Published on Mar 19, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत को बड़ी आबादी और दूरदराज के इलाकों में टीकाकरण अभियान के लिए निजी क्षेत्र की मदद की जरूरत पड़ेगी

भारत के सामने टीकाकरण से ‘हर्ड इम्यूनिटी’ हासिल करने की पहाड़-सी चुनौती

समसामयिक मानव इतिहास में लोगों के स्वास्थ्य के लिहाज से टीकाकरण बेहद सफल हस्तक्षेप रहा है. इससे कई बीमारियों को खत्म करने में मदद मिली और कई खत्म होने को हैं. टेटनस, इंफ्लुएंजा, मीजल्स और डिप्थेरिया जैसी बीमारियों से हर साल यह अभियान 20-30 लाख लोगों की जान बचाता है. वैक्सीन सिर्फ संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए ही जरूरी नहीं है बल्कि इससे ऐसी बीमारियों को खतरनाक रूप लेने और इनके फैलाव को रोकने में भी मदद मिलती है.

अतीत की महामारियों ने हमें सिखाया था कि 5 वर्ष से कम अवधि में वैक्सीन तैयार करना कितना मुश्किल है. इसके बावजूद 2020 में दुनिया को कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार करने के लिए समय के साथ होड़ करनी पड़ी. कोविड-19 का टीका साल-डेढ़ साल के अंदर बनाने का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन हैरत की बात है कि रिसर्च शुरू होने के एक साल के अंदर आधा दर्जन से ज्यादा वैक्सीन को मंजूरी मिल चुकी है और कइयों को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिलने ही वाली है. आज दुनिया मानव इतिहास के सबसे बड़े वैक्सिनेशन अभियान की तरफ तेजी से कदम बढ़ा रही है. ऐसे में कई लोगों को डर है कि आगे का रास्ता आसान नहीं होगा. खासतौर पर गरीब देशों के लिए, जिनके पास इस अभियान की शुरुआत के कई महीने गुजरने के बाद भी वैक्सीन के बहुत कम डोज हैं.

भारत के पास दुनिया के सबसे बड़े वैक्सिनेशन प्रोग्राम को चलाने का तजुर्बा है. एक अनुमान के मुताबिक यहां हर साल 2.67 करोड़ नवजात शिशुओं और 2.9 करोड़ गर्भवती महिलाओं को टीका लगाया जाता है. अधिक से अधिक लोगों को वैक्सीन लगाए जाने के बावजूद देश में 2016 में 38 फीसदी नवजात शिशुओं को उनके जन्म के एक साल के अंदर सारी बुनियादी वैक्सीन नहीं लग पाईं. इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश में कोविड-19 का व्यापक टीकाकरण काफी मायने रखता है. भारत में इस वैक्सीन अभियान के पहले चरण में एक करोड़ स्वास्थ्य कार्यकर्ता, 2 करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर्स और दूसरे चरण में प्रॉयरिटी ग्रुप के 27 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगनी हैं. इसमें खासतौर पर बुजुर्ग और डायबिटीज-हाइपरटेंशन से पीड़ित लोग शामिल हैं. इस साल मार्च में देश में दूसरे चरण के वैक्सिनेशन की शुरुआत हुई. इसके लिए ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सिन का इस्तेमाल किया जा रहा है.

इस साल 1 मार्च तक देश में कुल 1.48 करोड़ लोगों को टीका लग चुका था. तब औसतन एक दिन में 3,37,594 लोगों को वैक्सीन लगाई जा रही थी. पिछले कुछ हफ्तों से यूं तो भारत में अधिक से अधिक लोगों को वैक्सीन लगाई जा रही है, लेकिन इसके समान वितरण के लिए नीति-निर्माताओं को इसे लगवाने में हिचक और इसके लॉजिस्टिक्स (लोगों तक टीका पहुंचाने और स्टोर करने) से जुड़ी समस्याओं का हल तलाशना होगा क्योंकि वैक्सीन लगाए जाने की रफ्तार जरूरत के मुकाबले धीमी रही है.

भारत में कोविड-19 वैक्सीन लगाए जाने से जुड़ी मुश्किलें

  1. वितरण और सप्लाई चेन से जुड़ी चुनौतियां

इस महामारी से जुड़ा एक मुश्किल काम वैक्सीन अभियान को ठीक तरीके से पूरा करना है. इसके लिए कई स्तर पर बेहतर तालमेल और सहयोग की जरूरत है. भारत के पास कई संक्रामक रोगों से निपटने का तजुर्बा है. इसलिए वह राष्ट्रीय स्तर पर वैक्सीन लगाए जाने के अभियान को पूरा करने में सक्षम है. बात सिर्फ इतनी है कि ये अभियान बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए चलाए गए हैं. कोविड-19 जैसे लाइफ-साइकल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम के लिए अलग, व्यापक ढांचा और बड़े स्तर पर अभियान की जरूरत पड़ेगी.

