Published on Jan 17, 2024 Updated 0 Hours ago

भारत ने अपनी विदेश नीति के विकल्पों और अपनी बहुपक्षीय रणनीति के ज़रिए पिछले दशक में महत्वपूर्ण तरीके से प्रतिष्ठा से जुड़ी सुरक्षा का निर्माण किया है.

‘प्रतिष्ठा और मर्यादा से जुड़ी सुरक्षा को फिर से केंद्र में लेकर आ रहा है भारत’

साल 2023 में भारत ने पहली बार G20 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की. भारत में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत अपने आम लोगों तक विदेश नीति को लेकर गया क्योंकि G20 के तहत 200 से ज़्यादा आयोजन देश के अलग-अलग हिस्सों में हुए. जैसे-जैसे भारत 2047 की तरफ बढ़ रहा है- जब राजनीतिक आज़ादी के 100 साल पूरे होंगे- इस बात पर ध्यान देना दिलचस्प है कि कैसे भारत ने एक जटिल और प्रतिस्पर्धी भू-राजनीतिक वातावरण में अपनी प्रतिष्ठा से जुड़ी सुरक्षा (रेपुटेशनल सिक्युरिटी) को मज़बूत किया है. 

यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया के प्रोफेसर निकोलस जे. कल के मुताबिक प्रतिष्ठा से जुड़ी सुरक्षा दुनिया में सुरक्षा की वो सीमा है जो व्यापक वैश्विक समुदाय के लिए मूल्य के रूप में समझे जाने से आती है.

यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया के प्रोफेसर निकोलस जे. कल के मुताबिक प्रतिष्ठा से जुड़ी सुरक्षा दुनिया में सुरक्षा की वो सीमा है जो व्यापक वैश्विक समुदाय के लिए मूल्य के रूप में समझे जाने से आती है. प्रोफेसर कल के अनुसार प्रतिष्ठा के दो घटक है: आक्रामक और रक्षात्मक घटक. उनके मुताबिक, “प्रतिष्ठा का निर्माण आंशिक तौर पर एक आक्रामक रणनीति है यानी विदेश में ये असरदार कहानी बताना कि एक देश कौन है और वो क्या चाहता है. इसमें काम-काज का एक रक्षात्मक घटक भी है ताकि जीवन के बारे में नकारात्मक पहलुओं को ख़त्म किया जा सके और देश में एक प्रशंसा करने वाले समाज का निर्माण किया जा सके. लेकिन एक दूसरा रक्षात्मक पहलू भी है जो सूचना के वातावरण की प्रकृति को छूता है: ये ऐसे काम करता है कि “जो आप नहीं चाहते हैं उससे परहेज किया जा सके” और एक प्रतिस्पर्धी डिजिटल दुनिया में लाभ बनाए रख सके.” प्रोफेसर कल आगे ये भी जोड़ते हैं कि ‘दुनिया में प्रधानता और वैश्विक नेतृत्व के लिए अपने आप में एक लक्ष्य के रूप में प्रतिष्ठा “किसी अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष का केंद्रबिंदु बन गई है”. इसके साथ-साथ ये व्यापक आर्थिक, सुरक्षा से जुड़े और भू-राजनीतिक लक्ष्यों का साधन भी बन गई है.’

सार्वजनिक कूटनीति में साख़ का महत्व

वैसे तो इस बात पर चर्चा और बहस हो सकती है कि क्या प्रतिष्ठा से जुड़ी सुरक्षा सार्वजनिक कूटनीति का एक विस्तार है लेकिन ये लोगों को इस बात के लिए मजबूर करती है कि वो सावधानी से सोचें कि कैसे प्रतिष्ठा किसी की सुरक्षा में बढ़ोतरी कर सकती है. इसे ध्यान में रखते हुए भारत ने अपनी विदेश नीति के विकल्पों और अपनी बहुपक्षीय रणनीति के ज़रिए महत्वपूर्ण तरीके से पिछले दशक में अपनी प्रतिष्ठा से जुड़ी सुरक्षा का निर्माण करने के लिए रणनीतिक तौर पर निवेश किया है. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बार-बार ‘दुनिया का मित्र या सबका मित्र’ यानी ‘विश्व मित्र’ के रूप में भारत के उदय पर ज़ोर दिया है. महत्वपूर्ण बात है कि ये बदलाव एक असमान संबंध का आभास नहीं देता है. ये साफ़तौर पर बताता है कि हम कैसे सामूहिक रूप से आगे बढ़ते हैं.

