हाल ही में मालदीव की अपनी पहली यात्रा के दौरान भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने कहा कि ‘मालदीव सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रीय भागीदारों में से एक है और मालदीव में तमाम विकास परियोजनाओं को भारत अपना समर्थन जारी रखेगा’. इसी भावना के तहत, अगस्त के महीने में नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मालदीव के राष्ट्रपति सोलिह के लिए प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हुए भारत द्वारा मालदीव की कई ‘बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की सहायता और उन्हें सुगम’ बनाने के लिए माले को 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त क्रेडिट लाइन की मंजूरी दी गई.
मालदीव के विदेश मंत्रालय के मुताबिक़ क्वात्रा का दौरा काफ़ी ‘उत्पादक और सफल’ रहा. मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया कि भारत द्वारा दी गई यह नई सहायता वर्ष 2019 में पेश की गई 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर की क्रेडिट लाइन का विस्तार था. यह नई सहायता ‘मालदीव के सामाजिक-आर्थिक कल्याण और जन कल्याण में सुधार के लिए भारत सरकार के अटूट समर्थन और प्रतिबद्धता का एक पुख्ता प्रमाण है.’
राष्ट्रपति सोलिह ने भी भारत के साथ मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों को याद किया और यह स्पष्ट किया कि हाल के वर्षों में इन संबंधों में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है. मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने India@75 ‘शोकेसिंग इंडिया-यूएन पार्टनरशिप’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए याद किया कि किस प्रकार भारत ‘आर्थिक विकास और सुधार में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार’ रहा है.
मालदीव के विदेश मंत्रालय के मुताबिक़ क्वात्रा का दौरा काफ़ी ‘उत्पादक और सफल’ रहा. मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया कि भारत द्वारा दी गई यह नई सहायता वर्ष 2019 में पेश की गई 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर की क्रेडिट लाइन का विस्तार था. यह नई सहायता ‘मालदीव के सामाजिक-आर्थिक कल्याण और जन कल्याण में सुधार के लिए भारत सरकार के अटूट समर्थन और प्रतिबद्धता का एक पुख्ता प्रमाण है.’
एक सकारात्मक और सफल दौरा
माले में भारत के विदेश सचिव क्वात्रा ने मालदीव के वित्त मंत्री इब्राहिम अमीर, आर्थिक विकास मंत्री फय्याज़ इस्माइल से भी मुलाक़ात की और विचार-विमर्श किया. इसके साथ ही उन्होंने अपने समक्ष अहमद लतीफ़ से भी चर्चा की. यह चर्चाएं अधिकतर द्विपक्षीय सहयोग और विकास पर ही केंद्रित रहीं. भारत के विदेश सचिव ने संसद के स्पीकर मोहम्मद नशीद से भी शिष्टाचार भेंट की.
विदेश सचिव क्वात्रा ने रक्षा मंत्री मारिया दीदी के साथ भी चर्चा की. रक्षा मंत्रालय में आयोजित एक समारोह में क्वात्रा ने मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स (एमएनडीएफ) को 24 यूटिलिटी वाहन सौंपे. इसके अतिरिक्त भारत ने मार्च, 2019 में साइन की गई 106 मिलियन अमेरिकी डॉलर की रैंट सहायता योजना के अंतर्गत मालदीव करेक्शनल सर्विस (MCS), और जेल प्रशासन को एक स्पीड बोट भी सौंपी.
संयोग की बात यह है कि क्वात्रा की यात्रा से पहले भारतीय व्यापारी, मोहन मुथा एक्सपोर्ट्स ने अपने स्वयं के संसाधनों का उपयोग करके मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स (एमएनडीएफ) में वरिष्ठ अधिकारियों के लिए 138 मकानों के साथ एक सैन्य आवासीय टाउनशिप निर्मित करने के अपने निर्णय की घोषणा की. उपनगरीय द्वीप हुलहुमले फेज -2 पर परियोजना के पूरा होने पर मेजबान सरकार द्वारा इसे वापस किया जाएगा.
