Author : B. Rahul Kamath

Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

1990 के दशक से व्यापारिक संबंधों में बढ़ोतरी के साथ भारत-ईयू के रिश्ते भी मज़बूत होते चले गए. दोनों ही पक्षों के बीच आम जनता के स्तर के संबंधों में भी बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. भारत के हज़ारों छात्रों ने ज्ञान हासिल करने के लिए एक केंद्र की तरह यूरोप का चयन किया है.

India–EU Relations: क्या रिश्तों की अपार संभावनाओं से अब भी दूर खड़ी है दोस्ती?
India–EU Relations: क्या रिश्तों की अपार संभावनाओं से अब भी दूर खड़ी है दोस्ती?

2022 में भारत अपनी आज़ादी के 75 साल पूरे कर रहा है. स्वतंत्रता के 75 साल के मौक़े को यादगार बनाने के लिए भारत सरकार ने “आज़ादी का अमृत महोत्सव” के नाम से पहल शुरू की है. इस कार्यक्रम का मकसद भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक पहचान को सामने लाना है. इसके अलावा राजनयिक प्रयासों के ज़रिए अपनी एक अलग पहचान खड़ी करना भी इस कार्यक्रम का एक अहम हिस्सा है. इस साल यूरोपीय आर्थिक समुदाय (मौजूदा यूरोपीय संघ) के साथ भारत की दोस्ती के 60 साल पूरे हो रहे हैं. 1962 में यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) के साथ राजनयिक रिश्तों का आग़ाज़ करने वाले शुरुआती देशों (और एशिया में पहले) में भारत का नाम शुमार रहा है. उस साल भारत के राजदूत के. बी. लाल ने EEC के पहले अध्यक्ष वॉल्टर हॉल्स्टेन को अपना परिचय पत्र सौंपा था. तब से भारत और ईयू के बीच रिश्ते लगातार मजबूत होते गए हैं. 21वीं सदी में इसने सामरिक भागीदारी का रूप ले लिया है. दोनों पक्षों के बीच सामरिक भागीदारी की स्थापना के पीछे सियासी मोर्चा ही इकलौती वजह नहीं है. दरअसल इसके पीछे तमाम तरह की ऐतिहासिक भागीदारियां हैं. पिछले कई दशकों में ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के भारतीय विचार की प्रगति के साथ-साथ इस भागीदारी की जड़ें भी गहरी होती चली गई हैं. महाराजा जाम साहेब दिग्विजय सिंहजी रणजीत सिंहजी से जुड़ी कहानियां आज भी पोलैंड में सुनाई जाती हैं. उनके ही हौसले और बहादुरी की बदौलत सोवियत संघ में लाल सेना के श्रमिक कैंपों में मज़दूरी करने वाले पोलैंड के 1000 बच्चों को बचाया जा सका था. दरअसल साइबेरिया में कड़ाके की ठंड वाली परिस्थितियों से निजात पाने के लिए वहां रह रहे पोलैंड के हज़ारों लोगों ने मध्य और दक्षिण एशिया के गर्म जलवायु वाले देशों का रुख़ किया था. महाराजा ने उस दौरान पोलैंड के बच्चों को जामनगर में पनाह देने का फ़ैसला लिया था. यहीं से भारत में एक लघु पोलैंड की बसावट की कहानी शुरू हुई थी. यहां पोलैंड की संस्कृति और परंपराओं को पूरा सम्मान देने के गहन प्रयास किए गए थे. दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया के तमाम हिस्सों में रह रहे पोलैंड के शरणार्थियों ने वापस अपने वतन का रुख़ कर लिया. बहरहाल पोलैंड का समाज आज भी महाराजा जाम साहेब का एहसानमंद है. 2016 में उनकी 50वीं पुण्यतिथि पर उन्हें पोलैंड के सर्वोच्च सम्मान से नवाज़ा गया था. पोलैंड की मदद में उठे महाराजा के हाथ जैसे ऐतिहासिक उदाहरण विदेश नीति के क्षेत्र में भारत के मूल्यों और विश्वास को सही मायनों में प्रकट करते हैं.

महाराजा जाम साहेब दिग्विजय सिंहजी रणजीत सिंहजी से जुड़ी कहानियां आज भी पोलैंड में सुनाई जाती हैं. उनके ही हौसले और बहादुरी की बदौलत सोवियत संघ में लाल सेना के श्रमिक कैंपों में मज़दूरी करने वाले पोलैंड के 1000 बच्चों को बचाया जा सका था. 

