Published on Jul 21, 2023 Updated 0 Hours ago

साझीदार के रूप में उभर रहे ऑस्ट्रेलिया और भारत दुर्लभ मृदा तत्व धातुओं की आपूर्ति श्रृंखला को मज़बूत कर सकते हैं ओर लचीलापन ला सकते हैं.

भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच दुर्लभ पृथ्वी तत्व (धातुओं) की आपूर्ति श्रृंखला में सहयोग के अवसर!

यह लेख भारत-ऑस्ट्रेलिया साझेदारी: रक्षा आयाम, श्रृंखला का हिस्सा है 


2030 तक ‘दुर्लभ पृथ्वी तत्व धातुओं’ (रेअर अर्थ एलिमेण्ट्स-) की वैश्विक मांग 3,15,000 टन तक पहुंचने की संभावना है, जिसकी मुख्य वजह इलेक्ट्रिक वाहनों, पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा जैसी स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों की तरफ़ वैश्विक झुकाव है. ‘दुर्लभ पृथ्वी तत्व धातुओं’ (आरईई) की आपूर्ति श्रृंखला में चीन का प्रभुत्व होने के चलते कई देश आपस में सहयोग करने की दिशा में बढ़ रहे हैं. साझीदार के रूप में उभर रहे ऑस्ट्रेलिया और भारत दुर्लभ पृथ्वी तत्व धातुओं की आपूर्ति श्रृंखला को मज़बूत कर सकते हैं और लचीलापन ला सकते हैं.

दुर्लभ पृथ्वी तत्व आपूर्ति श्रृंखला में ऊपरी परत (आरईई ऑक्साइड को अलग करना और निकालना), मध्य-परत (आरईई धातुओं और मिश्रित धातुओं का प्रसंस्करण) और निम्न परत (स्थायी चुंबक और अंतिम उत्पादों का निर्माण) होती हैं. ज़्यादातर देशों ने ऊपरी परत और मध्य-परत की क्षमता बढ़ा ली है लेकिन निम्न परत की क्षमताओं को लेकर चीन पर अति-निर्भरता को कम करने के लिए सहयोग की आवश्यकता है.

24,000 टन वार्षिक उत्पादन क्षमता वाले दुनिया के चौथे सबसे बड़े दुर्लभ पृथ्वी तत्व उत्पादक ऑस्ट्रेलिया, को इसकी मांग में तीव्र वृद्धि से सबसे अधिक फ़ायदा हुआ है. हालांकि यह उत्पादन चीन के 1,68,000 टन के मुकाबले काफ़ी कम है

24,000 टन वार्षिक उत्पादन क्षमता वाले दुनिया के चौथे सबसे बड़े दुर्लभ पृथ्वी तत्व उत्पादक ऑस्ट्रेलिया, को इसकी मांग में तीव्र वृद्धि से सबसे अधिक फ़ायदा हुआ है. हालांकि यह उत्पादन चीन के 1,68,000 टन के मुकाबले काफ़ी कम है लेकिन 2011 में 1,995 टन को देखते हुए यह उल्लेखनीय वृद्धि है. लाइनास रेयर अर्थ्स (Lynas Rare Earths), अराफुरा रेयर अर्थ्स (Arafura Rare Earths), और इलुका रिसोर्सिस (Iluka Resources) ने ऑस्ट्रेलियाई दुर्लभ पृथ्वी तत्व उद्योग को आपूर्ति श्रृंखला में ऊपरी परत और मध्य परत को विकसित करने में मदद की है. 2011 से लाइनस ने नियोडाइमियम-प्रेसियोडाइमियम का उत्पादन बढ़ाया है, जबकि अराफ़ुरा रेयर अर्थ का लक्ष्य आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण नियोडाइमियम आयरन बैरन (NdFeB) चुंबकों और स्थायी चुंबकों के उत्पादन के ज़रिए निम्न परत के प्रसंस्करण का विस्तार करना है. ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने चीन पर निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से दुर्लभ पृथ्वी तत्व उद्योग में 30 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का निवेश किया है, जो उनके 240 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर के निवेश का एक हिस्सा है.

भारत के लिये अवसर

भारत के लिए आरईई की घरेलू मांग में वृद्धि मुख्यतः रक्षा और पर्यावरण तकनीक में प्रयोग होने वाले स्थायी चुंबकों की मांग के कारण है. भारत के एकमात्र दुर्लभ पृथ्वी तत्व उत्पादक इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (आईआरईएल) ने रक्षा आवश्यकताओं को पूरी करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है. आईआरईएल ने यह भी योजना बनाई है यह दुर्लभ पृथ्वी तत्व धारण करने वाले अयस्कों के खनन को चार गुना बढ़ाकर 2032 तक 50 मिलियन टन प्रतिवर्ष करेगा और आईई के उत्पादन को मौजूदा 5,000 टन से बढ़ाकर 13,000 टन तक करेगा.

