भारत-मध्य एशिया सम्मेलन: व्यापक हो चुके पड़ोस में आकार लेती भू-राजनीति
भारत और मध्य एशियाई गणराज्यों ने मज़बूत रणनीतिक साझेदारी के एक नए युग में प्रवेश किया है जो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में 27 जनवरी 2022 को पहली बार आयोजित की गई वर्चुअल शिखर सम्मेलन की क़ामयाबी में नज़र आता है. इस कार्यक्रम में कज़ाकिस्तान गणराज्य, किर्ग़िस्तान, ताज़िकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने हिस्सा लिया. पहला भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन ऐसे वक़्त में हुआ जब भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना के 30 वर्ष भी पूरे हो गए, लिहाज़ा यह ऐतिहासिक घटनाक्रम है जो दोनों पक्षों के नेताओं के व्यापक और स्थायी संबधों को नई ऊंचाइयों तक ले जाने को लेकर दृढ़ संकल्प को दर्शाता है. यह सम्मेलन नई दिल्ली की पश्चिमी सीमा में स्थिरता, सुरक्षा और भू-सामरिक संतुलन का निर्धारण करने में दूरगामी प्रभावों के लिए ज़िम्मेदार है, जिससे इस क्षेत्र में उभरती चुनौतियों को दृढ़ संकल्प के साथ संबोधित करने में वैश्विक शासन में संशोधित बहुआयामी और पारदर्शिता की भावना के साथ भारत की “व्यापक हो चुकी पड़ोस नीति” का असर पता चलता है.
पिछले कुछ वर्षों से भारत और मध्य एशियाई मुल्क रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाते रहे हैं जिसके पीछे मक़सद उभरती चुनौतियों से निपटना है जो परस्पर भरोसे, समझदारी और दोनों पक्षों के लोगों की सुरक्षा और विकास की दृष्टि पर आधारित है.
पिछले कुछ वर्षों से भारत और मध्य एशियाई मुल्क रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाते रहे हैं जिसके पीछे मक़सद उभरती चुनौतियों से निपटना है जो परस्पर भरोसे, समझदारी और दोनों पक्षों के लोगों की सुरक्षा और विकास की दृष्टि पर आधारित है. भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच रिश्ते तब और बेहतर हुए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई 2015 में एक के बाद एक कर इस क्षेत्र के पांचों देशों का दौरा किया और इस तरह उभरती हुई साझेदारी के रणनीतिक महत्व को रेखांकित किया साथ ही इस क्षेत्र के ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्ते को भी पुनर्जीवित किया. इस तरह की साझेदारी को जनवरी 2022 के सम्मेलन के दौरान और बढ़ावा मिला जब नेताओं ने रक्षा और सुरक्षा, व्यापार और कनेक्टिविटी, विकास के लिए साझेदारी, स्वास्थ्य और हेल्थकेयर क्षेत्र में समाझेदारी, ऊर्जा सुरक्षा, सांस्कृतिक और लोगों के बीच आपसी संबंध के लिए आपसी भरोसे के प्रस्ताव को मज़बूत करने पर चर्चा की. इतना ही नहीं इन नेताओं ने एक शांत, सुरक्षित और स्थिर अफ़ग़ानिस्तान के लिए भी एकस्वर में मदद की बात की जिसके तहत इस क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता के लिए अफ़ग़ानिस्तान में समावेशी सरकार की वकालत की गई. भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच सहयोग और संबंध के बढ़ते दायरे को ध्यान में रखते हुए यह तर्क दिया जा सकता है कि दोनों ही पक्ष नई दिल्ली के पश्चिमी पड़ोसियों के क्षेत्र में संतुलन स्थापित करने के लिए यहां की भू-रणनीतिक स्थिति को बदलने के लिए एक साथ काम करने को इच्छुक हैं, जिसका वैश्विक स्तर पर लंबे समय में काफी असर होने वाला है.
हाल में हुए सम्मेलन ने आने वाले दिनों के महत्वाकांक्षी रोडमैप की ओर इशारा किया है और साथ में रणनीतिक सहयोग को और बढ़ाने के लिए एक संपूर्ण एक्शन प्लान की ओर ध्यान दिलाया है. नई दिल्ली में इंडिया सेंट्रल एशिया सेंटर को स्थापित करने का प्रस्ताव जो कि एक साल में दो बार आयोजित होने वाले भारत-मध्य एशिया सम्मेलन के लिए सचिवालय की तरह काम करेगा. यह संस्थागत सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक ऐतिहासिक फैसला है. इतना ही नहीं यह बढ़ी हुई सक्रियता इस बात से भी साफ होती है कि इन देशों के सांसदों के बीच बातचीत और मंत्रणा को और बढ़ावा दिया जा सके इसके लिए इंडिया सेंट्रल एशिया पार्लियामेंटरी फोरम बनाने का भी प्रस्ताव है. इसके साथ-साथ दोनों ही पक्ष इस बात पर भी सहमत हैं कि कूटनीतिक रिश्ते के 30 वीं वर्षगांठ के मौके पर साझा पोस्टल टिकटें जारी की जाएंगी. ये सभी फैसले बेहद ऐतिहासिक हैं और इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इन देशों के बीच सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक सहयोग लगातार बढ़ रहे हैं.
