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भूमिका
पिछले महीने, भारत ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के पूर्ण सदस्य के रूप में सात साल पूरे किए. अस्ताना में आयोजित एससीओ राष्ट्राध्यक्षों के 24वें शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी शरीक नहीं हुए. SCO के मुख्य लक्ष्य आपसी विश्वास को मज़बूत करना, आतंकवाद का मुकाबला करते हुए क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना और संतुलित आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना हैं. भारत दो प्राथमिक उद्देश्यों के साथ SCO में शामिल हुआ था: सीमा पार आतंकवाद का मुकाबला करना और मध्य एशिया के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करना. 2017 के शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के बयान , “आतंकवाद मानवता के लिए एक प्रमुख ख़तरा है. मुझे पूरा विश्वास है कि भारत-SCO सहयोग आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को एक नई दिशा और ताक़त देगा”, से SCO के तहत भारत के आतंकवाद विरोधी अभियान का पता चलता है. भारत इस बहुपक्षीय मंच को मुख्य रूप से मध्य एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में देखता है. एक अन्य महत्वपूर्ण विचार यूरेशिया की सुरक्षा है; पारंपरिक सुरक्षा चिंताओं से इतर, भारत ऊर्जा सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक सुरक्षा जैसे गैर-पारंपरिक सुरक्षा मुद्दों पर सहयोग करने के लिए SCO में शामिल हुआ था.
भारत दो प्राथमिक उद्देश्यों के साथ SCO में शामिल हुआ था: सीमा पार आतंकवाद का मुकाबला करना और मध्य एशिया के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करना.
SCO का गठन बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अपनी तरह का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन है, जो यूरेशियाई क्षेत्र के प्रमुख गैर-पश्चिमी देशों को एक साथ लाया है. यह 2001 में पश्चिम का मुकाबला करने के लिए एक गुट के रूप में अस्तित्व में आया था. अमेरिका पर 9/11 के हमलों के साथ, इसने यूरेशियाई क्षेत्र में सुरक्षा की गारंटी देने वाले के रूप में अपनी भूमिका दोहराई. भारत 2015 में SCO का पूर्ण सदस्य बना, उसी समय राष्ट्रपति पुतिन ने "ग्रेटर या बृहत यूरेशियाई भागीदारी" की अवधारणा पेश की. बृहत यूरेशिया का एजेंडा SCO के भीतर सहयोग को मज़बूत करना, स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल (सीआईएस) की प्रकृति में निहित अवसरों को अधिकतम करना और यूरेशियाई आर्थिक एकीकरण को विकसित करना के लक्ष्य के साथ बनाया गया है. SCO विविध आर्थिक और सैन्य पृष्ठभूमि के सदस्यों को एक साथ लाया है. SCO की सदस्यता पश्चिमी आधिपत्य वाले संगठनात्मक ढांचों के ख़िलाफ़ तैयार की गई है. रूस भारत को क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता के संबंध में बृहत यूरेशिया का एक अनिवार्य हिस्सा मानता है.
रूस की ग्रेटर यूरेशियाई रणनीति में भारत
अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण "बृहत यूरेशिया" रूस की कल्पना की अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की सबसे बड़ी अभिव्यक्ति है. ग्रेटर या बृहत यूरेशिया के अंदर आधुनिक दुनिया की तीन सबसे बड़ी शक्तियां मौजूद हैं - रूस, भारत और चीन, जिनमें से प्रत्येक एक दूसरे को संतुलित करती है, जो असमान शक्ति गतिशीलता बनने के ख़िलाफ़ एक गारंटी है.
रूस की विदेश नीति अवधारणा 2023 में भारत को नई विश्व व्यवस्था की अपनी अपने दूरदर्शी योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है, जिसमें देशों के बीच बहुध्रुवीयता और संप्रभु समानता की वकालत की गई है.
रूस की विदेश नीति अवधारणा 2023 में भारत को नई विश्व व्यवस्था की अपनी अपने दूरदर्शी योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है, जिसमें देशों के बीच बहुध्रुवीयता और संप्रभु समानता की वकालत की गई है. क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता के संबंध में रूस भारत को व्यापक यूरेशिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानता है. यह अवधारणा, "महान पड़ोसियों" में से एक के रूप में नामित, भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी को प्राथमिकता देने की वकालत करती है. रूस "अमित्रतापूर्ण गठबंधनों" का मुकाबला करने के लिए भारत के साथ एक विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी को बनाना जारी रखना चाहता है. 2022 में अफ़गानिस्तान से संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) की वापसी के बाद से, रूस ने भारत को एक महत्वपूर्ण यूरेशियन भागीदार के रूप में मान्यता देते हुए अफ़गान सुरक्षा चर्चाओं में सक्रिय रूप से शामिल किया है. रूस यूरेशिया में भारत की बढ़ती भूमिका को आशावादी नज़र से देखता है, इस क्षेत्र में आर्थिक जुड़ाव बढ़ाने की इसकी क्षमता को पहचानता है. रूस भारत को एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के निर्माण में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में देखता है. हालांकि, दो क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों- भारत और चीन की उपस्थिति रूस के व्यापक यूरेशिया के सपने के लिए एक चुनौती पेश करती है.
अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी ) और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) जैसी कनेक्टिविटी परियोजनाएं बृहत यूरेशियन पार्टनरशिप के केंद्र में हैं. भारत आईएनएसटीसी को चीन के बीआरआई के लिए एक व्यवहारिक विकल्प के रूप में देखता है, जिसमें भारत और मध्य एशियाई राज्यों के बीच मज़बूत व्यापार प्रवाह को सुविधाजनक बनाकर "समृद्धि लाने वाला" बनने की क्षमता है.
SCO में भारत और उसके पड़ोसी
एससीओ चार्टर द्विपक्षीय विवादों पर बात करने पर रोक लगाता है, फिर भी यह देशों के बीच सहमति का आधार खोजने और संवाद को बढ़ावा देने के लिए एक अनुकूल मंच प्रदान करता है. सदस्य देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों में कोई भी गिरावट संगठन की प्रभावशीलता को काफ़ी हद तक कम करती है. SCO में भारत की भागीदारी चीन और पाकिस्तान के साथ अपने नाज़ुक रिश्तों को संभालते हुए मध्य एशिया और रूस के साथ संबंधों को मज़बूत करने की इसकी रणनीति को रेखांकित करती है.
SCO में भारत की भागीदारी चीन और पाकिस्तान के साथ अपने नाज़ुक रिश्तों को संभालते हुए मध्य एशिया और रूस के साथ संबंधों को मज़बूत करने की इसकी रणनीति को रेखांकित करती है.
एससीओ की प्रेरक शक्ति के रूप में, संगठन के भीतर भागीदार के रूप में भारत के लिए चीन का महत्व सीमित है. सीमा पर तनाव के कारण तनावपूर्ण हुए संबंधों ने 2021 से SCO के भीतर द्विपक्षीय बैठकों में बाधा उत्पन्न की है. बाली में G20 शिखर सम्मेलन और 2023 में दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान ही संक्षिप्त बातचीत हुई. अन्य सभी एससीओ सदस्यों के विपरीत, तिब्बत के मुद्दे को लेकर भारत के समर्थन और एक-चीन नीति (वन-चाइना पॉलिसी) को बनाए रखने से इनकार करने से संबंध और जटिल हो गए हैं. फिर भी, भारत और चीन ने बहुपक्षीय स्तरों पर समान आधार पाया है. दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र में सहयोग किया है और जलवायु परिवर्तन और एसडीजी जैसे मुद्दों पर मिलकर काम किया है. भारत एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (एआईआईबी) का भी सदस्य है और इसके नियम-आधारित ढांचे को महत्व देता है, जो बीआरआई के विपरीत है. हालांकि, 2017 से भारत और चीन के बीच सहयोग के क्षेत्र सिकुड़ गए हैं और मतभेद बढ़ रहे हैं.
2019 में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने से भारत और पाकिस्तान के बीच शांति प्रयासों में रुकावट आई है. 2023 में गोवा में SCO विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद, ज़रदारी ने कहा कि इस फैसले को न पलटना ही बातचीत को फिर से शुरू करने में एकमात्र बाधा है. पाकिस्तान दावा करता है कि "जब तक भारत अपने 2019 के कदमों को वापस नहीं लेता है, तब तक सार्थक द्विपक्षीय बातचीत मुश्किल होगी". पाकिस्तान ने इस कदम को SCO के उद्देश्यों के खिलाफ़ बताया .
मध्य एशियाई देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने के भारत के प्रयासों की शुरुआत 2012 में "कनेक्ट सेंट्रल एशिया" नीति के साथ हुई, जिसके बाद 2014 में "एक्ट ईस्ट पॉलिसी" आई. SCO में भारत की सदस्यता ने इन संबंधों को और दृढ़ किया. 2022 में पहली बार आयोजित हुए भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन का उद्देश्य क्षेत्रीय विकास, शांति और समृद्धि को बढ़ावा देना था जिसका सूत्र वाक्य था, "सभी का समर्थन, सभी के लिए विकास, सभी का विश्वास, सभी का प्रयास". मध्य एशिया, जिसे भारत का "विस्तारित पड़ोस" माना जाता है, यूरेशिया के केंद्र में स्थित है. ऊर्जा संसाधनों की समृद्धि और उनकी बहु-सदिश (मल्टी वेक्टर) विदेश नीति के रुख ने मध्य एशियाई देशों को भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बना दिया है, ख़ासकर विकसित वैश्विक व्यवस्था के संदर्भ में.
