Author : Manoj Joshi

Published on Aug 21, 2024 Updated 0 Hours ago

चीन के साथ भारत अपने संबंधों को नए सिरे से स्थापित करने को तैयार है, लेकिन पहले इसके लिए पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद के समाधान की दिशा में कुछ प्रगति होना ज़रूरी है.

भारत-चीन संबंध: अब फैसला बीजिंग की हाथों में है!

पिछले कुछ समय से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि चीन के साथ भारत अपने रिश्तों में नए सिरे से बदलाव चाहता है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नज़र नहीं आ रहे हैं. इसे लेकर भारत के आधिकारिक रुख़ को विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर कई बार व्यक्त कर चुके हैं. भारत का स्पष्ट मत है कि जब तक पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद का अंतिम समाधान नहीं हो जाता, तब तक संबंध सुधारने की दिशा में आगे बढ़ना मुश्किल है.

 

पिछले महीने वित्त मंत्रालय ने अपने वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण में चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह बढ़ाने की बात कही थी. वित्त मंत्रालय का मानना है कि ऐसा करने से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और इसके निर्यात में भारत की भागीदारी बढ़ेगी. हालांकि ऐसा कहना जाना काफ़ी आश्चर्यजनक था क्योंकि 2020 में पूर्वी लद्दाख में तनाव की वजह से भारत ने चीन से आने वाले एफडीआई पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे.

 

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि यदि भारत को प्रचलित "चीन प्लस वन" रणनीति का फायदा उठाना है, तो उसे या तो चीनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में एकीकृत होना होगा या फिर "अमेरिका में भारत के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए" चीन से आने वाले एफडीआई का उसी तरह इस्तेमाल करना होगा, जैसा पूर्वी एशियाई देशों की अर्थव्यस्थाएं अतीत में कर चुकी हैं.  इसमें कहा गया है कि "चीन से सामान आयात करके और उसके बाद उसे यहां से निर्यात करना खास फायदेमंद नहीं है. ज़्यादा फायदा इस बात में है कि चीन की कंपनियां भारत में निवेश करें और फिर यहां उत्पादित सामान को निर्यात किया जाए"

यदि भारत को प्रचलित "चीन प्लस वन" रणनीति का फायदा उठाना है, तो उसे या तो चीनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में एकीकृत होना होगा या फिर "अमेरिका में भारत के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए" चीन से आने वाले एफडीआई का उसी तरह इस्तेमाल करना होगा, जैसा पूर्वी एशियाई देशों की अर्थव्यस्थाएं अतीत में कर चुकी हैं.

वित्त मंत्रालय के इन विचारों का चीन के साथ मौजूदा नीति पर प्रभाव पड़ता है या नहीं, ये देखने वाली बात होगी. लेकिन ऊपरी तौर पर देखें तो फिलहाल बहुत कम बदलाव दिख रहा है. दोनों पक्ष अपने-अपने रुख़ पर कायम हैं. भारत इस बात पर ज़ोर दे रहा है कि संबंधों को सामान्य बनाने के लिए पहले पूर्वी लद्दाख में यथास्थिति बहाल की जाए, जबकि चीन इस बात पर ज़ोर दे रहा है कि वहां कोई वास्तविक समस्या नहीं है. चीन का मानना है कि भारत को सीमा विवाद से जुड़े मुद्दों को अलग रखना चाहिए और द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने पर काम करना चाहिए.

 

जुलाई की शुरुआत में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की मीटिंग के मौके पर चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की थी. इसके बाद जयशंकर ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा कि उन्होंने और चीनी विदेश मंत्री ने "सीमावर्ती क्षेत्रों में शेष मुद्दों के जल्द समाधान पर चर्चा की". दोनों मंत्रियों ने "विवाद के समाधान के लिए राजनयिक और सैन्य चैनलों के माध्यम से कोशिशों को दोगुना करने" पर भी सहमति जताई थी. उन्होंने कहा कि "एलएसी का सम्मान करना और सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और सौहार्द सुनिश्चित करना आवश्यक है". जयशंकर ने कहा कि अच्छे संबंधों का मंत्र "तीन परस्पर संबंध" हैं. ये हैं "परस्पर सम्मान, पारस्परिक संवेदनशीलता और पारस्परिक हित".

 

वाजिब नज़रिया

 

विदेश मंत्रालय की एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि दोनों मंत्री इस बात पर सहमत हुए कि "सीमा पर मौजूदा विवाद की स्थिति का लंबा खिंचना किसी भी पक्ष के हित में नहीं है" इसमें कहा गया है कि जयशंकर ने "अतीत में दोनों सरकारों के बीच हुए प्रासंगिक द्विपक्षीय समझौतों, प्रोटोकॉल और आपसी समझ का पूरी तरह से पालन करने के महत्व पर ज़ोर".

