Author : Premesha Saha

Published on Feb 07, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत एक स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र की हमेशा से वकालत करता रहा है. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और आसियान के सभी सदस्यों ने एक साथ यह विचार आगे रखा है कि इस क्षेत्र में भारत को एक बड़ी भूमिक निभानी चाहिए.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र की उभरती गतिशीलता में भारत की भूमिका

हिंद और प्रशांत महासागर की बढ़ती अहमियत ने “हिंद-प्रशांत” क्षेत्र को एक भू-रणनीतिक आयाम के रूप में नई गति दी है और यही वजह है कि 21वीं सदी के ज़्यादातर समय के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र वैश्विक राजनीति के स्वरूप को आकार देगा.  यह वह क्षेत्र है जहां दुनिया की महान शक्तियों के बीच (ख़ास तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) और चीन के बीच) प्रतिस्पर्धा  जारी है.  यह वह क्षेत्र है जहां दुनिया की कुछ सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी नज़र आती हैं. चीन की संदिग्ध नीतियां और आक्रामक विस्तारवादी प्रवृत्तियां जिसके चलते हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़े लगभग सभी मुल्कों के हित बाधित हो रहे हैं, उसे देखते हुए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, ब्रिटेन, और यूरोपियन यूनियन जैसी विश्व की सभी प्रमुख शक्तियां हिंद-प्रशांत क्षेत्र को अपनी विदेश, रक्षा और सुरक्षा नीतियों का केंद्र बना रही हैं, तो ऐसे में इस क्षेत्र की बढ़ती अहमियत को समझा जा सकता है.  इसमें दो राय नहीं कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र वो आधार है जिसके चारों ओर कई मुल्क अपनी नीतियों को फिर से स्थापित और जोड़ने में लगे हैं.

चीन की संदिग्ध नीतियां और आक्रामक विस्तारवादी प्रवृत्तियां जिसके चलते हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़े लगभग सभी मुल्कों के हित बाधित हो रहे हैं, उसे देखते हुए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, ब्रिटेन, और यूरोपियन यूनियन जैसी विश्व की सभी प्रमुख शक्तियां हिंद-प्रशांत क्षेत्र को अपनी विदेश, रक्षा और सुरक्षा नीतियों का केंद्र बना रही हैं

नैरोबी में साल 2016 के मध्य में जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफ़िक (एफओआईपी) की अवधारणा को सबके सामने रखा था.  इसी प्रकार अमेरिका ने एफओआईपी शब्दावली को समझा और यूएस पैसिफ़िक कमांड का नाम बदलकर इंडो-पैसिफ़िक कमांड कर दिया. इस क्षेत्र में दूसरे मुल्क जिसमें ऑस्ट्रेलिया, भारत, इंडोनेशिया और यहां तक कि एसोसिएशन ऑफ़ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स (आसियान), ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैंड्स शामिल हैं, और अब यूरोपियन यूनियन ने भी अपनी विदेश नीति के स्वरूप में इंडो-पैसिफ़िक शब्दावली के तहत कुछ बदलाव किए हैं.

स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र

भारत एक स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र की हमेशा से वकालत करता रहा है. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और आसियान के सभी सदस्यों ने एक साथ यह विचार आगे रखा है कि इस क्षेत्र में भारत को एक बड़ी भूमिक निभानी चाहिए. अपने दायरे में भारत, हिंद-प्रशांत क्षेत्र को एक भौगोलिक और रणनीतिक विस्तार, जिसमें दो महासागर को जोड़ने वाले 10 आसियान देश हैं, के रूप में मानता है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर भारत की अवधारणा में “समावेशिता, खुलापन, और आसियान केंद्रीयता और एकता” का सार बसता है. भारत के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र का भौगोलिक दायरा अफ्रीका के पूर्वी किनारे से लेकर ओसियानिया (अफ्रीका के तट से लेकर जो अमेरिका तक फैला है), जिसके साथ पैसिफ़िक द्वीप के देश भी जुड़े हैं. भारत इंडो ओसन रिम एसोसिएशन (आईओआरए), ईस्ट एशिया समिट, आसियान डिफेंस मिनिस्टर्स मीटिंग प्लस, आसियान रीज़नल फोरम, बे ऑफ़ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन (बिम्सटेक), मेकांग गंगा इकोनॉमिक कॉरिडोर जैसी व्यवस्थाओं में सक्रिय भागीदार रहा है. इसके अतिरिक्त भारत इंडियन नैवल सिम्पोज़ियम का भी आयोजक है. फ़ोरम फ़ॉर इंडिया-पैसिफ़िक आइलैंड्स को-ऑपरेशन (एफआईपीसी) के जरिए भारत पैसिफ़िक द्वीप के मुल्कों के साथ भी साझेदारी बढ़ाने की कोशिशों में जुटा हुआ है.

