-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
पहलगाम आतंकी हमले के बाद सीमा पार आतंकवाद पर भारत के पलटवार ने अब तक चली आ रही रणनीति को बदल दिया है. अब नई नीति है तत्परता के साथ संयम, परिणाम के साथ निवारण. भारत ने अब खेल और इसके नियम बदल दिए हैं.
Image Source: Getty
शतरंज के खेल में रानी की कुर्बानी तभी दी जाती है, जब हार तय हो. लेकिन भू-राजनीति में कोई भी राष्ट्र, किसी देश को पूरी तरह ख़त्म नहीं करते, वो संकेत देते हैं. 'ऑपरेशन सिंदूर' के ज़रिए भारत ने सीमा पार आतंकवाद के प्रति अपनी नपी-तुली प्रतिक्रिया के माध्यम से एक स्पष्ट संदेश दिया है. भारत ने दो टूक शब्दों में बता दिया है कि उसने खेल का मैदान भी बदल दिया है, और नियम भी बदल गए हैं.
दशकों से पाकिस्तान की रणनीतिक सोच इस धारणा पर टिकी हुई है कि उसकी परमाणु क्षमता उसे एक ढाल प्रदान करती है. इसी सोच की वजह से वो नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार यानी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और पाकिस्तान में आतंकवादियों को पाल-पोस सकता है, भारत के खिलाफ़ इस्तेमाल कर सकता है. पाकिस्तान इन आतंकियों को नॉन स्टेट एक्टर कहता है. परमाणु ब्लैकमेल के पाकिस्तान के इस सिद्धांत में प्रतिशोध निहित है. पाकिस्तान को लगता है कि परमाणु निवारण की ये क्षमता उसे पारंपरिक हमले के ख़तरे से बचाते हुए भारत के खिलाफ़ विषम युद्ध या छद्म युद्ध छेड़ने की सुविधा देती है. हालांकि, पाकिस्तान की ये खुशफ़हमी अब अपने अंत के करीब है. खास तौर पर ऑपरेशन सिंदूर के मद्देनज़र भारत की हालिया सैन्य और कूटनीतिक स्थिति एक बड़े बदलाव का संकेत देती है. भारत ने ये साबित कर दिया कि परमाणु क्षमता कोई अटूट दीवार नहीं है, बल्कि एक नपी-तुली सीमा है. भारत ने ये दिखा दिया है कि परमाणु प्रतिरोध दो तरफा रास्ता है.
पाकिस्तान को लगता है कि परमाणु निवारण की ये क्षमता उसे पारंपरिक हमले के ख़तरे से बचाते हुए भारत के खिलाफ़ विषम युद्ध या छद्म युद्ध छेड़ने की सुविधा देती है.
तनाव बढ़ने के डर से भारत ने अपने रणनीतिक विकल्पों को सीमित या पंगु नहीं किया. इसकी बजाय, भारत ने व्यापक संघर्ष को बढ़ावा दिए बिना ख़तरों को बेअसर करने के लिए एक सीमित, सटीक और संतुलित रणनीति विकसित की है. भारत का ये नया रुख़ पाकिस्तान के पारंपरिक गुणा-भाग को जटिल बनाता है. भारत रणनीतिक संयम से अब सामरिक संकेत की ओर बढ़ गया है. एक ऐसी रणनीति, जो शांत, जानबूझकर और कार्रवाई द्वारा समर्थित है. दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन अब स्थिर नहीं रह गया है. ये गतिशील है, तकनीकी रूप से पूरी तरह सूचित है. अब ज़रूरत पड़ने पर भारत बिना लापरवाही के तय सीमाएं पार किए भी तेज़ी से कार्रवाई करने में सक्षम है.
ऑपरेशन सिंदूर का संदेश युद्ध का नहीं बल्कि संकल्प का है. भारत नहीं चाहता कि वो हमेशा दुश्मनी की स्थिति में रहे, लेकिन वो सुरक्षा में निवेश करता है. भारत ने ये दिखा दिया कि वो परमाणु युद्ध के ख़तरे को आतंकवाद का जवाब देने के अपने संप्रभु अधिकार की राह में बाधा नहीं बनने देगा. ऑपरेशन सिंदूर के तहत किए गए हमलों को सामरिक सटीकता, न्यूनतम क्षति और तनाव में वृद्धि पर पूर्ण नियंत्रण के साथ अंजाम दिया गया. ऑपरेशन सिंदूर से ये संदेश चला गया कि भारत अब सिर्फ एक प्रतिक्रियाशील देश नहीं रहा, बल्कि वो जवाब देने के लिए अपनी शर्तों पर समय और जगह चुनता है.