क्वात्रा ने मालदीव में अपने प्रवास के दौरान ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट की साइट का भी दौरा किया, जो 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर के भारतीय अनुदान और 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर क्रेडिट के साथ ही मालदीव में एक सबसे बड़ी परियोजना है.
संयोग की बात यह है कि क्वात्रा की यात्रा से पहले भारतीय व्यापारी, मोहन मुथा एक्सपोर्ट्स ने अपने स्वयं के संसाधनों का उपयोग करके मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स (एमएनडीएफ) में वरिष्ठ अधिकारियों के लिए 138 मकानों के साथ एक सैन्य आवासीय टाउनशिप निर्मित करने के अपने निर्णय की घोषणा की. उपनगरीय द्वीप हुलहुमले फेज -2 पर परियोजना के पूरा होने पर मेजबान सरकार द्वारा इसे वापस किया जाएगा.
लोगों के साथ संपर्क
एक लिहाज़ से देखा जाए तो, मालदीव के साथ बढ़ रही भारत की सहायता और सहयोग के लिए वहां बढ़ते चीनी प्रभाव और मदद को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, विशेष रूप से पूर्ववर्ती राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के शासन के दौरान. अब्दुल्ला यामीन मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी दो क़ानूनी लड़ाइयां लड़ रहे हैं, हालांकि यह उनकी सरकार के समय चीन के साथ संबंधों से जुड़ी नहीं हैं. हाल ही में, यामीन के पीपीएम-पीएनसी गठबंधन के माले शहर के मेयर डॉ. मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने चीन के साथ बेहतर द्विपक्षीय संबंधों के लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के साथ पार्टी स्तर के संपर्कों को बढ़ाने को ज़िम्मेदार ठहराया. जब मुइज़्ज़ू यामीन गुट के अंदर की बातों को जगजाहिर कर रहे थे, तो लगता है कि ऐसा करके वह गठबंधन के राष्ट्रपति पद के नामांकन के लिए अपने दावेदारी भी पेश कर रहे थे. ज़ाहिर है कि अगर यामीन को लंबित मामलों में दोषी ठहराया जाता है, तो अगले साल वे राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाएंगे.
इस सबके बावज़ूद यह आम धारणा कि भारत सिर्फ़ मालदीव में चीनी ख़तरे का जवाब दे रहा था, इसमें शायद ही कोई सच्चाई है. लंबे समय से, नई दिल्ली यह समझती थी कि इस पूरे क्षेत्र की पारंपरिक सुरक्षा पर बार-बार प्रभाव डालने वाले व्यापक सामान्य हितों और सामूहिक मानवीय सुरक्षा के लिए पूरे क्षेत्र को एक साथ विकसित किए जाने की ज़रूरत है. देखा जाए तो, शीत युद्ध के बाद आर्थिक सुधारों के काल ने भारत के लिए पड़ोसी देशों में वित्त पोषण की संभावनाओं को ना केवल आसान बनाया, बल्कि इस क्षेत्र में अवसर भी खोले. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि इन देशों की सरकारों को उभरती आईटी युग वाली पीढ़ी की वास्तविक आकांक्षाओं को पूरा करने और वैश्विक सूचना एवं ज्ञान तक उनकी आसान पहुंच के लिए इसकी आवश्यकता थी.
दक्षिण एशिया में ‘नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर’ यानी संपूर्ण सुरक्षा प्रदाता होने के भारत के नए गढ़े गए नारे में मानव सुरक्षा के साथ-साथ पारंपरिक सुरक्षा भी शामिल थी, जिसमें क्षेत्र की प्रमुख चिंताओं और चुनौतियों के बीच अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का मुद्दा भी शामिल था.
