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भारत जैसे विकासशील देश के लिए 21वीं सदी में विकास को स्थायी बनाने के लिए ज़रूरी मानवीय पूंजी की संरचना करने के लिए शिक्षा एक बुनियादी औज़ार बनकर उभरती है.
ये लेख हमारी सीरीज़, ‘रिइमैजिनिंग एजुकेशन/ इंटरनेशनल डे ऑफ एजुकेशन 2024’ का एक हिस्सा है.
भारत में आबादी का परिदृश्य काम कर सकने वालों (15-64 आयु वर्ग) की काफ़ी तादाद वाला है, जो एक ऐसी सामरिक बढ़त है, जो देश को मज़बूत आर्थिक विकास और उच्च उत्पादकता की तरफ़ आगे बढ़ा सकता है. जनसंख्या को लेकर 2030 के पूर्वानुमान एक प्रभावशाली तस्वीर पेश करते हैं, जिसमें इस महत्वपूर्ण आयुवर्ग में 1.04 अरब लोग होंगे, जो आबादी में कामगारों पर निर्भर कम लोगों के अनुपात की उम्मीद जगाते हैं. हालांकि, इस डेमोग्राफिक डिविडेंड की अवधि समय को लेकर संवेदनशील है, जिससे तुरंत और बहुत सोच-समझकर बनाई गई नीतियां लागू करने की ज़रूरत है, ताकि आबादी की इस बढ़त की पूरी संभावना का लाभ उठाया जा सके.
आबादी की इस बढ़त का लाभ उठाने के लिए भारत में शिक्षा के इकोसिस्टम की भूमिका केंद्रीय है. क्योंकि लगभग एक चौथाई आबादी, ऐसे आयु वर्ग में आती है, जिसे सक्रियता से अपनी पढ़ाई पर ज़ोर देना चाहिए.
आबादी की इस बढ़त का लाभ उठाने के लिए भारत में शिक्षा के इकोसिस्टम की भूमिका केंद्रीय है. क्योंकि लगभग एक चौथाई आबादी, ऐसे आयु वर्ग में आती है, जिसे सक्रियता से अपनी पढ़ाई पर ज़ोर देना चाहिए. कौशल की बदलती ज़रूरतें और इनोवेशन पर निर्भरता को देखते हुए अब शिक्षा का ज़ोर सिर्फ़ नाम लिखाने वालों की तादाद बढ़ाने से आगे बढ़कर अच्छी शिक्षा पर होना चाहिए. आज के दौर की जटिलताओं से निपटने के लिए जिस ऊर्जावान, वैश्वीकृत और टिकाऊ कौशल की ज़रूरत है, वो उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा की मज़बूत बुनियाद पर टिका है.
इस संदर्भ में अच्छी शिक्षा पर ज़ोर देने वाले संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास के लक्ष्य चार (SDG4), भारत में मानवीय पूंजी को आगे बढ़ाने की बुनियाद का काम करते हैं. अच्छी शिक्षा को आर्थिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कारक माना जाता है. SDG 4 न केवल टिकाऊ विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, बल्कि ये भारत की आर्थिक संभावनाओं का लाभ उठाने में भी बड़ी भूमिका अदा करते हैं. मानवीय पूंजी के विकास को प्राथमिकता देकर SDG 4 का लक्ष्य सबके लिए प्रीस्कूल और माध्यम शिक्षा उपलब्ध कराना है, ताकि स्कूलों में 100 प्रतिशत ग्रॉन एनरोलमेंट रेशियो (GER) को हासिल किया जा सके.
चित्र 1: SDG 4 का अन्य SDG के साथ आपसी संबंध
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भारत में ज़मीनी सबूत मानवीय पूंजी और आर्थिक विकास के बीच सीधे संबंध को साबित करते हैं. 1980 से 2017 के बीच वार्षिक आंकड़ों का इस्तेमाल करके 2020 में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि दूरगामी आर्थिक विकास सुनिश्चित करने में मानवीय और भौतिक पूंजी, दोनों ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. कम अवधि में आर्थिक समृद्धि मानवीय और भौतिक पूंजी, व्यापार की मात्रा और सरकार की वित्तीय स्थिति के स्तर को प्रभावित करती है. इस विश्लेषण में मानव पूंजी सूचकांक को मानवीय पूंजी के स्तर के पैमाने और भौतिक पूंजी, व्यापार के खुलेपन और महंगाई के तौर पर इस्तेमाल किया गया है और आर्थिक मूल्यांकन की तकनीक़ का इस्तेमाल करके दूरगामी संतुलन का आकलन किया गया है.