इस सम्मेलन में साफ़तौर पर इस बात पर ज़ोर दिया गया कि इन सभी छह देशों के लिए अफ़ग़ानिस्तान के हालात सामान्य रूप से महत्व रखते हैं, इस तरह इस क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए सुरक्षा सहयोग बेहद अहम है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सम्मेलन की शुरुआत करते हुए इस आयोजन के तीन मुख्य लक्ष्यों को रेखांकित किया – “पहला, इसे स्पष्ट करना होगा कि भारत और मध्य एशिया के बीच यह सहयोग क्षेत्रीय सुरक्षा और समृद्धि के लिए है. भारत के दृष्टिकोण से मैं इस बात पर ज़ोर देना चाहूंगा कि भारत की दृष्टि में मध्य एशिया एकीकृत और स्थिर और व्यापक हो चुके पड़ोसी की अहमियत रखता है. दूसरा लक्ष्य यह है कि हमारे सहयोग को एक प्रभावी संरचना देना है. यह विभिन्न स्तरों पर और अलग-अलग हितधारकों के बीच नियमित बातचीत की रूपरेखा बनाएगा और, तीसरा उद्देश्य हमारे सहयोग के लिए एक महत्वाकांक्षी रोडमैप तैयार करना है.” पीएम मोदी की उपरोक्त टिप्पणी नई दिल्ली के विस्तारित पड़ोस में मज़बूत सहयोग के लिए एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने के मक़सद से, भविष्य की दृष्टि को ध्यान में रखते हुए दोनों के बीच बढ़ती रणनीतिक व्यस्तताओं की मज़बूत नींव की व्याख्या करता है.
सम्मेलन के दौरान क्षेत्र की उभरती हुई सुरक्षा चुनौतियों को संबोधित करने के लिए, ख़ास कर अफ़ग़ानिस्तान में जो घटनाक्रम हो रहे हैं, सभी नेताओं ने मौजूदा सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने की अपील की जबकि आतंक मुक्त दुनिया बनाने के लिए साझा आतंक निरोधी अभ्यास को आयोजित करने पर भी सहमति जताई है. अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए, जो सभी छह देशों के बेहद क़रीब में है, अफ़ग़ानिस्तान के लिए सहयोग की बात करना यह बताता है कि अफ़ग़ानिस्तान की संप्रभुता, एकता और क्षेत्रीय एकता का सम्मान किया जाएगा,साथ ही अफ़ग़ानिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा. इस सम्मेलन में साफ़तौर पर इस बात पर ज़ोर दिया गया कि इन सभी छह देशों के लिए अफ़ग़ानिस्तान के हालात सामान्य रूप से महत्व रखते हैं, इस तरह इस क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए सुरक्षा सहयोग बेहद अहम है. छह देशों के नेता इस पर भी सहमत दिखे कि प्रतिनिधित्व और समावेशी सरकार स्थापित करने, आतंक और ड्रग ट्रैफ़िकिंग का सामना करने, अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करने, महिलाओं, बच्चों समेत दूसरे राष्ट्रीय जातीय समूहों और अल्पसंख्यकों के हक़ की रक्षा करने के लिए एक व्यापक और समावेशी सरकार की स्थापना होनी चाहिए. अफ़ग़ानिस्तान में विकास कार्यों की निगरानी के लिए एक संयुक्त कार्य समूह (जेडब्ल्यूजी) स्थापित करने का निर्णय राजनयिक प्रयासों को बढ़ाने की दिशा में एक ठोस कदम है.
नेताओं द्वारा कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट को बतौर “कारोबार और आर्थिक सहयोग के साथ मुल्क और वहां के लोगों के बीच संबंधों को बढ़ाने के लिए ज़रूरी वज़ह” माना गया और इस तरह इन्हें प्राथमिकता के तौर पर अपग्रेड करने की ज़रूरत बताई गई है.
व्यापार और कनेक्टिविटी
चारों तरफ से घिरे हुए भौगोलिक भू-भाग और पर्याप्त भूमि संपर्क सुविधाओं की कमी के संदर्भ में भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच व्यापार और कनेक्टिविटी को कैसे बढ़ाया जाए इस बात पर भी सम्मेलन के दौरान चर्चा की गई. नेताओं द्वारा कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट को बतौर “कारोबार और आर्थिक सहयोग के साथ मुल्क और वहां के लोगों के बीच संबंधों को बढ़ाने के लिए ज़रूरी वज़ह” माना गया और इस तरह इन्हें प्राथमिकता के तौर पर अपग्रेड करने की ज़रूरत बताई गई है. दोनों पक्ष व्यापार संपर्क को आसान बनाने के लिए चाबहार बंदरगाह पर शहीद बेहेश्ती टर्मिनल की सेवाओं का इस्तेमाल करने पर भी सहमत हुए हैं. इस मक़सद के लिए एक ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप को कनेक्टिविटी प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए स्थापित किया गया है. भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिए इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) समेत इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट एंड ट्रांज़िट कॉरिडोर (आईटीटीसी) पर अश्गाबात समझौते का सबसे अच्छे तरीक़े से इस्तेमाल करने पर भी सहमति बनी है.