दुर्लभ पृथ्वी तत्व का पांचवां सबसे बड़ा भंडार (6.9 मिलियन टन) और ऊपरी सतह की खनन क्षमता के बावजूद आईआरईएल तैयार दुर्लभ पृथ्वी तत्व चुंबक का आयात करता है, मुख्य रूप से चीन से. भारत में  निम्न परत के प्रसंस्करण की क्षमताओं को इसलिए नहीं बढ़ाया जा पा रहा है क्योंकि 2019 में भारतीय सरकार ने खनिज अन्वेषण को निजी कंपनियों के लिए प्रतिबंधित कर दिया था, इसकी वजह बताई गई थी उनका अवैध खनन, निर्यात और भ्रष्टाचार.

हालांकि भारत के पास दुर्लभ पृथ्वी तत्व उद्योग के लिए रणनीतिक योजना की कमी है लेकिन फिर भी सरकार उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रही है, जैसे कि भोपाल का “दुर्लभ पृथ्वी तत्व थीम पार्क“. परमाणु खनिज अन्वेषण एवं अनुसंधान निदेशालय और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण भी नए दुर्लभ पृथ्वी तत्व भंडारों की खोज कर रहे हैं, जैसे कि दक्षिण भारत में हाल ही में हुई हल्के दुर्लभ पृथ्वी तत्व भंडारों की खोज.

भारत, जो अब भी अन्वेषण के चरण में ही है और ऑस्ट्रेलिया, जो दुर्लभ पृथ्वी तत्व उत्पादन में दूसरे स्थान पर है, 2020 में संधि के बाद महत्वपूर्ण खनिजों पर मिलकर काम करना शुरू कर चुके हैं. सप्लाई चेन रेज़िलिएंस इनिशिएटिव (एससीआरआई) और क्वॉड जैसे सभी द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय और बहुपक्षीय स्तरों पर सहयोग आकार लेने लगा है.

भारत, जो अब भी अन्वेषण के चरण में ही है और ऑस्ट्रेलिया, जो दुर्लभ पृथ्वी तत्व उत्पादन में दूसरे स्थान पर है, 2020 में संधि के बाद महत्वपूर्ण खनिजों पर मिलकर काम करना शुरू कर चुके हैं. [/pullquote]

हाल ही में पांच महत्वपूर्ण खनिज (तीन कोबाल्ट और दो लीथियम) परियोजनाओं पर लक्षित साझेदारी की द्विपक्षीय घोषणा भी उनके आपूर्ति श्रृंखला में सहयोग के मज़बूत होने को ही दर्शाती है. 2022 में, ऑस्ट्रेलिया ने अपनी भारत आर्थिक योजना 2035 को अपडेट किया था ताकि भारत में खनन उपकरण, तकनीकें, और सेवाएं (एमईटीएस) क्षेत्र को प्राथमिकता पर रखा जा सके. तब से, ऑस्ट्रेलिया-भारत व्यापार विनिमय (एआईबीएक्स) की पांच प्राथमिकताओं में खनन और संसाधन शामिल रहे हैं और 2022 तक कथित रूप से भारतीय खनिज उद्योग में करीब 40 ऑस्ट्रेलियाई कंपनियां शामिल थीं.

13 निजी संस्थाओं को खनिज अन्वेषण के लिए मान्यता देने के लिए भारतीय कानून में हुए हालिया परिवर्तन से ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों को भी अन्वेषण अधिकार मिलने की संभावना और बढ़ गई है. टाटा ग्रुप, आदित्य बिड़ला, महिंद्रा लिमिटेड, परमानेंट मैग्नेट्स लिमिटेड और ड्यूरा मैग्नेट्स जैसी ऑस्ट्रेलियाई और भारतीय कंपनियां भारत में भारी और हल्के दुर्लभ पृथ्वी तत्व अन्वेषण के लिए परियोजनाओं पर मिलकर काम कर सकती हैं, जैसे कि उन्होंने लौह अयस्क और तांबे के लिए किया है.

