Author : Sukrit Kumar

Published on Apr 21, 2020 Updated 0 Hours ago

भारत की एकमात्र विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य पर आग लगने से एक नाविक की मौत हो गई. और चीन, जो भारत का एक प्रमुख प्रतिद्वंद्वी है, का कहना है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारतीय सेनाएं उन्नत सैन्य उपकरण संचालित करने के लिए पर्याप्त सक्षम नहीं हैं.

भारत की बढ़ती हुई नौसैनिक चुनौतियां!

विमान वाहक पोत जो भारतीय नौसेना को हिंद महासागर में एक उत्कृष्ट बल बनाती है, इससे इस क्षेत्र में हमारी भारतीय नौ-सेनाओं को किसी भी विदेशी ताक़तों की तुलना में कमांड और कंट्रोल करने की एक रणनीतिक बढ़त मिलती है. अपनी इस विमान वाहक पोत की बदौलत भारत आज दुनिया में एक प्रसिद्ध नेवल एविएशन के क्षेत्र में प्रमुख शक्ति के रूप में जाना जाता है. इस लेख के माध्यम से हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि भारतीय नौसेना की वो कौन सी कमियां है जिन्हें सुधारकर अपने राष्ट्रिय हितों को तेजी से हासिल कर सकता है.

भारत हाल के वर्षों में अपनी सेनाओं को सक्रिय रूप से विकसित कर रहा है लेकिन इनकी सैन्य संस्कृति ढीली है और इनके नियम कच्चे हैं. इसी वजह से सैनिकों को उन्नत सैन्य उपकरण संचालित करने के लिए प्रभावी रूप से प्रशिक्षित नहीं कर सकते हैं

रिपोर्ट बताते हैं कि 2007 से लेकर 2017 तक भारतीय नौसेना में 22 दुर्घटनाएं हुई हैं जिसमें 177 ऑफिसर जांच होने के उपरांत दोषी पाए गए हैं. जांच में यह पाया गया कि भारतीय नौसेना में बार-बार इस तरह की दुर्घटना का प्रमुख कारण या तो खराब गुणवत्ता वाले साज-सामानों की खरीदी या अनुचित रखरखाव या अपर्याप्त प्रशिक्षण है. पिछले साल भारत की एकमात्र विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य पर आग लगने से एक नाविक की मौत हो गई. और चीन, जो भारत का एक प्रमुख प्रतिद्वंद्वी है, का कहना है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारतीय सेनाएं उन्नत सैन्य उपकरण संचालित करने के लिए पर्याप्त सक्षम नहीं हैं. 26 अप्रैल को करवार नौसैनिक अड्डे में प्रवेश करते समय आईएनएस विक्रमादित्य के इंजन कक्ष में आग लग गई. हालांकि, कारणों का खुलासा अभी तक नहीं हो पाया है. लेकिन एक चीनी नौसैनिक विशेषज्ञ ली जी का कहना है कि यह आग यांत्रिकी समस्याओं के बजाय मानवीय त्रुटियों से हुई है. उन्होंने आगे कहा कि भारत हाल के वर्षों में अपनी सेनाओं को सक्रिय रूप से विकसित कर रहा है लेकिन इनकी सैन्य संस्कृति ढीली है और इनके नियम कच्चे हैं. इसी वजह से सैनिकों को उन्नत सैन्य उपकरण संचालित करने के लिए प्रभावी रूप से प्रशिक्षित नहीं कर सकते हैं.

भारतीय पनडुब्बी सिंधुरक्षक के एक टोरपीडो में ऑक्सीजन लीक होने से विस्फोट हुआ था. सीएजी ने इस बारे में नेवी की इंक्वायरी रिपोर्ट को सार्वजनिक किया 2013 के अगस्त में मुंबई पोर्ट पर पनडुब्बी में विस्फोट से नेवी के 18 लोग मारे गए थे. INS तलवार से एक साल पहले एक मछली पकड़ने वाले ट्रॉलर से एक फ्रिजर टकरा गया था.

हाँ, भारतीय सेनाएं निश्चित रूप से इन सबके लिए आलोचना की हक़दार है. इसने पिछले एक दशक में कई दुर्घटनाओं का सामना किया है, जिसमें 2006 में एक व्यापारी जहाज के साथ टकराने के बाद डूब गया. नए हथियारों का विकास, जैसे कि अर्जुन टैंक और तेजस लड़ाकू जहाज के बनाने में देरी होना, अधिक लागत का आना और कुछ तकनीकी समस्याओं से जूझना. स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत को ‘मानवीय त्रुटी” के कारण बड़ी क्षति हुई थी और इसे 10 महीने के लिए समुंदर में नहीं उतारा गया था. हमें नहीं भूलना चाहिए कि भारत के पास विमान वाहक पोतों को संचालित करने का चीन की तुलना में कहीं ज्यादा अनुभव है. भारत का पहला विमान वाहक पोत विक्रांत जो द्वितीय विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश विमान वाहक पोत था, वह 1961 में ही कमीशन कर लिया गया था. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अपनी अभूतपूर्व भूमिका निभाई थी. चीन का पहला विमान वाहक पोत, लिओनिंग (पूर्व सोवियत वाहक वैराग) 2012 तक चालू ही नहीं हुआ था.

