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Published on Mar 04, 2024 Updated 0 Hours ago
भारत आसियान के मुक्त व्यापार समझौते में रूल्स ऑफ ओरिजिन के सुधार: बाहरी सामान के प्रवाह की रोक-थाम और आपूर्ति श्रृंखलाओं को मज़बूत करना

2022-23 में भारत के वैश्विक व्यापार में आसियान की हिस्सेदारी 11.3 प्रतिशत थी. हालांकि, 2010 में आसियान के साथ वस्तुओं के व्यापार के समझौते (AITGA) के बाद से ही भारत को हर साल लगभग 7.5 अरब डॉलर के व्यापार घाटे का सामना करना पड़ रहा है. 2022-23 में भारत से आसियान को निर्यात जहां 44 अरब डॉलर था, वहीं उसने आसियान देशों से 87.57 अरब डॉलर की वस्तुओं का आयात किया था. ऐसे में 2022-23 में आसियान से भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 43.57 अरब डॉलर हो गया था. 2021-22 में ये व्यापार घाटा 25.76 अरब डॉलर था, जो 2022-23 में बढ़कर 43.57 अरब डॉलर पहुंच गया. ऐसे में दोनों पक्षों के बीच व्यापार की रूप-रेखा के तुरंत नए मूल्यांकन की ज़रूरत है. 

 2021-22 में ये व्यापार घाटा 25.76 अरब डॉलर था, जो 2022-23 में बढ़कर 43.57 अरब डॉलर पहुंच गया. ऐसे में दोनों पक्षों के बीच व्यापार की रूप-रेखा के तुरंत नए मूल्यांकन की ज़रूरत है. 

आने वाले समय में AITGA की तय समीक्षा से पहले से ही, वाणिज्य मंत्रालय इस बारे में तमाम भागीदारों से सलाह मशविरा कर रहा है. इस समीक्षा से समझौते के अन्य पहलुओं के अलावा रूल्स ऑफ ओरिजिन (RoO) के बेहतर होने की उम्मीद है. आसियान के साथ इस समझौते की समीक्षा वार्ताएं 2025 में पूरी होने की उम्मीद है. इस दौरान भारत की कोशिश है कि वो आसियान देशों के साथ कारोबार में दी जा रही रियायतों का लाभ किसी तीसरे देश द्वारा लेने वाली कमियों को दूर करे.

 

चीनी और दूसरे बाहरी उत्पादों की घुसपैठ

 

आसियान के साथ व्यापार समझौते के पांच साल के भीतर ही भारत ने इस समझौते की समीक्षा को लेकर बातचीत शुरू की थी. इसकी वजह ये थी कि एक तरफ़ तो आसियान से भारत का आयात लगातार बढ़ता जा रहा था. वहीं दूसरी ओर, AITGA के तहत व्यापार कर में रियायतों से भारत को अपेक्षित लाभ नहीं मिल रहे थे. यही नहीं, भारत के निर्यात के चलन, आसियान के कई देशों के साथ आयात की बराबरी नहीं करते हैं. अहम बात ये है कि जहां रूल्स ऑफ ओरिजिन (RoO) की जटिलताएं और कमियों ने आपूर्ति श्रृंखलाओं को पेचीदा बना दिया है. वहीं, कपड़ों, स्टील, गाड़ियों के कल-पुर्ज़ों वग़ैरह के वैश्विक बाज़ार में ज़बरदस्त होड़ की वजह से आपूर्ति श्रृंखलाएं एक समान नहीं रह गई हैं.

