Author : B. Rahul Kamath

Published on Sep 15, 2021 Updated 0 Hours ago

नियम आधारित वैश्विक व्यवस्था के लिए भारत, मध्य और पूर्वी यूरोप के देश मिलकर काम कर सकते हैं

मध्य और पूर्वी यूरोप में भारतः गुटनिरपेक्षता से बहुदेशीय व्यवस्था तक का सफ़र…

भारत के विदेश मंत्री डॉ.एस.जयशंकर 2-5 सितंबर के बीच स्लोवेनिया, क्रोएशिया और डेनमार्क की यात्रा पर थे. इससे भारत को मध्य यूरोप के दो देशों और डेनमार्क के साथ द्विपक्षीय रिश्तों की समीक्षा करने का मौका मिला. इसके साथ ही, इस यात्रा ने यूरोपीय संघ और इसके सदस्य देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने का भी अवसर दिया. स्लोवेनिया के न्योते पर विदेश मंत्री 2-3 सितंबर को वहां पहुंचे. यह यात्रा इसलिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि अभी स्लोवेनिया के पास ही यूरोपीय संघ की परिषद की अध्यक्षता है. 3 सितंबर को जयशंकर ने यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों के साथ एक अनौपचारिक बैठक की. इस दौरान भारतीय विदेश मंत्री के हाथ एक उपलब्धि भी लगी. वह पिछले 30 वर्षों में स्लोवेनिया की यात्रा पर जाने वाले पहले भारतीय विदेश मंत्री बन गए. वहां उन्होंने अपने यूरोपीय समकक्षों के साथ साझा हितों पर बातचीत की. इसके साथ ही जयशंकर ने अफ़गानिस्तान संकट पर भी चर्चा की. वह ‘भारत-प्रशांत क्षेत्र में नियमों पर आधारित साझेदारी’ विषय पर आयोजित एक सम्मेलन में भी शामिल हुए. इसका आयोजन एनुअल ब्लेड स्ट्रैटिजिक फोरम (बीएसएफ) ने किया था. इस फोरम की शुरुआत साल 2006 में हुई थी. तब इसे मध्य और दक्षिण पूर्वी यूरोप का मंच माना जाता था, लेकिन आज यह एक अंतरराष्ट्रीय मंच बन चुका है.

स्लोवेनिया में भारत

भारत-प्रशांत क्षेत्र में जयशंकर ने नियम आधारित व्यवस्था के लिए यूरोप के साथ साझेदारी पर ज़ोर दिया. असल में इस क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को रोकने के लिए कई यूरोपीय देश भारत से अपना दख़ल बढ़ाने को कह रहे हैं. वह इस तरह से चीन के बरक्स क्षेत्र में संतुलन स्थापित करना चाहते हैं. भारतीय विदेश मंत्री ने भी यात्रा के दौरान ज़ोर देकर कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यूरोपीय संघ के पास भारत जैसा दोस्त है. इसी महीने हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर यूरोपीय संघ की रणनीति के आने की उम्मीद है. इससे पहले क्षेत्र के लिए नीति बनाने की खातिर यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों के बीच महीनों तक चर्चा चली. एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इसी साल यूरोपीय संघ ने चीन के साथ कॉम्प्रिहेंसिव एग्रीमेंट ऑन इन्वेस्टमेंट (सीएआई) यानी निवेश पर व्यापक सहमति पर अमल रोक दिया. चीन के शिनच्यांग में मानवाधिकार उल्लंघन को देखते हुए यूरोपीय संघ ने यह कदम उठाया. दूसरी तरफ, यूरोपीय देशों का यह संगठन भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए जोर लगा रहा है.

भारतीय विदेश मंत्री ने भी यात्रा के दौरान ज़ोर देकर कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यूरोपीय संघ के पास भारत जैसा दोस्त है. इसी महीने हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर यूरोपीय संघ की रणनीति के आने की उम्मीद है. इससे पहले क्षेत्र के लिए नीति बनाने की खातिर यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों के बीच महीनों तक चर्चा चली. 

