ज़मीनी स्तर पर क्रिप्टोकरेंसी अपनाने में भारत की अग्रणी स्थिति वैश्विक परिदृश्य में एक उल्लेखनीय रुझान का संकेत करती है. भले ही वैश्विक प्रवृति ज़मीनी स्तर पर क्रिप्टो की स्वीकार्यता में कमी का संकेत करती हो, लेकिन निम्न आय वाले देश एक उल्लेखनीय अपवाद प्रस्तुत करते हैं. दुनिया में युवाओं की सबसे बड़ी आबादी वाले देश का दर्जा हासिल कर चुके भारत में (विशेष रूप से युवाओं में) क्रिप्टोकरेंसी अपनाने की प्रवृति उल्लेखनीय है. नियामक स्पष्टता के अभाव और क्रिप्टोकरेंसी इकोसिस्टम के भीतर निवेश की अड़चनों के बावजूद अपने फलते-फूलते स्टार्टअप इकोसिस्टम और बढ़ते स्मार्टफोन और इंटरनेट की बढ़ती पैठ के साथ भारत के पास भविष्य के क्रिप्टो हब के तौर पर ख़ुद को स्थापित करने की क्षमता मौजूद है.
दुनिया में युवाओं की सबसे बड़ी आबादी वाले देश का दर्जा हासिल कर चुके भारत में (विशेष रूप से युवाओं में) क्रिप्टोकरेंसी अपनाने की प्रवृति उल्लेखनीय है.
उभार पर क्रिप्टो
क्रिप्टोकरेंसी अपनाने की क़वायद में एशिया सबसे आगे है, भारत, वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और थाईलैंड क्रिप्टो अपनाने में शीर्ष 10 देशों में अपनी जगह बना चुके हैं. ज़मीनी स्तर पर क्रिप्टो की स्वीकार्यता इस बात से तय नहीं होती कि किन देशों में कच्चे लेन-देन की मात्राएं सबसे ज़्यादा है. इसकी बजाए ध्यान उन देशों को सुर्ख़ियों में लाने पर दिया जाता है जहां औसत और रोज़मर्रा की ज़िंदगी जी रहे लोगों में क्रिप्टो की सबसे ज़्यादा स्वीकार्यता सामने आती है. इन देशों में क्रिप्टो के विकास के पीछे विविधतापूर्ण और अद्वितीय कारण हैं. इसे देखने का एक तरीक़ा ये है कि किसी देश में क्रिप्टोकरेंसी का विकास वहां की अद्वितीय आर्थिक परिस्थितियों से गूढ़ रूप से जुड़ा होता है. उदाहरण के लिए पाकिस्तान को ही ले लीजिए; देश की आर्थिक चुनौतियों के मायने ये हैं कि वहां हो रही बचत में तेज़ी से गिरावट हो सकती है. इसके अलावा, वर्तमान आर्थिक वातावरण में आम जनता के लिए निवेश के सीमित अवसर उपलब्ध हैं. इक्विटी बाज़ार और स्टॉक एक्सचेंज में गिरावट आई है, और वित्तीय मोर्चे पर हासिल लाभ के महंगाई के चलते नष्ट हो जाने की आशंका है. आर्थिक परिस्थितियों और क्रिप्टोकरेंसी अपनाने के बीच सूक्ष्म अंतर-संबंध ना सिर्फ़ पाकिस्तान, बल्कि पूरे एशिया में क्रिप्टो के परिदृश्य को प्रभावित करने वाले विविध कारकों को रेखांकित करता है.
वियतनाम में परिस्थितियों का एक अलग समूह मौजूद है, जो क्रिप्टोकरेंसी के विकास को प्रोत्साहित करता है. वियतनाम में क्रिप्टोकरेंसी की कामयाबी नागरिकों के लिए सीमित क़ानूनों और राष्ट्रीय मुद्रा के प्रति ऐतिहासिक संदेहों से पैदा हुई है. औपचारिक नियमन की ग़ैर-मौजूदगी, भले ही लाभदायक हो, लेकिन ये ऐसी चुनौतियां पैदा करती हैं जिनका कोई वैधानिक समाधान नहीं है. बैंकों की परिधि से बाहर खड़ी एक बड़ी आबादी (जो वियतनाम की आबादी का 69 प्रतिशत हिस्सा है) वित्तीय सेवाओं के लिए क्रिप्टो को स्वीकार करती है. इस तरह वियतनाम में विकेंद्रीकृत वित्त (DeFi) का उपयोग दुनिया के उच्चतम स्तरों में से एक हो गया है.
