क लगाते हैं और साथ ही विशिष्ट देशों को काफ़ी अधिक दंड देते हैं, न केवल संरक्षणवादी इम्पल्स का परिचायक है, बल्कि वैश्विक व्यापार स्ट्रक्चर को नया रूप देने के लिए एक स्ट्रेटेजिक टूल के रूप में भी काम करता है. यह संरक्षणवादी वृद्धि, जिसके बारे में अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में 1.5 प्रतिशत से 2 प्रतिशत तक कमी ला सकती है, भारत की रणनीतिक गणनाओं को मौलिक रूप से बदल सकती है और इसकी जिओ इकोनॉमिक स्थिति को व्यापक तौर पर नए सिरे से सोचने को मजबूर कर सकती है.
भारत के सामने टैरिफ की चुनौती बाइलेटरल ट्रेड मैट्रिक्स से कहीं आगे है. शोध बताते हैं कि चीन और भारत जैसे अमेरिकी बाज़ारों में अधिक व्यापारिक जोख़िम वाले देशों को पिछले संरक्षणवादी उपायों के तहत GDP में तीव्र कमी का सामना करना पड़ा था. हालांकि, व्यापार में डायवर्सिफिकेशन, घरेलू औद्योगिक नीतियों और अमेरिकी डॉलर के विकल्प खोजने सहित स्ट्रेटेजिक अडॉप्टेशन दीर्घकालिक स्ट्रक्चरल सुधारों को प्रेरित कर सकती है.
इन बाहरी दबावों के जवाब में, भारत की स्ट्रेटेजिक धुरी एक नई समझ को दर्शाती है कि आर्थिक संप्रभुता और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता परस्पर विरोधी उद्देश्यों के बजाय पूरक हैं. 15 अगस्त 2025 को स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण ने पारंपरिक आर्थिक नीति से आगे बढ़ते हुए एक व्यापक दृष्टिकोण की रूपरेखा प्रस्तुत की, जिसमें 'दाम कम, दम ज़्यादा' यानी कम कीमत में उच्च गुणवत्ता का उनका आह्वान बढ़ते संरक्षणवाद और टैरिफ युद्धों से लैस वैश्विक परिवेश में एक सोची समझी प्रतिक्रिया का सूचक है.
इस स्ट्रेटेजी का आधार डेमोग्राफिक डिविडेंड है जो बहुत ही आकर्षक साबित होता है. वित्त वर्ष 2025 में आधी से अधिक आबादी 30 वर्ष से कम आयु की होगी और निजी उपभोग सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 61.4 प्रतिशत से अधिक होगा. भारत के पास एक ऐसा घरेलू बाज़ार है जो विकास और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दे सकता है. अनुमान है कि 2030 तक मध्यम वर्ग में 7.5 करोड़ मध्यम-आय वाले और 2.5 करोड़ संपन्न परिवार शामिल होंगे, जिससे ये वर्ग जनसंख्या का 56 प्रतिशत हो जाएगा और इससे अभूतपूर्व उपभोक्ता संख्या में वृद्धि होगी.
इस स्ट्रेटेजी का केंद्रबिंदु प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना है, जिसने अब तक 1.76 ट्रिलियन रुपये का निवेश आकर्षित किया है. इस योजना की अनूठी बात इसका इंसेंटिव स्ट्रक्चर है, जिसमें स्थानीय स्तर पर निर्मित वस्तुओं की बिक्री से इंसेंटिव और लाभ को जोड़ा गया है. यह योजना कंपनियों को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में एक साथ सेवा प्रदान करते हुए सेल्स को बड़े पैमाने पर बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं.
टेबल 1: भारत के प्रमुख सेक्टरल ट्रांसफॉर्मेशन
स्रोत: लेखक का अपना; प्रधानमंत्री के 79 वें स्वतंत्रता दिवस भाषण से रूपांतरित
(डिस्क्लेमर: भाषण का सार प्राप्त करने के लिए GPT-4o टूल का उपयोग किया गया है. इसके बाद जानकारी को एडिट किया गया और लेखक द्वारा परिभाषित प्रासंगिक कॉलम में रखा गया है. )
अमेरिका-रूस वार्ता की उभरती संभावनाएं भारत पर पक्ष लेने के दबाव को कम कर सकती हैं, हालांकि यह सब बहुत हद तक व्यापक जियोपोलिटिकल स्थिरता पर निर्भर करेगा. इसके तोड़ के रूप में भारत एकतरफा प्रतिबंधों से राजनयिक छूट, ऊर्जा इम्पोर्ट में विविधता लाने और अपनी कमज़ोरियों को कम करने और अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए BRICS+ जैसी साउथ -साउथ साझेदारियों को मजबूत करने का प्रयास कर रहा है.
'वोकल फॉर लोकल' और 'स्वदेशी' मैन्युफैक्चरिंग पर ज़ोर एक ऐसा चक्र बनाता है जहां घरेलू मांग के पैमाने को बढ़ा सकती है, प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाती है और वैश्विक बाज़ार तक पहुंच को सक्षम बनाती है. सप्लाई चैन में व्यवधानों के बीच 'मेक इन इंडिया' को नए सिरे से बढ़ावा देना समय के अनुकूल है, जिसमें स्ट्रेटेजिक रिज़र्व, टार्गेटेड सेक्टरल सपोर्ट और अधिक व्यापक आर्थिक बफर शामिल हैं.
जैसे-जैसे गठबंधन टूट रहे हैं और नई साझेदारियां उभर कर सामने आ रही हैं, भारत राष्ट्रीय हितों को अहमियत देते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता पर जोर दे रहा है.
हालांकि, कमज़ोर बुनियादी ढांचा, रेगुलेटरी टकराव और कुशल श्रमिकों की कमी जैसे संरचनात्मक बाधाएं तेजी से विस्तार की योजना को बाधित कर सकती हैं, इससे निपटने के लिए टैरिफ और सब्सिडी से परे सुधारों की ओर ध्यान देना होगा और गतिशील तुलनात्मक लाभ अर्जित करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा. यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) और जनधन-आधार-मोबाइल (JAM) की तिगड़ी जैसी डिजिटल उपलब्धियां भारत की इनोवेशन क्षमता को दर्शाती हैं लेकिन मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में इस सफ़लता को साकार करना नीतियों के सतत क्रियान्वयन पर निर्भर करेगा.
जैसे-जैसे गठबंधन टूट रहे हैं और नई साझेदारियां उभर कर सामने आ रही हैं, भारत राष्ट्रीय हितों को अहमियत देते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता पर जोर दे रहा है. यह बदलाव निर्यात-आधारित मॉडलों पर निर्भरता से दूर होकर किसी भी प्रकार के बाहरी झटकों से बचाव के लिए घरेलू क्षमताओं को मजबूत करने की ओर बढ़ते नज़र आते हैं. विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को निशाना बनाकर भारत की रणनीति तकनीकी आत्मनिर्भरता को मल्टीपोलर व्यवस्था में लचीलेपन के साथ जोड़ने लगती है. लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि इस रणनीति की सफ़लता संरचनात्मक बाधाओं को दूर करते हुए टिकाऊ रणनीतिक स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए इनोवेशन-आधारित विकास की गति बनाए रखने पर निर्भर करेगी.
सौम्या भौमिक, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के सेंटर फ़ॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी (CNED) में विश्व अर्थव्यवस्था और स्थिरता के फेलो हैं और इस विषय के लीड हैं.
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Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...
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