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भारत को अपने कार्यक्रमों की प्रभावशीलता और उनकी पहुंच सुधारने की ज़रूरत है. इसके लिए ज़्यादा सक्रिय क़दम उठाने और कुपोषण दूर करने वाले इनोवेशन को बढ़ाने की ज़रूरत है.
22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफ़एचएस)-5 के आंकड़े दिसंबर, 2020 की शुरुआत में जारी किए गए. इन आंकड़ों से चिंताजनक संकेत मिलता है कि 2016 से 2019 के बीच भारत में कुपोषण में बढ़ोतरी हुई है. ये दोहरा झटका है. एक तरफ़ तो भूख मिटाने के टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) में गिरावट आई है और दूसरी तरफ़ महामारी की वजह से खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण हासिल करने की कोशिश और मुश्किल हुई है.
टिकाऊ विकास लक्ष्य इंडेक्स 2019-20 दिखाता है कि एसडीजी-2 (2030 तक भूख मिटाना) के मामले में भारत का प्रदर्शन पहले से ख़राब है. एसडीजी-2 के मामले में भारत का कुल स्कोर सबसे कम है. इससे पता चलता है कि देश में भूख को ख़त्म करने के लिए मज़बूत नीतियों और पहल की ज़रूरत है. 2020 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 107 देशों में 94वें पायदान पर है. भारत की 14 प्रतिशत आबादी पोषण से दूर है. स्थायी कुपोषण की वजह से बच्चों की शारीरिक बढ़ोतरी रुक जाती है. इसका नतीजा होता है कि मानव पूंजी पर ज़िंदगी भर असर पड़ता है, ग़रीबी बढ़ती है और समानता का लक्ष्य पूरा नहीं होता है. इसकी वजह से शिक्षा पर भी असर पड़ता है और नतीजतन कम पेशेवर मौक़े मिलते हैं. इस तरह कुपोषण भारतीय बच्चों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है. ह्यूमन कैपिटल इंडेक्स 2020 में भारत 174 देशों में 116वें पायदान पर है.
वैसे तो स्वास्थ्य सेवा के कई सूचकों- जैसे कि पांच वर्ष से कम शिशु मृत्यु दर- में बेहतरी आई है लेकिन एनएफ़एचएस-5 से पता चलता है कि कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में पोषण की स्थिति ख़राब हुई है. ये स्थिति नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों को अपर्याप्त खाना खिलाने की आदत से और ख़राब हो जाती है. पहला आंकड़ा 17 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों में कुपोषण के रुझान के बारे में बताता है.
17 राज्यों में से 11 राज्यों में कुपोषण में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इनमें से कुछ ज़्यादा जनसंख्या वाले राज्य भी हैं जैसे महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, गुजरात और केरल. सबसे ज़्यादा कुपोषण मेघालय (46.5%) और बिहार (42.9%) में देखा गया है. व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण 2016-2018 के मुताबिक बिहार और मेघालय में कुपोषण दर क्रमश: 42 और 40.4 प्रतिशत दर्ज की गई है. दूसरी तरफ़ अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (22.5%) और सिक्किम (22.3%) में कुपोषण में सबसे कम कुपोषण दर्ज किया गया है. एनएफ़एचएस-4 के मुक़ाबले सबसे अच्छी प्रगति सिक्किम (7.3 प्रतिशत की कमी) ने दर्ज की है. सबसे कम प्रगति लद्दाख और आंध्र प्रदेश ने दर्ज की है. बिहार ने बेहतरी दिखाई है. 2015-16 के 48.3 प्रतिशत के मुक़ाबले 2019-20 में ये 42.9 प्रतिशत है. हालांकि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में यहां अभी भी काफ़ी ज़्यादा कुपोषण है. ये भी हैरान करने वाला है कि पिछले सर्वेक्षण के मुक़ाबले केरल और गोवा में भी कुपोषित लोगों की संख्या में क्रमश: 4 और 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. एनएफ़एचएस-5 दिखाता है कि केरल, गोवा और त्रिपुरा में कुपोषित लोगों की संख्या में तेज़ बढ़ोतरी हुई है जो चिंता की बात है.
ऐसा ही रुझान मां के दूध के अलावा बच्चों को दूसरी चीज़ों को भोजन के रूप में देने में देखा गया है (आंकड़े 6सी). नौ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इनमें गिरावट दर्ज की गई है. राज्यों में काफ़ी ज़्यादा अंतर है. त्रिपुरा में जहां 39.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है वहीं हिमाचल प्रदेश में 15.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. लेकिन बाक़ी 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों के पर्याप्त आहार लेने में बेहतरी देखी गई है. 29.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ बच्चों को पर्याप्त आहार मिलने के मामले में मेघालय में सबसे ज़्यादा बेहतरी देखी गई जबकि 5.9 प्रतिशत वृद्धि के साथ गुजरात में सबसे कम बढ़ोतरी देखी गई. भारत को इन क्षेत्रों में सुधार करना चाहिए क्योंकि किसी भी बच्चे को शुरुआती 1,000 दिनों में ख़राब पोषण मिलने से उसकी शारीरिक वृद्धि पर असर पड़ता है.
2017 में शुरू किए गए पोषण अभियान की कोशिश 2030 तक पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में हर तरह के कुपोषण को दूर करके एसडीजी-2 के लक्ष्य को हासिल करना है. लेकिन कुपोषण की दर 2006 के 48 प्रतिशत के मुक़ाबले 2016 में घटकर सिर्फ़ 38.4 प्रतिशत होने से ये लक्ष्य बड़ी चुनौती लगता है. मौजूदा आंकड़े कुपोषण के मामले में निराशाजनक रुझान के बारे में बताते हैं जो अभी तक हासिल प्रगति को पीछे ले जाते हैं.
महामारी ने भारतीय परिवारों के बोझ को बढ़ाया है क्योंकि आमदनी के नुक़सान और ग़रीबी की वजह से लोग दो वक़्त के खाने का इंतज़ाम नहीं कर पा रहे हैं. भारत को अपने कार्यक्रमों की प्रभावशीलता और उनकी पहुंच सुधारने की ज़रूरत है. इसके लिए ज़्यादा सक्रिय क़दम उठाने और कुपोषण दूर करने वाले इनोवेशन को बढ़ाने की ज़रूरत है. हमें अभी कार्रवाई करने की ज़रूरत है और स्वस्थ आहार; मातृत्व, शिशु और छोटे बच्चों के पोषण, दुर्बलता को ठीक करने, विटामिन और खनिज देने; स्कूलों में खाना और पोषण; और पोषण निगरानी को मज़बूत करने की ज़रूरत है. तस्वीर अभी धुंधली है लेकिन कोशिशें की जा रही हैं. लेकिन इन कोशिशों के कामयाब होने के लिए असरदार तरीक़े से लागू करने और समय की ज़रूरत होती है. लेकिन ये मुमकिन है.
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Dr. Shoba Suri is a Senior Fellow with ORFs Health Initiative. Shoba is a nutritionist with experience in community and clinical research. She has worked on nutrition, ...
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