‘अपरिहार्य परिस्थितियों’ के चलते भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की 2-3 सितंबर को निर्धारित श्रीलंका यात्रा, अंतिम समय में स्थगित कर दी गई. उधर, अक्टूबर में कोलंबो बंदरगाह में डेरा डालने के लिए चीन के दूसरे ‘जासूसी जहाज़’ के आने की संभावना बन गई है. कुल मिलाकर हो सकता है कि इन दोनों परिस्थितियों ने एशिया के दो दिग्गजों के साथ मेज़बान देश यानी श्रीलंका के रणनीतिक समीकरणों को गड़बड़ कर दिया हो! ये हालात ऐसे समय में बने हैं जब हिंद महासागर का ये द्वीप देश इन झटकों को बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है. हक़ीक़त ये है कि श्रीलंका को अपनी अस्थिर अर्थव्यवस्था को व्यवस्थित करने के लिए भारत और चीन के साथ-साथ तमाम अन्य देशों की ज़रूरत है. इस कड़ी में जापान जैसी एक अन्य एशियाई ताक़त और निश्चित रूप से अमेरिका से शुरू होने वाले पश्चिमी सहयोगी देश शामिल हैं. इससे पहले कि श्रीलंका, हिंद महासागर के मामलों और भारत-चीन के बीच चल रही तनातनी पर कोई रणनीतिक रुख़ ले सके, उसे ऊपर बताई गई सारी क़वायद (अगर वो वाकई ऐसा कर सके) पूरी करनी होगी.
“ये यात्रा… श्रीलंका के साथ मौजूदा मधुर और मैत्रीपूर्ण संबंधों को आगे बढ़ाने में भारत की निरंतर प्रतिबद्धता को दोहराएगी. ये दोनों देशों के बीच दोस्ती के मज़बूत बंधन बनाने में एक अहम युगांतकारी घटना साबित होगी.”
रक्षा मंत्री की प्रस्तावित यात्रा से पहले भारत ने इसे द्विपक्षीय रक्षा सहयोग में एक ‘अहम पड़ाव’ क़रार दिया था. इसी हिसाब से राजनाथ सिंह को श्रीलंकाई राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे (जो संविधान के तहत देश के रक्षा मंत्री भी हैं) और प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने से मिलना था. ज़ाहिर है, इस मुलाक़ात में वे द्विपक्षीय रक्षा संबंधों के सभी पहलुओं की समीक्षा करते. यात्रा की घोषणा किए जाते वक़्त नई दिल्ली में रक्षा मंत्रालय की एक समाचार विज्ञप्ति में कहा गया था कि “ये यात्रा… श्रीलंका के साथ मौजूदा मधुर और मैत्रीपूर्ण संबंधों को आगे बढ़ाने में भारत की निरंतर प्रतिबद्धता को दोहराएगी. ये दोनों देशों के बीच दोस्ती के मज़बूत बंधन बनाने में एक अहम युगांतकारी घटना साबित होगी.”
मंत्रालय ने आगे कहा था कि “बैठकों के दौरान श्रीलंका के साथ भारत के रक्षा संबंधों के संपूर्ण विस्तार की समीक्षा की जाएगी. रक्षा मंत्री मध्य श्रीलंका में नुवारा एलिया और देश के पूर्वी हिस्से में स्थित त्रिंकोमाली का भी दौरा करेंगे.” कोलंबो के दैनिक अख़बार डेली मिरर के मुताबिक राजनाथ सिंह को ‘त्रिंकोमाली का दौरा करना था, जहां भारत ने रणनीतिक निवेश शुरू किया है, जिसका अंतिम लक्ष्य पेट्रोलियम उत्पादों के हस्तांतरण के लिए दोनों देशों को जोड़ने वाली पाइपलान स्थापित करना है… ये यात्रा इसलिए अहम है क्योंकि ये श्रीलंका और भारत के बीच कनेक्टिविटी परियोजनाओं को लागू करने को लेकर शीर्ष स्तर पर सहमति के संदर्भ में हो रही है. इनमें एक लैंड ब्रिज और राष्ट्रीय ग्रिडों का इंटरकनेक्शन शामिल हैं’. जैसा कि श्रीलंका की मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है जनवरी 2022 में भारत ने द्वितीय विश्व युद्ध काल के ‘तेल टैंकर फार्मों’ को संयुक्त रूप से दोबारा विकसित करने के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
इसी प्रकार, हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को श्रीलंकाई राष्ट्रपति विक्रमसिंघे समेत वहां के कई अन्य गणमान्य लोगों की INS दिल्ली पर मेज़बानी करनी थी. ये स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और तैयार किया गया भारतीय नौसेना का पहला निर्देशित मिसाइल विध्वंसक है. ग़ौरतलब है कि INS दिल्ली 1 सितंबर को दो दिन के दौरे पर कोलंबो पहुंचा था. भारतीय नौसेना ने एक बयान में कहा था कि, “इसके आगे भारत की ‘आरोग्य मैत्री’ पहल के तहत मित्र देशों को गुणवत्तापूर्ण मेडिकल आपूर्तियां मुहैया कराने की क़वायद में रक्षा मंत्री श्रीलंका को अत्याधुनिक मेडिकल ब्रिक्स सुपुर्द करेंगे, जिन्हें प्रोजेक्ट भीष्म (सहयोग हित और मैत्री के लिए भारत स्वास्थ्य पहल) के तहत स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है.”