इस क्षेत्र में भारत का व्यापार तेजी से बढ़ रहा है, इसके साथ ही विदेशी निवेश पूरब की ओर भेजा जा रहा है, जैसे जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर के साथ व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते और आसियान और थाईलैंड के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए गए हैं.

भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर काम करने का पक्षधर है, जिससे नियम-आधारित बहुध्रुवीय क्षेत्रीय व्यवस्था का बेहतर प्रबंधन किया जा सके और किसी एक शक्ति को इस क्षेत्र या उसके जलमार्गों पर हावी होने से रोका जा सके. 

इस क्षेत्र के लिए भारत के दृष्टिकोण को इसकी “ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी” को बढ़ावा देने से समझा जा सकता है, जिसमें दक्षिणपूर्व एशिया के साथ आर्थिक जुड़ाव और पूर्वी एशिया (जापान, कोरिया गणराज्य), ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड के साथ-साथ प्रशांत क्षेत्र के द्वीप देशों के लिए रणनीतिक सहयोग की बात कही गई है.

भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र को एक रणनीति या सीमित सदस्यों के समूह के रूप में नहीं देखता है. भारत इस क्षेत्र में सुरक्षा को बातचीत के माध्यम से बनाए रखे जाने, एक सामान्य नियम-आधारित आदेश, नौपरिवहन की स्वतंत्रता, बिना किसी रोक-टोक के वाणिज्य और अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक विवादों का निपटारा चाहता है. भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर काम करने का पक्षधर है, जिससे नियम-आधारित बहुध्रुवीय क्षेत्रीय व्यवस्था का बेहतर प्रबंधन किया जा सके और किसी एक शक्ति को इस क्षेत्र या उसके जलमार्गों पर हावी होने से रोका जा सके. उदाहरण के लिए, साउथ चाइना सी (एससीएस) में भारत ने हमेशा से नौपरिवहन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने की ज़रूरत पर जोर दिया है और अब एक अधिक मुखर तरीका अपनाया जा रहा है, जिससे दक्षिण चीन सागर(एससीएस) को “ग्लोबल कॉमन्स” (पूरी दुनिया के सामान्य) घोषित किया गया है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय कानून के मुताबिक़ “किसी तीसरे पक्ष के हितों को प्रभावित नहीं किया जाना चाहिए” और सभी विवादों का निपटारा किया अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार किया जाना चाहिए. दरअसल यह बीजिंग की ओर निर्देशित किए गए संदेश हैं. भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम-आधारित, संतुलित और स्थिर व्यापारिक माहौल के समर्थन में हमेशा से रहा है. पारस्परिक लाभ को बढ़ावा देने वाली सतत गतिविधियों को लगातार प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. इस संबंध में, भारत न्यू डेवलपमेंट बैंक और एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक में एक महत्वपूर्ण हिस्सेदार रहा है. यह भारत-प्रशांत में क्षेत्रीय मामलों के प्रबंधन में आसियान जैसे बहुपक्षीय संगठनों के लिए एक केंद्रीय भूमिका की अवधारणा को बल देता है.

भारत ने हमेशा से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के ढांचे में  “समावेशी” अवधारणाओं को शामिल करने पर जोर दिया है, हालांकि सभी साझेदारों के हितों के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण होगा. 

