Author : Saaransh Mishra

Published on Dec 15, 2021 Updated 0 Hours ago

सभी द्विपक्षीय संबंधों की तरह भारत और रूस संबंधों में भी बाधाएं आती रही हैं लेकिन इस रिश्ते की लंबी उम्र उन बाधाओं से तय करने की ज़रूरत नहीं है.

भारत-रूस संबंध: स्थायी रिश्ते के लिए सिर्फ़ एस-400 समझौता अकेला प्रमाण नहीं है!

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रूस में सैन्य-तकनीक (Military Technology in Russia) सहयोग के लिए संघीय सेवा (एफएमएसटीसी) के निदेशक दिमित्री शुगायेव ने हाल में रूस की समाचार एजेंसियों से कहा कि एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम (S-400 Air Defense Missile System) की पहली खेप की सप्लाई पहले ही शुरू हो चुकी है. ये भारत और रूस के बीच पांच लंबी दूरी की ज़मीन से हवा में मार करने वाली एयर मिसाइल सिस्टम (Air Missile System) के लिए 5.5 अरब अमेरिकी डॉलर (American Dollar) के समझौते का एक हिस्सा है जिस पर दोनों देशों ने 2018 में हस्ताक्षर किए थे.

भारत और रूस के बीच इस घटनाक्रम को उस प्रसंग में लिया जाना चाहिए जिसके तहत गंभीर रूप से अटकलें लग रही थीं कि भारत और रूस के क्रमश: अमेरिका और चीन के साथ क़रीबी संबंधों की वजह से दोनों देशों के बीच मनमुटाव है. लेकिन भारत और रूस के बीच जांचे-परखे रिश्तों के टिकाऊ होने को लेकर बढ़ते संदेह के बीच दोनों देशों के संबंधों पर विस्तार से नज़र डालें तो साफ़ संकेत मिलता है कि ये अभी भी स्थायी बने हुए हैं, हालांकि इसमें कुछ बाधाएं ज़रूर हैं.

भारत और रूस के बीच जांचे-परखे रिश्तों के टिकाऊ होने को लेकर बढ़ते संदेह के बीच दोनों देशों के संबंधों पर विस्तार से नज़र डालें तो साफ़ संकेत मिलता है कि ये अभी भी स्थायी बने हुए हैं

ये कोई गुप्त बात नहीं है कि भारत और रूस के संबंध 60 के दशक से लेकर अब तक अक्सर काफ़ी हद तक राजनीतिक और सामरिक विश्वास के द्वारा पता चलते रहे हैं. भारत के द्वारा शीत युद्ध के वर्षों के दौरान गुटनिरपेक्षता की आधिकारिक नीति के बावजूद उसने सोवियत संघ के साथ बेहद क़रीबी संबंध साझा किए. इसका संकेत 1971 में हुई भारत-सोवियत मित्रता और सहयोग की संधि से मिलता है. दूसरी तरफ़ अमेरिका ने भारत के पड़ोसी पाकिस्तान के साथ क़रीबी संबंध स्थापित किए. बात चाहे सार्वजनिक रूप से 70 के दशक में भारत के परमाणु परीक्षणों के समर्थन की हो या 70 के दशक से अब तक भारतीय रक्षा क्षेत्र के बुनियादी ढांचे में सोवियत मशीनरी के विशाल हिस्से की हो या अलग-अलग मौक़ों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने वीटो के अधिकार का इस्तेमाल कर कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप की वक़ालत करने वाले प्रस्तावों को ठुकराने की हो, अमेरिका से हटकर रूस हमेशा से एक विश्वसनीय दोस्त साबित हुआ है. इसके जवाब में भारत ने भी क्रीमिया के मुद्दे पर रूस की नीति की आलोचना करने से परहेज करते हुए एक शांतिपूर्ण संवाद की बात कही है.

सोवियत संघ के विघटन के बाद जब रूस ने अपनी विदेश नीति की फिर से संरचना की कोशिश की तो भारत ने भी अपनी अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के रास्ते पर चलते हुए मुख्य रूप से पश्चिमी देशों की तरफ़ देखना शुरू किया. घरेलू प्राथमिकताओं की तरफ़ ध्यान देने की कोशिश के कारण कुछ वर्षों के लिए दोनों देशों के बीच रिश्ते में वैसा उत्साह नहीं रहा. लेकिन अपने लंबे संबंध का प्रमाण देते हुए भारत और रूस ने द्विपक्षीय हिस्सेदारी में इस कमी को काफ़ी दिनों तक कायम नहीं रहने दिया. दोनों देशों ने मित्रता और सहयोग को लेकर 1993 में एक संधि पर हस्ताक्षर किए. उसके बाद 1994 में सैन्य-तकनीक सहयोग पर एक संधि की. इस तरह 90 के दशक के मध्य तक संबंधों में हल्की गिरावट को पीछे छोड़ते हुए दोनों देशों ने स्पष्ट तौर पर इसे नया जीवन दिया.