कोलंबो में भारतीय उच्चायोग द्वारा जारी प्रेस वक्तव्य के मुताबिक, हालांकि मंत्रिस्तरीय यात्रा स्थगित कर दी गई है और यह पारस्परिक रूप से सुविधाजनक समय पर होगी, लेकिन नौसेना का जहाज़ तय कार्यक्रम के अनुसार ही रवाना हुआ. श्रीलंका से वापसी से पहले INS दिल्ली ने SLNS विजयबाहु के साथ मिलकर एक सफल पासेज एक्सरसाइज़ (PASSEX) को अंजाम दिया. इसमें संचार प्रशिक्षण और सामरिक पैंतरेबाज़ी से जुड़े प्रशिक्षण अभ्यास शामिल थे. संयोगवश, उच्चायोग के बयान में ना तो कोलंबो के बाहर के स्थानों पर किसी मंत्रिस्तरीय यात्रा का ज़िक्र था, और ना ही INS दिल्ली पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और श्रीलंका के गणमान्य व्यक्तियों के कार्यक्रम को लेकर किसी तरह की चर्चा की गई थी.
जासूसी मिशन या डूबे जहाज़ की खोज के लिए?
राजनाथ सिंह की प्रस्तावित यात्रा और अंतिम समय में उसका स्थगन, दोनों के लिए चीनी ‘जासूसी जहाज़’ को इजाज़त देने पर श्रीलंका की स्थिति/पैंतरे के प्रति भारत की संवेदनशीलता को कारण बताया गया है. ग़ौरतलब है कि पिछले 12 से अधिक महीनों में श्रीलंका के बंदरगाह पर डेरा डालने वाला ये चीन का दूसरा ‘जासूसी जहाज़’ होगा. श्रीलंकाई रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में पुष्टि की है कि उन्हें इस संबंध में चीन से अनुरोध प्राप्त हुआ है. पहले जहाज़ के डेरा डालने और मौजूदा जहाज़ के पहुंचने में एक अहम अंतर ये है कि युआन वांग-5 श्रीलंका के सबसे दक्षिणी छोर पर चीन के नियंत्रण वाले हंबनटोटा बंदरगाह पर खड़ा किया गया, जबकि शी यान-6 के कोलंबो बंदरगाह पर आने और वहीं रुकने की उम्मीद है.
पिछली बार की तरह चीन ने इस बात से इनकार किया है कि नया जहाज़ एक जासूसी मिशन पर है. चीन का कहना है कि ये जहाज़ एक दीर्घकालिक महासागरीय शोध अभियान का हिस्सा है, जिसका लक्ष्य 15वीं शताब्दी के चीनी जहाज़ एडमिरल झेंग हे के डूबे हुए अवशेषों का पता लगाना है. श्रीलंकाई रिपोर्टों के मुताबिक इस संबंध में द्विपक्षीय समझौते पर 2014 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की श्रीलंका यात्रा के दौरान तत्कालीन महिंदा राजपक्षे सरकार द्वारा दस्तख़त किए गए थे. मौजूदा राष्ट्रपति विक्रमसिंघे के 2015-19 के बीच प्रधानमंत्री रहते, पहले से ही तीन ऐसे सर्वेक्षण किए जा चुके थे. इस प्रकार ये चीनी ‘अनुसंधान पोत’ की इसी तरह के मि
ग़ौरतलब है कि पिछले 12 से अधिक महीनों में श्रीलंका के बंदरगाह पर डेरा डालने वाला ये चीन का दूसरा ‘जासूसी जहाज़’ होगा. श्रीलंकाई रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में पुष्टि की है कि उन्हें इस संबंध में चीन से अनुरोध प्राप्त हुआ है.
शन (युआन वांग-5 को छोड़कर) पर तीसरी यात्रा है. 2026 में मिशन-समझौता पूरा होने से पहले कम से कम एक और यात्रा बाक़ी है. इस मामले में चीन की दलील को श्रीलंका और ख़ुद चीन को छोड़कर, शायद ही कोई और देश मानने को तैयार है!
