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Published on Apr 24, 2025 Updated 0 Hours ago

भारत द्वारा बांग्लादेश को दी गई ट्रांसशिपमेंट सुविधा वापस लेना बताता है कि ढाका के चीन की तरफ़ झुकाव के कारण कूटनीतिक तनाव गहरा रहा है और क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ रही है.

भारत का बांग्लादेश पर बड़ा कूटनीतिक वार: ट्रांसशिपमेंट सुविधा की वापसी

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भारत के केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड द्वारा जारी एक अधिसूचना के मुताबिक, नई दिल्ली ने वह ट्रांसशिपमेंट सुविधा वापस ले ली है, जो बांग्लादेश को भारत के सीमा शुल्क केंद्रों, बंदरगाहों और हवाई अड्डों के माध्यम से किसी तीसरे देश में माल भेजने की सुविधा देती थी. 8 अप्रैल को यह फ़ैसला प्रभावी हो गया है, जिस कारण कई देशों के साथ ढाका के कारोबार प्रभावित हो सकते हैं. यह दोनों देशों के बीच 2020 के उस समझौते को ख़त्म करना है, जिसमें बांग्लादेश को यह अनुमति दी गई थी कि वह भारत की ट्रांसशिपमेंट सुविधा का लाभ उठाकर अपने निर्यात किसी तीसरे देश में भेज सकता है. हालांकि, अभी जो कार्गो भारतीय क्षेत्र में दाख़िल हो चुके हैं, उनको गुजरने की अनुमति होगी. भारत सरकार ने यह फ़ैसला बांग्लादेशी कार्गो के कारण बंदरगाहों और हवाई अड्डों पर भारतीय निर्यातकों के माल-परिवहन में होती देरी, बढ़ती लागत और भीड़भाड़ की शिकायतों के बाद लिया है. मगर, इसके कारण सिर्फ़ इतने नहीं हैं, क्योंकि भारत ने बांग्लादेशी सामानों को भारतीय बाज़ार में एकतरफ़ा और बिना किसी शुल्क के लाने की सुविधा बीते दो दशकों से दे रखी है. इसलिए, इस फ़ैसले और इसके संकेतों का विश्लेषण भारत-बांग्लादेश संबंधों के व्यापक संदर्भ में किया जाना चाहिए, जो पिछले अगस्त में ढाका में सत्ता-परिवर्तन के बाद से ख़राब होते जा रहे हैं.

 भारत ने बांग्लादेशी सामानों को भारतीय बाज़ार में एकतरफ़ा और बिना किसी शुल्क के लाने की सुविधा बीते दो दशकों से दे रखी है. इसलिए, इस फ़ैसले और इसके संकेतों का विश्लेषण भारत-बांग्लादेश संबंधों के व्यापक संदर्भ में किया जाना चाहिए, जो पिछले अगस्त में ढाका में सत्ता-परिवर्तन के बाद से ख़राब होते जा रहे हैं.

दोस्ती में दरार

बांग्लादेश में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने वाले राष्ट्रव्यापी विरोध-प्रदर्शन में भारत-विरोधी भावना साफ़-साफ़ दिखी थी, क्योंकि नई दिल्ली ने अवामी लीग सरकार का समर्थन किया था. इसके बाद प्रत्यर्पण की मांग के बावजूद शेख हसीना का भारत में रहना और बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर लगातार हुए हमलों ने भारत-बांग्लादेश रिश्ते को और जटिल बना दिया है. नई अंतरिम सरकार ने घरेलू अराजकता के लिए भारत पर बार-बार दोष लगाने का प्रयास किया और नई दिल्ली की रणनीतिक संवेदनशीलताओं पर विचार किए बिना पाकिस्तान और चीन के साथ अपने संबंधों को मज़बूत बनाने की कोशिश की. इसने दोनों पड़ोसी देशों के आपसी संबंधों में दरार ला दी है, जो कभी काफ़ी समृद्ध रहा करती थीं. मामला तब ज़्यादा बिगड़ गया, जब यूनुस ने मार्च के अंत में बीजिंग की अपनी पहली राजकीय यात्रा में भारत के पूर्वोत्तर पर एक विवादास्पद बयान दिया. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘पूर्वी भारत के सात राज्य, जिनको सात बहनें कहा जाता है, लैंडलॉक्ड (चारों तरफ़ से जमीन से घिरे) क्षेत्र हैं. समंदर तक उनकी पहुंच का कोई रास्ता नहीं है. इस पूरे क्षेत्र के लिए समुद्र के अकेले संरक्षक हम हैं. इसलिए यह विशाल संभावना के द्वार खोलता है. चीनी अर्थव्यवस्था इससे विस्तार पा सकती है- वह चीज़ें बनाए, उनका उत्पादन करे, बाज़ार में ले जाए, उनको चीन में लाए और बाकी दुनिया तक पहुंचाए’.

