8 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत और यूरोपीय संघ के नेताओं की बैठक में शिरकत की. इस बैठक में यूरोपीय संघ (EU) के सभी 27 सदस्य देशों के नेता शामिल थे. इस शिखर सम्मेलन की बनावट को देखते हुए, भारत और यूरोपीय संघ के नेताओं की ये बैठक बेहद महत्वपूर्ण थी क्योंकि यूरोपीय संघ के साथ साथ इसके 27 सदस्य देशों की भागीदारी के इस फॉर्मेट में किसी देश के साथ बैठक को इससे पहले सिर्फ़ एक बार आयोजित किया गया था, जब इस साल अमेरिका के नए राष्ट्रपति के साथ यूरोपीय संघ की बैठक हुई थी.
नीतिगत दृष्टिकोण से देखें, तो ये बैठक यूरोपीय संघ द्वारा भारत के साथ अपने संबंधों पर ध्यान केंद्रित करने की प्रक्रिया के गति पकड़ने का प्रतीक है. यूरोपीय संघ का ये क़दम, उसकी वर्ष 2016 में घोषित की गई, विदेश एवं सुरक्षा के मामलों की वैश्विक रणनीति (जिसमें यूरोपीय संघ का ध्यान अटलांटिक पार से हटकर एशिया पर केंद्रित करने और जापान व भारत पर विशेष रूप से ध्यान देने की बात उजागर हुई थी), वर्ष 2018 में जारी संयुक्त बयान: भारत के बारे में यूरोपीय संघ की रणनीति के तत्व (जिसमें भारत को यूरोपीय संघ का क़ुदरती सहयोगी माना गया था) और वर्ष 2020 की भारत और यूरोपीय संघ की सामरिक साझेदारी: 2025 के लिए रोडमैप (जिसमें भारत और यूरोपीय संघ की साझेदारी मज़बूत करने के लिए एक साझा एक्शन प्लान पर काम करने की बात कही गई थी) के का ही एक हिस्सा है.
यूरोपीय परिषद ने विशिष्ट सहयोगात्मक प्रयास जैसे कि पेरिस समझौते और जैव विविधता पर समझौते के समर्थन में ग्रीन एलायंस ऐंड पार्टनरशिप करने पर ज़ोर दिया गया था, जिससे कि पर्यावरण से जुड़े ऊंचे लक्ष्य एवं मानक, प्राकृतिक संसाधनों का स्थायी प्रबंध जिसमें पानी शामिल हो, स्वच्छ, सर्कुलर और शून्य कार्बन उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्थाओं के विकास के लक्ष्य प्राप्त किए जा सकें.’
भारत और यूरोपीय संघ की कनेक्टिविटी साझेदारी को मिली गति
यूरोपीय संघ+27 देशों की भारत के साथ बैठक एक और दृष्टि से भी महत्वपूर्ण थी. ये बैठक यूरोपीय परिषद द्वारा जारी, ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की यूरोपीय संघ की रणनीति के निष्कर्ष’ जारी होने के तुरंत बाद हो रही थी. इस निष्कर्ष में यूरोपीय परिषद ने विशिष्ट सहयोगात्मक प्रयास जैसे कि पेरिस समझौते और जैव विविधता पर समझौते के समर्थन में ग्रीन एलायंस ऐंड पार्टनरशिप करने पर ज़ोर दिया गया था, जिससे कि पर्यावरण से जुड़े ऊंचे लक्ष्य एवं मानक, प्राकृतिक संसाधनों का स्थायी प्रबंध जिसमें पानी शामिल हो, स्वच्छ, सर्कुलर और शून्य कार्बन उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्थाओं के विकास के लक्ष्य प्राप्त किए जा सकें.’
इस संदर्भ में भारत, यूरोपीय संघ का क़ुदरती साझीदार है. क्योंकि यूरोपीय संघ के सदस्य देशों ने अपने अपने स्तर पर भारत के साथ ऐसी द्विपक्षीय साझेदारियां पहले ही विकसित कर ली हैं. उदाहरण के लिए, अपने तरह की अनूठी भारत डेनमार्क हरित सामरिक साझेदारी और जल के संदर्भ में भारत नीदरलैंड के बीच सामरिक साझेदारी. इन दोनों का ज़ोर दोनों देशों की सरकारों के बीच सर्कुलर इकॉनमी, नदी के प्रदूषण, डेल्टा प्रबंधन जैसे कई विषयों पर सहयोग को बढ़ाना है. ख़ुद यूरोपीय संघ ने भी भारत में स्थायी विकास के बर्ताव और विकास पर अपना ध्यान केंद्रित कर रखा है, ख़ास तौर से तब से जब से दोनों पक्षों के रिश्ते दाता और पाने वाले देश के परंपरागत ढांचे से ऊपर उठे हैं और दिल्ली में यूरोपीय निवेश बैंक का दक्षिण एशिया का मुख्यालय खोला गया है. उदाहरण के लिए यूरोपीय निवेश बैंक ने भोपाल, पुणे, बैंगलुरू, लखनऊ और हाल ही में कानपुर मेट्रो में निवेश करके हरित, सुरक्षित और सस्ते सार्वजनिक परिवहन के विकास पर अपना ध्यान केंद्रित किया है.