भारत और चीन अपने हितों की पूर्ति के लिए अपने मालवाहक पोतों की तेज़ी से निर्माण करने की प्रक्रिया में जुट गये हैं. भारत एक नया विक्रांत बना रहा है, जो देश का पहला घरेलू निर्मित विमान-वाहक पोत होगा. यह भी अपने विनिर्माण के तीसरे चरण में है जिसमें मशीनरी और अन्य उपकरणों का काम करना शामिल है. इसे साल 2021 की शुरुआत में चालू करने की संभावना है. इसे कोच्चि में कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा बनाया जा रहा है. इसके अलावा भारत ने 65000 टन का एक अन्य एयरक्राफ़्ट कैरियर के निर्माण करने की योजना की घोषणा भी कर दिया है जो रॉयल नेवी की महारानी एलिज़ाबेथ श्रेणी के जहाजों पर आधारित हो सकती है.

इस तरह की दुर्घटनाएं सिर्फ भारतीय सैनिकों के ही साथ नहीं बल्कि अमेरिका, रूस और चीन भी इस तरह की समस्याओं से जूझ चुके हैं. ऐसा नहीं है कि उनके साथ कोई नौसैनिक घटनाएं नहीं हुई है या अपने हथियारों के विकास में उन्होंने अरबों डॉलर की बर्बादी नहीं की है या युद्ध पोतों के समुद्र में जाने पर कोई दुर्घटना नहीं हुई है

चीन भारत की तुलना में इससे ज्यादा कहीं अधिक महत्वाकांक्षी है. चीनी का पहला स्वदेश निर्मित विमान वाहक पोत, एक प्रकार का 001A पोत,  2019 के अंत में लांच हुआ. रिपोर्ट बताते हैं कि 2035 तक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी के पास 6 नए एयरक्राफ़्ट कैरियर होंगे. भारतीय तकनीकी क्षमता के बारे में चीन की जो धारणा है वह सही नहीं प्रतीत होती है. 2003 में येलो सी में एक प्रशिक्षण-मिशन के दौरान चीनी डीजल पनडुब्बी में सवार 70 नाविकों की मृत्यु हो गई थी. शायद इसीलिए की एक इंजन की खराबी की वजह से उनका दम घुट कर मृत्यु हो गया. चीन की पहली परमाणु संचालित मिसाइल पनडुब्बी इतनी खराब थी कि यह केवल एक बार ही रवाना हुई.

इस तरह के तथ्य चीनी आलोचकों का समर्थन करते हैं लेकिन यह पूरी तरह से सही तस्वीर नहीं चित्रित करता. इस तरह की दुर्घटनाएं सिर्फ भारतीय सैनिकों के ही साथ नहीं बल्कि अमेरिका, रूस और चीन भी इस तरह की समस्याओं से जूझ चुके हैं. ऐसा नहीं है कि उनके साथ कोई नौसैनिक घटनाएं नहीं हुई है या अपने हथियारों के विकास में उन्होंने अरबों डॉलर की बर्बादी नहीं की है या युद्ध पोतों के समुद्र में जाने पर कोई दुर्घटना नहीं हुई है. अन्य देशों से सैन्य उपकरणों की खरीदारी भारतीय सेना के प्रबंधन की चुनौती को बढ़ाती है क्योंकि हथियारों अलग-अलग निर्माताओं के अलग-अलग मानकों के साथ बनाए जाते हैं. इसलिए हथियारों के पार्ट्स जरूरत पड़ने पर हम सिर्फ उसी देश पर निर्भर रहते हैं जिस देश से हथियार खरीदे हैं. यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक चिंता का विषय है.  इन्हीं सब को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने अपने हथियारों की खरीदारी पर विचार करते हुए वह सिर्फ एक देश पर ही निर्भर नहीं रह रहा है. इन्हीं सबका नतीजा है कि अब भारत रूस के अलावा अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन से भी हथियारों का निर्यात कर रहा है. इसके अलावा भारत इन देशों से ट्रांसफर आफ टेक्नोलॉजी के माध्यम से स्वदेशी हथियार को भी बढ़ावा दे रहा है. ग्रेट पॉवर बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं तो आपको इन सबसे पार पाना होगा.

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