चीन के साथ भारत के ख़राब होते संबंधों की पृष्ठभूमि में चीन और रूस के बीच ये घनिष्ठता निश्चित रूप से भारत के लिए चिंता की वजह है. 

मुश्किल दौर से गुज़र रहा है भारत-रूस संबंध

ऐतिहासिक रूप से इस अटल और मज़बूत संबंध के बावजूद भारत-रूस रिश्ते एक मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं. 2014 में रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के बाद तो इसमें और भी दिक़्क़तें आई हैं. प्रतिबंधों की वजह से रूस को चीन के साथ अपने आर्थिक और सामरिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए मजबूर होना पड़ा है. चीन के साथ भारत के ख़राब होते संबंधों की पृष्ठभूमि में चीन और रूस के बीच ये घनिष्ठता निश्चित रूप से भारत के लिए चिंता की वजह है. तेज़ी से भागते चीन का मुक़ाबला करने का साझा लक्ष्य भी भारत को अमेरिका के नज़दीक लाने की एक मुख्य वजह रहा है. लेकिन इसकी वजह से निस्संदेह रूस असहज हो गया है क्योंकि हाल के दिनों में पश्चिमी देशों के साथ रूस के संबंधों में तेज़ी से गिरावट आई है.

रूस ने अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीकि का विरोध किया है जिसका भारत एक अहम हिस्सा है. साथ ही रूस ने क्वॉड के खड़ा होने की ये कहकर तीखी आलोचना भी की कि अमेरिका के नेतृत्व में ‘हठी, आक्रामक और कपटपूर्ण’ नीति का मक़सद भारत को अपनी चीन विरोधी चाल में उलझाना है. रूस ने अमेरिका पर ये आरोप लगाया है कि वो भारत और रूस के बीच घनिष्ठ संबंधों को नुक़सान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है. इन बातों के अलावा चीन-रूस व्यापार के मुक़ाबले रूस के साथ भारत के व्यापार के आंकड़े अपनी संभावना को छूने में नाकाम रहे हैं. इन सभी बातों की वजह से भारत और रूस के बीच विश्वसनीय दोस्ती के ख़त्म होने की आशंका जताई जाने लगी.

आर्थिक प्रतिबंध की इन धमकियों के बावजूद, जो हाल के वर्षों में भारत-अमेरिका संबंधों में हुई तरक़्क़ी को चोट पहुंचा सकती है, भारत ने स्पष्ट रूप से ये कह दिया है कि वो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण समझे जाने वाले एस-400 डिफेंस सिस्टम को हासिल करना जारी रखेगा. 

लेकिन एस-400 डिफेंस सिस्टम को लेकर समझौते पर कायम रहने का फ़ैसला निश्चित रूप से इसके उलट बताता है. भारत के द्वारा एस-400 डिफेंस सिस्टम हासिल करने के बाद अमेरिका अपने विरोधियों का आर्थिक प्रतिबंध के द्वारा मुक़ाबला अधिनियम (सीएटीएसएए) से भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है. इस अधिनियम का लक्ष्य दूसरे देशों को रूस के हथियारों की बिक्री को सीमित करना है ताकि रूस के सैन्य-औद्योगिक प्रतिष्ठानों को फंड से वंचित रखा जा सके. वैसे तो सीएटीएसएए के तहत छूट का प्रावधान है लेकिन इस बात का कोई संकेत नहीं है कि ये छूट भारत पर लागू होगी. इससे भी बढ़कर, ऐसी ख़बरें आई थीं कि फरवरी में बाइडेन प्रशासन के एक अधिकारी ने सीएनबीसी-टीवी18 से कहा था कि भारत और रूस के बीच इस समझौते की वजह से आर्थिक प्रतिबंध लग सकते हैं.

प्रतिबंध की धमकियों के बीच घनिष्ट होते संबंध

आर्थिक प्रतिबंध की इन धमकियों के बावजूद, जो हाल के वर्षों में भारत-अमेरिका संबंधों में हुई तरक़्क़ी को चोट पहुंचा सकती है, भारत ने स्पष्ट रूप से ये कह दिया है कि वो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण समझे जाने वाले एस-400 डिफेंस सिस्टम को हासिल करना जारी रखेगा. अपनी स्वतंत्र नीति का अनुसरण करने के लिए भारत के द्वारा अमेरिका के साथ संबंध को जोख़िम में डालने का तथ्य निश्चित रूप से इस बात की तरफ़ इशारा करता है कि भारत में अपने हित के लिए सबसे अच्छा करने की व्यावहारिकता मौजूद है. ये रवैया भारत को रूस जैसे एक टिकाऊ और विश्वसनीय साझेदार के साथ संबंध को ख़राब करने से रोकेगा. वो भी सिर्फ़ इस वजह से कि अमेरिका के साथ उसके अच्छे रिश्ते हैं. अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों का मंडराता ख़तरा भी साझेदार के रूप में अमेरिका की अविश्वसनीयता की छवि को दोहराता है जैसा कि श्रीमॉय तालुकदार लिखते हैं. ये लंबे वक़्त के लिए रूस की विश्वसनीयता को बहुमूल्य बनाता है.