इसमें पहला है ‘विश्व गुरु’ होने की आवश्यकता से ‘विश्व मित्र’ होने की तरफ बदलाव. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बार-बार ‘दुनिया का मित्र या सबका मित्र’ यानी ‘विश्व मित्र’ के रूप में भारत के उदय पर ज़ोर दिया है. महत्वपूर्ण बात है कि ये बदलाव एक असमान संबंध का आभास नहीं देता है. ये साफ़तौर पर बताता है कि हम कैसे सामूहिक रूप से आगे बढ़ते हैं. व्यावहारिक तौर पर ये कोविड-19 के समय में वैक्सीन कूटनीति के दौरान दिखाई दिया था जब भारत की तरफ से भेजी गई वैक्सीन का फायदा कई देशों को हुआ था. इसका एक और उदाहरण है G20 के लिए भारत की थीम यानी ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ जिसे भारत की अध्यक्षता की शुरुआत से ही बता दिया गया था. भू-राजनीति में सिर्फ अपने ही बारे में बात नहीं हो सकती है और सामूहिक तौर पर काम करने एवं मित्र के रूप में एक-दूसरे के लिए खड़ा होने की पहल किसी देश की प्रतिष्ठा से जुड़ी सुरक्षा में अच्छा योगदान करती है. G20 में जिस पहल की सबसे ज़्यादा चर्चा हुई वो थी इस वैश्विक बहुपक्षीय मंच में अफ्रीकी यूनियन को शामिल किया जाना. ये ऐसा काम है जो बहुत पहले हो जाना चाहिए था. इस कदम के साथ भारत ने दिखाया है कि सामूहिक दूरदर्शिता और समावेशन महत्वपूर्ण हैं. इस बदलाव का मतलब भारत के प्राचीन योगदान को खोखला करना या उसे अपना नया रास्ता अख्तियार करने से रोकना नहीं है; ये केवल पारस्परिक सहयोग और वैश्विक स्तर पर लोगों के जनमत को बढ़ाता है. 

दूसरा, व्यवहार में बदलाव के ज़रिए जलवायु परिवर्तन को लेकर भारत का योगदान. भारत ने अपने जलवायु लक्ष्यों को लेकर अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता को जारी रखने के साथ-साथ व्यवहार में महत्वपूर्ण परिवर्तन की पहल शुरू की है जो जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई में मदद करेगी. व्यवहार में परिवर्तन लाने में समय लगेगा लेकिन ये दीर्घकालीन लक्ष्यों को पूरा करेगा. भारत की मिशन LiFE (लाइफस्टाइल फॉर एनवायरमेंट) पहल बताती है कि कैसे सौर ऊर्जा का उपयोग कार्बन कम करने के पारंपरिक उपाय के रूप में सामान्य घरेलू उद्देश्यों के लिए किया गया है. आज बिजली पैदा करने के लिए छतों पर सोलर पैनल का पारंपरिक उपयोग होता है. भारत की कोशिशें उसकी सीमा के पार तक फैली हुई हैं क्योंकि उसने संयुक्त राष्ट्र में कई देशों को सोलर पैनल उपहार के रूप में दिया है. इस तरह भारत ने वैश्विक पैमाने पर सतत ऊर्जा प्रथा को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है. ये महत्वपूर्ण प्रथाएं हैं जो निश्चित रूप से कम विकसित देशों को भी इसका पालन करने में सक्षम बनाएंगी. 

तीसरा, G20 के पहले भारत ने वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट का आयोजन किया. इसका लक्ष्य था साल भर की अध्यक्षता के लिए अपने विज़न को सामने रखना. ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) के 125 देशों ने इस शिखर सम्मेलन में भागीदारी की. G20 के बाद भारत ने वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट के दूसरे संस्करण की मेज़बानी की. दूसरे शिखर सम्मेलन की एक प्रमुख विशेषता थी ग्लोबल साउथ सेंटर ऑफ एक्सीलेंस नाम के थिंक टैंक का उद्घाटन जिसे ‘दक्षिण (DAKSHIN)’ कहा जाएगा जो डेवलपमेंट एंड नॉलेज शेयरिंग इनिशिएटिव का संक्षिप्त रूप है. ये एक थिंक टैंक और विकासशील देशों के बीच अधिक सहयोग को बढ़ावा देने वाले ज्ञान और विकास की पहल के भंडार के तौर पर काम करेगा. भारत के पूर्व राजनयिकों का कहना है कि दिल्ली में आयोजित G20 के नेताओं के घोषणापत्र का 50 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा विशेष रूप से ग्लोबल साउथ की आवश्यकताओं से संबंधित है. हालांकि इसका एक विवेकपूर्ण मूल्यांकन G20 के नई दिल्ली घोषणापत्र के फैसलों को लागू करने के बाद ही संभव है. कुल मिलाकर ग्लोबल साउथ तक एक साल में दो-दो बार विशेष रूप से पहुंचना ये दिखाता है कि भारत अपनी प्रतिष्ठा से जुड़ी सुरक्षा को लेकर कितना गंभीर है. भारत को इसके साथ-साथ ग्लोबल साउथ में अपनी सामरिक संचार क्षमताओं पर निवेश को लेकर भी सोचना चाहिए जो कि लोगों की राय को सक्षम बनाती है. 