1962 में कूटनीतिक रिश्तों की शुरुआत के बाद से भारत और ईयू ने विकास भागीदारी के मोर्चे पर कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है. धीरे-धीरे एक आधुनिक समाज में बदलते भारत में EEC ने कई विकास परियोजनाओं के लिए आर्थिक मदद मुहैया कराई थी. EEC ने भारत के ऑपरेशन फ़्लड में सहयोग किया. 13 जनवरी 1970 को शुरू की गई इस क़वायद से भारत के डेयरी क्षेत्र का कायापलट हो गया. आमतौर पर इसे ‘श्वेत क्रांति’ के नाम से जाना जाता है. EEC ने भारत को विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के तहत अनुदान के रूप में स्किम्ड मिल्क पाउडर और बटर ऑयल मुहैया कराया. इसने प्रभावी रूप से भारत को दूध की किल्लत वाले देश से दुनिया में सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना दिया. तीन चरणों में ये उभार देखने को मिला. 1960 के दशक में यूनाइटेड किंगडम और पश्चिमी जर्मनी यूरोपीय समुदाय में भारत के सबसे बड़े कारोबार सहयोगी थे. भारत-ईयू के बीच के व्यापार में निरंतर बढ़ोतरी होती रही. 1960 और 1970 के दशकों में दोनों पक्षों के बीच का व्यापार 1.638 अरब अमेरिकी डॉलर था जो 1980 में 5.701 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर हो गया. 2021 में भारत और ईयू के द्विपक्षीय व्यापार का मूल्य 65.30 अरब यूरो के स्तर पर है. 20वीं सदी की तुलना में आज दोनों ही पक्षों की एक-दूसरे के बाज़ारों तक पहुंच काफ़ी बढ़ गई है. भारत और ईयू के बीच के कारोबारी रिश्तों में 1990 के दशक में बहार आने लगी थी. दरअसल इसी कालखंड में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की प्रक्रिया आरंभ हुई थी. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मदद की एवज में भारत में सुधारों की एक व्यापक श्रृंखला शुरू हुई. इसके साथ ही पूंजी बाज़ारों का भी सुधार हुआ. इसी तरह 1992 में मास्ट्रिच संधि पर दस्तख़त के साथ ही EEC के स्थान पर यूरोपीय संघ का गठन हुआ. इसी समझौते के तहत यूरोपीय संघ से जुड़े प्रावधानों की नींव पड़ी. इनमें साझा यूरोपीय नागरिकता, एकल मुद्रा की शुरुआत और साझा विदेश और सुरक्षा नीति (CFSP) जैसी क़वायद शामिल हैं. 1990 के दशक से व्यापारिक संबंधों में बढ़ोतरी के साथ भारत-ईयू के रिश्ते भी मज़बूत होते चले गए. राजनीतिक जुड़ावों में भी काफ़ी इज़ाफ़ा हुआ. सबसे अहम बात ये है कि दोनों ही पक्षों के बीच आम जनता के स्तर के संबंधों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई. भारत के हज़ारों छात्रों ने ज्ञान हासिल करने के लिए एक केंद्र की तरह यूरोप का चयन किया.

चित्र 1: भारत-ईयू रिश्तों के अहम पड़ाव

1962 भारत और यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) के बीच राजनयिक रिश्तों की स्थापना
1973 भारत-EEC वाणिज्यिक सहयोग समझौता
1978 यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के बीच पहले समझौते पर दस्तख़त
1981 नया आर्थिक और वाणिज्यिक सहयोग समझौता
1981 यूरोप के Ariane 3 रॉकेट से भारत के पहले जियोस्टेशनरी सैटेलाइट APPLE का प्रक्षेपण
1993 साझा राजनीतिक बयान पर दस्तख़त
1994 साझेदारी और विकास पर सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर
2000 पहले भारत-ईयू शिखर सम्मेलन का साझा घोषणापत्र
2001 भारत-यूरोपीय आयोग विज्ञान और तकनीकी सहयोग समझौते पर दस्तख़त
2004 पांचवें भारत-ईयू शिखर सम्मेलन में सामरिक भागीदारी
2005 सामुद्रिक सहयोग पर साझा कार्ययोजना की मंज़ूरी
2005 भारत और ईयू ने साझे तौर पर ऊर्जा पैनल का गठन किया
2007 व्यापक आधार वाले व्यापार और निवेश समझौते (BTIA) पर वार्ता प्रक्रिया की शुरुआत
2007 ईयू-भारत मैक्रो इकॉनोमिक डायलॉग की स्थापना
2008 परमाणु ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भारत-ईयू सहयोग का विस्तार
2012 ऊर्जा में तालमेल को बढ़ावा देने पर साझा घोषणापत्र पर दस्तख़त
2012 एनरिका लेक्सी घटनाक्रम
2013 मुक्त व्यापार समझौते पर वार्ताओं में रुकावट
2013 यूरोपालिया इंडिया फ़ेस्टिवल का उद्घाटन
2015 एनरिका लेक्सी केस में यूरोपीय संसद द्वारा पारित ग़ैर-बाध्यकारी प्रस्ताव को भारत ने ख़ारिज किया
2017 यूरोपीय निवेश बैंक (EIB) ने दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपना पहला कार्यालय दिल्ली में खोला
2020 इंडिया-ईयू स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप: रोडमैप टू 2025
2020 व्यापार और निवेश पर उच्च स्तरीय संवाद (HLDTI) की स्थापना
2021 मुक्त व्यापार वार्ताओं की बहाली
2021 भारत-ईयू सामुद्रिक सुरक्षा संवाद का आगाज़

