Author : Arya Roy Bardhan

Published on Oct 19, 2023 Updated 0 Hours ago

कीमतों में कमी और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संपर्क में मज़बूती भारत को चालू खाता सरप्लस हासिल करने में मदद करेगी.

भारत का चालू खाता: संभावित सरप्लस के रास्ते की तरफ

5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था और 2047 तक विकसित देश बनने के भारत के लक्ष्य ने महामारी के बाद एक बार फिर से रफ्तार पकड़ी है. ग्लोबल वैल्यू चेन (GVC यानी किसी उत्पाद को बाज़ार में लाने में शामिल सभी तरह की गतिविधियां) में एकीकरण और अर्थव्यवस्था के डिजिटाइज़ेशन के साथ भारत ने ख़ुद को एक वैश्विक किरदार के तौर पर स्थापित किया है. भारत के लिए G20 की अध्यक्षता का अवसर बिल्कुल सही समय पर आया. इसने भारत को अपने विचारों को बढ़ावा देने और महामारी के बाद भूराजनीतिक तौर पर अलग-थलग दुनिया में विकास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के सिद्धांतों में सुधार करने के लिए ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) को एकजुट करने का मौका दिया. 

व्यापार अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के पहले रूपों में से एक है जहां अलग-अलग देश शामिल होते हैं. इसकी वजह देश की ज़रूरतें और तुलनात्मक लाभ का सिद्धांत है. सदियों तक बदलाव के दौर से गुज़रने के बाद अंतर्राष्ट्रीय व्यापार अब एक समग्र क्षेत्र में परिवर्तित हो गया है जिसका विकास के सभी पहलुओं- सतत विकास, आर्थिक विकास, तकनीकी प्रगति, असमानता और सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरण- पर व्यापक प्रभाव पड़ता है. 

सदियों तक बदलाव के दौर से गुज़रने के बाद अंतर्राष्ट्रीय व्यापार अब एक समग्र क्षेत्र में परिवर्तित हो गया है जिसका विकास के सभी पहलुओं- सतत विकास, आर्थिक विकास, तकनीकी प्रगति, असमानता और सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरण- पर व्यापक प्रभाव पड़ता है.

व्यापार के कठोर नतीजों को देखते हुए भारत में मौजूदा व्यापार के आंकड़ों और रुझानों की छानबीन आवश्यक है. भारत में सर्विस सेक्टर के बदलाव और कच्चे तेल पर बढ़ती निर्भरता ने संयुक्त रूप से भारत के चालू खाते की दिशा तय की है और इस तरह सरप्लस की संभावना को अनिश्चित बना दिया है.  

दुनिया में भारत के खाते की स्थिति 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने पिछले दिनों वित्तीय वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही के लिए भारतीय भुगतान संतुलन (बैलेंस ऑफ पेमेंट) की प्रगति को प्रकाशित किया है. अप्रैल से जून 2023 के लिए चालू खाते का घाटा 9.2 अरब अमेरिकी डॉलर था जो कि पिछले साल की इसी तिमाही के दौरान 17.9 अरब अमेरिकी डॉलर के घाटे से लगभग 50 प्रतिशत कम रहा. लेकिन घाटा पिछली तिमाही के 1.3 अरब अमेरिकी डॉलर से और बढ़ गया है. पिछली तिमाही की तुलना में घाटे में बढ़ोतरी के पीछे मर्केंडाइज़ में थोड़ा अधिक व्यापार घाटा (4.01 अरब अमेरिकी डॉलर) और नॉन-मर्केंडाइज़ (सर्विस, ट्रांसफर और इनकम) में थोड़ा कम सरप्लस है. 

नॉन-मर्केंडाइज़ की बारीकी से 10.6 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. सर्विस के निर्यात में कमी जहां मुख्य रूप से कंप्यूटर, ट्रैवल और व्यावसायिक सेवाओं का निर्यात धीमा होने की वजह से आई, वहीं नेट ट्रांसफर से आमदनी में गिरावट के पीछे विदेशों में काम करने वाले भारतीय छानबीन करने पर पता चलता है कि सर्विस से शुद्ध आमदनी 39.07 अरब अमेरिकी डॉलर से घटकर 35.1 अरब अमेरिकी डॉलर हो गई. इसी तरह नेट ट्रांसफर 24.76 अरब अमेरिकी डॉलर से गिरकर 22.86 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. हालांकि आमदनी का नेट आउटफ्लो 12.6 अरब अमेरिकी डॉलर से घटकर लोगों के द्वारा पैसा भेजने में आई कमी है. तिमाही के दौरान चालू खाते के घाटे में 7.9 अरब अमेरिकी डॉलर के उतार-चढ़ाव के पीछे ये घटनाक्रम हैं. 