वैक्सीन की मैन्युफैक्चरिंग और अन्य जरूरी चीजें

पहले चरण में एक आदमी के लिए अधिकतर वैश्विक टीकों के दो डोज की जरूरत पड़ रही है. इसका मतलब यह है कि इस चरण के लिए ही भारत को 60 करोड़ खुराक की जरूरत पड़ेगी. सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) के पास अभी 1.5 अरब खुराक तैयार करने की क्षमता है, इसके बाद बायोलॉजिकल ई. और भारत बायोटेक में से हरेक के पास 50 करोड़ डोज बनाने की क्षमता है. इनके अलावा जायडस कैडिला जैसी कंपनियां भी 15-20 करोड़ डोज तैयार कर सकती हैं. लेकिन भारत को ‘दुनिया की फार्मेसी’ यूं ही नहीं कहते. वह हर साल 2.3 अरब डोज तैयार करता है, जिसमें से 75 फीसदी का निर्यात किया जाता है. हमें लगता है कि भारत को अपने यहां के नागरिकों के लिए वाजिब कीमत पर किसी ग्लोबल वैक्सीन को खरीदने की संभावना भी तलाशनी होगी.

यह बात ठीक है कि दुनिया के लिए भारत वैक्सीन बनाने का अहम ठिकाना है, लेकिन उसे वैश्विक समुदाय की मदद करते हुए अपने नागरिकों की सुरक्षा भी पक्की करनी होगी. अभी तक भारत ने वैक्सीन के 2.2 अरब खुराक खरीदने का करार किया है. इसमें ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के 1 करोड़ और नोवावैक्स के 1 अरब, गामालेया वैक्सीन कैंडिडेट के 20 करोड़ डोज शामिल हैं. इनके अलावा, सरकार देश में बन रही भारत बायोटेक की वैक्सीन भी खरीद रही है. इनमें से सिर्फ ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को मंजूरी मिली है. वैक्सीन बनाने और उसे पहुंचाने में सरकार की भी महत्वपूर्ण भूमिका है. उसे सिरिंज, वैक्सीन रखने के लिए शीशी और जरूरी मेडिकल उपकरण की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी ताकि इस अभियान में कोई दिक्कत न आए.

पहले चरण में 30 करोड़ लोगों के टीकाकरण के लिए दो डोज के लिहाज से 60 करोड़ सिरिंज की जरूरत पड़ेगी. भारत वैश्विक बाजार में सिरिंज का बड़ा निर्यातक है. देश में हर साल वैक्सिनेशन के लिए 1 अरब से अधिक सिरिंज बनाए जाते हैं. अगर सरकार से प्रोत्साहन और आश्वासन मिले तो इसे बनाने वाली कंपनियां उत्पादन बढ़ाकर 1.4 अरब तक ले जा सकती हैं. हालांकि, इसमें से 50 फीसदी से अधिक विदेशी बाजारों के लिए होगा. दिसंबर 2020 में भारत सरकार ने कोविड-19 टीकाकरण अभियान के लिए 83 करोड़ सिरिंज का ऑर्डर दिया था और 35 करोड़ के लिए बोली मंगाई थी.

लॉजिस्टिक्स, सप्लाई चेन और वैक्सीन का ट्रांसपोर्ट

वैक्सीन को पहुंचाने के लिए तापमान नियंत्रित उपकरणों की जरूरत पड़ती है. इसके साथ कई ऐसी प्रक्रियाओं का भी पालन करना पड़ता है, जिससे वैक्सीन खराब न हो. इसके लिए जहां वैक्सीन बनाई जा रही हो, वहां इसे स्टोर करने की व्यवस्था होनी चाहिए. वहां से इसे दूसरी जगहों पर भेजने और जहां इनका इस्तेमाल किया जाना है, वहां भी इन्हें स्टोर करने का इंतजाम जरूरी है.

नेशनल हेल्थ मिशन के मुताबिक, भारत के यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम (UIP यानी सबके लिए टीकाकरण योजना) से 28,947 कोल्ड चेन पॉइंट्स जुड़े हैं. इनमें से 97 फीसदी जिला स्तर से नीचे के स्तर पर हैं, जबकि बाकी जिला स्तर या उससे ऊपर के स्तर पर. इनके लिए 85,634 कोल्ड चेन स्टोरेज उपकरणों का इस्तेमाल होता है, जिनकी देखरेख 55,000 टेक्निशियंस करते हैं. इन सेंटरों पर नवजात और शिशुओं के साथ गर्भवती महिलाओं को सालाना आधार पर वैक्सीन के 39 करोड़ डोज लगाने की जिम्मेदारी रहती है.