 

भारत और आसियान के बाज़ारों में चीनी उत्पादों की बाढ़ ने भी AITGA के अपेक्षित लाभों को चोट पहुंचाने का काम किया है. भारत को इस बात की बहुत ज़्यादा आशंका है कि आयातक संस्थाएं रूल्स ऑफ ओरिजिन के नियमों का उल्लंघन करके और इसकी कमियों का लाभ उठाकर आसियान के ज़रिए सस्ते सामानों का आयात बढ़ाएंगी. पहले ही इस बात की कई मिसालें देखने को मिली हैं कि चीन के बने उत्पादन आसियान देशों के रास्ते भारत लाए जा रहे हैं. मिसाल के तौर पर चीन के सस्ते मोबाइल मलेशिया के रास्ते भारत मंगाए जा रहे हैं. चीन और आसियान से अलग अन्य देश जैसे कि जापान और दक्षिण कोरिया भी नई संस्थाएं स्थापित कर रहे हैं या फिर वियतनाम जैसे देशों में निष्क्रिय कंपनियों का अधिग्रहण कर रहे हैं, ताकि वो इन नक़ली कंपनियों और उत्पादों पर नए लेबल लगाकर, अपने यहां से भारत को होने वाले निर्यात पर लगने वाले घरेलू करों से बच सकें.

 

CAROTAR के ज़रिए घरेलू स्तर पर रूल्स ऑफ ओरिजिन (RoO) के सुधार

 

रूल्स ऑफ ओरिजिन किसी उत्पादन के मूल स्थान का पता लगाकर उसे सत्यापित करता है, ताकि ये मालूम हो सके कि किसी उत्पाद को किस रूप में कहां से ख़रीदकर उसमें बड़ा बदलाव लाकर भारत या आसियान को निर्यात किया गया है. इससे ये सुनिश्चित होता है कि मुक्त व्यापार समझौते वाले देशों के उत्पादों को ही व्यापार कर में रियायतें मिलें और तय सीमा के तहत कस्टम में छूट मिले. रूल्स ऑफ ओरिजिन से किसी तीसरे देश के सामान को मुक्त व्यापार समझौते के तहत बेचने पर भी रोक लगती है. ये नियम किसी सामान के निर्माण में इस्तेमाल चीज़ों में ठोस बदलावों के पैमाने और स्थानीय स्तर पर प्रोसेसिंग की हद तय करते हैं, ताकि निर्यातक देश उसी दायरे में रहते हुए मुक्त व्यापार समझौते के तहत प्राथमिकताओं का लाभ लेने का दावा कर सकें.

 चीन और आसियान से अलग अन्य देश जैसे कि जापान और दक्षिण कोरिया भी नई संस्थाएं स्थापित कर रहे हैं या फिर वियतनाम जैसे देशों में निष्क्रिय कंपनियों का अधिग्रहण कर रहे हैं

भारत ने व्यापार समझौते के अंतर्गत रूल्स ऑफ ओरिजिन को कस्टम में लागू करने के नियम (CAROTAR) 2020 में लागू किए थे, ताकि घरेलू आयातकों का विनियमन कर सके और आसियान देशों से होने वाले निर्यात की आड़ में चीनी उत्पादों द्वारा भारतीय बाज़ार में घुसपैठ करने और आसियान के साथ हुए मुक्त व्यापार समझौते के तहत फ़र्ज़ी रियायतें हासिल करने के सिलसिले को रोक सके.

 

इन नियमों (CAROTAR) के तहत किसी आपूर्तिकर्ता को भारतीय ख़रीदार को अपने उत्पाद के मूल स्थान का प्रमाणपत्र (CoO) देना पड़ता है, जो निर्यातक देश द्वारा तय संस्था की तरफ़ से जारी किया जाता है. इससे आयात की पुष्टि के लिए उस उत्पाद के मूल स्थान पर मुहर लगती है. इसके अलावा ये नियम, रियायती टैक्स दरों का फ़ायदा उठाने के लिए पुष्टि करने की प्रक्रियाओं की बारीक़ियां भी तय करते हैं और ये भी बताते हैं कि किन हालात में टैक्स में रियायतों के दावे ख़ारिज किए जा सकते हैं.

