Published on Jan 06, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत और रूस के रिश्तों में तमाम सकारात्मक संकेतों के बावजूद, हमें उनकी अहमियत को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं आंकना चाहिए, ख़ास तौर से तब और जब हम अमेरिका और उसके सबसे क़रीबी प्रतिद्वंदियों, चीन और रूस के बीच रिश्तों के हवाले से भविष्य के अंतराष्ट्रीय समीकरणों को देखते हैं.

वर्ष 2022 में भारत-रूस संबंध: महाशक्तियों के आपसी समीकरणों के बावजूद दोनों देशों के बीच बेहतर रिश्ते की उम्मीद

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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से दोनों देशों के रिश्तों में हाल के दिनों में पैदा हुई कुछ नीतिगत दूरियों को भरने में काफ़ी मदद मिली है. लेकिन, अभी भी दोनों देशों के संबंधों में संरचनात्मक चुनौतियां बनी हुई हैं और उनसे पार पाने के लिए भारत और रूस को आपसी रिश्तों की राह पर बहुत सावधानी से आगे बढ़ना होगा.

भारत और रूस के रिश्तों की संरचनात्मक दिक़्क़तों की बड़ी वजह अंतरराष्ट्रीय हालात में बनी हुई अनिश्चितता है. आज जब भारत और रूस अपने रिश्तों की बनावट को नए सिरे से ढालने में जुटे हैं, तो दोनों ही देशों के क़रीबी सहयोगी, भारत के लिए अमेरिका और रूस के लिए चीन, दुनिया में अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए आपस में मुक़ाबला कर रहे हैं.

आज जब भारत और रूस अपने रिश्तों की बनावट को नए सिरे से ढालने में जुटे हैं, तो दोनों ही देशों के क़रीबी सहयोगी, भारत के लिए अमेरिका और रूस के लिए चीन, दुनिया में अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए आपस में मुक़ाबला कर रहे हैं.

भारत और चीन के बीच टकराव और रूस और पश्चिमी देशों के बीच दुश्मनी के चलते दोनों देशों के संबंधों में और भी जटिलता आ जाती है. अगर हम इसमें भारत और रूस के कमज़ोर आर्थिक रिश्तों के साथ भारत के कुलीन वर्ग के अमेरिका से क़ुदरती लगाव को भी जोड़ दें, तो अगर कोई निराशावादी, भारत और रूस के संबंध का भविष्य कमज़ोर बताए तो हमें इस बात पर हैरान नहीं होना चाहिए.

हालांकि, राष्ट्रपति पुतिन की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई बातचीत से जो निष्कर्ष निकला है, उससे संकेत ऐसे मिलते हैं कि दोनों ही नेता आपसी संबंधों के सामने खड़ी चुनौतियों को अच्छी तरह समझते हैं, और वो एक ऐसी योजना पर काम कर रहे हैं, जिससे द्विपक्षीय संबंधों की राह में खड़ी इन बाधाओं से पार पाया जा सके.

कमज़ोर आर्थिक संबंध बनी चुनौती

 

ऐसा लगता है कि दोनों नेता इस बात को समझ रहे हैं कि कमज़ोर आर्थिक संबंध उनकी प्राथमिक चुनौती है. आज इसीलिए सबसे ज़्यादा ज़ोर कनेक्टिविटी बढ़ाने वाली परियोजनाओं पर है- जैसे कि चाबहार बंदरगाह को उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) से जोड़ना और चेन्नई से व्लादिवोस्टोक के बीच समुद्री गलियारे का विकास करना. कनेक्टिविटी बढ़ाने वाली इन परियोजनाओं से रूस के सुदूर पूर्व में साझा उद्यम को बढ़ावा मिलने, हाइड्रोकार्बन के क्षेत्र में सहयोग बढ़ने के साथ- साथ, असैन्य परमाणु ऊर्जा, विज्ञान, तकनीक, अंतरिक्ष और वित्तीय क्षेत्र में रिश्ते बेहतर होने की उम्मीद है.

 रक्षा क्षेत्र में सहयोग का दस साल का समझौता आगे बढ़ाने की अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि दोनों देश अगले कई वर्षों या शायद कई दशकों, तक एक दूसरे के रक्षा क्षेत्र में क़रीबी सहयोग की संभावनाएं देख रहे हैं. 

ऐसा लगता है कि दोनों ही देश, आपसी संबंध बेहतर बनाने के लिए आर्थिक मामलों में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने की अहमियत को समझ रहे हैं. वर्ष 2019 में नरेंद्र मोदी ने रूस के सुदूर पूर्व क्षेत्र के लिए एक अरब डॉलर के रियायती क़र्ज़ का ऐलान किया था. इससे निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने का मक़सद हासिल करने में काफ़ी मदद मिलेगी.