इस सम्मेलन की सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी कि इसमें, 2019 के यूरोपीय संघ और जापान की टिकाऊ कनेक्टिविटी और गुणवत्ता वाले मूलभूत ढांचे की साझेदारी का भी एक सबक़ शामिल किया गया था.
भारत और यूरोपीय संघ के नेताओं की बैठक में ऐसे सहयोग का दायरा डिजिटल, ऊर्जा, परिवहन और जनता के बीच संपर्क के क्षेत्रों में बढ़ाते हुए, दोनों पक्षों ने एक व्यापक यूरोपीय संघ एवं भारत की कनेक्टिविटी साझेदारी पर सहमति बनी. इसके अंतर्गत दोनों ही पक्षों ने, ‘मिलकर ऐसी कनेक्टिविटी को लागू करने पर सहमति की प्रतिबद्धता को दोहराया, जो अंतरराष्ट्रीय नियमों, क़ानून के राज, अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का सम्मान करे और टिकाऊ कनेक्टिविटी से जुड़े आपसी सहमति के सिद्धांतों पर आधारित हो.’
इसके अलावा, यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स माइकल के शब्दों में कहें तो- चूंकि भारत और यूरोपीय संघ ‘बहुपक्षीयवाद के एक ही डीएनए’ को आपस में साझा करते हैं-तो कनेक्टिविटी की साझेदारी बहुपक्षीय समझौतों की ज़िम्मेदारियों और उनके द्वारा तय किए गए लक्ष्यों का पालन करेंगे. जैसे कि, पेरिस जलवायु समझौता, टिकाऊ विकास के लिए 2030 का एजेंडा, जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र संघ की संधि, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की संधियां वग़ैरह.
इस सम्मेलन की सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी कि इसमें, 2019 के यूरोपीय संघ और जापान की टिकाऊ कनेक्टिविटी और गुणवत्ता वाले मूलभूत ढांचे की साझेदारी का भी एक सबक़ शामिल किया गया था. इस समझौते में जापान और यूरोपीय संघ ने यूरोपीय संघ और एशिया की कनेक्टिविटी की रणनीति और जापान की गुणवत्ता वाले मूलभूत ढांचे के विकास की नीतियों में समानता लाने पर ज़ोर दिया गया था. इसी तर्ज पर भारत और यूरोपीय संघ की कनेक्टिविटी की साझेदारी में भारत की पहचान ‘टिकाऊ विकास के एक साझीदार’ के रूप में स्वीकार की गई थी. दोनों ही पक्षों ने अफ्रीका, मध्य एशिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र जैसे तीसरे इलाक़े में कनेक्टिविटी की लचीली और टिकाऊ परियोजनाओं को मिलकर समर्थन देने की बात पर सहमति जताई.
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यूरोपीय संघ और भारत के दृष्टिकोण में समानता की ओर बढ़ते क़दम
पिछले दो वर्षों से हिंद-प्रशांत क्षेत्र का जिस तरह से अंतरराष्ट्रीयकरण हुआ है, उससे इस क्षेत्र के बाहर की ताक़तों को यहां के क्षेत्रीय खिलाड़ियों जैसे कि भारत के साथ सहयोग पर ज़ोर देने के लिए बाध्य किया है. हालांकि, ऐसी अधिकतर साझेदारियां वाजिब आपसी हितों के मेल पर आधारित हैं. इसकी एक मिसाल भारत और फ्रांस के बीच समुद्री क्षेत्र में बढ़ता सहयोग है. इसकी वजह यही है कि फ्रांस, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संप्रभुता के विषय को लेकर फिक्रमंद है. फिर भी, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यहां से बाहर की शक्तियों की बढ़ती दिलचस्पी का विरोध करने वाले इसे, ‘शीत युद्ध की मानसिकता’ की ओर वापसी कहकर इसकी आलोचना करते हैं. इसी वजह से भारत और यूरोपीय संघ ने सावधानी बरतते हुए ये फ़ैसला किया कि वो सामरिक साझेदारी से पहले कनेक्टिविटी की साझेदारी को विकसित करें. ये बात हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विकास को लेकर भारत और यूरोपीय संघ के मानकों में मेल का इशारा की अहमिय को ज़ाहिर करते हैं.