आज भारत की सैन्य स्थिति सिर्फ सेना की ताक़त और हवाई शक्ति से ही परिभाषित नहीं होती, बल्कि तकनीकी प्रगति, बेहतर समन्वय और नैरेटिव पर कंट्रोल भी इससे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. हाल के सैनिक ऑपरेशनों ने भारत की रीयल टाइम में खुफ़िया जानकारी को एडवांस टारगेटिंग सिस्टम के साथ एकीकृत करने की क्षमता को प्रदर्शित किया है. इससे भारत ने आतंक के अड्डों पर सटीकता से हमला किया और ऐसी कार्रवाई की, जिससे आम नागरिक कम से कम हताहत हो. ये ताकत और रणनीतिक अनुशासन का प्रदर्शन था. ऐसा करके भारत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उसके निशाने पर पाकिस्तानी जनता नहीं, बल्कि पाकिस्तान की सरकार के संरक्षण में काम करने वाले आतंकवादी संगठन हैं.
इसके अलावा, भारत का दृष्टिकोण युद्ध के मैदान से आगे तक जाता है. 12 मई 2025 को देश के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि "खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते". इससे सिंधु जल समझौता (आईडब्ल्यूटी) एक बार फिर भू-राजनीतिक केंद्र में आया. छह दशक पुराना ये समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच अब तक हुए युद्धों और राजनीतिक उथल-पुथल से बचा रहा था, लेकिन अब ये भी अछूता नहीं रहा. हालांकि भारत ने इस संधि को रद्द नहीं किया है, लेकिन संकेत स्पष्ट हैं. बिगड़ते सुरक्षा माहौल के बीच बुनियादी समझौते अछूते नहीं रह सकते. अगर पाकिस्तान से भारत की तरफ आतंकवाद की धारा बहेगी तो भारत से पाकिस्तान की तरफ पानी की धारा नहीं बहेगी. जल-राजनीति का रणनीतिक उपयोग अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का उल्लंघन नहीं करता है. ये इस बात पर ज़ोर देता है कि सहयोग पारस्परिक होना चाहिए, और एकतरफा सुरक्षा ढांचे में इसे बनाए नहीं रखा जा सकता है.
अगर पाकिस्तान से भारत की तरफ आतंकवाद की धारा बहेगी तो भारत से पाकिस्तान की तरफ पानी की धारा नहीं बहेगी. जल-राजनीति का रणनीतिक उपयोग अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का उल्लंघन नहीं करता है.
इस बदलाव के मूल में आतंकवाद के प्रति भारत की ज़ीरो टॉलरेंस की नीति है और भारत इस बात को कई बार अलग-अलग विश्व मंच पर दोहरा चुका है. अब तक ये होता था कि संघर्ष विराम को नियमित रूप से तनाव कम करने के साधन के रूप में स्वीकार किया जाता था. युद्ध विराम के कुछ महीनों बाद ही पाकिस्तान की तरफ से फिर से उकसावे की कार्रवाई की जाती थी, लेकिन अब ये युग समाप्त हो गया है. ये युद्धविराम बातचीत के लिए नहीं है, बल्कि ये जवाबदेही के लिए संघर्ष विराम है. पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य प्रतिष्ठान को अब अपनी पुरानी चालबाजियों से हटकर नया रुख़ दिखाना होगा. अब तक पाकिस्तान एक तरफ तो कूटनीतिक बातचीत करता था, दूसरी तरफ वो आतंकवाद के सहारे अपने सियासी और कूटनीतिक मक़सद साधता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा.
दशकों से वैश्विक मध्यस्थों ने भारत को 'रणनीतिक संयम' बरतने के लिए प्रोत्साहित किया है, जबकि इस्लामाबाद को संदेह का लाभ दिया गया. हालांकि, उनकी ये रणनीति बेअसर साबित हुई. भारत ने अब एक नया तरीका परिभाषित किया है. इसमें प्रतिरोधक क्षमता सिर्फ प्रतिक्रिया के बारे में नहीं है, बल्कि संतुलन को फिर से स्थापित करने के बारे में है. इसके लिए सैनिक हमलों से ज़्यादा कुछ करने की ज़रूरत है. इसके लिए दीर्घकालिक संस्थागत स्मृति चाहिए, यानी सरकार ये याद रखें कि देश के साथ कब, क्या किया गया है. इसके अलावा स्पष्ट सीमाएं तय की जाना चाहिए कि संघर्ष की स्थिति में इसे किस हद तक बढ़ाया जा सकता है. इसके बाद ज़रूरत पड़ने पर फिर से कार्रवाई करने की राजनीतिक इच्छा शक्ति होनी चाहिए.