जयशंकर ने इस यात्रा के दौरान स्लोवेनिया के विदेश मंत्री ए.लोगार के साथ द्विपक्षीय बैठक की. इसमें दोनों देशों ने एक दूसरे को अपने यहां कोरोना महामारी के ताज़ा हालात की जानकारी दी. इस बैठक में जयशंकर ने भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और निवेश समझौते में तेज़ी लाने के लिए स्लोवेनिया से सहयोग की अपील की. इस यात्रा के दौरान स्लोवेनिया की नोवा यूनिवर्सिटी में भारतीय विदेश मंत्री ने इंडिया स्टडीज सेंटर का उद्घाटन भी किया. दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने में यह सेंटर मददगार साबित होगा. जयशंकर ने स्लोवेनिया के प्रधानमंत्री यानेस यानसा और राष्ट्रपति बोरुत पहोर से भी मुलाकात की. इन मुलाकातों में इस पर बात हुई कि भारत और यूरोपीय संघ अभी किन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. इसके साथ वैश्विक मुद्दों पर भी दोनों पक्षों ने अपनी राय रखी. इनमें ख़ासतौर पर यूरोप की चुनौतियों, भारत-प्रशांत क्षेत्र में यथास्थिति बनाए रखने और अफगानिस्तान संकट जैसे मुद्दे शामिल थे.

क्रोएशिया में भारत

स्लोवेनिया के बाद भारतीय विदेश मंत्री क्रोएशिया गए. वह भारत के पहले विदेश मंत्री हैं, जो क्रोएशिया गए. यहां उनकी अगवानी प्रधानमंत्री आंद्रेज प्लेनकोविच ने की. दोनों के बीच भारत और क्रोएशिया के बीच द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर वार्ता हुई. इस दौरान अफ़ग़ानिस्तान संकट पर क्रोएशिया के रुख़ को प्रमुखता दी गई. साथ ही, भारत ने क्रोएशिया में दवा, डिजिटल और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों में निवेश करने में दिलचस्पी दिखाई. जयशंकर और प्लेनकोविच के बीच रक्षा, पर्यटन, कोविड के बाद रिकवरी और आतंकवाद को रोकने के लिए आपसी सहयोग पर भी चर्चा हुई.

हिंद-प्रशांत और अफ़ग़ानिस्तान संकट पर विस्तृत वार्ता के बाद एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में जयशंकर और क्रोएशिया के विदेश मंत्री गॉर्डन ग्रिलिच रैडमैन ने साझा हितों और सोच पर जोर दिया. क्रोएशिया मध्य यूरोप के जिस क्षेत्र में है, उसका काफी भू-रणनीतिक महत्व है. उसके पास मजबूत समुद्रीय अर्थव्यवस्था है. भारत उसके साथ आपसी रिश्तों को मजबूत करना चाहता है और वह मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों के साथ संबंधों का दायरा बढ़ाने में भी दिलचस्पी रखता है. भारत और क्रोएशिया के बीच अभी 13.7 करोड़ यूरो का द्विपक्षीय व्यापार होता है. इसमें भारत से क्रोएशिया को किए जाने वाले निर्यात की 90 प्रतिशत भागीदारी है. दोनों देशों के बीच व्यापार में जितनी बढ़ोतरी की जा सकती है, अभी तक उसका फायदा नहीं उठाया गया है, लेकिन इस दिशा में अच्छे संकेत जरूर दिखे हैं. मुंबई स्थित दवा कंपनी एसीजी वर्ल्डवाइड ने 2013 में क्रोएशिया में निवेश किया था. आज यह यूरोप में जिलेटिन कैप्सूल सप्लाई करने वाली तीसरी सबसे बड़ी कंपनी बन चुकी है. गौरतलब है कि क्रोएशिया 2013 में यूरोपीय संघ का हिस्सा बना. वह इस संघ का सबसे नया सदस्य है. भारत के पास यहां अक्षय ऊर्जा, दवा, पर्यटन, रेलवे और इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में निवेश के अवसर हैं. पश्चिमी बाल्कन, दक्षिणी भूमध्यसागर और पश्चिम यूरोप में भारत की एंट्री के लिए यह महत्वपूर्ण जरिया हो सकता है.

क्रोएशिया मध्य यूरोप के जिस क्षेत्र में है, उसका काफी भू-रणनीतिक महत्व है. उसके पास मजबूत समुद्रीय अर्थव्यवस्था है. भारत उसके साथ आपसी रिश्तों को मजबूत करना चाहता है और वह मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों के साथ संबंधों का दायरा बढ़ाने में भी दिलचस्पी रखता है. 