ग्लोबल साउथ और बहुपक्षवाद

चौथा, स्वच्छता और साफ-सफाई (स्वच्छ भारत मिशन), पानी की उपलब्धता, बिजली की उपलब्धता, स्वास्थ्य और बहु-आयामी ग़रीबी (मल्टी-डाइमेंशनल पोवर्टी) को लेकर अपनी महत्वपूर्ण नीतिगत पहलों के ज़रिए भारत संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के महत्व और उन्हें हासिल करने पर ध्यान देना चाहता है. सरकार का आधिकारिक थिंक टैंक नीति आयोग मूल्यांकन के प्रमुख तौर-तरीकों को लेकर आया है जो राज्यों को इन लक्ष्यों को पाने की कोशिश में सफल (अचीवर), दौड़ में सबसे आगे (फ्रंटरनर्स), अच्छा प्रदर्शन करने वाले (परफॉर्मर्स) और आकांक्षी (एस्पिरेंट) की श्रेणियों में बांटता है. इसके अलावा सरकार का आकांक्षी जिला कार्यक्रम व्यापक SDG के लक्ष्यों के साथ जुड़ा हुआ है. इसके बाद भी भारत के कई राज्य समाज से जुड़ी अपनी चुनौतियों के समाधान और SDG को हासिल करने में रचनात्मक योगदान के लिए बाहर के विशेषज्ञों की मदद लेते हैं. 

आख़िरी लेकिन महत्वपूर्ण बात है बहुपक्षवाद पर भारत का मज़बूत ज़ोर. भारत ने ख़ुद को नीतिगत रूप से अनुकूल बनाने के लिए और अपनी सामरिक संचार कोशिशों में अपने अधिकतर प्रयासों का सहारा लिया है ताकि ये दिखाया जा सके कि वो किसी भी तरह के विवाद के उलट बातचीत और सहयोग का पक्ष लेता है. विदेश नीति के विशेषज्ञों और विश्लेषकों की सोच में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि कोई एक व्यक्ति या देश दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता है. इसके लिए साथ मिलकर सोचने और समस्या के समाधान की आवश्यकता होगी और भारत इसके लिए प्रतिबद्ध दिख रहा है. 

इस बात में कोई शक नहीं है कि अपनी प्रतिष्ठा से जुड़ी सुरक्षा को स्थापित करने और इसको ले जाने में भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. लेकिन विचार, शब्द और कर्म के माध्यम से वैश्विक स्थायित्व और सहयोग के प्रति भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता आने वाले समय में इसे बनाए रखने के लिए सबसे उचित प्रतिक्रिया होगी. 

ये वो महत्वपूर्ण प्रगति है जो भारत ने अपनी प्रतिष्ठा से जुड़ी सुरक्षा और आज के संदर्भ में सैद्धांतिक रूप-रेखा की प्रासंगिकता को फिर से केंद्र में लाने के लिए की है. महत्वपूर्ण बात ये है कि इस कदम का स्वागत न केवल ग्लोबल नॉर्थ (विकसित देश) बल्कि ग्लोबल साउथ भी करेगा. भारत अपनी प्रतिष्ठा से जुड़ी सुरक्षा को केवल पश्चिमी देशों और धनवान देशों तक सीमित न करके दुनिया के हर हिस्से तक ले जाकर अच्छी तरह से और सही मायने में इसे हर किसी तक पहुंचा रहा है. इस बात में कोई शक नहीं है कि अपनी प्रतिष्ठा से जुड़ी सुरक्षा को स्थापित करने और इसको ले जाने में भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. लेकिन विचार, शब्द और कर्म के माध्यम से वैश्विक स्थायित्व और सहयोग के प्रति भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता आने वाले समय में इसे बनाए रखने के लिए सबसे उचित प्रतिक्रिया होगी. 

सुदर्शन रामाबदरन पॉलिसी एक्सपर्ट, लेखक और इंटरनेशनल कम्युनिकेशन एंड पब्लिक डिप्लोमेसी प्रोफेशनल हैं.

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