Author : Ivan Shchedrov

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jan 16, 2025 Updated 0 Hours ago

वैसे तो 2024 में रूस के साथ संबंधों को लेकर भारत प्रतिबद्ध रहा लेकिन दोनों देशों को संरचनात्मक सुधार करने की आवश्यकता है जो उनकी साझेदारी को मज़बूत करे विशेष रूप से व्यापार और निवेश के क्षेत्र में.

‘महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंचा भारत व रूस का आपसी संबंध’

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रूस में 2024 को द्विपक्षीय संबंधों के आधुनिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण वर्षों में से एक माना गया. काफी बाधाओं के बावजूद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो बार रूस का दौरा किया. उनकी पहली रूस यात्रा जुलाई में साल 2000 की रणनीतिक साझेदारी के घोषणापत्र के तहत समझौते के हिस्से के रूप में हुई. उसके बाद अक्टूबर में 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए वो रूस के कज़ान पहुंचे. वैसे तो एक साल में दो बार यात्रा असाधारण नहीं है- पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2009 और 2013 में दो-दो बार रूस का दौरा किया था जबकि नरेंद्र मोदी ने 2015 में दो बार रूस का दौरा किया- लेकिन 2024 में दो बार की यात्रा बहुत महत्व रखती है. ये संकेत देती है कि पारंपरिक राजनीतिक संबंधों को सुरक्षित रखने के लिए भारत प्रतिबद्ध है और इस तरह पहले की तुलना में इसकी ज़्यादा अहमियत है. 

2024 में अपनी प्रतिबद्धता को फिर से दोहराकर भारत ने रूस के नेतृत्व पर भी ज़िम्मेदारी डाल दी क्योंकि 2025 रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की तरफ से जवाबी यात्रा का वर्ष होने वाला है. 

इस पहलू से अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भारत का संदेश 2009 की याद दिलाता है जब भारतीय नेतृत्व ने 2008 में भारत और अमेरिका के बीच हस्ताक्षरित असैनिक परमाणु समझौते के कुछ समय बाद पहली बार रूस के एकातेरिनबर्ग में ब्रिक्स की बैठक और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में हिस्सेदारी की थी. 2024 में अपनी प्रतिबद्धता को फिर से दोहराकर भारत ने रूस के नेतृत्व पर भी ज़िम्मेदारी डाल दी क्योंकि 2025 रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की तरफ से जवाबी यात्रा का वर्ष होने वाला है. वैसे तो भविष्य के प्रस्तावों के दायरे का पता अभी तक नहीं है लेकिन नरेंद्र मोदी के अचानक दौरे के बिल्कुल उलट पुतिन के आगामी दौरे के बारे में शुरुआती घोषणा ये संकेत दे सकती है कि बैठक के लिए रूस का पक्ष पहले ही अच्छी तरह से तैयारी कर रहा है. 

द्विपक्षीय संबंधों की रीढ़ के रूप में वैश्विक आकांक्षाएं

2024 में द्विपक्षीय संबंध अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के वैश्विक रवैये से तय हुए थे. दूसरे शब्दों में कहें तो भारत की बढ़ती आकांक्षाओं ने वैश्विक एजेंडे को कुछ क्षेत्रीय और द्विपक्षीय मुद्दों से ऊपर रखा. जुलाई में रूस की अपनी पहली यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यूक्रेन संघर्ष के समाधान के उद्देश्य से भारत शांति स्थापना के महत्वपूर्ण प्रयास कर रहा है. मोदी का ये दौरा चुनाव में उनकी फिर से जीत के बाद भी पहला था. इस तरह उन्होंने भारत के निकटतम पड़ोसी देश की यात्रा को प्राथमिकता देने की परंपरा तोड़ी. इस फैसले के पीछे का तर्क बिल्कुल साफ लगता है- मालदीव के साथ संबंध तनावपूर्ण थे, बांग्लादेश एक गंभीर सामाजिक और राजनीतिक संकट से जूझ रहा था और श्रीलंका एक नए चुनावी चक्र में प्रवेश कर रहा था.  