अपने विकास का प्रदर्शन करता भारत भी चुनौतियों से अछूता नहीं है; कुछ पहलुओं पर ध्यान, सुधार और गहरी समझ दिखाए जाने की दरकार है. भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 3.7 खरब अमेरिकी डॉलर का स्तर छू चुका है और ये दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. पाकिस्तान के विपरीत भारत में विकसित इक्विटी बाज़ार और स्टॉक एक्सचेंज है. साथ ही वियतनाम के उलट भारत में मज़बूत विनियमन के साथ-साथ बैंकों की परिधि से बाहर रहने वाली आबादी में स्थिर गति से कमी भी हो रही है. इंटरनेट और स्मार्टफोन की पैठ की दरों में बढ़ोतरी के साथ-साथ जनसांख्यिकीय लाभ (युवाओं की विशाल आबादी) के चलते भी भारत में क्रिप्टो का विकास प्रभावित हो सकता है.
भारत का क्रिप्टो परिदृश्य
11-26 साल की आयु वाला वर्ग (GenZ) भारत में क्रिप्टोकरेंसी के परिदृश्य पर छाया हुआ है और कुल उपयोग में इस तबक़े का हिस्सा 45 प्रतिशत है, इसके बाद 26-35 साल की आयु वाले वर्ग का हिस्सा 35 प्रतिशत है और 36-45 साल की श्रेणी की हिस्सेदारी 13 प्रतिशत है. आश्चर्यजनक रूप से क्रिप्टो उपयोगकर्ताओं का तक़रीबन 8 प्रतिशत हिस्सा बेबी बूमर पीढ़ी (1946 से 1964 के बीच पैदा हुए लोग) से है. भारत में निवेश मूल्य के संदर्भ में क्रिप्टो अपनाने में दिल्ली सबसे आगे है, इसके बाद बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे तकनीकी केंद्रों का नंबर आता है. टीयर 2 और टीयर 3 शहरों में क्रिप्टो अपनाए जाने की सूची में जयपुर शीर्ष दावेदार के तौर पर उभरा है, इसके बाद लखनऊ और पुणे का आते हैं. ये जानकारियां सिर्फ़ कॉइनस्विच उपयोगकर्ताओं द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से जुटाई गई हैं, जो भारत के संपूर्ण क्रिप्टो इकोसिस्टम का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. हालांकि वह भारतीय क्रिप्टो परिदृश्य को समझने और उसका विश्लेषण करने में मूल्यवान अनुभवजन्य परिप्रेक्ष्य उपलब्ध कराते हैं.
वियतनाम में क्रिप्टोकरेंसी की कामयाबी नागरिकों के लिए सीमित क़ानूनों और राष्ट्रीय मुद्रा के प्रति ऐतिहासिक संदेहों से पैदा हुई है.
क्रिप्टो में वृद्धि के शानदार आंकड़ों पर चिंतन करते हुए इकोसिस्टम का अधिक सूक्ष्म और सटीक प्रदर्शन प्रस्तुत करना अनिवार्य हो जाता है. 2021 में क्रिप्टो परिदृश्य में निवेश में बढ़ोतरी देखी गई. निवेशकों ने उल्लेखनीय रूप से क्रिप्टो के 32 सौदों में 51.3 करोड़ अमेरिकी डॉलर की रकम झोंकी. इस कड़ी में एक महत्वपूर्ण कामयाबी तब हासिल हुई जब अगस्त 2021 में 9 करोड़ अमेरिकी डॉलर की फंडिंग राउंड के ज़रिए CoinDCX ने यूनिकॉर्न का दर्जा सुरक्षित कर लिया.
हालांकि 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध, महंगाई और नियामक अनिश्चितताओं से बने वैश्विक आर्थिक परिदृश्य के बीच क्रिप्टो के विकास पथ में एक मोड़ आ गया. इस कालखंड को "फंडिंग विंटर" का नाम दिया गया, जिसने सभी स्टार्टअप के लिए चुनौतियां पेश कर दीं. ये चुनौतियां क्रिप्टोकरेंसी मूल्यों में तीव्र गिरावट लेकर आई, प्रमुख एक्सचेंजों में स्टॉक धड़ाम से गिरे और विवादों की शुरुआत हुई, साथ ही नियामक मोर्चे पर असमंजस का दौर शुरू हो गया. सामूहिक रूप से इन कारकों ने क्रिप्टो स्टार्टअप के लिए मज़बूत वातावरण तैयार कर दिया, नतीजतन भावनाओं में बड़े बदलाव का गवाह बन रहे बाज़ार में कुशलतापूर्वक आगे बढ़ने की अनिवार्यता पैदा हो गई. बहरहाल, ऐसे हालातों के बावजूद भारत क्रिप्टोकरेंसी अपनाने में वैश्विक स्तर पर शीर्ष देश के रूप में खड़ा है.
