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Published on Oct 15, 2025 Updated 0 Hours ago

कनाडाई विदेश मंत्री अनीता आनंद की यह यात्रा हाल के सकारात्मक बदलावों को आगे बढ़ाने का कदम है, यह दौरा दोनों देशों के बीच भरोसा दोबारा बनाने का अच्छा अवसर हो सकता है.

एक साल बाद... भारत-कनाडा फिर साथ?

अंतरराष्ट्रीय संबंधों में, विराम का अपना महत्व होता है. चाहे वह ग़लतफ़हमी की वज़ह से हो, मनमुटाव से हो, झड़प से हो या युद्ध के कारण ही क्यों न हो, एक अस्थायी विराम देशों को अपना रुख़ बदलने और संबंधों को फिर से सुधारने के लिए ज़रूरी अवसर उपलब्ध करा सकता है. कनाडा की विदेश मंत्री अनीता आनंद की तीन दिनों की यात्रा भारत और कनाडा के संबंधों के लिए बिल्कुल ऐसा ही एक मोड़ है. ठीक एक साल पहले, दोनों लोकतंत्रों के बीच द्विपक्षीय संबंध पहले से कहीं अधिक तनावपूर्ण लग रहे थे, क्योंकि कनाडा ने एक खालिस्तान समर्थक की हत्या के मामले में भारतीय राजनयिकों को ‘संभावित संदिग्ध’ बताने में देरी नहीं की थी और भारत ने भी कनाडाई राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश दे दिया था.

  • कनाडा की विदेश मंत्री अनीता आनंद की तीन दिन की भारत यात्रा, दोनों देशों के रिश्तों में एक नया मोड़ साबित हो सकती है.

  • यह भारत और कनाडा, दोनों के लिए अच्छा अवसर है कि वे एक-दूसरे पर विश्वास बढ़ाकर वैश्विक परिस्थितियों का लाभ उठाएं.

अब संबंधों में फिर से गरमाहट दिख रही है, जिसकी वज़ह है- कनाडा की घरेलू और बाहरी परिस्थितियों में आया बदलाव. कनाडा में जस्टिन ट्रूडो से लेकर मौजूदा मार्क कार्नी सरकार तक उसके रवैये में एक स्वागत योग्य परिवर्तन आया है. जून में कनानास्किस में आयोजित जी-7 नेताओं के शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कनाडाई प्रधानमंत्री कार्नी के बीच हुई मुलाक़ात वह महत्वपूर्ण मौका था, जिसे दोनों सरकारों के शीर्ष स्तर पर हुई एक नई पहल के रूप में देखा गया. कनाडाई विदेश मंत्री की यह यात्रा इन्हीं बदलावों की अगली कड़ी है, जो अत्यंत आवश्यक थी. यह दौरा आपसी विश्वास बहाली का एक मौका दे सकता है.

ठीक एक साल पहले, दोनों लोकतंत्रों के बीच द्विपक्षीय संबंध पहले से कहीं अधिक तनावपूर्ण लग रहे थे, क्योंकि कनाडा ने एक खालिस्तान समर्थक की हत्या के मामले में भारतीय राजनयिकों को ‘संभावित संदिग्ध’ बताने में देरी नहीं की थी और भारत ने भी कनाडाई राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश दे दिया था.

दोनों देशों के लिए बाहरी परिस्थितियां अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की ताजपोशी के बाद काफ़ी बदल गई हैं, ख़ास तौर से अमेरिका के दूसरे सबसे बड़े कारोबारी भागीदार कनाडा के लिए. ट्रंप की नीति से जो अनिश्चितता पैदा हुई है, उसने ज़्यादातर देशों को अस्थिर बना दिया है और उनको स्थिरता के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. हालांकि, कनाडा के लिए परेशानी कहीं अधिक बड़ी है. वह G-7 से बाहर अकेला ऐसा देश है, जिसने अमेरिका के साथ व्यापार समझौता नहीं किया है. कार्नी इसी वायदे के साथ सत्ता में आए हैं कि वह कनाडा की आर्थिक सेहत को सुधारने का प्रयास करेंगे, पर ट्रंप के हमले ने न्यूनतम सरकारी दख़ल व मुक्त बाज़ार दृष्टिकोण पर आधारित व्यापार और कारोबारी माहौल को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है. इस्पात, ऑटो और अन्य क्षेत्रों पर अमेरिकी टैरिफ़ से कनाडा की अर्थव्यवस्था को लगातार नुकसान पहुंच रहा है. इतना ही नहीं, ट्रंप कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने का बार-बार आह्वान भी करते रहे हैं.

भारत-कनाडा संबंध 

कनाडाई प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच हाल ही में हुई बैठक में, जो दोनों नेताओं की दूसरी मुलाक़ात थी, ट्रंप ने कहा कि अमेरिका व कनाडा के संबंधों में ‘स्वाभाविक संघर्ष’ भी है और ‘आपसी प्रेम’ भी. उनके कहने का यही मतलब था कि दोनों देशों के रिश्तों में उथल-पुथल बनी रह सकती है. चूंकि, कनाडा को व्यापार और सुरक्षा विविधीकरण की सख़्त ज़रूरत है, इसलिए उसकी विदेश मंत्री भारत की यात्रा के बाद दो अन्य देश- सिंगापुर और चीन भी जाएंगी, जो कनाडा के द्विपक्षीय और वैश्विक, दोनों व्यापार के लिए अहम हैं. हालांकि, भारत को अपना पहला पड़ाव बनाना यही बता रहा है कि ओटावा आपसी रिश्तों को फिर से पटरी पर लाने को उत्सुक है.