इसके अलावा, रूस और भारत के आर्थिक संबंध सुधारने के लिए भारत के कारोबारी रक्षा के क्षेत्र में साझा उद्यम के नए तरीक़े आज़माने के बारे में सोच रहे हैं. रूस के पास भारत में हथियारों का विकास करने का लंबा तजुर्बा है. रूस के कारोबारी उन्नत तकनीक भारत को देकर ‘मेक इन इंडिया’ के तहत कारोबार बढ़ाने को लेकर काफ़ी दिलचस्पी दिखा रहे हैं. AK-203 राइफ़लें और भारतीय नौसेना के लिए फ्रिगेट बनाने के समझौते इस दिलचस्पी का सबूत हैं. दस साल के लिए हुए रक्षा सहयोग के समझौते को आगे बढ़ाए जाने के बाद, भारत और रूस के बीच ऐसे और भी सौदे होने की उम्मीद है. रक्षा क्षेत्र में सहयोग का दस साल का समझौता आगे बढ़ाने की अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि दोनों देश अगले कई वर्षों या शायद कई दशकों, तक एक दूसरे के रक्षा क्षेत्र में क़रीबी सहयोग की संभावनाएं देख रहे हैं. इसके अलावा, संभावना इस बात की भी है कि रेसिप्रोकल एक्चेंज ऑफ़ लॉजिस्टिक्स एग्रीमेंट (RELOS) का समझौता उम्मीद से कहीं ज़्यादा पहले हो जाएगा. भले ही इसके विरोधी ये सवाल उठा रहे हों कि भारत अमेरिका और रूस से एक जैसा समझौता कैसे कर सकता है.

हमें भारत और रूस के रिश्तों की अहमियत को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं आंकना चाहिए. ख़ास तौर से तब और जब हम अमेरिका और उसके सबसे क़रीबी प्रतिद्वंदियों, चीन और रूस के बीच रिश्तों के हवाले से भविष्य के अंतराष्ट्रीय समीकरणों को देखते हैं. 

RELOS समझौता, भारत और अमेरिका के बीच हुए लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ़ एग्रीमेंट (LEMOA) जैसा ही है. इसके तहत दोनों देश एक दूसरे की सैन्य सुविधाओं का इस्तेमाल ईंधन और अन्य ज़रूरी साज़-ओ-सामान हासिल करने के लिए कर सकते हैं. कुछ ‘तकनीकी मतभेदों’ के कारण, पुतिन के भारत दौरे के दौरान इस समझौते पर दस्तख़त नहीं हो सके थे. कुछ स्रोतों का कहना है कि ये मतभेद अनुवाद के कारण पैदा हुए थे. साझा बयान और आधिकारिक ब्रीफ़िंग से इशारा ये मिलता है कि दोनों देश, अफ़ग़ानिस्तान, हिंद प्रशांत, क्वॉड और चीन के साथ रूस के रिश्तों जैसे पेचीदा मसलों पर अपने नज़रियों के फ़ासले कम करने में कामयाब हो गए हैं. आख़िरकार ये बात भी साफ़ हो गई कि 2020 में चीन के साथ सीमा पर अचानक बढ़े टकराव के बावजूद, भारत इस मसले पर रूस की स्थिति को समझता है. भारत इस मामले पर न केवल रूस के नज़रिए को समझता है, बल्कि उसके ‘निरपेक्ष’ रहने को लेकर सहज भी है. शायद यही वजह है कि जिसने पुतिन को रूस, भारत और चीन के बीच आमने-सामने की शिखर वार्ता का प्रस्ताव रखने का हौसला दिया.

अमेरिका-चीन के बिगड़ते रिश्तों का असर

ज़ाहिर है, इसके जवाब में नरेंद्र मोदी ने यही कहा कि ये तब तक संभव नहीं, जब तक चीन सीमा पर तनाव कम नहीं करता है. विदेश नीति के मामले में पुतिन के सलाहकार यूरी उशाकोव का ये बयान कि ये शिखर सम्मेलन अगले साल के मध्य में हो सकता है, भारत और रूस के संबंधों के संभावित फ़ायदों को दर्शाता है. हालांकि, इन सभी सकारात्मक संकेतों के बावजूद, हमें भारत और रूस के रिश्तों की अहमियत को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं आंकना चाहिए. ख़ास तौर से तब और जब हम अमेरिका और उसके सबसे क़रीबी प्रतिद्वंदियों, चीन और रूस के बीच रिश्तों के हवाले से भविष्य के अंतराष्ट्रीय समीकरणों को देखते हैं. चीन और रूस के साथ अमेरिका के दुश्मनी वाले ताल्लुक़ात में अगले कुछ वर्षों तक कोई ख़ास बदलाव नहीं आने जा रहा है.

भारत को बस यही उम्मीद करनी चाहिए कि दुनिया पर प्रभुत्व के लिए अमेरिका और चीन के बीच चल रहे मुक़ाबले में रूस बस तटस्थ बना रहे. इसके लिए अमेरिका और रूस को हथियारों पर नियंत्रण, यूरोप की सुरक्षा, अपनी सीमा से दूर के कुछ इलाक़ों में प्रभाव जमाने की रूस की ख़्वाहिश जैसे कई मसलों पर आपस में सहमति बनाने की ज़रूरत है.

हालात चाहे जिस दिशा में भी आगे बढ़ते हैं, भारत और रूस के सामने एक दूसरे से मिलता हुआ एक साझा मक़सद है- एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था. आने वाले वर्षों में इस मक़सद को हासिल करने के लिए दोनों देशों को मज़बूत आपसी संबंध बनाए रखने में दिलचस्पी बनाए रखनी चाहिए. मोदी और पुतिन की शिखर वार्ता से ऐसा लगता है कि दोनों देश ये बात अच्छी तरह समझते हैं और इस दिशा में आगे बढ़ने को प्रतिबद्ध हैं.


ये लेख मूल रूप से मनी कंट्रोल में प्रकाशित हुआ था.

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