Published on Feb 02, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत की वैश्विक महत्वाकांक्षाएं कोविड-19 महामारी और उसके बाद की परिस्थितियों में वैश्विक स्वास्थ्य जवाबदेही के साथ आती हैं. 

भारत, कोविड-19 और वैश्विक स्वास्थ्य एजेंडा

ये लेख भारत की आजादी के 75 साल: आकांक्षाएं, महत्वाकांक्षाएं और दृष्टिकोण श्रृंखला का हिस्सा है.


कोविड-19 महामारी के तीसरे साल में भारत को निश्चित रूप से वैश्विक स्वास्थ्य एजेंडा में एक व्यापक नेतृत्व की भूमिका संभाल लेनी चाहिए. ये दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की प्रतिष्ठा और 2027 तक दुनिया के सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश के रूप में भारत के द्वारा चीन को पीछे छोड़ने के अनुमान के अनुकूल होगा.

भारत के द्वारा भविष्य में किसी भी नेतृत्व की भूमिका उसके अतीत के आधार पर विकसित करनी चाहिए क्योंकि भारत कोविड-19 के आने से कई दशक पहले से वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा की जवाबदेही उठा रहा है. हम इसके चार उदाहरण साझा कर रहे हैं. पहला, भारत स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण मानवीय पूंजी का उत्पादन करता है जैसे हर साल 78,000 नये डॉक्टर. वैसे तो इनमें से ज़्यादातर डॉक्टर भारत में प्रैक्टिस के लिए बने रहते हैं लेकिन इनमें से एक बड़ी संख्या ऐसी भी है जो बाहर काम करने के लिए जाते हैं. वास्तव में यूनाइटेड किंगडम की नेशनल हेल्थ सर्विस में भारतीय डॉक्टर राष्ट्रीयता के मामले में दूसरे नंबर पर हैं और अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ फ़िज़िशियंस ऑफ इंडियन ओरिजिन के मुताबिक़ अमेरिका में भारतीय मूल के 80,000 डॉक्टर काम करते हैं. इनमें से ज़्यादातर कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में मोर्चे पर डटे हुए हैं.

भारत के द्वारा भविष्य में किसी भी नेतृत्व की भूमिका उसके अतीत के आधार पर विकसित करनी चाहिए क्योंकि भारत कोविड-19 के आने से कई दशक पहले से वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा की जवाबदेही उठा रहा है. 

दूसरा, भारत सालाना 22 अरब अमेरिकी डॉलर की क़ीमत की दवाई का निर्यात करता है जिससे दुनिया भर में करोड़ों लोगों के लिए कम दाम पर स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित हो पाती है. दुनिया में जेनरिक दवाइयों के सबसे बड़े बाज़ार अमेरिका में भारतीय उत्पाद मात्रा के मामले में 30 प्रतिशत हैं जबकि 100 अरब डॉलर की क़ीमत में भारतीय उत्पादों का योगदान 10 प्रतिशत है. इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण ये है कि भारत वैश्विक मांग की आधी वैक्सीन की सप्लाई करता है जो कि लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ी सबसे अच्छी ख़रीदारी है. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक के ज़रिए भारतीय कंपनियां दुनिया भर के करोड़ों लोगों के लिए कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है. इस बात की भी संभावना है कि कोविड-19 के ख़िलाफ़ एंटी-वायरल गोली के लिए फाइज़र और मर्क के द्वारा मेडिसिन पेटेंट पूल समझौते (नवंबर 2021 में हस्ताक्षरित) में कई भारतीय उत्पादक भी शामिल होंगे.

स्वास्थ्य कूटनीति भारतीय विदेश नीति का एक उभरता हुआ औज़ार

तीसरा, स्वास्थ्य कूटनीति भारतीय विदेश नीति का एक उभरता हुआ औज़ार है. कोविड-19 से पहले भारत ने दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में द्विपक्षीय स्वास्थ्य परियोजनाओं के लिए कम-से-कम 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता जताई थी. इस तरह की परियोजनाएं, ख़ास तौर पर भारत के पड़ोसी देशों जैसे अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल में, मानवीय और राष्ट्र निर्माण- दोनों तरह के उद्देश्यों को पूरा करती हैं. कोविड-19 के दौरान भारत दान और तकनीकी मदद के ज़रिए अफ्रीका में अपनी मौजूदगी और सॉफ्ट पावर को मज़बूत करने के लिए स्वास्थ्य कूटनीति पर निर्भर रहा.[1] लंबे वक़्त तक महामारी के दौरान इस तरह की स्वास्थ्य कूटनीति भारत और दुनिया के दूसरे देशों की स्वास्थ्य सुरक्षा की हिफ़ाज़त करने का काम भी करती है.