भारत और ईयू ने वर्ष 1993 में साझा राजनीतिक बयान और 1994 में सहयोग समझौते पर दस्तख़त किए थे और ये समझौते भारत और ईयू  के द्विपक्षीय रिश्तों का आधार रहे हैं. साल 2004 में 5वें भारत-ईयू शिखर सम्मेलन में द्विपक्षीय रिश्तों को एक नया मुकाम दिया गया. उस साल भारत और ईयू सामरिक भागीदार बने. ईयू के मसलों में भारत की केंद्रीय भूमिका है. ईयू ने आर्थिक और सियासी तौर पर अपने रणनीतिक भागीदार के तौर पर जिन 10 देशों को चुना है उनमें भारत भी शामिल है. भारत और ईयू का 10वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है जबकि ईयू और भारत का तीसरा सबसे बड़ा कारोबार सहयोगी है. व्यापक आधार वाले द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौते (BTIA) को लेकर 2007 से 2013 के बीच वार्ताओं की प्रक्रिया चली थी. हालांकि भारत के व्यापारिक प्रशासन से जुड़े मुद्दों पर अनेक प्रकार के गतिरोधों और व्यापारिक समझौतों पर आगे बढ़ने को लेकर जारी हिचकिचाहटों के चलते वार्ता प्रक्रिया अटक गई. इसके अलावा तकनीकी, विधायी और प्रशासनिक मोर्चों पर व्यापार से जुड़ी बाधाओं ने भी इस रास्ते में रोड़े अटकाने का काम किया. बहरहाल मई 2021 में भारत-ईयू शिखर सम्मेलन में दोनों ही पक्षों ने मुक्त व्यापार समझौते एवं भारत और यूरोपीय संघ के बीच सहयोग और गठजोड़ के स्तर से जुड़ी वार्ताओं को दोबारा चालू करने का फ़ैसला किया. ग़ौरतलब है कि कोविड-19 महामारी के दौर में दोनों पक्षों के बीच तालमेल और जुड़ावों में काफ़ी विस्तार देखने को मिला है.

1990 के दशक से व्यापारिक संबंधों में बढ़ोतरी के साथ भारत-ईयू के रिश्ते भी मज़बूत होते चले गए. राजनीतिक जुड़ावों में भी काफ़ी इज़ाफ़ा हुआ. सबसे अहम बात ये है कि दोनों ही पक्षों के बीच आम जनता के स्तर के संबंधों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई.

चित्र 1: भारत-ईयू कारोबारी रिश्तों में व्यापार के अहम पड़ाव: 1960 के दशक से 2020 के दशक के बीच

स्रोत: यूरोस्टैट कॉमटेक्स्ट से हासिल आंकड़े- स्टैटिस्टिकल रेजिम 4; ग्राफ़ लेखक का ख़ुद का ब्योरा है

