Published on May 31, 2023 Updated 0 Hours ago
भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध: पैसिफिक द्वीपों में पर्यावरण और मानव सुरक्षा पर सहयोग की वक़ालत

ये लेख भारत-ऑस्ट्रेलिया साझेदारी: रक्षा का पहलू सीरीज़ का हिस्सा है.


भारत और ऑस्ट्रेलिया के द्वारा इंडो-पैसिफिक में अपनी सामरिक पहुंच बढ़ाने की कोशिश में पैसिफिक में स्थित देशों (पैसिफिक आइलैंड कंट्रीज़ या PIC) में जलवायु और लोगों की सुरक्षा पर ज़्यादा ध्यान ध्यान देने को शामिल करना चाहिए. अंतर्राष्ट्रीय अपराध के साथ जलवायु परिवर्तन से प्रेरित संकट खाद्य और स्वास्थ्य से जुड़ी असुरक्षा में बढ़ोतरी कर सकता है जिसका महिलाओं पर विशेष रूप से असर होगा. भारत और ऑस्ट्रेलिया के लिए लोगों की सुरक्षा के मामले में साझा पहल करने की काफ़ी गुंजाइश है.

पैसिफिक के द्वीपों में भारत की कूटनीतिक पहुंच पहले बेहद कम थी लेकिन व्यापार और विकास से जुड़ी पहल के साथ अब इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पापुआ न्यू गिनी का दौरा भी किया. इस तरह वो पापुआ न्यू गिनी का दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बन गए.  

पैसिफिक के द्वीपों में भारत की कूटनीतिक पहुंच पहले बेहद कम थी लेकिन व्यापार और विकास से जुड़ी पहल के साथ अब इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है.

भारत इन देशों में व्यापार और निवेश के मौक़ों से फ़ायदा उठा सकता है, ख़ास तौर पर प्राकृतिक संसाधनों में. साउथ-साउथ कोऑपरेशन (विकासशील देशों के बीच सहयोग) की वक़ालत करने वाले देश के तौर पर भारत भी क्षेत्रीय स्थिरता में सहयोग देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इसके लिए वो सहायता और विकास के मामले में अपने 'साझेदारी' के दृष्टिकोण, ख़ास तौर पर जलवायु और आपदा प्रबंधन में, को आगे बढ़ाने के इतिहास का फ़ायदा उठा सकता है. उदाहरण के लिए, इंटरनेशनल सोलर एलायंस, जिसके सदस्य ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य प्रशांत देश हैं, जलवायु परिवर्तन के लिए किफ़ायती और हल्के छोटे पैमाने के समाधान का इस्तेमाल करता है जो विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के साथ ज़्यादा मेल खाता है और अक्सर उन्हें लागू करना आसान होता है. 

शुरुआत में सहयोग पर ध्यान के केंद्र में वो देश होने चाहिए जहां भारत साझेदारी का निर्माण कर रहा है जैसे कि फिजी, सोलोमन आइलैंड्स और पापुआ न्यू गिनी. जलवायु और लोगों की सुरक्षा पर साथ काम करके भारत और ऑस्ट्रेलिया सामरिक मुक़ाबले पर चर्चा के एक पर्याय के तौर पर वैकल्पिक नीति और जुड़ने का विकल्प मुहैया करा सकते हैं. इस मामले में रक्षा, कूटनीति और विकास की पेशकश को जोड़ना आगे बढ़ने का एक रास्ता है. जलवायु पर तैयारी और लोगों की सुरक्षा को लेकर एक बहु-आयामी दृष्टिकोण में निम्नलिखित बातें शामिल होनी चाहिए: 

लैंगिक (जेंडर) नज़रिया अपनाते हुए आपदा के जोख़िम को कम करने की गतिविधियां और आपदा के लिए तैयारी. 

समुदाय के नेताओं और जेंडर विशेषज्ञों के साथ गहरे तालमेल को सुनिश्चित करने के लिए भागीदार (स्टेकहोल्डर) को जोड़ना. 

क्षेत्रीय और बहुपक्षीय एजेंडे में एक व्यापक जलवायु और जेंडर दृष्टिकोण शामिल करने के लिए कूटनीतिक सहयोग. मज़बूती को दिखाने के लिए साझा बयान जारी करना. 