भारत के लिए SCO में चुनौतियां
एससीओ के अंतर्गत आर्थिक सहयोग की संभावनाओं के बावजूद, सुरक्षा और संपर्क से संबंधित चुनौतियां बनी हुई हैं. भारत एकमात्र एससीओ सदस्य देश है जो बीआरआई का हिस्सा नहीं है. यह निर्णय संप्रभुता संबंधी चिंताओं से उपजा है, विशेष रूप से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के संबंध में, जो पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (पीओके) से होकर गुज़रता है. चूंकि समूह (SCO) का मुख्य लक्ष्य 'चरमपंथ, आतंकवाद और अलगाववाद' को जन्म देने वाले कट्टरपंथ का संयुक्त रूप से मुकाबला करना है, भारत के ख़िलाफ़ पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद SCO के भीतर भारत की प्रभावी भागीदारी के लिए एक बड़ी बाधा खड़ी करता है. हाल ही में रियासी में हुए आतंकवादी हमले ने आग में घी डालने का काम किया है क्योंकि यह भारत के "सुरक्षित एससीओ की ओर" के आदर्श वाक्य का उल्लंघन करता है. क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना के कामकाज को लेकर SCO की प्रभावशीलता की कमी भारत के लिए एससीओ के महत्व को कम कर सकती है.
हालांकि, एससीओ ने भारत-मध्य एशिया के बढ़े हुए आर्थिक जुड़ाव को एक अच्छा मंच दिया है. लेकिन भारत को अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के अलावा समूह से कोई सुरक्षा लाभ नहीं मिला है.
भारत की बहु-गठबंधन कूटनीति, जो एससीओ और क्वॉड में इसकी उम्मीदवारी से स्पष्ट है, का उद्देश्य चीन का प्रमुख व्यापार भागीदार होने के साथ ही चीन की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को संतुलित करना है. सदस्य न होने के बावजूद G7 शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी, अस्ताना शिखर सम्मेलन से इसकी अनुपस्थिति के विपरीत है. SCO प्रमुखों के शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी की अनियमित उपस्थिति एससीओ के भीतर भारत की भागीदारी के लिए चुनौतियों को उजागर करती है. प्रधानमंत्री ने 2021 ताज़िकिस्तान शिखर सम्मेलन में वर्चुअली भाग लिया था और 2022 उज़्बेकिस्तान बैठक में भाग लेने के बाद 2023 में एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की, जिसने सदस्यों के बीच चिंता पैदा कर दी. 2024 के अस्ताना शिखर सम्मेलन को छोड़ने का निर्णय इन चिंताओं को बढ़ावा देगा. एससीओ में यह विसंगति इशारा करती है कि भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान विवाद सीमा पर तनाव से कहीं ज़्यादा हैं, क्षेत्रीय संगठनों में सक्रिय भागीदारी में बाधा डालते हैं और द्विपक्षीय वार्ता को विफल करते हैं.
इसके अलावा, रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण एससीओ सदस्यों के बीच व्यापार जटिल हो गया है. राष्ट्रपति पुतिन की भारत और चीन से स्थानीय मुद्राओं में व्यापार करने की अपील को रुपया-रूबल और रूबल-युआन की विनिमय दर की अस्थिरता के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
निष्कर्ष
निस्संदेह, एससीओ से भारत को फ़ायदा मिला है. हालांकि इस समूह से अलग भारत के रूस और मध्य एशिया दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं. भले ही भारत अपने स्रोतों में विविधता लाने के लिए पश्चिम से और घर में ही विकल्प तैयार कर रहा है, रूस भारत का प्राथमिक हथियार आपूर्तिकर्ता बना हुआ है. भारत ने मध्य एशियाई देशों के साथ जुड़ने के लिए भारत-मध्य एशिया वार्ता और भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन जैसे संस्थागत तंत्र स्थापित किए हैं. हालांकि, एससीओ ने भारत-मध्य एशिया के बढ़े हुए आर्थिक जुड़ाव को एक अच्छा मंच दिया है. लेकिन भारत को अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के अलावा समूह से कोई सुरक्षा लाभ नहीं मिला है. समूह के साथ जुड़ाव के स्तर को देखते हुए, एससीओ में भारत का भविष्य उज्ज्वल नहीं दिखता क्योंकि ऐसा लगता है कि इसने भारत की क्षेत्रीय भू-राजनीतिक स्थिति में अपनी प्रासंगिकता खो दी है. यह विसंगति रूस की "व्यापक यूरेशियन" सपने के लिए एक झटका हो सकती है.
भारत ने युद्ध की आलोचना करते हुए और सामान्य रूप से रूस की कार्रवाई का समर्थन नहीं करते हुए यूक्रेनी मुद्दे पर एक तटस्थ रुख़ बनाए रखा है. अपने वैश्विक संबंधों को संतुलित करने के लिए, भारत चीन के भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी- अमेरिका और उसके (चीन के) सबसे मज़बूत सहयोगी- रूस के करीब होने की कोशिश करता है. हालांकि, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत रूस और अमेरिका के बीच अपने ‘संतुलन बनाए रखने के काम’ को कितनी दूर तक ले जा सकता है. इस महीने पीएम मोदी की मॉस्को की यात्रा को, एससीओ शिखर सम्मेलन में शामिल न होने के बावजूद, रूस के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के भारत के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है. हालांकि यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि भारत की सदस्यता को ख]तरा है या नहीं, लेकिन भारत निस्संदेह समूह की ओर जान बूझकर ध्यान नहीं दे रहा है.
आयुषी सैनी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के रूसी और मध्य एशियाई अध्ययन केंद्र में जूनियर रिसर्च फ़ेलो हैं.
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