व्यापार संतुलन आम तौर पर एक सालाना चक्रीय प्रवृत्ति (साइक्लिकल ट्रेंड) का प्रदर्शन करता है जिसमें हर साल व्यापार घाटा दिसंबर के दौरान निचले स्तर पर पहुंच ज़्यादा जाता है. ये साल-दर-साल चालू खाते के आंकड़ों की तुलना की आवश्यकता को उजागर करता है.

व्यापार संतुलन आम तौर पर एक सालाना चक्रीय प्रवृत्ति (साइक्लिकल ट्रेंड) का प्रदर्शन करता है जिसमें हर साल व्यापार घाटा दिसंबर के दौरान निचले स्तर पर पहुंच ज़्यादा जाता है. ये साल-दर-साल चालू खाते के आंकड़ों की तुलना की आवश्यकता को उजागर करता है. सप्लाई चेन में आई रुकावटों और महामारी के दौरान मांग में आई कमी की वजह से 2020-21 में भारत का व्यापार घाटा काफी कम हो गया था. लेकिन बाद के वर्षों में एक बार फिर व्यापार घाटे में काफी उछाल दर्ज किया गया. वैसे तो भारत ने निर्यात की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन में बढ़ोतरी की लेकिन आयात में और भी ज़्यादा उछाल आया. देश के कुल आयात बिल में लगभग 20 प्रतिशत का हिस्सा रखने वाले कच्चे तेल की कीमत में महामारी के दौरान और उसके बाद काफी बढ़ोतरी देखी गई. रूस-यूक्रेन संकट की वजह से कीमत में और भी इज़ाफा हुआ. वित्तीय वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही के लिए इंडरमीडियट गुड्स (सामान या सेवा के उत्पादन के लिए व्यवसायों के द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला) और कैपिटल गुड्स (उपभोक्ताओं के लिए सामान और सेवाओं के उत्पादन में किसी कंपनी के द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला सामान) के लिए भारत का व्यापार घाटा क्रमश: 27 अरब अमेरिकी डॉलर और 21.39 अरब अमेरिकी डॉलर रहा. इलेक्ट्रिकल मशीनरी और उपकरण, जिनका हिस्सा आयात में ज़्यादा है (लगभग 10 प्रतिशत), में महामारी के बाद कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं देखा गया है.  

आंकड़ा 1: भारत का व्यापार घाटा (करोड़ रु. में)

स्रोत: RBI

2022-23 की पहली तिमाही की तुलना में 2023-24 की पहली तिमाही में व्यापार घाटे में 50 प्रतिशत की भारी गिरावट की पड़ताल करने के लिए इसके भीतर की संरचना की तुलना करनी होगी. सामानों के व्यापार घाटे में लगभग 6.5 अरब अमेरिकी डॉलर (10.3 प्रतिशत) की कमी आई जबकि सेवाओं में सरप्लस में 4 अरब अमेरिकी डॉलर (12.9 प्रतिशत) का विस्तार हुआ. ये मुख्य रूप से सेवाओं के निर्यात में बढ़ोतरी की वजह से हुआ. इस बढ़ोतरी में शामिल क्षेत्र हैं- मैन्युफैक्चरिंग सर्विस, ट्रांसपोर्ट सर्विस, कंस्ट्रक्शन सर्विस, फाइनेंशियल सर्विस और टेलीकम्युनिकेशन, इन्फॉर्मेशन एवं कंप्यूटर सर्विस. हालांकि शुद्ध निवेश आमदनी (नेट इन्वेस्टमेंट इनकम) के आउटफ्लो में लगभग 2 अरब अमेरिकी डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज की गई. ये भारत के द्वारा विदेशी निवेश पर उत्पन्न मुनाफे का संकेत है. 

