Published on Jul 30, 2019 Updated 0 Hours ago

मालदीव पर नज़र रखने वालों का मानना है कि यहां का टूरिज़्म सेक्टर ज़ोरदार प्रचार की मदद से भारतीय सैलानियों को लुभाने में ज़ोर-शोर से जुट गया है.

भारत-मालदीव संबंध: पर्यटन की मदद से बदल रहें हैं आपसी रिश्ते!

दुनिया भर से घूमने के लिए मालदीव आने वाले लोगों में इस बार भारतीय नागरिक दूसरे नंबर पर हैं. ये एक नया ट्रेंड है जो हमें देखने को मिल रहा है. भारतीयों की मालदीव में दिलचस्पी से यहां आने वाले परंपरागत सैलानी यानी यूरोपीय नागरिकों के बाज़ार की चमक ख़त्म हो रही है. हालांकि इस मामले में अभी भी चीन पहले नंबर पर है. क्योंकि चीन और यूरोप से बराबर संख्या में लोग घूमने के लिए इस साल मालदीव पहुंचे थे. मालदीव में सैलानियों की दिलचस्पी की सबसे बड़ी वजह यहां एक दशक की सियासी उठापटक के बाद आई स्थिरता है. इस दौरान, हिंद महासागर स्थित द्वीपों वाले इस देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था की पुनर्स्थापना हुई है.

मालदीव के पर्यटन मंत्री अली वहीद द्वारा जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़, वर्ष 2019 के पहले छह महीनों में 82 हज़ार 140 भारतीय सैलानी मालदीव घूमने गए थे. जबकि 2018 के पूरे 12 महीनों के दौरान ये संख्या 90 हज़ार 474 ही थी. हालांकि, अगर हम एक दशक पहले मालदीव जाने वाले भारतीयों की संख्या देखें, तो पिछले साल का आंकड़ा भी 16 हज़ार ज़्यादा ही था. ये आंकड़े एक नए उभरते हुए ट्रेंड की तरफ़ इशारा करते हैं.

मालदीव के पर्यटन मंत्री अली वहीद का कहना है कि इस साल के पहले छह महीनों में जितने भारतीय उनके देश में घूमने आए, वो कुल सैलानियों की संख्या का दस प्रतिशत है. मालदीव के मंत्री का ये बयान और भी उत्साहवर्धक है कि अगले छह महीनों में ये आंकड़ा दो गुना हो सकता है.

मालदीव पर निगाह रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि मालदीव की सरकार भारतीय पर्यटकों को लुभाने के लिए ज़्यादा ज़ोर लगा रहा है. ऐसा पिछले कुछ महीनों के दौरान देखा गया है. मालदीव की टूरिस्ट वेबसाइट और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जो साप्ताहिक समाचार प्रकाशित होते हैं, उन में इस बात को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है कि मालदीव आने वालों में बहुत से बॉलीवुड कलाकार शामिल होते हैं.

टूरिज़्म में टॉप पर है चीन

हाल के हफ़्तों में मालदीव से आने वाली ख़बरों में दक्षिण भारतीय कलाकारों के छुट्टी मनाने के लिए मालदीव जाने की ख़बरें भी आई हैं. इन में दक्षिण भारतीय अभिनेत्री त्रिशा कृष्णन जैसे कलाकार शामिल हैं. ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि इन सतत प्रयत्नों का फ़ायदा भी मालदीव को हो रहा है. मालदीव की सरकार का मालदीव मार्केटिंग ऐंड पब्लिक रिलेशन्स कॉरपोरेशन यानी एमएमपीआरसी, मुंबई, कोलकाता, दिल्ली और चंडीगढ़ जैसे शहरों में रोड शो आयोजित कर के भी अपने यहां के टूरिज़्म के ठिकानों का प्रचार-प्रसार करता है.

जिस तरह मालदीव का पर्यटन विभाग अपने प्रचार में ख़ूब पैसे ख़र्च करता है, ऐसे में उसके निशाने पर परंपरागत रूप से यूरोपीय सैलानी ही रहते आए हैं. वर्ष 2004 में 26 दिसंबर को आई सुनामी और फिर 2008 के बाद विश्व की अर्थव्यवस्था में आई मंदी ने मालदीव में टूरिज़्म के हालात पूरी तरह से बदल दिए. जिस वक़्त मालदीव सुनामी की वजह से हुई तबाही से जूझ रहा था, उसी समय मंदी भी आ गई. इसके बाद ही मालदीव के पर्यटक मैनेजरों ने चीन और भारत जैसे बाज़ार का फ़ायदा उठाने की सोची.