 

रणनीतिक चूक?

द्विपक्षीय बातचीत में सौदेबाजी के लिए किसी तीसरे देश का इस्तेमाल करने के राजनीतिक कदम के अलावा बांग्लादेश ने चीन को कथित तौर पर फिर से लालमोनिरहाट में एयरबेस बनाने के लिए कहा है. बांग्लादेश के उत्तर-पश्चिम में स्थित यह एयरबेस भारत के सिक्किम, पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी व कूच बिहार जिलों और सिलीगुड़ी गलियारा (यह भारत के पूर्वोत्तर को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है और इसे चिकन नेक भी कहा जाता है) के क़रीब स्थित है. पूर्वोत्तर भारत राजनीतिक रूप से काफ़ी संवेदनशील क्षेत्र है, जहां उग्रवादी घटनाएं हो सकती हैं और यह अरुणाचल प्रदेश में चीन के साथ सीमा विवाद में भी उलझा हुआ है. स्वाभाविक रूप से, नई दिल्ली इस क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर काफ़ी सावधान है और इसके नज़दीक चीनी लड़ाकू विमानों की तैनाती का कोई भी प्रस्ताव भारत की सुरक्षा के लिए काफ़ी मायने रखता है.

द्विपक्षीय बातचीत में सौदेबाजी के लिए किसी तीसरे देश का इस्तेमाल करने के राजनीतिक कदम के अलावा बांग्लादेश ने चीन को कथित तौर पर फिर से लालमोनिरहाट में एयरबेस बनाने के लिए कहा है. 

इसीलिए, यूनुस का बयान न केवल विवादास्पद है, बल्कि अंतरिम सरकार की राजनीतिक अनुभवहीनता का भी संकेत है. यह बताता है कि भारत की रणनीतिक संवेदनशीलता के प्रति यूनुस उपेक्षा का भाव रखते हैं, जबकि भारत ने ही कभी बांग्लादेश के साथ सहयोगात्मक द्विपक्षीय संबंधों की नींव रखी थी और बांग्लादेश न सिर्फ़ हमारे साथ दुनिया की पांचवीं सबसे लंबी सीमा रेखा साझा करता है, बल्कि पारस्परिक रूप से काफ़ी निर्भर भी है. ऐसे में, यह बयान बांग्लादेश की भू-राजनीतिक हक़ीक़त के बारे में यूनुस की अज्ञानता का भी संकेत है. यह सही है कि भारत का पूर्वोत्तर हिस्सा बांग्लादेश के बंदरगाहों के माध्यम से बंगाल की खाड़ी तक अधिक आसानी से पहुंच सकता है, लेकिन यह अब भी पश्चिम बंगाल के कोलकाता बंदरगाह के माध्यम से समुद्र से जुड़ सकता है.

देखा जाए, तो भारत के पास बंगाल की खाड़ी में सबसे लंबा समुद्री तट है और म्यांमार के सितवे बंदरगाह के संचालन का अधिकार भी उसके पास है. इस कारण से, यह दावा कि ढाका ‘महासागर का संरक्षक है’ बांग्लादेश की भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने जैसा है और इससे विशाल क्षेत्रीय समुद्री भूगोल की अनदेखी होती है, जो खाड़ी देशों के लिए सहयोग वाला क्षेत्र है. इसके अलावा, बांग्लादेश खुद नेपाल व भूटान के साथ अपने व्यापार के लिए भारत के पूर्वोत्तर पर निर्भर है और अपना बड़ा विदेशी व्यापार भारत की ट्रांसशिपमेंट सुविधाओं के कारण ही कर पाता है. इसीलिए, ट्रांसशिपमेंट सुविधाओं को वापस लेने के नई दिल्ली के फ़ैसले ने बांग्लादेश के निर्यातकों, ख़ास तौर पर रेडीमेड कपड़ा उद्योग (RGM) को खूब प्रभावित किया है, जो उसका सबसे बड़ा उद्योग क्षेत्र है.