शीर्ष स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल 2024 में न्यूज़वीक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में कहा था कि उनके विचार में चीन के साथ संबंध "महत्वपूर्ण और सार्थक" थे.

तीन हफ्ते बाद दोनों नेताओं के बीच लाओस की राजधानी वियनतियाने में फिर मुलाकात हुई. विदेश मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि उनकी चर्चाएं "द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करने और पुनर्निर्माण करने के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शेष मुद्दों का जल्द समाधान" खोजने की ज़रूरत पर केंद्रित थीं. यहां भी "तीन परस्पर" के महत्व को दोहराया गया.

 

सीमा विवाद को लेकर भारतीय और चीन के रुख़ में कितना अंतर है, ये बैठक के बाद जारी चीनी प्रेस विज्ञप्ति से स्पष्ट तौर पर दिखा. इस प्रेस रिलीज़ में सीमा के मुद्दे को नज़रअंदाज़ कर दिया गया था और कहा गया था कि "दोनों पक्षों को आपसी मतभेदों और तनावों से ऊपर उठकर तर्कसंगत दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जिससे चीन-भारत संबंधों में सुधार हो. ये स्थिर बने रहें और इनका सतत विकास हो".

 

प्रेस विज्ञप्ति में भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर के हवाले से कहा गया कि दोनों पक्षों के "व्यापक हित" हैं और इन हितों पर "सीमावर्ती क्षेत्रों में विवाद से पैदा हुई स्थिति की छाया पड़ रही है". लेकिन भारतीय पक्ष "मतभेदों का समाधान खोजने के लिए ऐतिहासिक, रणनीतिक और खुला दृष्टिकोण अपनाने" के लिए तैयार था.

 

शीर्ष स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल 2024 में न्यूज़वीक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में कहा था कि उनके विचार में चीन के साथ संबंध "महत्वपूर्ण और सार्थक" थे. मोदी ने आगे कहा, ये उनका "विश्वास है कि हमें अपनी सीमाओं पर लंबे समय से चली आ रही विवाद स्थिति पर तत्काल काम करने की ज़रूरत है, जिससे द्विपक्षीय बातचीत में बनी असामान्यता को पीछे छोड़ा जा सके". प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें आशा और विश्वास है कि "राजनयिक और सैन्य स्तरों पर सकारात्मक और रचनात्मक द्विपक्षीय जुड़ाव के माध्यम से दोनों देश अपनी सीमाओं पर शांति और स्थिरता बहाल करने और उसे बनाए रखने में सक्षम होंगे".

 

पूर्वी लद्दाख में सैन्य और राजनयिक बातचीत के ज़रिए दोनों देश उन छह क्षेत्रों में से तीन में "नो पेट्रोलिंग ज़ोन" बनाने में सक्षम हुए हैं, जिन्हें चीन ने 2020 में अवरुद्ध कर दिया था और भारतीय सेना को गश्त करने से रोका था. ये क्षेत्र हैं कुगरांग नदी घाटी, गोगरा और पैंगोंग त्सो. समझौते के एक हिस्से के रूप में भारतीय सैनिकों ने स्पैंगगुर त्सो पर नज़र रखने वाली कैलाश पहाड़ियों को खाली कर दिया..

 

लेकिन दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों में चीन की नाकेबंदी अभी भी बनी हुई है. उत्तर में डेपसांग उभार और दक्षिण में चार्डिंग-निंगलुंग नाला क्षेत्र. फिलहाल दोनों देशों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ पर्याप्त अतिरिक्त बल तैनात किया हुआ है. पूर्वी लद्दाख में तनाव तभी कम हो सकता है, जब दोनों देशों की सेनाएं जून 2020 से पहले वाली स्थितियों में वापस चले जाएं.

चीन अब अमेरिका को पीछे छोड़कर भारत का सबसे सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है. हालांकि इसमें काफी व्यापार असंतुलन है. भारत सिर्फ 16.67 बिलियन डॉलर का सामान निर्यात करता था और 101.7 बिलियन डॉलर का आयात करता है.

इस मुद्दे पर चर्चा के लिए कोर कमांडर स्तर की 21वीं बैठक 2024 में चुशुल-मोल्डो बॉर्डर के मीटिंग प्वाइंट पर हुई. इसी के समानांतर परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) के तहत अधिकारियों की 29वीं बैठक 27 मार्च को बीजिंग में हुई. सीमा विवाद के समाधान के उद्देश्य से इसके बाद कोई और संस्थागत बैठक नहीं हुई है. हालांकि जुलाई 2024 में अस्ताना में हुई एससीओ की बैठक में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने उम्मीद जताई कि डब्ल्यूएमसीसी की बैठक जल्द ही होगी.