रिश्तों के सफर पर आगे बढ़ते हुए, भारत और यूरोपीय संघ अब अपने सहयोग की इस तैयार ज़मीन पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक सहयोग का ख़ाका भी बना सकते हैं
रिश्तों के सफर पर आगे बढ़ते हुए, भारत और यूरोपीय संघ अब अपने सहयोग की इस तैयार ज़मीन पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक सहयोग का ख़ाका भी बना सकते हैं. उदाहरण के लिए, इस साल जनवरी में आयोजित किए गए भारत और यूरोपीय संघ के पहले समुद्री सुरक्षा संवाद में, यूरोपीय परिषद की ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की यूरोपीय संघ की रणनीति के निष्कर्ष’ ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया था जो, ‘अफ्रीका के पूर्वी तट से लेकर प्रशांत महासागर के द्वीपों तक फैला हुआ है.’ यूरोपीय संघ द्वारा घोषित हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ये परिभाषा फ्रांस की इस क्षेत्र को लेकर तय परिभाषा से तो मिलती ही है. इसके अलावा, ये भारत द्वारा उत्तर पश्चिम हिंद महासागर और पूर्वी अफ्रीकी क्षेत्र को व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सामरिक अहमियत पर ज़ोर देने के अनुरूप भी है.
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत और यूरोपीय संघ के बीच ऐसा सहयोग पिछले साल भी देखने को मिला था. तब यूरोपीय संघ के क्रिटिकल मैरीटाइम रूट्स इन इंडियन ओशन II (CRIMARO II) को लॉन्च किया गया था. इसमें दक्षिण एशिया में भौगोलिक विस्तार की संभावनाएं खुली छोड़ी गई थीं. इसके अलावा, यूरोपीय संघ ने ‘अधिक सुरक्षित समुद्री क्षेत्र की स्थापना में अलग अलग क्षेत्रों, अलग अलग एजेंसियों और अलग अलग क्षेत्रों के बीच सहयोग बढ़ाकर योगदान देने’ की बात कही थी. चूंकि यूरोपीय संघ के पास समुद्री क्षेत्र की सूचना साझा करने की अपनी व्यवस्था (यानी हिंद महासागर क्षेत्रीय सूचना सहयोग या IORIS) है, तो अब भारत और यूरोपीय संघ इस मामले में अपने सहयोग को और बढ़ा सकते हैं. इसमें वो CRIMARIO II और भारत के इन्फॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटर-हिंद महासागर क्षेत्र के बीच सहयोग बढ़ाने के बारे में विचार कर सकते हैं. क्योंकि, भारत के अपने इन्फॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटर-इंडियन ओशन रीजन का लक्ष्य साझेदार देशों और बहुपक्षीय समुद्री व्यवस्थाओं से संवाद बढ़ाकर एक व्यापक समुद्री क्षेत्र जागरूकता पैदा करने व हिंद महासागर क्षेत्र के साझा दिलचस्पी वाले जहाज़ों के बारे में जानकारी साझा करना है.
यूरोपीय संघ के पास समुद्री क्षेत्र की सूचना साझा करने की अपनी व्यवस्था (यानी हिंद महासागर क्षेत्रीय सूचना सहयोग या IORIS) है, तो अब भारत और यूरोपीय संघ इस मामले में अपने सहयोग को और बढ़ा सकते हैं.
इसके अतिरिक्त, भारत और यूरोपीय संघ द्वारा घोषित कनेक्टिविटी पार्टनरशिप द्वारा डिजिटल संपर्क बढ़ाने पर ज़ोर देकर, इस शिखर सम्मेलन ने ‘वैश्विक मानकों पर आधारित तेज़ 5G तकनीक सेवा की प्रभावी तरीक़े से शुरुआत करने’ को बढ़ावा देने पर ज़ोर देने की अहमियत जताई थी. साथ ही साथ ग्रामीण विकास में (विशेष रूप से स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र में) डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाने को समर्थन देने की बात भी कही गई थी. इसके अलावा, यूरोपीय संघ व भारत के बीच अगले डिजिटल निवेश मंच की बैठक से पहले सहयोग के दायरे का विस्तार करते हुए, दोनों पक्षों ने आर्टिफिशिलय इंटेलिजेंस पर साझा टास्क फोर्स के जल्द से जल्द काम शुरू करने और ऐसे तकनीकी सहयोग का और विस्तार करने पर भी बल दिया, जिसके केंद्र में क्वांटम और हाई परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग हो.