टिकाऊ विकास के लक्ष्यों (SGD) 1 से 6 के व्यापक दायरे सामूहिक रूप से टिकाऊ विकास के ढांचे के अंतर्गत मानव पूंजी को आगे बढ़ाने की एक सामूहिक औऱ व्यापक रणनीति बनाते हैं. आपस में जुड़े हुए ये लक्ष्य न केवल SDG की व्यापक रूप-रेखा से मेल खाते हैं, बल्कि भारत में युवा पूंजी की केंद्रीय भूमिका को भी रेखांकित करते हैं. सच तो ये है कि SDG की प्रक्रियाओं में युवाओं को शामिल करना, उच्च स्तर पर स्वीकार किया जाता है, जिससे SDG को कामयाबी से लागू करने के लिए बहुआयामी प्रतिनिधित्व और समावेश की अहमियत ज़ाहिर होती है.
टेबल 1: युवा आबादी पर सीधा असर डालने वाले स्थायी विकास (SDG) के लक्ष्यों के सूचकांक
स्रोत: लेखक का अपना और संयुक्त राष्ट्र (UN) का युवा SDG डैशबोर्ड
इन लक्ष्यों को हासिल करने में निवेश, विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रयास करना सर्वोच्च प्राथमिकता हो जाता है, ताकि भारत की युवा आबादी की संभावनाओं का भरपूर उपयोग किया जा सके. ये सामरिक निवेश आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण संबंधी पहलुओं में निवेश करके टिकाऊ विकास में योगदान देता है, जिससे इन अहम तत्वों के आपसी संबंध रेखांकित होते हैं. इसके अलावा, टिकाऊ विकास की रूप-रेखा के अंतर्गत कौशल विकास और अच्छी शिक्षा की अहमियत पर ज़ोर देना, मानव पूंजी के विकास के व्यापक एजेंडे से सीधे तौर पर जुड़ जाता है. विशेषज्ञता की लगातार बदलती ज़रूरत के मुताबिक़ ख़ुद को तुरंत ढालने में सक्षम कामगारों की फौज को पोषित करना, दूरगामी आर्थिक मज़बूती के लिए एक आवश्यक तत्व बन जाता है.
भारत जैसे विकासशील देश के लिए शिक्षा एक ऐसे बुनियादी औज़ार के तौर पर उभरकर सामने आती है, जो ऐसी मानवीय पूंजी की संरचना कर सके,जो 21वीं सदी में स्थायी विकास के लिए आवश्यक है.
भारत जैसे विकासशील देश के लिए शिक्षा एक ऐसे बुनियादी औज़ार के तौर पर उभरकर सामने आती है, जो ऐसी मानवीय पूंजी की संरचना कर सके,जो 21वीं सदी में स्थायी विकास के लिए आवश्यक है. बच्चों के स्कूलों में नाम लिखाने के मामले में काफ़ी प्रगति हासिल की जा चुकी है. लेकिन, अब हमारा ज़ोर अच्छी शिक्षा देने पर होना चाहिए. आख़िर में, जब स्थायी विकास के लक्ष्यों को लागू करने के लिए बजट आवंटन बहुत दुर्लभ होता जा रहा है, तो वित्तीय संसाधनों का अधिकतम उपोयग शिक्षा के मूलभूत ढांचे के विकास के लिए करना, सर्वोच्च प्राथमिकता बन जाता है. भारत में टिकाऊ और समावेशी विकास के प्रयास, बहुत हद तक शिक्षा की परिवर्तनकारी शक्ति की अहमियत स्वीकार करने पर निर्भर करते हैं और देश की मानवीय पूंजी को मज़बूत बनाने के लिए संसाधनों को सामरिक रूप से इस्तेमाल करने पर ज़ोर देते हैं.
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Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...
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