स्वास्थ्य कूटनीति भारतीय विदेश नीति का एक उभरता हुआ औज़ार है. कोविड-19 से पहले भारत ने दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में द्विपक्षीय स्वास्थ्य परियोजनाओं के लिए कम-से-कम 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता जताई थी. 

चौथा उदाहरण, भारत अपने देश में 130 करोड़ लोगों के लिए स्वास्थ्य देखभाल मुहैया कराता है, पूरे उपमहाद्वीप की मानवीय सुरक्षा करता है. लोगों की सेहत, वायु प्रदूषण, लैंगिक अधिकारिता और प्राथमिक देखभाल में बेहतरी भारत के आर्थिक विकास में स्वास्थ्य के एक निर्धारक बनने में- और सिर्फ़ एक परिणाम नहीं- महत्वपूर्ण हैं. इससे भी बढ़कर, महामारी के बीच संयुक्त राष्ट्र सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में दुनिया की सफलता काफ़ी हद तक एक अरब से ज़्यादा अपने नागरिकों के लिए भारत के द्वारा अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को बढ़ाने की क्षमता पर निर्भर करती है. ये उदाहरण आज के समय में वैश्विक स्वास्थ्य में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताते हैं.

 

वैश्विक स्वास्थ्य में भारत की नेतृत्व वाली भूमिका का विस्तार करना

हालांकि वैश्विक स्वास्थ्य के कार्यक्षेत्र में बड़ी भूमिका हासिल करने के लिए भारत को निश्चित रूप से अपनी समस्याओं का समाधान करना चाहिए. इनमें सबसे बड़ी समस्या है स्वास्थ्य में लंबे समय से ज़रूरत से कम निवेश. वर्तमान में भारत अपने सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का सिर्फ़ 3.3% स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च करता है जो कि 10 प्रतिशत के वैश्विक औसत से काफ़ी कम है. हर वर्ष 10 करोड़ 80 लाख भारतीय इलाज पर अपनी जेब से होने वाले खर्च की वजह से ग़रीबी के जाल में फंस जाते हैं जो कि दुनिया के औसत से तीन गुना ज़्यादा है.[2] संभवत: कोविड-19 के आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य प्रभाव से ये स्थिति और भी बिगड़ गई है, हालांकि इसको लेकर आंकड़े अभी भी जुटाए जा रहे हैं.

स्वास्थ्य देखभाल एक राजनीतिक विषय है और यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज मुहैया कराने से न सिर्फ़ नागरिकों को बीमारी से बचाया जा सकता है बल्कि कोविड-19 और दूसरी संभावित महामारियों से उबरने की लोगों की क्षमता भी बढ़ती है. इसलिए भारत निश्चित रूप से स्वास्थ्य पर ज़्यादा खर्च करे

ऐसी स्थिति पूरी तरह से रोकी जा सकती है. स्वास्थ्य देखभाल एक राजनीतिक विषय है और यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज मुहैया कराने से न सिर्फ़ नागरिकों को बीमारी से बचाया जा सकता है बल्कि कोविड-19 और दूसरी संभावित महामारियों से उबरने की लोगों की क्षमता भी बढ़ती है. इसलिए भारत निश्चित रूप से स्वास्थ्य पर ज़्यादा खर्च करे. इसके लिए सामान्य कर और सामाजिक स्वास्थ्य बीमा के ज़रिए अतिरिक्त संसाधन जुटाए जा सकते हैं. ऐसा करने से लोगों की सेहत बेहतर होगी, सामाजिक समानता और एकजुटता सुनिश्चित होगी, भारत का विकास तेज़ होगा (आंशिक रूप से नई नौकरियों के सृजन के ज़रिए) और सक्षम सार्वजनिक सेवा के ज़रिए सरकार की वैधता बढ़ेगी.