कनाडा के विदेश मंत्रालय ने साफ़ कर दिया है कि भारत और कनाडा ‘व्यापार विविधीकरण, ऊर्जा बदलाव और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर रणनीतिक सहयोग के लिए एक ढांचा बनाने’ की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. 

कनाडा के विदेश मंत्रालय ने साफ़ कर दिया है कि भारत और कनाडा ‘व्यापार विविधीकरण, ऊर्जा बदलाव और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर रणनीतिक सहयोग के लिए एक ढांचा बनाने’ की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. विदेश मंत्री आनंद का तीन दिवसीय यात्रा के क्रम में मुंबई पहुंचना और केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री के साथ मिलना यही बता रहा है कि कनाडा की आर्थिक ज़रूरतें क्या हैं. भारत और कनाडा, दोनों का आपसी व्यापार 2024 में करीब 10 अरब अमेरिकी डॉलर का था, जिसमें प्रवासी संबंधों, सांस्कृतिक रिश्तों और बढ़ते निवेश के कारण वृद्धि ही होगी.

राजनीतिक नज़रिये से देखे, तो विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ आनंद की मुलाक़ात आपसी विश्वास बनाने की एक कोशिश है. यह काम कनाडा में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की मुलाक़ात के बाद से ही चल रहा है, जिसके बाद दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बीच नई दिल्ली में बैठक हुई थी, जिसमें अजीत डोभाल और उनकी समकक्ष नथाली जी ड्रोइन की मुलाक़ात हुई थी. इसके बाद, दोनों देशों द्वारा नए उच्चायुक्तों की नियुक्ति एक नई शुरुआत का प्रतीक थी. बेशक, इन कदमों की लगातार और उचित पड़ताल की ज़रूरत पड़ेगी, लेकिन यह सक्रियता काफ़ी अहम साबित हो सकती है. विश्व व्यवस्था में मौजूदा उतार-चढ़ाव के बीच जैसे-जैसे देश अवसरों की तलाश कर रहे हैं, भारत और कनाडा भी, अगली विश्व व्यवस्था में अपनी भागीदारी को लेकर संजीदगी दिखाने को तैयार हैं.

आगे की राह 

ऐसे में, यह भारत और कनाडा, दोनों के लिए अच्छा अवसर है कि वे एक-दूसरे पर विश्वास बढ़ाकर वैश्विक परिस्थितियों का लाभ उठाएं. कनाडा के लिए ज़रूरी है कि वह खालिस्तान समर्थक भावनाओं को भड़काने वाले घरेलू तत्वों पर लगाम लगाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाए. यह सुरक्षा व संप्रभुता के लिहाज़ से आपसी विश्वास बढ़ाने में काफ़ी मददगार साबित हो सकता है. कनाडा पुलिस द्वारा अमेरिका स्थित गुट ‘सिक्ख फ़ॉर जस्टिस’ के कार्यक्रमों के प्रमुख आयोजक इंद्रजीत सिंह गोसाल सहित तीन लोगों की गिरफ़्तारी ऐसा ही एक कदम था. हाल के दिनों में, भारतीयों या भारतीय मूल के कनाडाई लोगों के व्यापार या कारोबारी ठिकानों पर लक्ष्य बनाकर की जा रही गोलीबारी, तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाओं में जो तेज़ी आई है, वह चिंता का विषय रही है. इस पर भी कनाडा को ध्यान देना चाहिए.

यह भारत और कनाडा, दोनों के लिए अच्छा अवसर है कि वे एक-दूसरे पर विश्वास बढ़ाकर वैश्विक परिस्थितियों का लाभ उठाएं. कनाडा के लिए ज़रूरी है कि वह खालिस्तान समर्थक भावनाओं को भड़काने वाले घरेलू तत्वों पर लगाम लगाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाए.

भारत की तरह कनाडा के लिए भी व्यापार, ऊर्जा और सुरक्षा विविधीकरण ज़रूरी है. इसका कोई विकल्प नहीं हो सकता. वह भारत ही नहीं, सिंगापुर और चीन जैसे अन्य प्रमुख देशों की ओर भी देख रहा है, इसलिए उसे अपनी निष्क्रिय हिंद-प्रशांत रणनीति को भी जीवित करने की दिशा में काम करना चाहिए. यह सच है कि हिंद-प्रशांत में भारत की केंद्रीय भूमिका भारत-कनाडा द्विपक्षीय संबंधों को आकार देती रहेगी, पर बीते कुछ वर्षों की घटनाओं को देखते हुए संकट प्रबंधन के लिए एक ऐसे मजबूत ढांचे की ज़रूरत ज़रूर महसूस की जाने लगी है, जो दोनों देशों के बीच होने वाली आकस्मिक उथल-पुथल की आंच द्विपक्षीय संबंधों पर न आने दे.


(यह लेख मुख्य रूप से बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित हुआ है)

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