आंकड़ा 2: चालू खाते की संरचना

स्रोत: RBI

सामान में व्यापार की वजह से घाटे में बढ़ोतरी

वैसे तो साल-दर-साल के रुझान भारत के लिए काफी संतोषजनक हैं लेकिन इसके बावजूद भारत अभी भी आयात करने वाला देश है. ये सबको मालूम है कि सामानों के व्यापार का चालू खाते के डेबिट पर काफी बोझ है. इस तरह भारत के सामानों के हिसाब से व्यापार संतुलन की छानबीन ज़रूरी हो जाती है. भारत में आयात की सबसे ज़्यादा वैल्यू के हिसाब से पांच प्रमुख सामान हैं- कच्चा तेल; कोयला एवं कोक; सोना; पेट्रोलियम उत्पाद और इलेक्ट्रॉनिक सामान. दूसरी तरफ पांच सबसे ज़्यादा निर्यात किए जाने वाले सामान हैं- पेट्रोलियम उत्पाद, दवाई (ड्रग फॉर्मूलेशन); मोती, कीमती एवं कम कीमती पत्थर; टेलीकॉम उपकरण और लोहा एवं स्टील. 

भारत ने डिजिटल सेक्टर में तेज़ विकास के लिए इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सेक्टर में काम करने वाले लोगों के अपने समृद्ध और कुशल टैलेंट पूल का भी फायदा उठाया है. बढ़ते वित्तीय सेक्टर में भी नई प्रतिभाओं को खपाने और सर्विस की अगुवाई वाले विकास में बढ़ोतरी करने की क्षमता है.

भारत के व्यापार संतुलन पर पेट्रोलियम के आयात का बहुत ज़्यादा बोझ है. कच्चे तेल पर आयात निर्भरता का औसत 87 प्रतिशत (पेट्रोल, तेल और लुब्रिकैंट के आधार पर) है यानी घरेलू खपत का लगभग 87 प्रतिशत हिस्सा आयात के ज़रिए पूरा किया जाता है. हाई-स्पीड डीज़ल (HSD) और पेट्रोल (मोटर-स्पिरिट) घरेलू मांग को सबसे ज़्यादा बढ़ाने वाले हैं और पेट्रोलियम उत्पादों के घरेलू उत्पादन में सबसे अधिक हिस्सा इन्हीं का है. सप्लाई में लगातार कटौती की वजह से कच्चे तेल की कीमत में बढ़ोतरी हो रही है और आने वाली तिमाही में सप्लाई में व्यापक कमी की वजह से हालात और बिगड़ने की आशंका है. इससे भारत के चालू खाते पर पर काफी दबाव बढ़ेगा और व्यापार घाटे में और बढ़ोतरी होगी. लेकिन भारत के कुल कच्चे तेल और ठोस उत्पादन (कंडेनसेट प्रोडक्शन) में 2.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है जो पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में भारत के हिस्से को और बढ़ाकर कुछ हद तक राहत मुहैया कराएगी.  

आंकड़ा 3: भारतीय बास्केट के कच्चे तेल की कीमत (अमेरिकी डॉलर में प्रति बैरल)

स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनेलिसिस सेल

जहां तक प्रमुख सामानों की बात है तो भारत को सबसे ज़्यादा व्यापार घाटा वनस्पति तेल (लगभग 5 अरब अमेरिकी डॉलर) में है. वनस्पति तेल का आयात, जिसमें खाद्य एवं अखाद्य तेल दोनों शामिल हैं, अगस्त 2022 के 14,01,233 टन की तुलना में 33 प्रतिशत बढ़कर अगस्त 2023 में 18,66,123 टन हो गया. आयात की मांग बढ़ने की वजह मासिक बारिश में कमी के अलावा कम आयात शुल्क की वजह से घरेलू तेल की कीमत में कमी है. हालांकि 3.735 मिलियन मीट्रिक टन के साथ घरेलू भंडार बहुत ज़्यादा है और उम्मीद की जाती है मौजूदा तिमाही में आयात बिल में कमी आएगी. इस मामले में नकारात्मक पहलू ये है कि रूस और यूक्रेन भारत के क्रमश: पांचवें और सातवें सबसे बड़े तेल सप्लाई करने वाले देश हैं लेकिन युद्ध की वजह से सप्लाई चेन दबाव में है. 