ऊर्जा सहयोग
शिखर सम्मेलन में नेताओं ने ऊर्जा सहयोग को मज़बूत करने के तरीक़ों और साधनों पर भी व्यापक रूप से चर्चा की जो बड़े पैमाने पर विकसित संबंधों की रूपरेखा को परिभाषित करता है. नेताओं ने समावेशी तरीक़े से देशों के लिए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ऊर्जा संसाधनों के सर्वोत्कृष्ट उपयोग की दिशा में अपनी प्रतिबद्धता भी दोहराई है. जैसा कि मध्य एशियाई क्षेत्र ऊर्जा संसाधनों से संपन्न है, ख़ास तौर पर यहां कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, कोयला, खनिज मिलते हैं और नई दिल्ली की ऊर्जा आवश्यकता आने वाले वर्षों में तेजी से बढ़ने की उम्मीद है, लिहाज़ा इसे लेकर भी विचार-विमर्श में तत्परता देखी जा सकती थी. मध्य एशियाई नेताओं ने भारत के “वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड” के पहल को लेकर भी दिलचस्पी दिखाई, जिसका मक़सद वैश्विक स्तर पर इंटर कनेक्टेड सौर ऊर्जा बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देना है, जिसका भारत-फ्रांस के नेतृत्व वाले इंटरनेशनल सोलर एसोसिएशन (आईएसए) के साथ भी मज़बूत संबंध है. ऊर्जा संपर्क बढ़ाने की दिशा में सम्मेलन के दौरान अक्षय ऊर्जा, सूचना, डिज़िटल और उन्नत प्रौद्योगिकियों के क्षेत्रों में विशेष राष्ट्रीय संस्थानों के बीच सहयोग स्थापित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया है.
लोगों से लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने और एक दूसरे के बीच मानव प्रतिभा को प्रोत्साहित करने के लिए मध्य एशियाई नेताओं ने भारत की भूमिका की सराहना की है कि कैसे नई दिल्ली ने क्षमता निर्माण और मानव संसाधन विकास को बढ़ावा दिया है.
कोरोना महामारी और स्वास्थ्य क्षेत्र
कोरोना महामारी को लेकर इन नेताओं ने स्वास्थ्य के इस संकट से साथ मिलकर लड़ने की अपील की है. शिखर सम्मेलन के दौरान साफ़तौर पर “व्यापक टीकाकरण, टीका आपूर्ति, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, स्थानीय उत्पादन क्षमताओं में बढ़ोतरी, चिकित्सा उत्पादों के लिए आपूर्ति श्रृंखला को बढ़ावा देने और मूल्य पारदर्शिता सुनिश्चित करने” की अहमियत पर बल दिया गया है. मध्य एशियाई नेताओं की पीएम मोदी द्वारा प्रस्तुत की गई “वन अर्थ, वन हेल्थ” के दृष्टिकोण की सराहना करना इस बात का प्रतीक है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग को विकसित करने के लिए सभी प्रतिबद्ध हैं. इसके साथ ही इन नेताओं ने वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने के लिए समय पर, प्रभावी और गैर-भेदभावपूर्ण अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया की सुविधा के लिए एक पारदर्शी तंत्र स्थापित करने और भविष्य में दवाओं और महत्वपूर्ण स्वास्थ्य आपूर्ति के लिए समान और सस्ती पहुंच सुनिश्चित करने की भी अपील की है. लोगों से लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने और एक दूसरे के बीच मानव प्रतिभा को प्रोत्साहित करने के लिए मध्य एशियाई नेताओं ने भारत की भूमिका की सराहना की है कि कैसे नई दिल्ली ने क्षमता निर्माण और मानव संसाधन विकास को बढ़ावा दिया है. साथ ही चिकित्सा, स्वास्थ्य देखभाल, फार्मास्यूटिकल्स, शिक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढांचे, कृषि, ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए भी इस सम्मेलन में जोरदार अपील की गई है, जो उभरते हुए संबंधों को दर्शाता है.
भारत-मध्य एशिया संबंधों का एकीकरण और संमिलन साफ़तौर पर समझा जा सकता है. तथ्य यह है कि पांच मध्य एशियाई नेताओं को मूल रूप से भारत के गणतंत्र दिवस समारोह के लिए मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था, जो इन देशों के साथ भारत के बढ़ते संबंधों की ओर इशारा करता है. विकसित साझेदारी को नई बुलंदियों तक ले जाने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, इस क्षेत्र और दुनिया के भू-सामरिक संतुलन को बनाए रखने के लिए संभावित रूप से ऐतिहासिक और परिवर्तनकारी है क्योंकि भारत साल 2023 में जी-20 समूह की अध्यक्षता करने वाला है.
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