चीन ने फ़ौरन ही मालदीव की इस कोशिश का सकारात्मक जवाब दिया. मालदीव की बात करें, तो आज यहां आने वाले पर्यटकों में पहला नंबर चीन के नागरिकों का है. मालदीव इंडिपेंडेंट की ख़बर के मुताबिक़, “2015 से सैलानियों की संख्या में आ रही गिरावट के उलट चीन से आने वाले पर्यटकों की संख्या में हर साल 10 प्रतिशत की दर से इज़ाफा हुआ और इस साल जून तक मालदीव आने वाले सैलानियों की संख्या एक लाख 40 हज़ार 265 तक पहुंच गई थी. इस में लगातार इज़ाफा हो रहा है. नए साल की पहली तिमाही में इसमें काफ़ी बढ़ोत्तरी देखी गई है.”

अब ये देखने वाली बात होगी कि मालदीव जाने वाले भारतीय पर्यटक, पैसे ख़र्च करने के मामले में भी उतनी दरियादिली दिखाते हैं या नहीं. हाई-एंड टूरिज़्म यानी अमीर और ख़ूब पैसे ख़र्च करने वाले पर्यटक, मालदीव के टूरिज़्म सेक्टर ही नहीं, देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं. या फिर, भारतीय टूरिस्ट, चीन के सैलानियों की तरह किफ़ायती टूरिस्ट ही बने रहते हैं. हालांकि एमएमपीआरसी के प्रमुख थैयब मोहम्मद कहते हैं कि, “हम उद्योग के साझीदारों के साथ काम कर रहे हैं, ताकि अमीर सैलानियों के बीच मालदीव को आदर्श पर्यटक स्थल के तौर पर प्रचारित कर सकें.”

भारत और मालदीव दोनों के लिए फ़ायदेमंद

भारत से संबंधों के इतर, चीन की समाचार एजेंसी शिन्हुआ से बात करते हुए मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि मालदीव के टूरिज़्म के लिए चीन पिछले 10 साल में सबसे बड़ा बाज़ार बना हुआ है. जैसा कि मालदीव के विदेश मंत्री ने कहा, 2019 में अब तक मालदीव आने वाले विदेशी पर्यटकों में चीन के नागरिकों का हिस्सा 14.7 प्रतिशत रहा है.

मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने कहा कि उनके देश के विकास में चीन अहम साझीदार बना रहेगा. मालदीव के विदेश मंत्री ने शिन्हुआ से कहा कि, “दोनों देशों ने ऐतिहासिक दोस्ती की बुनियाद पर जो आपसी संबंध विकसित किए हैं, वो दोनों ही देशों की संप्रभुता से कोई समझौता किए हुए विकसित हुए हैं.’ द एडिशन अख़बार ने शिन्हुआ से अब्दुल्ला शाहिद की बातचीत के हवाले से लिखा कि, “चीन, मालदीव के विकास का विशाल साझीदार है” और वो देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में बहुत योगदान दे रहा है. ये आपसी संबंध ऐसे हैं जो दोनों ही देशों के कूटनीतिक संबंध के लिए मुनाफ़े का सौदा हैं.

एक मौक़े पर मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने कहा कि, “चीन आज विश्व में सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है. हमारे सारे पड़ोसी आज चीन के साथ बेहतर संबंध बनाने में जुटे हैं. आज दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश चीन के साथ ताल्लुक बन रहे हैं. चीन से अच्छे संबंध बनाने में हम भी पीछे नहीं रहेंगे.” इस संदर्भ में अब्दुल्ला ने इस बात का भी ज़िक्र किया कि मालदीव के आर्थिक विकास मंत्री फ़ैयाज़ इस्माइल ने हाल ही में चीन के बेल्ट ऐंड रोड फ़ोरम की बैठक में भी हिस्सा लिया था. अब्दुल्ला ने कहा कि, “ये इस बात की मिसाल है कि हमारी सरकार बीआरआई प्रोजेक्ट को कितनी अहमियत देती है.”

शुक्रगुज़ार है मालदीव, कोई एजेंडा नहीं

मालदीव में चुनाव के दौरान मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख मोहम्मद नशीद के बयानों से बिल्कुल उलट, विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने अपने देश में विकास के तमाम प्रोजेक्ट्स के लिए चीन का शुक्रिया अदा किया. मालदीव में विकास के कई प्रोजेक्ट जैसे, सिनमाले ब्रिज, राजधानी माले के वेलना अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के नए रनवे के विकास और कई रिहायशी योजनाएं चीन की मदद से चल रही हैं.