डेनमार्क में भारत

इस यात्रा के आख़िरी दौर में जयशंकर डेनमार्क पहुंचे. पिछले 20 वर्षों में यह किसी भारतीय विदेश मंत्री की वहां की पहली यात्रा थी. जयशंकर ने कहा कि डेनमार्क भारत का ‘अनोखा पार्टनर’ है. यह अकेला देश है, जिसके साथ भारत की ग्रीन स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप है. यह साझेदारी भारत में पवन ऊर्जा क्षेत्र के लिए काफी मददगार साबित हो सकती है. डेनमार्क 1970 के दशक से ही पवन ऊर्जा में निवेश कर रहा है. आज वह अपनी जरूरत की 50 प्रतिशत बिजली इसी से हासिल करता है. भारत और डेनमार्क के बीच इस ग्रीन पार्टनरशिप की बुनियाद शहरी विकास और टिकाऊ शहरीकरण हैं. दिलचस्प बात है कि 2025 तक कोपनहेगन ने कार्बन न्यूट्रल शहर बनने का लक्ष्य रखा है. डेनमार्क के आरहुस, वाइले और सॉन्डरबर्ग जैसे शहरों ने टिकाऊ अर्बन प्लानिंग में महारत हासिल कर ली है. ये शहर अक्षय ऊर्जा पर आश्रित हैं और इसके ज़रिये वे जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने में मदद कर रहे हैं. दोनों देशों में शहरों के स्तर पर भी सहयोग बढ़ रहा है. भारत के उदयपुर और तुमकुर और डेनमार्क के आरहुस और आलबर्ग शहरों के बीच ऐसी पहल हुई है.

हमें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि जिस तेज़ी से भारत की आबादी बढ़ रही है, उससे ऊर्जा की मांग में भी इज़ाफा हो रहा है. ऐसे में डेनमार्क के साथ साझेदारी से भारत को काफी फायदा हो सकता है. वह हरित ऊर्जा में काफी आगे बढ़ चुका है. टिकाऊ विकास का भी उसने अपना एक मॉडल बनाया है. इसके ज़रिये दोनों देशों के बीच हरित साझेदारी और मज़बूत हो सकती है. इसे भारत और यूरोपीय संघ के बीच बहुप्रतीक्षित मुक्त व्यापार समझौते से पहले की कड़ी माना जा सकता है. असल में, यूरोपीय संघ के लिए भी ग्रीन एनर्जी को तेज़ी से अपनाना और जलवायु परिवर्तन को रोकने की पहल काफी अहमियत रखती है. इस सिलसिले में जापान और यूरोपीय संघ के बीच हुए आर्थिक व्यापार समझौते का ज़िक्र करना मौजूं होगा. यह अपनी तरह का पहला समझौता है, जो पेरिस एग्रीमेंट से जुड़ा है. इसमें टिकाऊ वन प्रबंधन, जैविक विविधता और पेड़ों की अवैध कटाई को रोकने के उपाय करने को लेकर प्रतिबद्धता ज़ाहिर की गई है. ऐसे में, जब भारत यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते को जल्द से जल्द अंतिम रूप देना चाहता है तो वह भारत से पर्यावरण के क्षेत्र में पहल करने को कह सकता है.

डेनमार्क 1970 के दशक से ही पवन ऊर्जा में निवेश कर रहा है. आज वह अपनी जरूरत की 50 प्रतिशत बिजली इसी से हासिल करता है. भारत और डेनमार्क के बीच इस ग्रीन पार्टनरशिप की बुनियाद शहरी विकास और टिकाऊ शहरीकरण हैं. 

भारत और डेनमार्क ने पहले कहा था कि वे यूरोपीय संघ और भारत के बीच महत्वाकांक्षी और दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद व्यापार और निवेश समझौता चाहते हैं. दोनों देशों ने इसके लिए मिलकर काम करने की बात कही थी. भारत की अगुवाई वाले इंटरनेशनल सोलर अलायंस से 2020 में जब डेनमार्क ने जुड़ने का फैसला किया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसकी सराहना की. दोनों देशों ने जब नियम आधारित बहुदेशीय व्यापार व्यवस्था को विश्व व्यापार संगठन के तहत बढ़ावा देने का निर्णय लिया तो उसकी भी प्रधानमंत्री ने तारीफ की. भारत और डेनमार्क का मानना है कि इससे वैश्विक स्तर पर टिकाऊ विकास को बढ़ावा मिलेगा. अगर आर्कटिक काउंसिल की बात करें तो यहां भी दोनों देशों ने एक ढांचे के अंदर पर्यावरण संबंधी चुनौतियों को कम करने की दिशा में काम करने की बात कही है. भारत एशिया के उन पांच देशों में शामिल है, जिसे इस काउंसिल में पर्यवेक्षक का दर्जा मिला हुआ है. हरित रणनीतिक साझेदारी के अलावा विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत में डेनमार्क की 200 कंपनियों के काम करने का भी जिक्र किया. उन्होंने इसके ज़रिये भी यूरोपीय संघ और भारत के बीच मुक्त व्यापार समझौते की अहमियत पर ज़ोर दिया. जयशंकर ने भारत-डेनमार्क संयुक्त आयोग बैठक (जेसीएम) के चौथे दौर की बैठक की 4 सितंबर को डेनमार्क के विदेश मंत्री जे कोफोड के साथ सह-अध्यक्षता भी की. इसमें हरित समझौते के तहत द्विपक्षीय सहयोग की समीक्षा की गई.