दक्षिण एशिया के तीव्र गति से हुए लोकतंत्रीकरण ने भारत के लिए दो स्थितियों का निर्माण किया है, एक जहां आवश्यकता हो, वहां विकास सहायता के साथ अपने कदम बढ़ाना और दूसरा, संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा, जो ज़्यादातर पारंपरिक सुरक्षा तक सीमित थी, उससे आगे बढ़कर ‘सुरक्षा की जिम्मेदारी’ (R2P) लेना. इस तरह से दक्षिण एशिया में ‘नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर’ यानी संपूर्ण सुरक्षा प्रदाता होने के भारत के नए गढ़े गए नारे में मानव सुरक्षा के साथ-साथ पारंपरिक सुरक्षा भी शामिल थी, जिसमें क्षेत्र की प्रमुख चिंताओं और चुनौतियों के बीच अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का मुद्दा भी शामिल था.
अन्य पड़ोसियों के साथ ही मालदीव के लिए यह सब एक विशेष उद्देश्य के लिए उपयुक्त था, जिसमें विरोधी पाकिस्तान भी शामिल है. इसके बावज़ूद कुछ चुनिंदा देशों, जैसे बांग्लादेश एवं भूटान और श्रीलंका एवं मालदीव में चुनिंदा सरकारों ने ही भारतीय सहायता मांगी और प्राप्त भी की. श्रीलंका में राजपक्षे शासन और मालदीव में यामीन शासन ने चीन को अदालत में ले जाने के बजाए चीन के प्रतिद्वंदी यानी भारत के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करना ज़्यादा उचित समझा और ऐसा किया भी.
बेतहाशा ख़र्च
इस सबके बाद भी, मालदीव में घरेलू अर्थव्यवस्था के प्रबंधन को लेकर चिंता की स्थिति बनी हुई है, क्योंकि मालदीव भी श्रीलंका की भांति आर्थिक संकट के मुहाने पर खड़ा है. सार्वजनिक प्रतिबद्धताओं को छोड़ दें तो, सोलिह सरकार अन्य मदों में होने वाले ख़र्चों से उपजी परिस्थियों को दुरुस्त करने में सक्षम नहीं है, जिसका आलोचक भी ‘राजकोषीय लापरवाही’ के रूप में बखान करते हैं. हालांकि, पोस्ट-कोविड रिकवरी मज़बूरियों की वजह से इन खर्च़ों को रोकना भी बेहद मुश्किल है.
मालदीव के वित्त मंत्रालय की सितंबर की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सरकार का कुल वार्षिक ख़र्च एमवीआर 26.5 बिलियन था, जबकि अनुदान समेत कुल राजस्व एमवीआर 19.6 बिलियन तक पहुंच गया, जिससे कुल घाटा एमवीआर 6.9 बिलियन तक पहुंच गया. जैसी उम्मीद थी, उसके ठीक विपरीत बजटीय राशि का 74 प्रतिशत आवर्ती व्यय के लिए चला गया, जबकि शेष 26 प्रतिशत केवल कैपिटल निर्माण पर ख़र्च किया गया.
सभी परिस्थितियों के मूल्यांकन से स्पष्ट है कि विश्व बैंक ने वर्ष 2023 के अंत में मालदीव में एक बड़े वित्तीय संकट की भविष्यवाणी कोई ऐसे ही नहीं कर दी है, बल्कि देखा जाए तो यह संभव प्रतीत होती है.
आवर्ती व्यय में से कुल एमवीआर 12.1 बिलियन की बड़ी राशि प्रशासनिक और परिचालन व्यय पर ख़र्च की गई थी. जबकि एमवीआर 7.3 बिलियन पब्लिक सेक्टर के कर्मचारियों के वेतन और पेंशन के मद में ख़र्च किए गए. जहां तक पूंजीगत व्यय की बात है, तो एमवीआर 3.8 बिलियन बुनियादी ढांचे पर ख़र्च किए गए, एमवीआर 1.3 बिलियन विकास परियोजनाओं और निवेश परिव्यय पर ख़र्च किए गए, जबकि एमवीआर 1.2 बिलियन ज़मीन और बिल्डिंगों पर ख़र्च किए गए.