 

अगर किसी ख़ास निर्यातक या उत्पादक का सामान उद्गम स्थान के पैमानों पर खरा नहीं उतरता है, तो इसके निर्धारण का असर, उसी निर्यातक या निर्माता के अन्य मिलते-जुलते उत्पादों पर भी पड़ता है. मिसाल के तौर पर, अगर किसी देश का कोई उत्पादक टीवी और फ्रिज बनाता है और प्रमाणन की प्रक्रिया में ये पता चलता है कि उस उत्पादक कंपनी के उत्पाद फ्रिज के लिए तय मानकों को पूरा नहीं करते, तो इस निष्कर्ष का असर उस देश के ख़ास उत्पादक से भविष्य में फ्रिज के आयात पर भी पड़ेगा. हालांकि, इस कमी का असर उस देश विशेष की उस कंपनी द्वारा बनाए जाने वाले टेलीविजन सेट पर नहीं पड़ेगा. ये व्यवस्था ब्लैकलिस्टिंग की तरह काम करती है और व्यापार के साझीदारों और विदेशी कंपनियों के बीच अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करती है.

 

चूंकि, CAROTAR के उत्तरदायित्व का ताल्लुक़ घरेलू नियम क़ायदों की व्यवस्था से होता है, ऐसे में किसी भी आयातक को इस नियम का पालन करना ही होता है. फिर चाहे वो उस व्यापार समझौते के तहत आता हो या नहीं. इसके साथ साथ किसी सामान के उद्गम को लेकर CAROTAR के प्रावधानों को रूल्स ऑफ ओरिजिन (RoO) की अधिसूचनाओं के ज़रिए मुक्त व्यापार समझौते से मिलाने वाला बनाया जा रहा है जिन्हें कस्टम्स टैरिफ एक्ट से ताक़त मिलती है. किसी भी स्थिति में CAROTAR का जो़र इस बात पर होता है कि अगर मुक्त व्यापार समझौते और घरेलू नियमों के बीच टकराव होता है रूल्स ऑफ ओऱिजिन के प्रावधान ही लागू होंगे.

 

इंडोनेशिया जैसे आसियान के सदस्य देशों ने CAROTAR का विरोध किया था, क्योंकि इसमें प्रमाणन और क्लीयरेंस की लंबी प्रक्रिया ने व्यापार के चक्र में बाधा रही थी. इन प्रतिवादों के बावजूद भारत ने आयातकों द्वारा नक़ली प्रमाणपत्रों की मदद से सामान मंगाने की पड़ताल करने के लिए CAROTAR का इस्तेमाल जारी रखा, ताकि जानकारी छिपाकर या फिर दूसरे तरीक़ों से मुक्त व्यापार समझौते के तहत मिलने वाली रियायत पर दावा करने वालों की परख कर सके.

 

बहुपक्षीय स्तर पर RoO के सुधार: AITGA की समीक्षा

 

भारत ने आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौते (AITGA) के अंतर्गत रूल्स ऑफ ओरिजिन को ख़ास उत्पादों के मुताबिक़ और व्यापक बनाने की ज़रूरत पर बल दिया है. भारत का ये तर्क मुक्त व्यापार को लेकर हो रही मौजूदा वार्ताओं के साथ मेल खाता है, जिसमें अलग अलग उत्पादों में अलग अलग मूल्य संवर्धन पर ज़ोर दिया जाता है. हालांकि, AITGA के रूल्स ऑफ ओरिजिन की प्रक्रियाओं में और इज़ाफ़ा करने की ज़रूरत है. मिसाल के तौर पर किसी उत्पाद में इस्तेमाल तत्वों के विभाजन का मौजूदा नियम कहता है कि क्षेत्रीय स्तर पर कम से कम 35 प्रतिशत वैल्यू एडिशन (मूल्य संवर्धन) और व्यापार कर की सब-हेडिंग में बदलाव होना चाहिए. लेकिन, इसमें दस्तावेज़ जुटाने की प्रक्रिया तो बहुत लंबी हो जाती है. लेकिन, मानकों को मज़बूती नहीं मिलती. पूरे आसियान में वैल्यू एडिशन की सीमा 40 प्रतिशत है. इसका तालमेल, चीन की अगुवाई वाले रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) के साथ बिठाने से नियमों का क्रियान्वयन आसान हो जाएगा. इसके अलावा, भारत द्वारा निर्यात किए जाने वाले कुछ ख़ास उत्पादों, जैसे रिफाइन किए गए पेट्रोलियम उत्पाद और हीरों के लिए रूल्स ऑफ ओरिजिन तय करना टैरिफ की रियायतों का लाभ उठाने के लिए ज़रूरी है. मछली उद्योग के निर्यात में कुछ ख़ास ग़ैर उद्गम वाले उत्पादों के मामले में छूट देने का भी फ़ायदा मिल सकता है.