बहरहाल, कोलंबो से आने वाली मीडिया रिपोर्टों, ख़ासतौर से द आइलैंड में छपी ख़बरों में अब भी दावा किया गया है कि मूल समझौते में दो बार संशोधन होने के बाद शी यान-6, श्रीलंका की राष्ट्रीय जलीय अनुसंधान और विकास एजेंसी (NARA) के साथ साझा शोध में शामिल होगा. शी यान-6, 2026 तक पूर्ण होने वाले कुल पांच खोज अभियानों में से चौथे अभियान में शामिल होगा. संयोगवश, पूर्व के तीन सर्वेक्षणों में से एक के दौरान आख़िरकार एक जहाज़ का मलबा पाया गया था, लेकिन बाद में इनकी पहचान नॉर्वे के जहाज़ के हिस्सों के रूप में की गई. द आइलैंड अख़बार की रिपोर्ट में ये जानकारी दी गई थी. द आइलैंड में छपी इन रिपोर्टों के मुताबिक दोनों श्रीलंका और चीन, अध्ययन को आगे बढ़ाने और ‘परिचालन’ के क्षेत्र को व्यापक बनाने के लिए संयुक्त शोध केंद्र स्थापित करने पर सहमत हुए हैं. हालांकि, पिछले तीन सर्वेक्षण बिना किसी विवाद के पूरे हुए थे, लेकिन भारत द्वारा चीनी जहाज़ों की ऐसी यात्राओं पर चिंता व्यक्त किए जाने के कारण चौथे सर्वेक्षण ने जनता का ध्यान आकर्षित किया है. वैसे सूत्रों ने द आइलैंड को बताया है कि ये मसला शीर्ष स्तर पर विचाराधीन था, हालांकि, इसके साथ ही ये भी माना जा रहा था कि विक्रमसिंघे सरकार संपूर्ण रूप से झेंग हे परियोजना की समीक्षा कर रही थी.
इन रिपोर्टों के अनुसार ये बात अब भी साफ़ नहीं है कि श्रीलंका की ओर से हस्ताक्षर करने वालों ने अटॉर्नी-जनरल के कार्यालय से अनिवार्य मंज़ूरी हासिल की थी या नहीं. ख़बरों में ये भी बताया गया कि कैसे फ्रांस भी एक शोध सुविधा स्थापित करने में दिलचस्पी रखता था और कैसे श्रीलंका इस बात को लेकर तत्पर था कि फ्रांस द्वारा इसे त्रिंकोमाली में स्थापित किया जाना चाहिए. दरअसल श्रीलंका ये नहीं चाहता था कि राजधानी कोलंबो के करीब कोटेलावाला रक्षा विश्वविद्यालय (KDU) के नज़दीक ऐसी सुविधा स्थापित की जाए. संयोग की बात है कि हाल ही में फ्रांस के एक जासूसी जहाज़ ने कोलंबो हार्बर की यात्रा की, लेकिन इस ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया.
अंतर्निहित संकेत
अक्टूबर में चीनी जहाज़ को डेरा डालने की अनुमति देने पर श्रीलंकाई सरकार ने अब तक अपना रुख साफ़ नहीं किया है. भारतीय मीडिया का एक वर्ग लगातार दावा करता आ रहा है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की यात्रा को रद्द/स्थगित करना, भारत द्वारा चीनी जहाज़ शी यान-6 के मसले को लेकर श्रीलंका को संदेश देने का एक ‘महीन तरीक़ा‘ था. हालांकि, पिछले कई महीनों में भारत और श्रीलंका ने रक्षा सहयोग के अनेक स्तरों पर एक साथ मिलकर काम किया है.
मिसाल के तौर पर भारतीय वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वी आर चौधरी मई में श्रीलंका की आधिकारिक यात्रा पर गए थे. तब उन्होंने श्रीलंकाई वायु सेना के अध्यक्ष को AN-32 परिवहन विमान के प्रॉपेलर्स सौंपे थे. इसके बाद 15 अगस्त को भारत के स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय उच्चायुक्त गोपाल बागले ने भारतीय नौसेना के डोर्नियर फिक्स्ड-विंग टोही विमान की दूसरी इकाई श्रीलंका के सुपुर्द कर दी. ग़ौरतलब है कि श्रीलंका ने भारत से ऐसे दो विमान देने का अनुरोध किया था. भारतीय उच्चायोग के बयान में बताया गया कि ये विमान “श्रीलंका की निगरानी क्षमता में तेज़ी से वृद्धि करेगा और श्रीलंकाई वायु सेना की ताक़त को कई गुना बढ़ा देगा.” श्रीलंकाई मीडिया रिपोर्टों में उनके रक्षा मंत्रालय के हवाले से ये भी बताया गया है कि कैसे, पिछले साल, हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित दक्षिण एशिया के इन दो पड़ोसी देशों ने दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. इस क़रार से श्रीलंका को मुफ़्त में फ्लोटिंग डॉक की सुविधा मिल सकेगी, हालांकि दोनों में से किसी भी पक्ष ने कभी भी इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं की.