ध्यान देने वाली बात यह है कि सरकार की आय का 73 प्रतिशत कर राजस्व से आया और शेष 27 प्रतिशत गैर-कर स्रोतों से आया. यह साबित करता है कि लोगों पर इतना कर पहले से ही लगा हुआ है कि इसे और बढ़ाया जाना नामुमकिन है. ख़ासकर चुनावी साल में तो ऐसा किया जाना बेहद मुश्किल होता है. इस सभी परिस्थितियों के मूल्यांकन से स्पष्ट है कि विश्व बैंक ने वर्ष 2023 के अंत में मालदीव में एक बड़े वित्तीय संकट की भविष्यवाणी कोई ऐसे ही नहीं कर दी है, बल्कि देखा जाए तो यह संभव प्रतीत होती है.
दि मालदीव जर्नल ने वित्त मंत्रालय के हवाले से कहा कि एसडीएफ के पास 15 सितंबर, 2022 तक एमवीआर 1.6 बिलियन था, लेकिन यह मुद्रित धन था, ना कि अर्नड रिजर्व, जिसका उपयोग अकेले अंतर्राष्ट्रीय भुगतान के लिए किया जा सकता था. इस न्यूज साइट ने यह भी याद दिलाया कि किस प्रकार मूडीज इन्वेस्टर्स रिलेशंस ने एसडीएफ का उपयोग करने के तरीक़े को लेकर चिंता जताई थी. साथ ही यह भी बताया था कि जब ऋण देने की बारी आएगी तो यह किस प्रकार से ऋण-पुनर्भुगतान को प्रभावित करेगा. मंत्रालय ने तब तत्काल इसका खंडन किया था और विरोध जताया था.
संतोषजनक रिकवरी
कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था की एक स्पष्ट तस्वीर तब सामने आएगी, जब मालदीव सरकार 1 जनवरी से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष 2023 के बजट प्रस्ताव को पेश करेगी. फिर भी, आशा की किरण यह है कि कर और गैर-कर राजस्व दोनों में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में काफ़ी सुधार हुआ है, जो क्रमशः एमवीआर 14.4 बिलियन (एमवीआर 9.7 बिलियन) और एमवीआर 5.1 बिलियन (एमवीआर 3.3 बिलियन) है. इन आंकड़ों ने आने वाले महीनों और वर्षों में संतोषजनक रिकवरी की सरकार की उम्मीदों को बरक़रार रखा है.
मालदीव की सरकार विशेष रूप से पोस्ट-कोविड काल में पर्यटन क्षेत्र में लगभग पूरी रिकवरी को लेकर आशान्वित है, क्योंकि पर्यटन मंत्री डॉ. अब्दुल्ला मौसूम द्वारा वर्ष 2023 में आने वाले पर्यटकों का लक्ष्य 2 मिलियन रखा गया है. जैसे ही चीन से सीधी उड़ानें शुरू होंगी, ट्रैवल इंडस्ट्री के सूत्रों को उम्मीद है पर्यटकों की संख्या में 2.4 प्रतिशत की वृद्धि हो जाएगी.
आशा की किरण यह है कि कर और गैर-कर राजस्व दोनों में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में काफ़ी सुधार हुआ है, जो क्रमशः एमवीआर 14.4 बिलियन (एमवीआर 9.7 बिलियन) और एमवीआर 5.1 बिलियन (एमवीआर 3.3 बिलियन) है. इन आंकड़ों ने आने वाले महीनों और वर्षों में संतोषजनक रिकवरी की सरकार की उम्मीदों को बरक़रार रखा है.
ऐसे में राष्ट्रपति सोलिह द्वारा कोविड से प्रभावित पर्यटन सेक्टर में हज़ारों की संख्या में नए रोज़गार सृजित होने के हालिया दावे को लेकर सवाल उठते हैं, क्योंकि वैश्विक लॉकडाउन के बाद टूरिज्म इंडस्ट्री को खुले हुए अभी कुछ महीने ही बीते हैं. विपक्षी सांसद मोहम्मद सईद ने भी उदाहरण के लिए, थिलाधुनमथी जैसे एक स्थान पर 8,000 पर्यटन बेड्स को जोड़ने के लिए 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त करने की सरकार की मंशा पर सवाल उठाया है. ऐसा तब है, जब सोलिह ने घोषणा की है कि देशभर में पर्यटन में सुधार होगा, क्योंकि उनकी सरकार परिवहन और कनेक्टिविटी को दुरुस्त करने में विशेष ध्यान दे रही है. ज़ाहिर है कि परिवहन और कनेक्टिविटी इस द्वीपसमूह वाले राष्ट्र में एक बहुत बड़ी समस्या है.