मोहम्मद नशीद, एमडीपी के बहुमत वाली संसद के स्पीकर हैं. वो बार-बार ये आरोप लगाते रहे हैं कि राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की पिछली सरकार ने तमाम प्रोजेक्ट के लिए चीन को असल क़ीमत से ज़्यादा पैसे दिए हैं. नशीद ने ये भी वादा किया है कि वो इन प्रोजेक्ट की असली लागत का पता लगाने के लिए अलग से जांच कराएंगे और ये पता लगाएंगे कि कहीं इन का पैसा कहीं और तो नहीं लगाया गया है.

हालांकि, मालदीव में चीन के राजदूत झांग लिझोंग ने नशीद के उन आरोपों और दावों से इनकार किया है कि मालदीव पर चीन का 1.5 अरब डॉलर का नहीं बल्कि असल में 3.4 अरब डॉलर का क़र्ज़ बकाया है. चीन के राजदूत ने ये भी कहा कि मालदीव के विकास के अलावा उनका इस द्वीपीय देश में कोई और एजेंडा नहीं है.

कोई सैन्य तैनाती नहीं

विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने, चुनाव के दौरान राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह के बयानों के हवाले से दोहराया है कि उनकी सरकार चीन की मदद से चल रहे विकास के कामों में कोई दख़लअंदाज़ी नहीं करेगी. वहीं, मालदीव की नेशनल डिफेंस फ़ोर्स के प्रमुख मेजर जनरल अब्दुल्ला शमाल ने अपने देश में चीन के सैनिकों की मौजूदगी से साफ़ इनकार किया है और मेजर जनरल शमाल ने ये बात भारत की राजधानी दिल्ली में कही जब वो कई शहरों के दौरे के लिए भारत आए थे. भारत में मेजर जनरल शमाल की अगुवाई वाले मालदीव के प्रतिनिधिमंडल ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी मुलाक़ात की थी.

हालांकि, नई दिल्ली में जनरल शमाल ने ये भी कहा था कि उनके देश ने “चीन के साथ-साथ कारोबारी रिश्ते स्थापित किए हैं.” इसके अलावा मालदीव के सेना प्रमुख ने ये बात भी कही कि, “उनके देश की तरह ही, एक और पड़ोसी देश श्रीलंका ने भी चीन के साथ कारोबारी ताल्लुक बनाए हैं, जिनसे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी सुधार आया है.” मालदीव के सेना प्रमुख का बयान मालदीव की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगता है. जिसका मक़सद, उनके देश में चीन के सैनिकों की मौजूदगी से जुड़ी आशंकाओं और अटकलों को दूर करना और इससे जुड़े सारे सवालों के जवाब देना था.

और जैसा कि मेजर जनरल अब्दुल शमाल ने इस मौक़े पर कहा, मालदीव अपनी ज़रूरतों के लिए कई देशों पर निर्भर है और, ये राष्ट्रीय सुरक्षा का ऐसा मसला है, जिससे बचा नहीं जा सकता. हालांकि उन्होंने ये भी कहा था कि अपनी सुरक्षा के लिए मालदीव का कई अन्य देशों से मदद लेना अहम है.

मालदीव में चीन के एक सैनिक अड्डे की स्थापना की अफ़वाहों से जुड़े सवाल पर मेजर जनरल शमाल ने कहा कि, “मालदीव के लिए कई कारणों से अन्य देशों के साथ मिलकर काम करना ज़रूरी है. हम अलग-थलग नहीं रह सकते.” इससे पहले मेजर जनरल शमाल ने कहा था कि उनके देश का किसी और देश को अपने यहां सैनिक ठिकाना स्थापित करने की इजाज़त देने का कोई प्लान नहीं है.

यहां ये बात याद करने लायक़ है कि मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह का कार्यकाल शुरू होने पर रक्षा मंत्री मारिया दीदी ने ऐलान किया था कि चीन के साथ किसी तरह के सैन्य सहयोग की कोई संभावना नहीं है. उन्होंने, रक्षा मंत्री बनने के बाद एक इंटरव्यू में कहा था कि, “चीन के साथ नियमित रूप से सैन्य संबंध के लिए मालदीव को अपने यहां चीन को एक सैनिक अड्डा बनाने की इजाज़त देनी होगी.” हालांकि मारिया दीदी ने ज़ोर देकर कहा था कि इब्राहिम सोलिह की मौजूदा सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है. मालदीव की रक्षा मंत्री के इस बयान को द एडिशन ने प्रकाशित किया था.

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