साझेदारी से लाभ

भारत और ऑस्ट्रेलिया को साथ मिलकर दुर्लभ पृथ्वी तत्व के खनन, प्रसंस्करण और विनिर्माण के लिए एक संवहनीय माहौल बनाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए. इस प्रणाली को धीरे-धीरे तैयार किया जाना चाहिए, जिसकी शुरुआत सबसे पहले दोनों देशों में उन्नत और विश्वसनीय ऊपरी परत का खनन सुनिश्चित करने से हो, उसके बाद मध्य परत के प्रसंस्करण और निम्न परत के  विनिर्माण को विकसित करने के प्रयास किए जाएं. दुर्लभ पृथ्वी तत्व की आपूर्ति श्रृंखला के हर स्तर को सुरक्षित किया जाना आवश्यक है ताकि इस संवहनीय माहौल को सक्षम बनाया जा सके, क्योंकि सिर्फ़ ऊपरी परत का विश्वसनीय खनन ही मध्य परत में दुर्लभ पृथ्वी तत्व ऑक्साइड तक स्थिर पहुंच सुनिश्चित कर सकता है ताकि उसका आरईई में प्रसंस्करण किया जा सके और सफल प्रसंस्करण से ही दुर्लभ पृथ्वी तत्व उत्पादों और दुर्लभ पृथ्वी तत्व चुंबकों का निर्माण सुनिश्चित हो सकता है.

इसके अलावा, आरईई संसाधनों से प्राप्त होने वाले स्थायी चुंबक और दुर्लभ पृथ्वी तत्व मिश्रधातु, जैसे कि नियोडाइमियम लौह बोरॉन और सेमेरियम कोबाल्ट, जिन्हें सैन्य हथियारों के निर्माण में उपयोग किया जाता है, भारत-ऑस्ट्रेलिया सहयोग को और भी बढ़ा सकते हैं ताकि वे अपने रक्षा उत्पादन लक्ष्यों को पूरा कर सकें.

भारत के आकार, बाज़ार परिमाण और कम लागत वाली उत्पादन क्षमता के साथ ऑस्ट्रेलिया की कच्चे माल, महत्वपूर्ण खनिजों में तुलनात्मक रूप से मज़बूत स्थिति और नए शोधों को मिला दिया जाए तो भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों की साझेदारी से परस्पर लाभकारी परिणाम मिल सकते हैं. अपनी ऊपरी-मध्य दुर्लभ पृथ्वी तत्व संवर्धन की विकसित सुविधाओं और तीसरी सबसे बड़े दुर्लभ पृथ्वी तत्व उत्पादक क्षमता के साथ ऑस्ट्रेलिया मैट्स (METS), निवेश, प्रौद्योगिकी स्थानांतण और सूचना सहायता को शामिल कर भारत के खनन उद्योग की उत्पादकता और कुशलता को बढ़ाने में सहायता कर सकता है.

भारत के आकार, बाज़ार परिमाण और कम लागत वाली उत्पादन क्षमता के साथ ऑस्ट्रेलिया की कच्चे माल, महत्वपूर्ण खनिजों में तुलनात्मक रूप से मज़बूत स्थिति और नए शोधों को मिला दिया जाए तो भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों की साझेदारी से परस्पर लाभकारी परिणाम मिल सकते हैं. 

इसमें कोई शक नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया के पास दुर्लभ पृथ्वी तत्व आपूर्ति श्रृंखला का महाबली बनने की पूरी संभावना है लेकिन यह भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि खनन के अतिरेक से भंडार खाली हो जाते हैं और इससे आपूर्ति श्रृंखला को लेकर असुरक्षा जन्म लेती है. उदाहरण के रूप में, चीन में मौजूद वैश्विक दुर्लभ पृथ्वी तत्व भंडार 1990 के दशक के 70 प्रतिशत से घटकर आज 38 प्रतिशत रह गए हैं, जिसकी एक वजह खनन का अतिरेक भी है. अगर ऑस्ट्रेलिया भारत के अप्रयुक्त भंडारों और कम श्रम लागत तक पहुंच बना पाता है तो वह एक संवहनीय माहौल को विकसित करने और दुर्लभ पृथ्वी तत्व ऑक्साइड तक सुरक्षित पहुंच को विकसित कर पाएगा. इससे ऑस्ट्रेलिया आत्मविश्वास के साथ दीर्घकालिक दुर्लभ पृथ्वी तत्व परियोजनाओं की तैयारी कर सकता है और आपूर्ति श्रृंखला के स्थायित्व को सुनिश्चित कर सकता है.


यह लेख ऑस्ट्रेलिया भारत संस्थान के रक्षा कार्यक्रम के एक हिस्से के रूप में लिखा गया था, जिसे रक्षा विभाग का समर्थन था. इस लेख में व्यक्त किए गए सभी विचार केवल लेखक के ही हैं.

Neha Mishraनेहा मिश्रा सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज़ (सीएपीएस) में एक संयुक्त अध्येता हैं 

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