UNCLOS से आगे बढ़ने पर ज़ोर

साल 2020 में 15वें भारत-ईयू शिखर सम्मेलन में दोनों पक्षों के बीच “इंडिया-ईयू पार्टनरशिप: ए रोडमैप टू 2025” पर सहमति बनी. इसका मकसद भारत-ईयू सामरिक साझीदारी में और मज़बूती लाना है. इसके तहत पांच बेहद अहम क्षेत्रों में सहयोग पर ज़ोर दिया गया है. इनमें विदेश नीति और सुरक्षा तालमेल, व्यापार और अर्थव्यवस्था, टिकाऊ आधुनिकीकरण को लेकर भागीदारी, वैश्विक प्रशासन और जनता से जनता के बीच के संपर्क शामिल हैं. इसी तरह 2021 में 16वें भारत-ईयू शिखर सम्मेलन से पहले ईयू ने अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति का एलान किया. इस दस्तावेज़ में इस इलाक़े में यूरोप के हितों के बखान के साथ-साथ पारंपरिक और व्यवस्थागत प्रतिस्पर्धियों की काट करने के मंसूबों का ब्योरा दिया गया है. अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति के तहत ईयू इस इलाक़े में नियम-आधारित क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे को बढ़ावा देना चाहता है. इसके लिए वो समान सोच वाले मित्र देशों के साथ गठजोड़ क़ायम करने का इरादा रखता है. दरअसल भारत, ईयू की इस व्यापक रणनीति के केंद्र में है. ये इलाक़ा भूराजनीति की नई जगह  है. दुनिया की कुल आबादी का 60 फ़ीसदी हिस्सा इसी क्षेत्र में रहता है. दुनिया के आर्थिक उत्पादन का दो तिहाई से भी ज़्यादा हिस्सा इसी इलाक़े से निकलता है. भारत के लिए ये पूरा इलाक़ा सदियों से बेहद अहम रहा है. भारत इस क्षेत्र को एक ऐसे मुक्त और समावेशी इलाक़े के तौर पर देखता है जो प्रगति की साझा क़वायद में सबको साथ लेकर आगे बढ़ता है. सामुद्रिक सहयोग भारत और ईयू के बीच तालमेल के अहम क्षेत्र के तौर पर उभरा है. दोनों ही पक्षों ने गहरे समुद्री इलाक़ों में अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के पालन और UNCLOS के हिसाब से आगे बढ़ने पर ज़ोर दिया है.

चित्र 2: समूह के हिसाब से भारत के साथ यूरोपीय संघ का व्यापार 2010-2020

जनवरी 2021 में भारत और ईयू ने पहली सामुद्रिक सुरक्षा वार्ताओं की मेज़बानी की थी. दोनों ही पक्षों ने सामुद्रिक दायरों में जागरूकता में तालमेल, क्षमता-निर्माण और साझा नौसैनिक अभ्यासों को लेकर चर्चा की थी. यूरोप और हिंद-प्रशांत के बीच व्यापार जैसे क्षेत्रों में मज़बूत पारस्परिकता से यूरोप को 21वीं सदी की वैश्विक महाशक्ति बनने में मदद मिल सकती है. भारत और आसियान जैसे क्षेत्रीय किरदारों के साथ निवेश संबंधों से यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं का भला हो सकता है. इलाक़े में गठजोड़ के प्रयासों का मकसद आर्थिक निर्भरता का जाल फैलाना और कर्ज़ का मकड़जाल तैयार करने की बजाए आपसी संपर्कों को बढ़ावा देना होना चाहिए. ईयू का ग्लोबल गेटवे कार्यक्रम ब्रसेल्स को दुनिया भर में बुनियादी ढांचे के विकास में मदद पहुंचाने का अवसर प्रदान करता है. ग़ौरतलब है कि यूरोपीय आयोग ने 2021 से 2027 के बीच कनेक्टिविटी परियोजनाओं के लिए 300 अरब यूरो के कोष का प्रावधान कर रखा है. गेटवे से जुड़ी ये पहल बाक़ी दुनिया के साथ मज़बूत संपर्क क़ायम करने का यूरोपीय तौर-तरीक़ा है. इसके तहत ईयू कर्ज़ के मकड़जाल की बजाए संपर्कों को बढ़ावा देने का प्रयास करता है.

यूरोपीय आयोग ने 2021 से 2027 के बीच कनेक्टिविटी परियोजनाओं के लिए 300 अरब यूरो के कोष का प्रावधान कर रखा है. गेटवे से जुड़ी ये पहल बाक़ी दुनिया के साथ मज़बूत संपर्क क़ायम करने का यूरोपीय तौर-तरीक़ा है. इसके तहत ईयू कर्ज़ के मकड़जाल की बजाए संपर्कों को बढ़ावा देने का प्रयास करता है.