दरअसल, बांग्लादेश में रेडीमेड कपड़े के क़रीब 4,000 मिलें हैं और पिछले वित्तीय वर्ष में उन्होंने 36 देशों को लगभग 50 करोड़ डॉलर मूल्य के 35,000 टन कपड़ों का निर्यात किया था. निर्यात से जुड़े बुनियादी ढांचे की कमी से बांग्लादेशी अर्थव्यवस्था जूझ रही है. बांग्लादेशी निर्यात के लिए ढाका हवाई अड्डा एकमात्र हवाई मार्ग और चटगांव बंदरगाह अकेला समुद्री मार्ग है. ढाका में पनगांव कंटेनर टर्मिनल और मोंगला व आशुगंज बंदरगाह जैसी अन्य कनेक्टिविटी सुविधाएं ज़रूर हैं, पर यहां से बहुत सीमित मात्रा में सामान निर्यात किए जा सकते हैं और रेडीमेड कपड़ा के निर्यात के तो ये योग्य भी नहीं हैं, जो ‘जस्ट-इन-टाइम’ (मांग होने पर उत्पादन करना) उद्योग माना जाता है. 

दूसरी ओर, भारत के नई दिल्ली हवाई अड्डे पर जो कार्गो सुविधा है, वह 150 एकड़ में फैली है और एकीकृत टर्मिनल, एक लॉजिस्टिक्स केंद्र व ढेरों एयरलाइन कनेक्टिविटी से सुसज्जित है. यह बांग्लादेश से सड़क व रेल से जुड़ती है, जो कोलकाता होकर गुज़रती हैं. घरेलू विरोध और टर्मिनल पर संभावित भीड़भाड़ के बावजूद भारत ने अपने इस प्रतिष्ठित पड़ोसी के प्रति सद्भावना के तौर पर पर्यावरण से जुड़े खर्च खुद उठाते हुए बांग्लादेश को यह उन्नत बुनियादी ढांचा बिना किसी शुल्क के उपलब्ध कराया. 

अब इस सुविधा के ख़त्म होने से बांग्लादेश पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा. उसका रेडीमेड कपड़ा उद्योग पहले से ही लाल सागर आपूर्ति संकट और यूक्रेन युद्ध (इसके कारण यूरोप और उत्तरी अमेरिका के जहाज स्वेज नहर जैसे छोटे रास्ते के बजाय केप ऑफ गुड होप होकर गुज़रते हैं) से मुश्किलें झेल रहा है. साथ ही, बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन और अमेरिका के नए टैरिफ (जिसे अभी तीन महीने के लिए टाल दिया गया है) के कारण भी उसे परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

भारत और बांग्लादेश के बीच कनेक्टिविटी कम होने से बांग्लादेश-भूटान-नेपाल (BBIN) गलियारे का कामकाज भी पटरी से उतर सकता है, जो 2021 के बाद ज़ोर पकड़ने लगा है.