दूसरा, भारत को महंगे बड़े-बड़े अस्पतालों पर निवेश करने के बदले अपनी प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं को निश्चित रूप से मज़बूत करना चाहिए. चूंकि भारत अभी भी काफ़ी हद तक गांवों का देश है, ऐसे में ग्रामीण इलाक़ों में उचित आकार के प्राथमिक देखभाल के क्लीनिक का नेटवर्क बनाना चाहिए और उन्हें चलाना चाहिए. भारत की बेहद योग्यता प्राप्त स्वास्थ्य सेवा और आकर्षक तकनीकी/आईटी उद्योग को मिलजुल कर तलाश करना चाहिए कि किस तरह प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को हर भारतीय तक पहुंचाया जा सकता है. इस तरह की संभावना की तलाश करते समय कोविड-19 के युग में घर पर आइसोलेशन के दौरान स्वास्थ्य जांच और निगरानी में तकनीक के इस्तेमाल पर ज़रूर विचार करना चाहिए. इसका नतीजा दुनिया की आबादी के पांचवें हिस्से के लिए बेहतर स्वास्थ्य के साथ-साथ भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों जैसे अस्पताल के साथ प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा का एकीकरण या इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड के निर्यात का अवसर होगा. जिस तरह क्यूबा कूटनीति, डॉलर और सॉफ्ट पावर के लिए डॉक्टर का निर्यात करता है, उसी तरह भारत भी हेल्थकेयर मैनेजमेंट और डिजिटल हेल्थ को अफ्रीका महादेश और ब्राज़ील या इंडोनेशिया जैसे ज़्यादा आबादी वाले देशों में निर्यात कर सकता है.

भारत दुनिया के लिए कितना महत्वपूर्ण

तीसरा, भारत में दवा बनाने वाली कंपनियां “मेक इन इंडिया” की संस्कृति के आसपास वैल्यू चेन में आवश्यक रूप से आगे बढ़ें. ये पेटेंट होने वाले असली रिसर्च के रास्ते के बदले कोविड-19 की वजह से आए महत्वपूर्ण बदलाव के उपयुक्त हो सकता है. बड़े पैमाने पर उत्पादन की अर्थव्यवस्था बनाने और क़ीमत को और भी कम करने के लिए उत्पादन क्षमता ज़रूर बढ़ानी चाहिए. इसके अतिरिक्त कारखाने इतने लचकदार ज़रूर होने चाहिए कि वो संकट की परिस्थितियों में बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए जल्द ख़ुद को तैयार कर सकें जैसे कि वायरस के नए वेरिएंट या मौसम में बदलाव के अनुसार वैक्सीन का उत्पादन. भारत दुनिया के लिए कितना महत्वपूर्ण है, इसका पता इस तथ्य से लगता है कि अमेरिकी एफडीए (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) का भारत में भी एक दफ़्तर है और 2019 में भारत की दवा कंपनियों को अमेरिकी दवा कंपनियों के मुक़ाबले क्वालिटी के मामले में कम चेतावनियां मिली. वैश्विक स्वास्थ्य में भारत की भूमिका के विस्तार के लिए क्वालिटी को लेकर प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण है, ख़ास तौर पर तब जब बायोसिमिलर बाज़ार (उच्च क्वालिटी की जेनरिक दवाई का बाज़ार जो 2024 तक 27 अरब अमेरिकी डॉलर का होने का अनुमान है) में जा रहे हैं, दूसरे उभरते बाज़ारों को तकनीक का हस्तांतरण कर रहे हैं या कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग के ज़रिए बड़ी दवा कंपनियों की मदद कर रहे हैं. लेकिन सावधानी ज़रूर बरतनी चाहिए: भारत की कंपनियों के लिए वैश्विक तौर पर महत्वपूर्ण भूमिका का मतलब है काम-काज में नाकामी की कम आशंका, विविध सप्लाई चेन और भौगोलिक तौर पर अलग-अलग जगह फैली फैक्ट्री का महत्वपूर्ण होना.

भारत अभी भी काफ़ी हद तक गांवों का देश है, ऐसे में ग्रामीण इलाक़ों में उचित आकार के प्राथमिक देखभाल के क्लिनिक का नेटवर्क बनाना चाहिए और उन्हें चलाना चाहिए. 