भारत और रूस के प्रतिनिधि अलग-अलग मुद्दों पर एक-दूसरे से बातचीत करते हैं जो दोनों देशों के बीच संबंधों की घनिष्ठता को दिखाता है. 

इस विशेष समझौते के अलावा भी भारत-रूस संबंधों में स्थायित्व पर ज़ोर देने देने वाले पर्याप्त संकेत हैं जिन्हें संदेह करने वालों ने छिपा दिया है. भारत के द्वारा हथियारों के लिए अपनी निर्भरता कम करने और 2018 से हथियारों के सप्लायर में विविधता की चाहत के बावजूद दोनों देशों ने पिछले तीन वर्षों में कई बड़े सौदों पर हस्ताक्षर किए हैं और आने वाले वर्षों में इसमें और इज़ाफ़ा होने की उम्मीद है. जैसा कि शेखर गुप्ता ने भी काफ़ी दिलचस्पी से ध्यान दिलाया है कि अगर भारत अभी युद्ध में जाता है तो उसके ज़्यादातर उपकरण रूस में बने होंगे क्योंकि भारत के क़रीब-क़रीब 86 प्रतिशत रक्षा उपकरण रूसी मूल के हैं.

राजनयिक तौर पर भी दोनों देशों ने जल्दी-जल्दी बातचीत जारी रखी है. दोनों देश अलग-अलग बहुपक्षीय संस्थानों के हिस्से के तौर पर नियमित तौर पर मिलते हैं जहां भारत और रूस के प्रतिनिधि अलग-अलग मुद्दों पर एक-दूसरे से बातचीत करते हैं जो दोनों देशों के बीच संबंधों की घनिष्ठता को दिखाता है. मौजूदा कोरोना वायरस महामारी के दौरान भारतीय विदेश सचिव हर्ष वी. श्रृंगला के द्वारा दक्षिण एशिया के बाहर पहला दौरा रूस का किया गया जो भारत की नज़रों में रूस के सामरिक महत्व को रेखांकित करता है. प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन 2014 से कई मौक़ों पर एक-दूसरे से मिले हैं और समय-समय पर टेलीफ़ोन के ज़रिए भी उनकी बातचीत हुई है.

बदलते वैश्विक परिदृश्य का शिकार हुए भारत-रूस संबंध

दिसंबर के पहले हफ़्ते में सालाना द्विपक्षीय शिखर वार्ता के लिए भारत ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मेज़बानी की. इस दौरान दोनों देशों के बीच पहली बार 2+2 मंत्री स्तरीय बातचीत भी हुई. अभी तक भारत क्वॉड के साझेदारों अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ ही 2+2 बातचीत करता था. इस सूची में रूस का जुड़ना बताता है कि भारत अभी भी रूस को एक बहुमूल्य सामरिक साझेदार के तौर पर देखता है लेकिन वो रूस के साथ अपनी साझेदारी को अमेरिका और क्वॉड के साथ अपने समीकरण से स्वतंत्र रखने को प्राथमिकता देता है. पुतिन के भारत दौरे में तकनीक और व्यापार के क्षेत्र में दूसरे समझौतों के अलावा 7.5 लाख एके 203 असॉल्ट राइफल के उत्पादन के लिए लगभग 5,000 करोड़ के समझौते को भी अंतिम रूप दिया गया.

ये निश्चित रूप से ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस तरह के राजनयिक और रक्षा समझौते उस स्थिति में भी होते रहे जब इस बात की काफ़ी चर्चा हो रही थी कि भारत-रूस संबंध बदलते वैश्विक परिदृश्य का शिकार हो गए. निश्चित रूप से दोनों देशों के बीच कुछ ऐसे मुद्दे रहे हैं जहां दोनों देशों ने एक-दूसरे की आंख में आंख मिलाकर नहीं देखा लेकिन ये किसी भी द्विपक्षीय साझेदारी की सामान्य विशेषताएं हैं. अमेरिका के दबाव के बावजूद रूस के साथ रक्षा समझौते पर आगे बढ़ने का भारत का फ़ैसला एक संदेश देता है कि उसकी विदेश नीति बाहरी दबाव के आगे नहीं झुकेगी. ये नीति एक ‘बहुध्रुवीय’ या ‘बहुकेंद्रीय’ विश्व बनाने के भारत और रूस के साझा सामरिक लक्ष्य के काफ़ी अनुकूल है. ये साझा सामरिक सोच, जो इस टिकाऊ साझेदारी के मुख्य स्तंभ के रूप में काम करती है, दोनों देशों के बीच कुछ असहमतियों के बावजूद उन्हें एक-दूसरे से काफ़ी दूर जाना मुश्किल बनाती है.

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