मुद्दा-आधारित साझेदारी

भारत-प्रशांत क्षेत्र में अपने भागीदारों के साथ जुड़ना भारत के लिए एक ज़रूरत है, विशेष रूप से 2020 गलवान घाटी संघर्ष के बाद, चीन-भारत संबंधों में मुश्किल दौर आया. भारत अब मुद्दा-आधारित साझेदारी में विश्वास करता है- और यह भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान, भारत-अमेरिका-जापान, भारत-ऑस्ट्रेलिया-इंडोनेशिया जैसे कई मंचों पर भारत की साझेदारी को बताता है, जो हाल के दिनों में तेजी से बढ़े हैं. तेजी से महाशक्ति बनते और आक्रामक होते चीन का सामना करते हुए, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ-साथ आसियान जैसे देश अपनी चीन संबंधी नीतियों पर पुनर्विचार और पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं. भारत, अपने क्वाड साझेदारों के साथ, हिंद-प्रशांत में अपनी भूमिका को बढ़ा रहा है. सितंबर 2019 के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद, क्वाड ने महत्वपूर्ण रूप से ख़ुद को आगे बढ़ाया है. यह केवल एक लोकप्रिय बहुआयामी मंच नहीं है और ना ही सिर्फ़ बड़ी-बड़ी बातें करने के लिए है. जुलाई 2020 में, भारतीय नौसेना ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में अमेरिकी नौसेना के साथ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास किया, जिससे चीन को एक स्पष्ट संदेश गया. भारत और ऑस्ट्रेलिया ने जून 2020 में आपस में लॉजिस्टिक्स शेयरिंग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं; जापान के साथ भी भारत ने सितंबर 2020 में म्यूचुअल लॉजिस्टिक्स शेयरिंग एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए; भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका ने अक्टूबर 2020 में लंबे समय से लंबित बेसिक एक्सचेंज कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बीईसीए ) को अंतिम रूप दिया; भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करने के मक़सद से और अंततः हिंद-प्रशांत में एक मज़बूत, टिकाऊ, संतुलित और समावेशी विकास प्राप्त करने के उद्देश्य से अप्रैल 2021 में एक आपूर्ति श्रृंखला पहल की शुरुआत की. इसके अलावा, ऑस्ट्रेलिया ने भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ नवंबर 2020 में मालाबार अभ्यास में भाग लिया. भारत आख़िरकार इस प्रस्ताव के साथ बड़े पैमाने पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समान विचारधारा वाले देशों के साथ काम करने की अपनी प्रतिबद्धता को दिखाता है और यह भी कि भारत ज़रूरत पड़ने पर सख़्त फैसले और रुख़ अख़्तियार करने से नहीं कतराएगा. यह क्वाड के साथ सैन्य शक्ति के जुड़ाव को दर्शाता है जब साल 2007 में पहली बार चारों मुल्कों ने साझा युद्धाभ्यास किया. जैसा कि क्वाड ने अपनी शक्तियों की नुमाइश शुरू की, और चीन के साथ भारत के संबंध तनावपूर्ण होते गए, नई दिल्ली ने अपने सहयोगी मुल्कों के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर रणनीति में भी भारी बदलाव किया. कोरोना महामारी को लेकर अब जबकि पूरी दुनिया नई चुनौतियों से निपटने में जुटी हुई है, यह भारत के लिए बेहद तार्किक है कि वो हिंद-प्रशांत क्षेत्र के मुल्कों के साथ चीन पर आर्थिक निर्भरता को कम करने के लिए एक वैकल्पिक सप्लाई चेन को बनाए, जिससे अपने ख़ुद के स्वास्थ्य ढांचा और रिसर्च एंड डेवलपमेंट को बढ़ावा दिया जा सके और जिससे अनुभव लेकर और बहुत कुछ सीखा जा सकेगा.

तेजी से महाशक्ति बनते और आक्रामक होते चीन का सामना करते हुए, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ-साथ आसियान जैसे देश अपनी चीन संबंधी नीतियों पर पुनर्विचार और पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं. भारत, अपने क्वाड साझेदारों के साथ, हिंद-प्रशांत में अपनी भूमिका को बढ़ा रहा है. 

विदेश मंत्रालय (एमईए) के तहत हिंद-प्रशांत विभाग को इसके स्वाभाविक नतीजे के तौर पर तैयार किया गया है. चूंकि “हिंद-प्रशांत” की लगातार अहमियत बढ़ रही है तो अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे ताक़तवर मुल्क अपने क्षेत्रीय दृष्टिकोण को बता रहे हैं (इस शब्द को अपने आधिकारिक नीति में शामिल करने के अलावा), ऐसे में भारत के लिए अपनी हिंद-प्रशांत नीति को लागू करना ज़रूरी है. यह एमईए विंग, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रति प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को बताता है जो एकीकृत रणनीति को आईओआरए और आसियान क्षेत्र  के अलावा क्वाड और हिंद-प्रशांत क्षेत्र की गतिशीलता के साथ जोड़ता है.

यह महत्वपूर्ण है कि नया विदेश मंत्रालय विभाग सुरक्षा और राजनीतिक मुद्दों से आगे बढ़े जिससे क्षेत्र के प्रति अधिक व्यापक नीति तैयार की जा सके. अगर भारत को अपने क्षेत्रीय जुड़ाव के लिए एक नई शुरुआत का फायदा उठाना है तो वाणिज्य और कनेक्टिविटी को प्राथमिकता देनी होगी. भारत ने हमेशा से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के ढांचे में  “समावेशी” अवधारणाओं को शामिल करने पर जोर दिया है, हालांकि सभी साझेदारों के हितों के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण होगा. जबकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र की बात करने वाले इस बात को लेकर सहमत हैं कि इस क्षेत्र में नियमों का जोर हो लेकिन दृष्टिकोण और नीतियां (हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर दृष्टि या रणनीति) अलग-अलग हो सकती हैं. उदाहरण के तौर पर, भारत का दृष्टिकोण अमेरिका से बिल्कुल भिन्न है. लेकिन ऐसा लगता है कि हाल के वर्षों में भारत ने चीन का तन कर सामना करने के लिए अपने अतीत को भुला दिया है. हालांकि, जैसे-जैसे चीन और अमेरिका के बीच भू-राजनीतिक तनाव बढ़ता जा रहा है, भारत को अपने दीर्घकालिक रणनीति और आर्थिक हितों को ध्यान में रखते हुए अपने हिंद-प्रशांत नीतियों को सावधानीपूर्वक निर्माण करने की आवश्यकता है.

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