मध्य और पूर्वी यूरोप के साथ भारत के ऐतिहासिक रिश्ते 

चीन की 16+1 पहल और बेल्ट एवं रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) के बीच यूरोपीय संघ भारत को चीन की तुलना में सुरक्षित आर्थिक सहयोगी मानता है. भारत के यूगोस्लाविया के साथ हमेशा अच्छे रिश्ते रहे हैं, जो गुटनिरपेक्ष आंदोलन में महत्वपूर्ण सहयोगी था. गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल देशों का पहला सम्मेलन 1961 में बेलग्रेड में ही हुआ था. मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों पर भी इधर भारत ने अधिक ध्यान देना शुरू किया है. राष्ट्रपति कोविंद 2018 में इस क्षेत्र की यात्रा पर गए थे, जहां उन्होंने मध्य यूरोपीय देशों से भारत के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान में मदद करने की अपील की थी.

भारत और इन देशों के बीच राजनीतिक स्तर पर मेलजोल बढ़ने से हमें फायदा होगा. अगर भारत इन देशों के साथ रणनीतिक स्तर पर रिश्ते मजबूत करता है तो वह मौजूदा बाधाओं को पार करते हुए इनका अधिकतम लाभ ले सकता है. दक्षिण यूरोप में स्लोवेनिया और क्रोएशिया भू-मध्यसागर के करीब स्थित हैं. यह वह इलाका है, जहां चीन के बढ़ते दखल के मद्देनज़र भारत खुद को मज़बूत करना चाहता है. भारत के पास 2021-2022 में संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता भी है. 2022 में वह जी-20 की अध्यक्षता करेगा. इन मंचों का इस्तेमाल करके वह बहुदेशीय व्यवस्था को आगे बढ़ाना चाहता है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भू-राजनीतिक स्तर पर भविष्य में कई घटनाक्रम भविष्य में सामने आ सकते हैं, जिनका इस क्षेत्र से बाहर के देशों पर भी असर हो सकता है. ऐसे में अगर यूरोपीय संघ अपने लिए एक वैश्विक भूमिका देख रहा है तो उसे इस क्षेत्र में भारत के साथ मिलकर अपनी मौजूदगी बढ़ानी होगी. 

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भू-राजनीतिक स्तर पर भविष्य में कई घटनाक्रम भविष्य में सामने आ सकते हैं, जिनका इस क्षेत्र से बाहर के देशों पर भी असर हो सकता है. ऐसे में अगर यूरोपीय संघ अपने लिए एक वैश्विक भूमिका देख रहा है तो उसे इस क्षेत्र में भारत के साथ मिलकर अपनी मौजूदगी बढ़ानी होगी. भारत भी अहम यूरोपीय देशों का सहयोग हासिल करना चाहता है. इसके लिए वह मध्य और पूर्वी यूरोप के देशों के साथ द्विपक्षीय रिश्ते मज़बूत कर रहा है. यह यूरोपीय संघ और भारत के बीच रणनीतिक साझेदारी का रोडमैप है. भारत इस क्षेत्र के देशों के साथ राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक साझेदारी को फिर से बढ़ाने की उम्मीद कर रहा है, जिसे पहले ईस्टर्न ब्लॉक कहा जाता था. तब भारत के इस क्षेत्र के देशों के साथ अच्छे राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सैन्य रिश्ते थे. लेकिन शीत युद्ध के खत्म होने के बाद यह साझेदारी कमज़ोर पड़ गई. 20वीं सदी में मध्य यूरोप के देशों को गुटनिरपेक्षता को लेकर भारतीय दृष्टि पर भरोसा था. आज ये देश यूरोपीय संघ के साथ 21वीं सदी के लिए भारत के बहुदेशीय व्यवस्था की सोच के साथ खड़े हो सकते हैं. इससे दुनिया में शांति और स्थिरता बनाए रखने में मदद मिलेगी.

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