इसमें दो राय नहीं है कि ये केंद्र एक विशाल और सफल टीकाकरण प्रोग्राम चला रहे हैं, लेकिन कोविड-19 वैक्सीन अभियान के पहले चरण में और 30 करोड़ लोगों को टीका लगाने की जिम्मेदारी इनके लिए आसान नहीं है. इस अभियान में एक इंसान को दो डोज दी जानी है और वह भी तय समय में. इसलिए काम मुश्किल है. उद्योग के अनुमान के मुताबिक, UIP के अलावा कोविड-19 के लिए सक्षम और असरदार टीकाकरण अभियान के लिए अभी की तुलना में 10 गुना अधिक यानी 8 लाख कोल्ड चेन यूनिटों की जरूरत पड़ेगी. इसके लिए न सिर्फ सघन आबादी वाले जिलों में ऐसी यूनिटों की संख्या बढ़ानी होगी ताकि अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा जा सके बल्कि इसके साथ ही छोटे शहरों और गांवों तक पहुंचने की भी व्यवस्था करनी होगी.

इसके अलावा, एक बार वैक्सीन की मैन्युफैक्चरिंग हो जाए, तब लोगों तक उसे पहुंचाना बड़ा काम होगा. खासतौर पर उन लोगों तक, जो दूरदराज के इलाकों में रहते हैं. इसकी खातिर वैक्सीन को ले जाने के लिए पर्याप्त संसाधनों की जरूरत पड़ेगी. इस काम के लिए ऐसे गोदामों की जरूरत भी होगी, जिसका तापमान नियंत्रित किया जा सके.

वहीं, अगले दो साल में वैश्विक स्तर पर वैक्सीन पहुंचाने के लिए 15,000 फ्लाइट्स में 2 लाख बक्सों (पैलेट शिपर्स) की जरूरत पड़ेगी. इस काम के लिए तापमान नियंत्रित बक्सों से 1.5 करोड़ डिलीवरी करनी होगी. और तो और देश के दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए करीब 11,500 रेफ्रिजरेटेड ट्रकों का भी इंतजाम करना होगा. यह लॉजिस्टिक्स के स्तर पर तो भारी चुनौती है ही, इसके लिए वित्तीय संसाधन भी जुटाने होंगे. यानी गुणवत्ता बनाए रखने के साथ इस अभियान के लिए देश को अपनी क्षमता में तेजी से और नियमित तौर पर बढ़ोतरी करनी होगी.

स्वास्थ्यकर्मियों की कमी दुनिया में कहीं भी फार्मासिस्टों को वैक्सीन लगाने की इजाजत है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है. यहां सिर्फ नर्स और डॉक्टर ही यह काम कर सकते हैं. आज भारत में 30.7 लाख नर्सिंग स्टाफ है. यानी हर एक हजार की आबादी पर 1.7 नर्सें हैं. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक हजार की आबादी पर 3 नर्सों के मानक से बहुत कम है. भारत में रजिस्टर्ड एलोपैथिक डॉक्टरों की संख्या भी सितंबर 2019 तक सिर्फ 12 लाख थी. देश में स्वास्थ्यकर्मियों पर काम का काफी बोझ है. इसे देखते हुए सरकार ने वैक्सीन लगाने के लिए खास जगहें तय की हैं, जहां सुबह 9 बजे से शाम 65 बजे तक टीका लगाया जा रहा है.

इतने अहम टीकाकरण अभियान के लिए मेडिकल स्टाफ की कमी की चुनौती से निपटने को नए उपाय आजमाने होंगे. हेल्थ और वेलनेस केंद्रों के साथ देश भर में फैले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का इसके लिए कारगर इस्तेमाल करना होगा. इसी तरह से, भारत में 10 लाख आशा (मान्यताप्राप्त सामाजिक स्वास्थ्यकर्मी) कर्मियों और 25 लाख आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का भी नेटवर्क है, जो गांवों और कस्बों में औरतों और बच्चों को स्वास्थ्य सेवा में सहायता करती हैं. देश के दूरदराज के इलाकों तक पहुंचने में इस तरह से समूचे इंफ्रास्ट्रक्चर से काफी मदद मिल सकती है.

  1. वैक्सीन लगवाने में हिचक और भ्रामक सूचनाएं

टीकाकरण के अभियान में आखिरी चुनौती खुद लोगों और सामुदायिक स्तर पर खड़ी हो सकती है. अभी वैक्सीन के ट्रायल पर जो बहस चल रही है, उस पर मीडिया और आम लोगों की नजर बनी हुई है. मीडिया उसका अपनी तरह से विश्लेषण कर रहा है. इससे कई भ्रामक सूचनाएं, खासतौर पर सोशल मीडिया के जरिये फैल रही हैं. इससे वैक्सीन को लेकर डर का माहौल बन रहा है. इसके साथ देश में बनी कोवैक्सिन को जल्द मंजूरी मिलने से इसके इस्तेमाल से जुड़ी सुरक्षा को लेकर भी सवाल खड़े हुए हैं.