चालू खाते में संतुलन: सर्विसेज़ की भूमिका

मर्केंडाइज़ के ज़्यादा आयात के बावजूद भारत में मज़बूत सर्विस व्यापार सरप्लस है. ज़्यादातर सॉफ्टवेयर और व्यावसायिक सेवाओं के निर्यात में बढ़ोतरी के साथ ये सरप्लस भारत के चालू खाते को संतुलित करने और यहां तक कि सरप्लस की तरफ बढ़ने के हिसाब से भी महत्वपूर्ण है. ताज़ा आंकड़ों के आधार पर 28.7 अरब अमेरिकी डॉलर के सेवा निर्यात के साथ अगस्त 2022 के मुकाबले अगस्त 2023 में 8.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. 9.1 प्रतिशत की अनुमानित विकास दर के साथ सर्विस सेक्टर में राष्ट्रीय निर्यात में योगदान देने और सामानों के व्यापार घाटे को संतुलित करने की काफी क्षमता है. 

तालिका 1: 2022-23 में भारत के चालू खाते की संरचना

आइटम Q4 Q3 Q2 Q1
1 चालू खाता -1,356 -16,832 -30,902 -17,964
1.1 मर्केंडाइज़ -52,587 -71,337 -78,313 -63,054
1.2 नॉन-मर्केंडाइज़ 51,231 54,505 47,411 45,090
1.2.1 सर्विसेज़ 39,075 38,713 34,426 31,069
1.2.1.1 ट्रैवल 747 1,213 -1,764 -1,593
1.2.1.2 ट्रांसपोर्टेशन -135 -652 -1,809 -1,931
1.2.1.3 इंश्योरेंस 369 -13 170 405
1.2.1.4 जीएनआईई -163 -97 -36 -37
1.2.1.5 मिसलेनियस 38,256 38,262 37,865 34,225
1.2.1.5.1 सॉफ्टवेयर सर्विसेज़ 34,370 33,541 32,681 30,692
1.2.1.5.2 बिज़नेस सर्विसेज़ 5,945 6,073 5,178 3,448
1.2.1.5.3 फाइनेंशियल सर्विसेज़ 790 657 514 146
1.2.1.5.4 कम्युनिकेशन सर्विसेज़ 341 514 403 522

स्रोत: RBI

सर्विस सेक्टर आबादी के अपेक्षाकृत कम हिस्से को रोज़गार देते हुए देश में GDP के विकास को आगे बढ़ा रहा है. डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी पहल ने ग्लोबल वैल्यू चेन के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को जोड़ा है और वैश्विक व्यावसायिक सेवाओं में भारत के हिस्से में बढ़ोतरी की है. भारत ने डिजिटल सेक्टर में तेज़ विकास के लिए इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सेक्टर में काम करने वाले लोगों के अपने समृद्ध और कुशल टैलेंट पूल का भी फायदा उठाया है. बढ़ते वित्तीय सेक्टर में भी नई प्रतिभाओं को खपाने और सर्विस की अगुवाई वाले विकास में बढ़ोतरी करने की क्षमता है. देश में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी श्रम की लागत को देखते हुए सर्विस सेक्टर का विकास निर्यात को मदद करने वाले प्रोत्साहन के रूप में तब्दील हो जाएगा. 

निष्कर्ष

भारत के चालू खाते ने साल-दर-साल सुधार तो दिखाया है लेकिन चालू खाते का सरप्लस अभी तक हासिल नहीं हो पाया है. हालांकि भारत के सेवा निर्यात के बढ़ते हिस्से के साथ अब चालू खाते में सरप्लस के बारे में सोचा जा सकता है. वैसे तो सामानों के आयात का बिल बढ़ेगा और ज़्यादा-से-ज़्यादा इस वित्तीय वर्ष में सीमित रहेगा लेकिन सर्विस सेक्टर में विकास जारी रहने की उम्मीद है. कीमतों में गिरावट और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संपर्कों की मज़बूती के साथ धीरे-धीरे वैश्विक स्थिरता चालू खाते के सरप्लस को हासिल करने में मदद करेगी. आगे का रास्ता भू-राजनीतिक घटनाओं से भरा है लेकिन उत्पादन को बढ़ाने की घरेलू पहल देश की आयात निर्भरता में सुधार करेगी और संतुलित व्यापार का माहौल बनाने में मदद करेगी.


आर्य रॉय बर्धन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में रिसर्च असिस्टेंट हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.