त्रिकोणीय सहयोग और मौजूदा रूप-रेखा एवं संस्थानों का इस्तेमाल करके जलवायु लचीलापन के उद्देश्यों के साथ तैयार सहायता एवं बुनियादी ढांचे की परियोजनाएं. 

पैसिफिक में भारत-ऑस्ट्रेलिया सहयोग के लिए हम निम्नलिखित सिफ़ारिशें करते हैं: 

भारत, ऑस्ट्रेलिया और PIC के बीच 'त्रिकोणीय सहयोग' की पड़ताल

 

विदेश में सहायता और विकास के लिए 'त्रिकोणीय सहयोग' का विचार भारत के लिए कोई नई बात नहीं है. ग्लोबल नॉर्थ (विकसित देश) और ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) के बीच के अंतर को भरने के लिए ‘त्रिकोणीय सहयोग’ सबको आकर्षित कर रहा है. ‘त्रिकोणीय सहयोग’ के तहत किसी तीसरे देश में मदद देने वाले देशों की पूंजी एवं संसाधन और विकासशील देशों की क्षमता निर्माण करने की योग्यता शामिल हैं. भारत और यूनाइटेड किंगडम (UK), अमेरिका, जर्मनी और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के बीच सफल साझेदारी के कई उदाहरण हैं. भारत और ऑस्ट्रेलिया भी इसी तरह की परियोजनाओं की शुरुआत कर सकते हैं जो जलवायु पर काफ़ी केंद्रित हैं. भारत इस मामले में ऑस्ट्रेलिया के विदेश मामलों और व्यापार के विभाग (DFAT) के फंड से चलने वाले जलवायु कार्यक्रमों, जो जेंडर नज़रिए को शामिल करते हैं, से भी सीख सकता है और अपने सहायता कार्यक्रमों में उन सीखी गई बातों को लागू कर सकता है जहां अक्सर जेंडर और जलवायु परिवर्तन का एक-दूसरे से तालमेल नहीं रहता है. 

विदेश में सहायता और विकास के लिए 'त्रिकोणीय सहयोग' का विचार भारत के लिए कोई नई बात नहीं है. ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ के बीच के अंतर को भरने के लिए ‘त्रिकोणीय सहयोग’ सबको आकर्षित कर रहा है.

त्रिकोणीय सहयोग का विस्तार कूटनीति तक भी होता है जहां कई पारस्परिक सबक़ सीखे जा सकते हैं. भारत के द्वारा शुरू कोएलिशन फॉर डिज़ास्टर रेज़िलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (CDRI) जलवायु अनुकूल परियोजनाओं को विकसित करने के लिए एक संसाधन हो सकता है और लोगों एवं जलवायु की सुरक्षा को जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में जेंडर को मुख्यधारा में लाने का एक मौक़ा मुहैया कराता है. 

मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR) और आपदा जोख़िम राहत (DRR) में जेंडर समानता

जलवायु परिवर्तन से लोगों की सुरक्षा, ख़ास तौर पर जेंडर समानता, को ख़तरा है जो जलवायु परिवर्तन के व्यापक जोखिमों और असर को और बढ़ाता है. एशियन डेवलपमेंट बैंक के एक अध्ययन में पाया गया है कि आपदा का असर पुरुषों और महिलाओं पर एक जैसा नहीं होता है. जिन सामाजिक व्यवस्थाओं में महिलाओं का दर्जा नीचे होता है वहां प्राकृतिक आपदाएं पुरुषों के मुक़ाबले ज़्यादा महिलाओं की जान लेती हैं. आपदा प्रबंधन में लैंगिक दृष्टिकोण को जोड़ने से एक पूरे समुदाय का सामर्थ्य मज़बूत हो सकता है, विशेष रूप से जब देसी विचार और नीचे से ऊपर के दृष्टिकोण को लागू किया जाता है. 

मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR) की मांग इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सबसे ज़्यादा में से है. यहां सिविल-मिलिट्री एकीकरण HADR के असर को बढ़ा सकते हैं. रक्षा बल HADR अभियानों को चलाने के लिए अच्छी तरह से उपयुक्त हैं क्योंकि वो सांगठनिक रूप से जुड़े होते हैं और साजो-सामान से पूरी तरह लैस होते हैं. एकीकृत सिविल-मिलिट्री अभियान भी HADR अभियानों के प्रभाव को बढ़ा सकते हैं. भारत और ऑस्ट्रेलिया अपने सशस्त्र बलों में महिलाओं की बढ़ती संख्या का बेहतर इस्तेमाल महिलाओं से जुड़े आपदा अभियानों के लिए कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, भारत में आपदा प्रबंधन के लिए ख़ास तौर पर बने अर्धसैनिक बल नेशनल डिज़ास्टर रेस्पॉन्स फोर्स (NDRF) में अब हर बटालियन में कम-से-कम 108 महिलाओं को शामिल करना अनिवार्य हो गया है.  

जेंडर के मुद्दे को मुख्यधारा में लाने के लिए बहुत बड़े बदलाव की ज़रूरत नहीं है. मौजूदा बहुपक्षीय सेंडाई फ्रेमवर्क (आपदा के जोख़िम को कम करने के लिए एक समझौता) में उन कमज़ोरियों को स्वीकार किया गया है जिनका सामना महिलाएं आपदा में करती हैं. साथ ही जोख़िम को कम करके ठोस कार्रवाई पेश करने में महिलाओं की भूमिका को भी माना गया है. ऑस्ट्रेलिया की सरकार फिलहाल फिजी, किरिबाती और वनुआतु में आपदा कार्यक्रमों में महिलाओं के सामर्थ्य का समर्थन करती है. भारत में महिलाओं से जुड़े आपदा प्रबंधन के अनुभवों पर ग़ौर करना भी उपयोगी होगा. भारत के राज्य ओडिशा ने क्षमता निर्माण और जेंडर समानता पर केंद्रित बजट के ज़रिए महिलाओं को मुख्यधारा में लाने के लिए क़दम उठाए हैं. ओडिशा इस तरह की पहल करने वाले शुरुआती राज्यों में से एक है. 

इस तरह की पहल से मिले अनुभवों को ‘सहयोग की संस्कृति बनाने’ के लिए व्यापक सुरक्षा क्षेत्र में लाया जा सकता है और ये सुनिश्चित किया जा सकता है कि समानता और न्याय के बुनियादी मूल्य सर्वोच्च हैं और सामर्थ्य को मज़बूत करने में योगदान देते हैं. ग्लोबल साउथ में गठबंधन बनाने और विकल्प मुहैया कराने में भारत एक अग्रणी भूमिका निभा रहा है. 

वैसे तो भारत और ऑस्ट्रेलिया- दोनों देश पैसिफिक में अपनी सामरिक मौजूदगी को मज़ूबत कर सकते हैं लेकिन सहायता और कूटनीति के ज़रिए सुरक्षा में समग्र सुधार की तरफ़ किसी भी योगदान में सहयोग से फ़ायदा मिलेगा. सहयोग से भरा दृष्टिकोण अलग-अलग परिदृश्यों और कई भागीदारों को शामिल करने की रूप-रेखा मुहैया करा सकता है और जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला करने में पूरी दुनिया की प्रतिबद्धता को दोहराता है. अल्पकालीन और दीर्घकालीन पहल के साथ एक स्मार्ट बहु-आयामी दृष्टिकोण, जो लोगों की सुरक्षा और जेंडर को जलवायु अनुकूलन से जुड़ी गतिविधियों के केंद्र में रखता है, ही आगे का रास्ता है.


(ये लेख ऑस्ट्रेलिया के रक्षा विभाग के समर्थन से ऑस्ट्रेलिया इंडिया इंस्टीट्यूट के रक्षा कार्यक्रम के तहत लिखा गया था. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार पूरी तरह से लेखक के हैं.) 


अंबिका विश्वनाथ भू-राजनीतिक सलाह देने वाली संस्था कुबेरनेन इनिशिएटिव की फाउंडिंग डायरेक्टर हैं. अंबिका जल सुरक्षा विशेषज्ञ हैं और उन्हें गवर्नेंस, जेंडर और विदेश नीति के क्षेत्र में अनुभव हासिल है. 

अदिति मुकुंद कुबेरनेन इनिशिएटिव में प्रोग्राम एसोसिएट हैं. अदिति जेंडर और फेमिनिस्ट विदेश नीति में कुबेरनेन इनिशिएटिव के काम-काज और प्रोजेक्ट का नेतृत्व करती हैं.    

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.