बहुपक्षीय बैठकों में भारत की भागीदारी से अतिरिक्त तर्क मिलता है. जून में G7 शिखर सम्मेलन के लिए इटली का दौरा करने के न्यौते को सबसे महत्वपूर्ण माना गया, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि इसने ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) की आवाज़ को तेज़ करने और इसके साथ-साथ यूक्रेन के राष्ट्रपति के साथ बात करने का आधार प्रदान किया. कुछ मामलों में इसे महत्वपूर्ण क्षेत्रीय प्रारूपों के शिखर सम्मेलनों जैसे कि अस्ताना में SCO शिखर सम्मेलन और 2024 में निर्धारित दूसरे भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन में भाग लेने की तुलना में ज़्यादा प्राथमिकता दी गई. अक्टूबर में कज़ान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भागीदारी एक और महत्वपूर्ण उदाहरण है. वैश्विक महत्वाकांक्षा रखने वाले एक गैर-बाध्यकारी संगठन की बैठक में भाग लेने का फैसला इस प्रारूप से भारत को होने वाले सीमित लाभ के बारे में कुछ टिप्पणियों का खंडन करता है. इसके सदस्यों के बीच कुछ असहमतियों और डॉलर मुक्त करने एवं सदस्यता के विस्तार के मुद्दों पर भारत के परहेज के बावजूद ब्रिक्स को अभी भी अकेला ऐसा समूह माना जाता है जो एक संतुलित दृष्टिकोण को सक्रिय रूप से आगे बढ़ा रहा है. इसका कारण वैश्विक बहुध्रुवीयता को बढ़ावा देने पर इसका ध्यान है.

रूस के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों में भारत ने प्रभावी ढंग से लाभदायक सहयोग को उजागर किया है लेकिन इसके बावजूद किसी भी राजनीतिक प्रतिबद्धता को लेकर वो सतर्क रहा है.

रूस के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों में भारत ने प्रभावी ढंग से लाभदायक सहयोग को उजागर किया है लेकिन इसके बावजूद किसी भी राजनीतिक प्रतिबद्धता को लेकर वो सतर्क रहा है. रूस के लिए आज ये नीति भले ही पर्याप्त मानी जा रही हो लेकिन जल्द ही इससे अधिक ठोस नतीजों की आवश्यकता होगी.   

आर्थिक संबंध: बारीक लेकिन बहुत महत्वपूर्ण 

वित्तीय बातचीत से जुड़ी राजनीतिक प्रतिबद्धता की अनुपस्थिति में 2024 ने द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को नया मूल्य भी दिया लेकिन विकास के लिए संभावनाएं अभी भी मालूम नहीं है. 

व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक सहयोग के लिए भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग (IRIGEC-TEC) के 25वें सत्र के दौरान कहा गया कि द्विपक्षीय व्यापार की मात्रा 66 अरब डॉलर तक पहुंच गई है जो सकारात्मक विकास का संकेत है. भारत के व्यापार साझेदारों में रूस चौथे पायदान पर पहुंच गया है और चीन के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है. 

लेकिन जब हम इन आंकड़ों की गौर से पड़ताल करते हैं तो चुनौतियां स्पष्ट हो जाती हैं. वैसे तो जनवरी-अगस्त 2024 के दौरान व्यापार ने रिकॉर्ड तोड़ दिया लेकिन रूस के निर्यात की मात्रा ने अपने स्थानीय अधिकतम को छू लिया है. इस अवधि के दौरान रूस का निर्यात 43.4 अरब अमेरिकी डॉलर रहा (जिसमें मुख्य रूप से ऊर्जा संसाधनों का निर्यात था) जो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में महज़ 5 प्रतिशत अधिक था. इसके परिणामस्वरूप व्यापार और आर्थिक सहयोग का अगला चरण रूस के द्वारा अपने निर्यात के सामानों को विविध बनाने और भारत के निर्यात आधार का विस्तार करने की क्षमता पर निर्भर करेगा. मध्यावधि में रूस का मुख्य उद्देश्य अपनी महंगाई दर पर अंकुश लगाना, ज़रूरत से ज़्यादा सैन्य-औद्योगिक परिसर पर खर्च के कारण पैदा सामाजिक-आर्थिक असंतुलन को ख़त्म करना और आख़िर में सैन्य से नागरिक उत्पादन में बिना किसी बाधा के परिवर्तन की सुविधा प्रदान करना है. भारत के लिए विदेशी निवेशकों के प्रति अपने आकर्षण को बरकरार रखने के लिए बुनियादी ढांचे एवं सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का समाधान करना और उत्पादन बढ़ाना एवं समग्र सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि आवश्यक होगी. 