आख़िर में, वैश्विक स्वास्थ्य को लेकर भारत के नेतृत्व को अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट प्रणाली में सुधार के क्षेत्र में उसके योगदान के ज़रिए भी मापा जा सकता है. वैसे तो बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) और प्रतिस्पर्धा सार्वजनिक भलाई के लिए वांछनीय हैं लेकिन इनकी वजह से एक पक्ष को नुक़सान हो सकता है. इनसे लोगों के जीवन पर असर पड़ता है, लोगों की सेहत प्रभावित होती है और एक नव-उपनिवेशवादी तरीक़े से पूंजी ग़रीब से अमीर देशों की तरफ़ जाती है.[3] कोविड-19 इस तरह के नये नियमों के लिए एक विशिष्ट अवसर प्रस्तुत करता है जिसका सहारा भारतीय राजनेता, राजनयिक और तकनीकी नेतृत्व बनेगा. भारत के अनुभव, विशेषज्ञता और आर्थिक पहुंच को देखते हुए उसे वैश्विक आईपीआर व्यवस्था के कुछ नियमों को फिर से लिखने में हर हाल में नेतृत्व वाली भूमिका लेनी चाहिए. इनोवेशन, प्रतिस्पर्धा और कड़ी मेहनत को हमेशा पुरस्कृत करना चाहिए लेकिन उस तरीक़े से कि वो बाक़ी दुनिया के लिए संतोषजनक और टिकाऊ हो. वैश्विक आईपीआर व्यवस्था को मज़बूत करने से दुनिया भर में लोगों की सेहत को मदद मिलेगी और इससे दूसरे कम गति से बढ़ने वाले प्रजाति स्तर के वैश्विक स्वास्थ्य ख़तरों जैसे जलवायु परिवर्तन या सूक्ष्मजीव के ख़िलाफ़ प्रतिरोध में विज्ञान की नींव खड़ी की जा सकेगी. दक्षिण अफ्रीका के साथ भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सामने कोविड से जुड़ी वैक्सीन, दवाई और तकनीक पर पेटेंट अधिकार में छूट देने के प्रस्ताव को प्रायोजित किया है. वैसे तो प्रस्ताव पर अभी भी डब्ल्यूटीओ में चर्चा हो रही है लेकिन ये वैश्विक स्वास्थ्य समानता को बढ़ावा देने में भारत की प्रतिबद्धता को दिखाता है.

भारत दुनिया के लिए कितना महत्वपूर्ण है, इसका पता इस तथ्य से लगता है कि अमेरिकी एफडीए (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) का भारत में भी एक दफ़्तर है और 2019 में भारत की दवा कंपनियों को अमेरिकी दवा कंपनियों के मुक़ाबले क्वालिटी के मामले में कम चेतावनियां मिली.

भारत की वैश्विक महत्वाकांक्षाएं हैं और ये महत्वाकांक्षाएं कोविड-19 महामारी और उसके बाद की परिस्थितियों में वैश्विक स्वास्थ्य जवाबदेही के साथ आती हैं. भारत हर हाल में वैश्विक महाशक्ति के रूप में अपनी महत्वाकांक्षाओं को अपनी जवाबदेही के साथ मिलाए और दुनिया को भारत पर भरोसा है कि वो बेहतर प्रदर्शन करेगा.


[1]  Mol R, Singh B, Chattu VK, Kaur J, Singh B. India’s Health Diplomacy as a Soft Power Tool towards Africa: Humanitarian and Geopolitical Analysis. Journal of Asian and African Studies. September 2021. doi:10.1177/00219096211039539

[2] Kaushalendra Kumar, Ashish Singh, Santosh Kumar, Faujdar Ram, Abhishek Singh, Usha Ram, Joel Negin and Paul R. Kowal, “Socio-Economic Differentials in Impoverishment Effects of Out-of-Pocket Health Expenditure in China and India: Evidence from WHO SAGE,” PLOS One 10, no. 9 (13 August 2015)

[3] Keith Aoki, “Neocolonialism, Anticommons Property, and Biopiracy in the (Not-so-Brave) New World Order of International Intellectual Property Protection,” Indiana Journal of Global Legal Studies 6, no. 1 (Fall 1998).

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