 

AITGA की इस समय हो रही समीक्षा वार्ताओं में RoO के सुधारों पर भी विचार किया गया है. ये बात भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के व्यापक आर्थिक साझेदारी के समझौते (CEPA) और भारत ऑस्ट्रेलिया के बीच आर्थिक सहयोग और व्यापार के समझौते (INDAUS ECTA) में देखने को मिली है. इन दोनों ही समझौतों में वस्तुओं और सामानों के उद्गम स्थान को लेकर ग़लत जानकारी देने पर निर्यातकों पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है. ये समझौते निर्यातकों, उत्पादकों और निर्माताओं की कुछ ख़ास ज़िम्मेदारियां तय करते हैं कि वो पांच साल तक जानकारी और उनको सही साबित करने वाले दस्तावेज़ सुरक्षित रखें, जिनकी जांच पड़ताल समय आने पर की जा सके. यही नहीं, CAROTAR के अंतर्गत आयातकों को इस बात के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है कि वो आयात किए जाने वाले सामानों के बारे में ये जानकारियां सरकार को दें, अपने पास किसी उत्पाद के मूल को लेकर, ‘पर्याप्त जानकारी रखेंऔर कंट्री ऑफ ओरिजिन के तहत रियायतें लेने से पहले बहुत सावधानी से औरउचितपड़ताल कर लें.

 मुक्त व्यापार समझौते का विकल्प अपनाने के बजाय व्यापार के पारंपरिक तरीक़े अपना सकते हैं. जहां पर व्यापार कर के लाभ बहुत कम (10 प्रतिशत) होते हैं. इसीलिए, संतुलन बनाने के लिए भागीदारों से बात करना ज़रूरी है.

चूंकि भारत अब मुक्त व्यापार समझौते के मामले में अपनीएक्ट ईस्टनीति से आगे बढ़कर क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण का विस्तार कर रहा है. ऐसे में आसियान के साथ व्यापार समझौते (AITGA) की समीक्षा वार्ताओं में रूल्स ऑफ ओरिजिन के मामले में सख़्ती बरतने की उम्मीद की जा सकती है. हालांकि, बहुआयामी RoO की जटिलताओं से घरेलू कारोबारियों को व्यापार, लॉजिस्टिक्स और प्रशासनिक लागत की मदद में ज़्यादा रक़म ख़र्च करनी पड़ सकती है. कारोबारी अक्सर लचीली नियामक व्यवस्था को तरज़ीह देते हैं, ताकि व्यापार अबाध गति से हो सके. ऐसे में वो मुक्त व्यापार समझौते का विकल्प अपनाने के बजाय व्यापार के पारंपरिक तरीक़े अपना सकते हैं. जहां पर व्यापार कर के लाभ बहुत कम (10 प्रतिशत) होते हैं. इसीलिए, संतुलन बनाने के लिए भागीदारों से बात करना ज़रूरी है. व्यापार के भागीदारों को चाहिए कि वो वैश्विक मानकों का पालन करें. जैसे कि हार्मोनाइज़्ड कम्युनिटी डेसक्रिप्शंस (HS Codes 2022), जिन्हें वर्ल्ड कस्टम्स ऑर्गेनाइज़ेशन ने लागू किया था. हर उत्पाद वर्ग की वैल्यू चेन की पड़ताल करना ज़रूरी है, जहां भागीदार, व्यापार समझौते की वजह से किए गए बदलावों को बता सकें.