इसी तरह, दोनों पक्षों को भारत और यूरोपीय संघ की साझा ICT वर्किंग ग्रुप के अधिकार क्षेत्र पर भी नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है. इससे दोनों पक्ष ICT के भारत और यूरोपीय संघ के बड़े बाज़ार में साझा दृष्टिकोण और मानकों को प्रोत्साहन दे सकेंगे. इससे भारत और यूरोपीय संघ सामरिक रूप से एजेंडा तय करने वाली अपनी ताक़त को एक ऐसे मसले पर एकजुट कर सकेंगे, जिसे लेकर आज हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देश इस दुविधा में हैं कि वो चीन के प्रस्तावों के साथ खड़े हों या अमेरिका के नेतृत्व वाले उस अभियान का साथ दें जिसमें वो सुरक्षित डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की वकालत कर रहा है.
दोनों पक्षों को भारत और यूरोपीय संघ की साझा ICT वर्किंग ग्रुप के अधिकार क्षेत्र पर भी नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है.
इसी तरह स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग के मोर्चे पर भारत और यूरोपीय संघ के नेताओं की बैठक के बाद जारी साझा बयान में कहा गया था कि, ‘दोनों पक्ष लचीली मेडिकल आपूर्ति श्रृंखलाओं, वैक्सीन और एक्टिव फ़ार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स (API) और निर्माण के अच्छे मानक लागू करके उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों की सुरक्षा सुनिश्चित करने’ का इरादा रखते हैं. इस बयान के पीछे यूरोपीय संघ के नेताओं की वो चिंता है, जिसमें वो भारत द्वारा 26 API और जेनेरिक दवाओं के निर्यात पर अस्थायी प्रतिबंध लगाने से बेहद परेशान हो गए थे. इससे ज़ाहिर है कि यूरोपीय संघ इस मामले में भारत पर निर्भर है, क्योंकि यूरोपीय संघ के मेडिकल सेक्टर में जिन जेनेरिक दवाओं की खपत है, उनमें से 26 प्रतिशत पर भारत का क़ब्ज़ा है और भारत में ऐसे 253 दवा कारखाने हैं, जिन्हें यूरोपियन डायरेक्टोरेट ऑफ़ क्वालिटी मेडिसिन से मान्यता प्राप्त है.
हालांकि, इससे सिर्फ़ यही बहस तेज़ हुई कि यूरोपीय संघ और भारत को इस क्षेत्र को और लचीला बनाने में सकारात्मक संवाद बढ़ाने की आवश्यकता है. ये बात साझा बयान से भी स्पष्ट हो गई. कुछ जानकारों ने तो ये सुझाव भी दिया कि यूरोपीय संघ को इस क्षेत्र में और निवेश जुटाना चाहिए, जिससे कि भारत की चीन के API पर निर्भरता को कम किया जा सके. ये सुझाव तब दिया जा रहा है, जब हमें पता है कि भारत और यूरोपीय संघ के बीच मेडिकल क्षेत्र में कई विषयों पर लंबी अवधि से मतभेद बने हुए हैं. जैसे कि क्लिनिकल ट्रायल के डेटा पर विशेषाधिकार का मुद्दा. अब जबकि ऐसा लग रहा है कि कोरोना वायरस की महामारी से लड़ने के लिए यूरोपीय संघ और भारत अपने पुराने तनावों को किनारे करने के लिए तैयार दिख रहे हैं, तो इस बात की काफ़ी संभावना है कि भारत और यूरोपीय संघ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आपसी सहयोग की एक मिसाल पेश करें. इसमें चीन पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष निर्भरता को कम करने के लिए समान विचारधारा वाले क्षेत्रीय साझेदारों के बीच आपसी सहयोग बढ़ाना, आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाना और गुणवत्ता व सुरक्षा के साझा मानक तय करने जैसे विषय शामिल हो सकते हैं.
अतएव, भारत और यूरोपीय संघ के टिकाऊ विकास के प्रति प्रतिबद्धता से प्रेरणा लेते हुए, यूरोपीय संघ व भारत के नेताओं की ये बैठक, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत और यूरोप के प्रस्तावों में समन्वय बढ़ाने का काम कर सकती है.
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