दुख की बात ये है कि हमारी आर्थिक बदहाली और ऋणग्रस्त स्थिति के चलते हमारी नाज़ुक स्थिति को जानने के बावजूद भारत ये उम्मीद करता है कि श्रीलंका, चीनी जहाज़ों को अपने बंदरगाहों में प्रवेश करने से रोक दे.
द्विपक्षीय रक्षा और सुरक्षा सहयोग को उच्च स्तर पर ले जाते हुए इस साल जून में भारतीय उच्चायोग ने कोलंबो में पहले भारत-श्रीलंका रक्षा सेमिनार और प्रदर्शनी का आयोजन किया. चेन्नई स्थित अख़बार द हिंदू के मुताबिक इस क़वायद का मक़सद दोनों देशों के बीच डिफेंस सेक्टर में सहयोग और सहभागिता के नए क्षेत्रों को “बढ़ावा देना और उनकी पहचान करना” था. भारत के नेशनल डिफेंस कॉलेज (NDC) और श्रीलंकाई सशस्त्र बलों की स्वर्ण जयंती के अवसर पर हाल ही में कोलंबो में हुए एक अन्य कार्यक्रम में भारतीय उच्चायुक्त गोपाल बागले ने भारत की ‘पड़ोसी प्रथम नीति’ के अनुरूप श्रीलंका के क्षमता-निर्माण प्रयासों को आगे बढ़ाने की दिशा में हिंदुस्तान की प्रतिबद्धता दोहराई. उन्होंने बताया कि कैसे दोनों सशस्त्र बलों के बीच प्रशिक्षण गतिविधियों ने दोनों देशों की सशस्त्र सेवाओं के बीच भाईचारे और इंटर-ऑपरेबिलिटी की भावना भर दी है और उनके मज़बूत संबंधों की बुनियाद रखी है.
दोनों की सद्भावना
कोलंबो स्थित अख़बार डेली मिरर ने एक संपादकीय लेख में भारत, चीन और श्रीलंका से जुड़ी ‘कूटनीतिक बिसात’ का ज़िक्र करते हुए बताया है कि कैसे भारत ने श्रीलंका के लिए 4 अरब अमेरिकी डॉलर का सहायता पैकेज बढ़ाया और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से श्रीलंका द्वारा लिए गए 2.9 अरब अमेरिकी डॉलर के कर्ज़ को भी तत्परता से आर्थिक समर्थन दे दिया. दूसरी ओर, चीन 7.4 अरब अमेरिकी डॉलर के योगदान के साथ श्रीलंका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता बना रहा. ये रकम श्रीलंका के सार्वजनिक विदेशी ऋण का तक़रीबन पांचवां हिस्सा है. चीन तो मौजूदा ऋण चुकाने के लिए बस नए कर्ज़ की पेशकश कर रहा था; हालांकि, बाद में, ‘अन्य अंतरराष्ट्रीय ऋणदाताओं को खुश करने और IMF सुविधा के लिए हमारे आवेदन को संभव बनाने के लिए’ ऋण को पुनर्निर्धारित करने पर सहमति बनी.
संपादकीय में शी यान-6 प्रकरण की चर्चा की गई और बताया गया कि कैसे चीन ने दावा किया है कि ये केवल एक अनुसंधान पोत है लेकिन ‘हमारे दिग्गज पड़ोसी’ भारत ने इस जहाज़ के प्रवेश पर एतराज़ जताया है. संपादकीय में आगे कहा गया है, ”हालांकि, दुख की बात ये है कि हमारी आर्थिक बदहाली और ऋणग्रस्त स्थिति के चलते हमारी नाज़ुक स्थिति को जानने के बावजूद भारत ये उम्मीद करता है कि श्रीलंका, चीनी जहाज़ों को अपने बंदरगाहों में प्रवेश करने से रोक दे,” संपादकीय में ये भी कहा गया है कि ”ऐसा पहली बार नहीं है जब भारत ने श्रीलंका सरकार से ऐसी मांग की है.”
हालांकि, संपादकीय में कहा गया है कि श्रीलंका का ‘मौजूदा नेतृत्व अतीत के कालखंड में इन संकटपूर्ण स्थितियों से सफलतापूर्वक निपटने में सक्षम रहा था.’ इसमें उम्मीद जताई गई कि देश का नेतृत्व ‘चीन या भारत की संवेदनशीलताओं को चोट पहुंचाए बिना वर्तमान संकट से निपटने में सक्षम होगा, क्योंकि दोनों देशों की सद्भावना हमारे लिए अहम है.’
सत्या मूर्ति चेन्नई स्थित पॉलिसी एनालिस्ट और राजनीतिक टीकाकार हैं
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.