चित्र 3: यूरोपीय संघ में भारत से वस्तुओं का आयात (सदस्य राष्ट्रों का वितरण- 2020)

चीन बड़ी चुनौती

भारत और ईयू के रिश्तों में राजनीतिक और आर्थिक दोनों पैमानों पर तरक़्क़ी हुई है. हालांकि कई मसलों पर दोनों पक्षों की हिचकिचाहट के चलते पारस्परिक संबंधों की संभावनाओं का पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं हो सका है. कई मसलों पर दोनों के बीच के जुड़ाव अब भी आधे-अधूरे हैं. भारत और ईयू, दोनों के लिए चीन एक बड़ी चुनौती है. लिहाज़ा इस मसले पर ख़ास तवज्जो की दरकार है. ईयू के भीतर चीन नीति पर विभाजन साफ़-साफ़ नज़र आता है. चीन के प्रति, नीतियों को लेकर ईयू के सदस्य देशों के बीच अलगाव बढ़ता जा रहा है. नीति-निर्माण और निर्णय लेने की प्रक्रिया में ईयू के सदस्यों के बीच का ये अलगाव एक बड़ी समस्या बनकर खड़ा है. यूरोप के इर्द-गिर्द भूराजनीतिक चुनौतियां लगातार बढ़ती जा रहा हैं. ऐसे में यूरोपीय संघ के बीच के मतभेद नुक़सानदेह साबित हो सकते हैं. भारत और ईयू दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र हैं. दोनों साझे मूल्यों और सिद्धांतों पर भरोसा करते हैं. बहुपक्षीयवाद के उभार के बीच दोनों ही पक्ष अपनी वास्तविक क्षमताओं को हासिल करने के लिए सामरिक भागीदारियों को ऊंचा उठा सकते हैं. भूराजनीतिक मोर्चे पर सामने खड़ी चुनौतियों का हल ढूंढने में भारत और यूरोपीय संघ की ये क़वायद कारगर साबित हो सकती है.

चित्र 4: भारत और ईयू के बीच कुल व्यापार 2010-2020

स्रोत: अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर यूरोस्टैट और यूएन कॉमट्रेड डेटाबेस; लेखक का अपना ब्योरा

कनेक्टिविटी से जुड़ा मसला दोनों ही पक्षों के बीच जुड़ावों का एक मज़बूत आधार है. भौतिक जुड़ाव, मानवीय जुड़ाव और डिजिटल कनेक्टिविटी तालमेल के नए क्षेत्र बन सकते हैं. ख़ासतौर से डेटा संरक्षण और नियमन के क्षेत्र में भारत-ईयू रोडमैप में तालमेल क़ायम करने पर ज़ोर दिया गया है. हरित निवेश और हरित बुनियादी ढांचा निर्माण आज वक़्त की मांग है. इस दिशा में ईयू भारत का एक अहम साझीदार बन सकता है. ईयू भारत को नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में संसाधन और तकनीकी जानकारियां मुहैया कराकर अपने ऊर्जा संबंधों को आगे बढ़ा सकता है. पिछले कुछ महीनों के घटनाक्रमों से भारत और यूरोपीय संघ के बीच सामरिक संबंधों को मज़बूत बनाने की रणनीतिक अहमियत साफ़ ज़ाहिर हो गई है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र के संदर्भ में इस क़वायद का महत्व ख़ासतौर से बढ़ जाता है. इस इलाक़े में भारत एक क्षेत्रीय किरदार है. दूसरी ओर यूरोपीय संघ इस इलाक़े में अपनी भूमिका को और विस्तार देना चाहता है. पिछले 60 वर्षों में भारत और ईयू के द्विपक्षीय रिश्तों की मामूली, मगर संभावनाओं से भरी झलक मिली है. बहरहाल कोविड-19 महामारी और दूसरी भूराजनीतिक चुनौतियों ने इस दिशा में नए अवसरों के द्वार खोल दिए हैं. भारत और यूरोप के रिश्तों की वास्तविक संभावनाएं अब सामने दिखाई देने लगी हैं. ख़ासतौर से चीन के संदर्भ में भारत यूरोप का एक अहम साथी है. हालांकि यूरोप को महज़ चीन के विकल्प के तौर पर भारत को देखने की क़वायद से बचना चाहिए. मौजूदा वक़्त भारत और यूरोपीय संघ के बीच व्यापारिक सौदे पर फिर से विचार करने के लिहाज़ से बेहद अनुकूल है. दोनों पक्षों को हिंद-प्रशांत में नियम-आधारित बहुपक्षीय व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए एक दूसरे पर भरोसा करना होगा. इसके साथ ही दूसरे सामरिक मंसूबों को पूरा करने की दिशा में भी गंभीरता से आगे बढ़ना होगा. दशकों से भले ही इन मसलों को लेकर काफ़ी चर्चा होती रही है, लेकिन  वास्तविक रूप से इन पर अमल की क़वायद लचर ही रही है.

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