फिर भी, इस रणनीति पर विचार करने की आवश्यकता है. दक्षिण एशिया में परमाणु ख़तरा अभी भी बना हुआ है. संघर्ष की स्थिति में एक भी गलत अनुमान लगाने से बड़े पैमाने पर युद्ध का ख़तरा पूरी तरह से वास्तविक है. भारत अब तक समझदारी से तलवार की धार पर चलने में कामयाब रहा है, लेकिन तनाव में वृद्धि की आशंका की लगातार समीक्षा और उसी अनुसार नीति बनाने पर विचार करना चाहिए. बैकचैनल कम्युनिकेशन यानी पर्दे के पीछे बातचीत, कमांड अनुशासन और नैरेटिव में एकरूपता लाना विलासिता नहीं बल्कि आवश्यकता हैं. चुनौती ये सुनिश्चित करने की होगी कि सामरिक प्रतिभा रणनीतिक स्थिरता से आगे ना निकल जाए.
अब जिम्मेदारी का बोझ पाकिस्तान पर है. उसकी आर्थिक बदहाली, आंतरिक राजनीतिक अव्यवस्था और बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय अलगाव के कारण इसमें कोई बदलाव की गुंजाइश नहीं है. अगर पाकिस्तान अपनी विदेश नीति को गैर-सरकारी तत्वों को सौंपना जारी रखता है और इनकार और देरी के पुराने तरीकों पर भरोसा करता है, तो इसका सामना एक ऐसे भारत से होगा जो अब पुराने मानदंडों के अनुसार काम करने को तैयार नहीं है.
ये युद्ध विराम यथास्थिति की वापसी नहीं है. भारत ने तो कह ही रखा है कि ऑपरेशन सिंदूर अभी सिर्फ स्थगित हुआ है, ख़त्म नहीं. ये एक संदेश है कि अगला फिर से युद्धविराम का उल्लंघन किया जाएगा तो फिर उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इसका नपा-तुला, और शायद पहले से भी खत़रनाक नतीजा भुगतना होगा. भारत का सुरक्षा सिद्धांत परिपक्व हो गया है, जिसमें संयम के साथ तत्परता, स्पष्टता के साथ क्षमता और नियमों के साथ जवाबी कार्रवाई शामिल है.
ये एक संदेश है कि अगला फिर से युद्धविराम का उल्लंघन किया जाएगा तो फिर उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इसका नपा-तुला, और शायद पहले से भी खत़रनाक नतीजा भुगतना होगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लहजे और भारत की सैन्य कार्रवाइयों से ये स्पष्ट है कि वो अब भी शांति ही चाहता है, लेकिन सिद्धांत और देश के सम्मान की कीमत पर नहीं. भारत ये तय करेगा कि वह कब और कैसे कूटनीतिक जुड़ाव में शामिल होगा. जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को प्रायोजित करने की अपनी सरकारी नीति पर मौलिक रूप से पुनर्विचार नहीं करता, तब तक भारत भविष्य में हर उल्लंघन का आनुपातिक, सोच-समझकर, सटीक और तकनीकी रूप से उन्नत जवाब दिया जाएगा. अब अस्पष्टता की गुंजाइश कम हो गई है. रणनीतिक जड़ता का युग ख़त्म हो चुका है. अब दुनिया को अपनी अपेक्षाओं को नए सिरे से तय करना होगा. उन्हें ये समझना होगा कि भारत किस तरह शांति सुनिश्चित करता है. अब भारत अपना लक्ष्य समझौते के माध्यम से नहीं बल्कि परिणामों के ज़रिए हासिल करेगा.
मनीष दाभाडे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ के सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिटिक्स, ऑर्गेनाइजेशन एंड डिसआर्मामेंट में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. मनीष दाभाडे द इंडियन फ्यूचर्स नाम के ग्लोबल थिंक टैंक के संस्थापक भी हैं.
तरुण अग्रवाल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ के पॉलिटिक्स, ऑर्गेनाइजेशन एंड डिसआर्मामेण्ट में डॉक्टरेट के उम्मीदवार हैं। तरुण अग्रवाल दिल्ली में पॉलिसी रिसर्च और गवर्नेंस सेंटर में एसोसिएट फेलो भी हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Manish Dabhade teaches at Jawaharlal Nehru University and is the Founder of The Indian Futures a New Delhi-based think tank.
Read More +Tarun Agarwal is a Doctoral Candidate at the Centre for International Politics, Organisation and Disarmament, School of International Studies, Jawaharlal Nehru University, New Delhi. He ...
Read More +