इसी कारण से कई स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स के भी वैक्सीन लगवाने से इनकार करने की खबरें आई हैं. देश में वैक्सीन लगवाए जाने की सुस्त रफ्तार का यह एक बड़ा कारण रहा है. मिसाल के लिए, 28 फरवरी तक 3.6 करोड़ डोज का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन तब तक 1.2 करोड़ डोज ही लगाए गए थे. टीकाकरण के दूसरे चरण की शुरुआत के साथ जानकारों को डर है कि कहीं दूसरे समुदायों में भी ऐसी ही आशंका न घर कर जाए. उन्हें लग रहा है कि खासतौर पर इससे जुड़ी चिंताओं और लांछन की वजह से ऐसा हो सकता है.

सरकार को इस मुश्किल से निपटने के लिए सामुदायिक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए. उसे लोगों को शिक्षित करना चाहिए ताकि वैक्सीन को लेकर उनकी हिचक दूर हो सके. ऐसे अभियान का खासतौर पर ऐसी जगहों पर फायदा मिल सकता है, जहां सघन आबादी है, लेकिन साक्षरता का स्तर कम है. जहां सामाजिक-आर्थिक स्तर भी अच्छा नहीं है. इसके अलावा, सरकार को यह भी पक्का करना होगा कि जो बुजुर्ग सरकारी या निजी स्वास्थ्य केंद्रों से काफी दूर दूरदराज के इलाकों में रह रहे हैं, वे टीकाकरण अभियान में पीछे न छूट जाएं. बड़े मंत्रियों और नौकरशाहों ने कोवैक्सिन को चुना है और इसका प्रचार भी किया जा रहा है. इस तरह से सरकार जनता में वैक्सीन की हिचक दूर करने का प्रयास कर रही है. मुंबई के टीकाकरण केंद्रों में भारी भीड़ के जो वीडियो और फोटोग्राफ आए थे, उन्हें देखकर लगता है कि पहले चरण में कम लोगों के वैक्सीन लगवाने की वजह अतीत के कम संक्रमण के आंकड़े थे. अब देश के कई राज्यों में कोरोना के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं. ऐसे में वैक्सीन की मांग भी बढ़ सकती है. लेकिन इससे सरकार के सामने एक नई दुविधा खड़ी हो गई है. वह देश में बन रही वैक्सीन का इस्तेमाल यहां के लोगों के जल्द टीकाकरण के लिए करे या इस दिशा में सधी हुई रफ्तार से बढ़े ताकि इनका ठीक-ठाक निर्यात भी किया जा सके. जिन लोगों को कोरोना से अधिक खतरा है, भारत उनके जल्द टीकाकरण की पूरी कोशिश कर रहा है, लेकिन अभी तक इसके मनमाफिक नतीजे नहीं मिले हैं. ऐसी खबरें भी आई हैं कि भारत में आने वाले कुछ हफ्तों में रोजाना 50 लाख लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य रखा जाएगा. यूं तो पिछले कुछ हफ्तों से भारत में सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था अच्छी तरह से काम कर रही है, लेकिन उसे टीकाकरण के अभियान को सफल बनाने के लिए निजी क्षेत्र को बड़े पैमाने पर जोड़ना होगा.

अगर निजी क्षेत्र के मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल किया जाए तो भारत 6 हफ्ते से भी कम समय में 50 करोड़ लोगों का टीकाकरण कर सकता है.  दूसरे चरण की शुरुआत के साथ आयुष्मान भारत या प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत शामिल किए गए निजी क्षेत्र के संस्थानों ने भी टीकाकरण की शुरुआत कर दी है. इससे न सिर्फ समाज का वैक्सीन पर भरोसा बढ़ेगा बल्कि टीकाकरण अभियान की क्षमता में भी बढ़ोतरी होगी. भारत में कोविड-19 वैक्सीन प्रोग्राम को सफल बनाने के लिए यह एक अहम बदलाव है.

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Authors

Oommen C. Kurian

Oommen C. Kurian

Oommen C. Kurian is Senior Fellow and Head of Health Initiative at ORF. He studies Indias health sector reforms within the broad context of the ...

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Kriti Kapur

Kriti Kapur

Kriti Kapur was a Junior Fellow with ORFs Health Initiative in the Sustainable Development programme. Her research focuses on issues pertaining to sustainable development with ...

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