 

भारत- आसियान की आपूर्ति श्रृंखला की कमियों को दूर करना

 

भारत का तर्क है कि मुक्त व्यापार समझौतों में दोनों पक्षों द्वारा बराबरी से रियायत देने, ग़ैर व्यापारिक बाधाएं लगाने, आयात के नियम और हिस्सेदारी ने आसियान देशों को उसके निर्यात में बाधाएं डाली हैं.

 

मूलभूत ढांचे की कमियां और आमदनी में तब्दीली जैसी कमज़ोरियां व्यापार में भारत के फ़ायदे सीमित कर देती हैं और इनका निर्यात पर कहीं ज़्यादा असर पड़ता है. भारत और आसियान के बाज़ारों में चीनी उत्पादनों की भरमार AITGA की संभावनाओं को चोट पहुंचाती है. वहीं दूसरी तरफ़, आसियान और चीन के बीच मुक्त व्यापार समझौता (FTA) भारत की तुलना में चीन को आसियान के बाज़ारों तक आसानी से पहुंच देता है. इस बीच, ‘चीन प्लस वनकी नीति को बढ़ावा देने से आसियान की मैन्युफैक्चरिंग की ताक़त और बढ़ सकती है. भारत द्वारा आसियान के साथ व्यापार समझौते की समीक्षा में इन बदलावों पर भी विचार होना चाहिए, ताकि वो अपनी व्यापारिक रणनीति में प्रभावी ढंग से बदलाव कर सके.

 

एक ठोस नियामक व्यवस्था के साथ साथ, AITGA की कामयाबी के लिए शर्तों को सक्रियता से लागू करने की भी ज़रूरत है. CoO के लिए साझा डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म लागू करने, ट्रेड इंफ्रास्ट्रक्चर फ़ॉर एक्सपोर्ट स्कीम (TIES) और मार्केट एक्सेस इनिशिएटिव (MAI) की योजनाओं जैसे क़दमों को कार्यकारी स्तर पर अपनाया तो गया है. कस्टम बॉन्डेड वेयर हाउस योजना कंपनियों को कस्टम ड्यूटी अदा करने में रियायत देकर सामान आयात करने का मौक़ा देती है. इसके साथ ही वो उन्हें कस्टम बॉन्डेड वेयरहाउस में वस्तुओं के निर्माण का अवसर भी देती है. ऐसे उद्यमों को ब्याज की शून्य ज़िम्मेदारी और निर्यात की कोई सीमा होने का भी लाभ मिल जाता है

 

2010-21 के दौरान, दुनिया भर से भारत का आयात 63 प्रतिशत बढ़ गया था. लेकिन, सिर्फ़ आसियान देशों से ही उसका आयात 120 फ़ीसद तक बढ़ गया था. वैसे तो हाल ही में भारत ने आसियान के साथ अपने 20वें शिखर सम्मेलन और 18वें ईस्ट एशिया समिट में 12 बिंदुओं का प्रस्ताव रखा था. इसमें भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर स्टैक को आसियान के साझीदारों से शेयर करना भी शामिल था. लेकिन, दोनों पक्षों की साझेदारी को मज़बूत बनाने के लिए AITGA का आधुनिकीकरण करना सबसे आवश्यक है. आज जब भारत ख़ुद को निर्माण के वैश्विक केंद्र के रूप में प्रस्तुत करने के प्रयासों में तेज़ी ला रहा है. तो आसियान के साथ उसके मुक्त व्यापार समझौते की कामयाबी इसलिए बहुत ज़रूरी है, ताकि आसियान की आपूर्ति श्रृंखला में भारत अपनी कमज़ोर स्थिति से उबर सके.

 

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