द्विपक्षीय व्यापार में पुराना असंतुलन एक प्रमुख समस्या बनी हुई है- जनवरी और अगस्त के बीच रूस से भारत का आयात उसको निर्यात की तुलना में 12 गुना ज़्यादा था. 

दोनों देशों ने निर्यात केंद्रित उत्पादन में अधिक निवेश के माध्यम से भारत में निर्यात को बढ़ावा देने के महत्व को स्वीकार किया. 

कदम-दर-कदम बढ़ोतरी के मौजूदा रफ्तार को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों ने 2030 तक 100 अरब अमेरिकी डॉलर के व्यापार टर्नओवर का जो लक्ष्य तय किया है, वो विश्वसनीय की तुलना में सांकेतिक अधिक लगता है.  

ये उपाय भुगतान से जुड़े मुद्दों का हल करने के लिए भी बेहद ज़रूरी है. उदाहरण के लिए, रूस के निर्यातक सैद्धांतिक रूप से भारत के आयातकों से भुगतान सुरक्षित करने और भारत के निर्यातकों के साथ विदेशी मुद्रा लेन-देन करने के लिए रूबल लेन-देन का उपयोग कर सकते हैं. लेकिन व्यावहारिक रूप से इस तरह की प्रणाली विशाल नकारात्मक व्यापार संतुलन की वजह से सीमित हो जाती है. फिर भी 2024 में इस संबंध में कुछ हद तक प्रगति दिखी- जनवरी से अगस्त के बीच रूस को भारत का कुल निर्यात 4.2 अरब अमेरिकी डॉलर था जो कि 2023 की तुलना में 35 प्रतिशत ज़्यादा था. कदम-दर-कदम बढ़ोतरी के मौजूदा रफ्तार को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों ने 2030 तक 100 अरब अमेरिकी डॉलर के व्यापार टर्नओवर का जो लक्ष्य तय किया है, वो विश्वसनीय की तुलना में सांकेतिक अधिक लगता है.  

निष्कर्ष

2024 ने दिखाया कि मौजूदा पूर्वाग्रहों के बावजूद रूस के साथ अपने पारंपरिक संबंधों को लेकर भारत की प्रतिबद्धता मज़बूत बनी हुई है और इसमें अचानक बदलाव का ख़तरा नहीं है. लेकिन 2024 ने ऐसी चुनौतियों को भी उजागर किया जिसका समाधान आने वाले वर्षों में करने की आवश्यकता है. इनमें से कई चुनौतियां, विशेष रूप से सैन्य और राजनीतिक क्षेत्रों में, अटकलें हैं. व्यापार और निवेश जैसे क्षेत्रों में रिकॉर्ड प्रदर्शन के बावजूद दोनों देशों को संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता होगी. अपने रिश्तों को और मज़बूत करने के लिए दोनों देश 2025 में इन चुनौतियों का तेज़ी से और प्रभावी ढंग से हल करें. लेकिन इसमें सफलता पश्चिमी देशों को लेकर रूस के दृष्टिकोण में बदलाव के साथ-साथ भारत के रवैये की स्थिरता पर निर्भर करेगी.


इवान शेद्रोव रूस के इंस्टीट्यूट ऑफ वर्ल्ड इकोनॉमी एंड इंटरनेशनल रिलेशन (IMEMO) के सेंटर ऑफ इंडो-पैसिफिक रीजन एंड साउथ एशिया एंड इंडियन ओशन ग्रुप में जूनियर रिसर्च फेलो हैं. 

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