 

गलवान पर हमला

 

ये बात आज भी रहस्य बनी हुई है कि जून 2020 में चीन ने गलवान घाटी में कार्रवाई क्यों की? उसका मक़सद क्या था? 2019 में शी जिनपिंग ने चेन्नई में अपने दूसरे अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. इसने ये संकेत दिए कि आने वाले दिनों में दोनों देशों के संबंध अच्छे हो सकते हैं. 2019 वही साल था, जब लेनदेन की संख्या (527) के हिसाब से भारत में चीनी निवेश अपने चरम पर था. हालांकि, चीनी निवेश का उच्चतम स्तर 2015 में दिखा, जब ये 859 मिलियन डॉलर था.

 

लेकिन फिर अगले ही साल यानी 2020 में चीन ने 1996 के सैन्य विश्वास निर्माण समझौते का उल्लंघन किया. चीन ने अचानक अपनी सेना की लामबंदी की और भारतीय सैनिकों को एलएसी के कुछ हिस्सों में गश्त करने से रोकने के लिए पूर्वी लद्दाख में कई क्षेत्रों में नाकेबंदी कर दी. हालांकि चीन ने किसी भारतीय चौकी पर हमला नहीं किया. गलवान घाटी, जहां 20 भारतीय सैनिक मारे गए, की घटना कोई योजनाबद्ध कार्रवाई नहीं बल्कि हालात के नियंत्रण से बाहर होने का नतीजा थी.

 

इस हमले के जवाब में भारतीय प्रतिक्रिया भी त्वरित और सख़्त थी. भारत ने सैकड़ों चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही प्रेस नोट 3 भी जारी किया. इसने भारत के साथ ज़मीनी सीमा साझा करने वाले देशों के निवेश पर प्रतिबंध लगा दिया. हालांकि प्रत्यक्ष तौर पर इसका उद्देश्य "कोविड-19 महामारी के कारण भारतीय कंपनियों के अवसरवादी अधिग्रहण" को रोकना था, लेकिन इसका असली प्रभाव चीन से आने वाले एफडीआई पर दिखा. संयोग ये था कि इसी समय चीन ने पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ की थी. मार्च 2022 में संसद में पूछे गए एक सवाल से पता चला कि पिछले दो साल में एफडीआई के 347 आवेदन प्राप्त हुए थे. इनमें से 66 को मंजूरी दे दी गई और 193 को खारिज़ कर दिया गया.

 

इस सबके बावजूद भारत और चीन व्यापार बढ़ता रहा. 2023-24 में ये 118.4 अरब डॉलर तक पहुंच गया. चीन अब अमेरिका को पीछे छोड़कर भारत का सबसे सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है. हालांकि इसमें काफी व्यापार असंतुलन है. भारत सिर्फ 16.67 बिलियन डॉलर का सामान निर्यात करता था और 101.7 बिलियन डॉलर का आयात करता है. भारत टेलीकॉम पार्ट्स, फार्मास्युटिकल सामग्री और उन्नत प्रौद्योगिकी घटकों जैसे महत्वपूर्ण उत्पादों के लिए चीन पर बहुत ज़्यादा निर्भर है.

 

इस साल के आर्थिक सर्वेक्षण में जिस तरह चीन से एफडीआई बढ़ाने की बात कही गई है, उससे सरकार ने भी अप्रत्यक्ष तौर पर ये स्वीकार कर लिया है कि भारत के विनिर्माण उद्योगों को मजबूत करने और उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए 2020 में शुरू की गई प्रोडक्शन लिंक्ड इन्वेस्टमेंट (पीएलआई) योजना का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा है.

 

ऐसे में ये कहा जा सकता है कि भारत के साथ रिश्तों के मामले में गेंद फिलहाल चीन के पाले में है. भारत ने ये स्पष्ट कर दिया है कि वो पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद का समाधान होने तक संबंधों को सामान्य बनाने का इच्छुक नहीं है. चीन बेहतर संबंधों की दुहाई देते हुए भारत की इस मांग को लगातार नज़रअंदाज़ कर रहा है. इस बीच दोनों देशों ने एलएसी पर अतिरिक्त सेना के साथ-साथ सीमा के दोनों तरफ  अपना जमावड़ा जारी रखा है. 



मनोज जोशी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में विशिष्ट फेलो हैं

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