भारत और बांग्लादेश के बीच कनेक्टिविटी कम होने से बांग्लादेश-भूटान-नेपाल (BBIN) गलियारे का कामकाज भी पटरी से उतर सकता है, जो 2021 के बाद ज़ोर पकड़ने लगा है. भारत और बांग्लादेश के बीच तनातनी दक्षिण एशिया के लिए भी अच्छा नहीं है. दक्षिण एशिया आर्थिक रूप से दुनिया में अब तक का सबसे कम जुड़ाव वाला क्षेत्र है, जिस कारण कुल कारोबार का महज़ पांच प्रतिशत ही यहां अंतर-क्षेत्रीय (क्षेत्र के एक-दूसरे देशों से) व्यापार होता है, जो आसियान (25 प्रतिशत), उत्तरी अमेरिका (40 से 50 प्रतिशत) और यूरोपीय संघ (60 से 65 प्रतिशत) के मुक़ाबले बहुत पीछे है. इससे पता चलता है कि यह क्षेत्र कितना कमज़ोर है और राजनीतिक व आर्थिक मुश्किलों को झेल सकने वाले लचीले व लाभकारी ढांचों की यहां तुरंत ज़रूरत है. इसके अलावा, भारत और बांग्लादेश के बीच सीमित कनेक्टिविटी बैंकॉक में बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) के छठे शिखर सम्मेलन में घोषित आर्थिक, ऊर्जा और परिवहन संबंधी आपसी जुड़ाव को भी पटरी से उतार सकती है. इस घोषणा के अनुसार, बिम्सटेक देशों ने दक्षिण एशिया में 250 से अधिक परियोजनाओं के लिए 124 अरब डॉलर के निवेश की योजना बनाई है.

 

क्षेत्रीय स्थिरता वाली कूटनीति

दिलचस्प है कि यूनुस ने अपनी टिप्पणी में भारत के पूर्वोत्तर को रणनीतिक रूप से कमज़ोर क्षेत्र बताया, लेकिन नई दिल्ली ने इस क्षेत्र से होकर ढाका के व्यापार करने के अधिकार रद्द नहीं किए हैं. इसकी दो कूटनीतिक वज़ह हो सकती है- पहली, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को पूर्वोत्तर का महत्व बताना, जो उसके लिए किसी तीसरे देश में व्यापार करने का एक महत्वपूर्ण अंतर्देशीय और परिवहन क्षेत्र है, ख़ास तौर से समाप्त की गई ट्रांसशिपमेंट सुविधाओं के बाद, और दूसरी वज़ह- नेपाल व भूटान के साथ अपने संबंधों और बंगाल की खाड़ी के विकास को लेकर भारत द्वारा अपनी प्रतिबद्धता दिखाना, वह भी उस समय, जब उसके रिश्ते बांग्लादेश और म्यांमार जैसे खाड़ी के तटीय देशों के साथ तनावपूर्ण हैं. माल ढुलाई सुविधाओं को रद्द करने से चारों तरफ़ भूमि से घिरे हिमालयी देश प्रभावित होंगे, जो विदेशी व्यापार के लिए काफ़ी हद तक बांग्लादेश के बंदरगाह पर निर्भर हैं. 

नई दिल्ली एक स्थिर और समृद्ध बंगाल की खाड़ी क्षेत्र चाहती है, जो उसने बैंकॉक में बिम्सटेक के छठे शिखर सम्मेलन में बताया भी था. इस सम्मेलन में व्यापक क्षेत्रीय सहयोग के लिए कई पहल की गई थीं. बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने इस सम्मेलन से अलग हटकर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की इच्छा जताई थी और दोनों पक्षों ने मौजूदा चुनौतियों पर चर्चा करते हुए आपसी सहयोग का भरोसा दिया था. ये इरादे अब भी कागजों पर ही हैं. साफ़ है, भारत-बांग्लादेश संबंधों के इस नाज़ुक दौर में रणनीतिक कौशल और क्षेत्र के एक-दूसरे देशों पर निर्भरता न सिर्फ़ द्विपक्षीय स्थिरता के लिए, बल्कि बंगाल की खाड़ी के विशाल ढांचे के लिए भी काफ़ी महत्वपूर्ण है. इसके लिए दोनों देशों ने लंबे समय तक काम भी किया है.


(सोहिनी बोस ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं और पृथ्वी गुप्ता ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में जूनियर फेलो हैं) 

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Authors

Sohini Bose

Sohini Bose

Sohini Bose is an Associate Fellow at Observer Research Foundation (ORF), Kolkata with the Strategic Studies Programme. Her area of research is India’s eastern maritime ...

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Prithvi Gupta

Prithvi Gupta

Prithvi Gupta is a Junior Fellow with the Observer Research Foundation’s Strategic Studies Programme. Prithvi works out of ORF’s Mumbai centre, and his research focuses ...

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