नियामक चौराहे पर...
नियमन और टैक्स से जुड़े पेचीदा वातावरण के बीच क्रिप्टोकरेंसी के प्रमुख बाज़ार के रूप में भारत का उभार उल्लेखनीय है. पिछले साल नियामक निकायों ने तमाम मसलों पर स्पष्टता उपलब्ध कराई है. इनमें क्रिप्टो करेंसी लेन-देनों पर एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग नियमों का प्रभाव भी शामिल है. अन्य देशों की तुलना में भारत में क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ी गतिविधियों पर टैक्स के ऊंचे दर आयद किए जाते हैं, यहां मुनाफ़ों पर 30 प्रतिशत का टैक्स है, जो इक्विटी जैसे अन्य निवेशों पर लगाए गए करों की तुलना में ज़्यादा है. इसके अलावा, सभी लेन-देनों पर एक प्रतिशत का टैक्स है, जिसे स्रोत पर कर कटौती (TDS) के नाम से जाना जाता है. इसके चलते क्रिप्टो प्लेटफॉर्मों को हर व्यापार पर ऐसा टैक्स काटने की आवश्यकता होती है. TDS का असमान क्रियान्वयन (ख़ासतौर से अंतरराष्ट्रीय एक्सचेंजों द्वारा) भारत में घरेलू एक्सचेंजों की प्रतिस्पर्धा को प्रभावित कर सकता है. TDS की शुरुआत के बाद से लाखों भारतीय उपयोगकर्ताओं ने विदेशी प्लेटफॉर्मों का रुख़ कर लिया, इसके कार्यान्वयन के बाद एक महीने में एक इकलौते ऑफशोर प्लेटफॉर्म ने साढ़े 4 लाख से भी ज़्यादा साइन अप की जानकारी दी. TDS करों के संग्रह में ऐसी असंगतता भारतीय उपयोगकर्ताओं को अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्मों की ओर आकर्षित कर सकती है, जो जुलाई 2022 में TDS की शुरुआत के बाद से इन एक्सचेंजों के वेब ट्रैफिक में उछाल से प्रमाणित होती है.
अन्य देशों की तुलना में भारत में क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ी गतिविधियों पर टैक्स के ऊंचे दर आयद किए जाते हैं, यहां मुनाफ़ों पर 30 प्रतिशत का टैक्स है, जो इक्विटी जैसे अन्य निवेशों पर लगाए गए करों की तुलना में ज़्यादा है.
भारत में क्रिप्टो का दायरा
भारत में, ख़ासतौर से यहां के युवाओं के बीच क्रिप्टो की स्वीकार्यता उल्लेखनीय है. हिंदुस्तान में युवाओं और किशोरों की आबादी दुनिया में सबसे ज़्यादा है, ऐसे में ये बात और अधिक दिलचस्प हो जाती है. क्रिप्टोकरेंसी इकोसिस्टम में नियमनों और निवेशों से जुड़े हालिया चुनौतियों के बावजूद इकोसिस्टम के अपने ठोस वातावरण और स्मार्टफोन और इंटरनेट की बढ़ती पैठ के साथ भारत भविष्य के क्रिप्टो हब के रूप में उभरने की क्षमता रखता है. इस संभावना के चलते और गहराई से विश्लेषण करना ज़रूरी हो गया है, जिससे कई प्रासंगिक सवाल खड़े होते हैं: ये विकास भारत के केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) के साथ कैसे जुड़ता है? भारत की क्रिप्टो टैक्स नीति का इकोसिस्टम पर क्या दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है? इन तकनीकों के पैमाने और शुरुआती स्वीकार्यता के बीच क्या घरेलू स्तर पर क्रिप्टो आबादी का दृष्टिकोण विकसित करना व्यावहारिक है? इन तत्वों का परीक्षण, वैश्विक क्रिप्टोकरेंसी परिदृश्य में भारत की गतिशील भूमिका की गहराई भरी समझ प्रस्तुत करेगा. भारत का जनसांख्यिकीय लाभ, राष्ट्रों के वैश्विक और आंतरिक आकांक्षाओं को आकार देने में निर्णायक मालूम होता है. साथ ही ये क्रिप्टोकरेंसी के निरंतर उभरते परिदृश्य को प्रभावित करने में भी कारगर रह सकता है.
सौरदीप बाग ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
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