सांसद मोहम्मद सईद ने सरकार के बजट के पीछे के गुणा-भाग पर भी सवाल उठाया. उन्होंने तर्क दिया कि प्रति रिसॉर्ट 40 मिलियन अमेरिकी डॉलर की पिछली लागत पर, प्रत्येक 100 बेड्स के 80 रिसॉर्ट्स के लिए बड़े पैमाने पर धन की आवश्यकता होगी. उन्होंने इसका भी उल्लेख किया कि किस प्रकार आकार और सुविधाओं का जिक्र किए बगैर सरकार ने हनीमाधू हवाई अड्डे की परियोजना के लिए भारत से 132 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण प्राप्त कर लिया. उन्होंने यह भी दावा किया कि यामीन शासन के अंतर्गत प्रति हवाईअड्डा परियोजना के लिए 18 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुरूप इस ऋण राशि से 8 हवाई अड्डों को पैसा दिया जा सकता था.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस यानी 21 जून को मालदीव के युवा मंत्रालय और भारतीय सांस्कृतिक केंद्र द्वारा सह-प्रायोजित कार्यक्रम में उपद्रव फैलाने के लिए गिरफ्तार किए गए 18 लोगों के खिलाफ आतंकवाद के आरोप लगाए. इस सूची में दो धार्मिक प्रचारक और एक पूर्व सांसद शामिल थे.
टाली जा सकने वाली शर्मनाक स्थिति
भारतीय विदेश सचिव क्वात्रा की यात्रा के दौरान भी मालदीव की सरकार ने शर्मनाक और परेशानी का सबब बनने वाली परिस्थियां पैदा कीं, जिनसे बचा जा सकता था. दरअसल, उसने संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस यानी 21 जून को मालदीव के युवा मंत्रालय और भारतीय सांस्कृतिक केंद्र द्वारा सह-प्रायोजित कार्यक्रम में उपद्रव फैलाने के लिए गिरफ्तार किए गए 18 लोगों के खिलाफ आतंकवाद के आरोप लगाए. इस सूची में दो धार्मिक प्रचारक और एक पूर्व सांसद शामिल थे.
पिछले महीनों में, वहां के राजनीतिक दल इसको लेकर सचेत रहे हैं कि योग दिवस पर हुई गिरफ्तारियों को लेकर कोई बयानबाज़ी ना की जाए. यामीन की पीपीएम, जिसने पूर्व सांसद मोहम्मद इस्माइल की गिरफ़्तारी का ना सिर्फ़ विरोध किया था, बल्कि तभी से उनके ख़िलाफ़ आतंकवाद के आरोपों को हटाने का आग्रह भी किया था.
यामीन का कैंप, विशेष रूप से इस गठबंधन से जुड़े हुए स्थानीय मीडिया के कुछ लोग इस तरह की बातें कर रहे हैं, जिनका कोई सिर-पैर नहीं है. इन लोगों ने दावा किया कि राष्ट्रपति सोलिह ने भारत के दबाव में आकर योग दिवस के दिन हुई घटनाओं में जांच के लिए एक कैबिनेट उप-समिति को नियुक्त किया. अपनी मनगढ़ंत बातों के अंतर्गत उन्होंने यह भी कहा कि यामीन गठबंधन द्वारा ‘इंडिया आउट’ अभियान शुरू करने के बाद राष्ट्रपति सोलिह द्वारा सभी मित्र राष्ट्रों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करने के निर्णय के पीछे नई दिल्ली का हाथ था. राष्ट्रपति के निर्णय के विरुद्ध पार्टी की अपील, जो क़ानून बनने के लिए संसदीय मंजूरी की प्रतीक्षा कर रहा है, हाई कोर्ट में विचाराधीन है.
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