Published on Sep 10, 2020 Updated 0 Hours ago

भौगोलिक सीमाओं को पार करते हुए, दुनिया भर में जिस तेज़ी से महामारी फैल रही है, इसने मानव जाति को आत्मनिर्भरता की आवश्यकता समझाई है.

‘दक्षिण-दक्षिण सहयोग’ के ज़रिए कोविड-19 के दौर में भारत की स्वास्थ्य कूटनीति

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा कोविड19 को वैश्विक महामारी घोषित किए जाने के बाद, यह हमारे समय का एक बड़ा संकट बन गया है. भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई 2020 को कहा था कि भारत भले ही आत्मनिर्भरता में विश्वास करता है, लेकिन इसका मतलब किसी भी रूप में महामारी से निपटने या उसकी व्यवस्थाओं को लेकर आत्म-केंद्रित होना नहीं है. इस संदर्भ में उन्होंने संस्कृत की प्राचीन कहावत वसुधैव कुटुम्बकम का उल्लेख किया, जिसका अर्थ है ‘विश्व एक परिवार है’. इस दर्शन ने 123 से अधिक देशों के साथ भारत के सहयोग को दिशा-निर्देशित किया है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का दूसरे देशों को सहयोग, संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा विश्व के नेताओं को समन्वित रूप से साथ आने और मिलकर काम करने के आह्वान की प्रतिक्रिया है. इस सहयोग को प्रख्यात राजनीतिक टिप्पणीकारों ने ‘चिकित्सा कूटनीति’ कहा है. जिन देशों की मदद के लिए भारत आगे आया है, वो मुख्य रूप से विश्व के दक्षिणी देश हैं, जिन्हें चीन सहित 77+ समूह के रूप में जाना जाता है. यह देश महामारी से निपटने की सीमित क्षमता रखते हैं, और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन के लिए इनके पास पर्याप्त साधन नहीं हैं. इसलिए, इस तरह की मदद को दक्षिण-दक्षिण सहयोग (SSC) के नज़रिए से समझा और विश्लेषित किया जाना चाहिए.

उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच दक्षिण-दक्षिण सहयोग (एसएससी) का अर्थ है सदस्य देशों के बीच आपसी सहमति और समन्वय पर आधारित परस्पर सहयोग. यह देशों की अलग-अलग ज़रूरत से संचालित होता है और सदस्य देशों को पारस्परिक लाभ पहुंचाता है. अनुदान, क्षमता निर्माण, व्यापार, विकास संबंधी वित्तीय सहायता और तकनीकी सहयोग, एसएससी के कुछ सामान्य रूप हैं. कोविड19 की महामारी को देखते हुए भारत ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग और विकास संबंधी साझेदारी के माध्यम से दुनिया भर में दवाओं की उपलब्धता की वकालत की है. भारत ने खासतौर पर, कोविड19 से लड़ने के लिए ज़रूरी अति-आवश्यक दवाओं व चिकित्सा सामग्री की आपूर्ति और टीकों की उपलब्धता के अलावा आम लोगों तक उनकी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं.

दुनिया भर के प्रभावित देशों में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (HCQ) के निर्यात के लिए भारत के हालिया प्रयास भारत की चिकित्सा कूटनीति के इतिहास की अगली कड़ी हैं. इस वर्ष 30 अप्रैल को आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने कोविड19 से प्रभावित देशों को अनुदान के रूप में 25 देशों को, 2.8 मिलियन हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और 31 देशों को 1.9 मिलियन पैरासिटामोल की टैबलेट उपलब्ध करवाईं. भारत अगले कुछ हफ्तों में लगभग सौ देशों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कमर कस रहा है. इस कूटनीतिक पहल की लागत भारतीय मुद्रा में 1.1-1.2 बिलियन होगी.

इसके अलावा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और पेरासिटामोल की खेप 87 अन्य देशों को निर्यात की जा रही हैं. इसे एसएससी के अंतर्गत व्यापार संबंधी साझेदारी के तहत वर्गीकृत किया जा सकता है. यूनिसेफ जैसी बहुपक्षीय एजेंसियों को भी भारत ने स्वास्थ्य सेवाओं और सामग्री की आपूर्ति की है. इसी के चलते, संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने भारत जैसे देशों को इस विनाशकारी महामारी से निपटने के लिए एकजुट होकर और अपनी सीमाओं से बढ़कर मदद करने के लिए सलामी दी.

‘पड़ोसी-पहले’ की नीति का पालन करते हुए, भारत ने अफग़ानिस्तान, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, मालदीव, मॉरीशस, श्रीलंका और म्यांमार को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन टैबलेट भेजी हैं. इसके अलावा, भारतीय सैन्य डॉक्टरों को नेपाल और मालदीव में स्थानीय स्तर पर कोविड19 से निपटने संबंधी प्रबंधन के लिए तैनात किया गया है.

दक्षिण एशिया

‘पड़ोसी-पहले’ की नीति का पालन करते हुए, भारत ने अफग़ानिस्तान, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, मालदीव, मॉरीशस, श्रीलंका और म्यांमार को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन टैबलेट भेजी हैं. इसके अलावा, भारतीय सैन्य डॉक्टरों को नेपाल और मालदीव में स्थानीय स्तर पर कोविड19 से निपटने संबंधी प्रबंधन के लिए तैनात किया गया है. इस वर्ष 15 मार्च को सार्क (SAARC) देशों के राज्य प्रमुखों के बीच हुई पहली वीडियो कॉन्फ़्रेंस के दौरान भारतीय प्रधान मंत्री ने- सार्क कोविड19 आपातकालीन कोष बनाने का प्रस्ताव रखा. इस उद्देश्य के लिए उन्होंने भारत की ओर से योगदान के रूप में 10 मिलियन अमेरीकी डालर देने के लिए प्रतिबद्धता जताई. इस तरह की कोशिशों के ज़रिए भारत इस क्षेत्र में नेतृत्व संभालने की दिशा में आगे बढ़ा.

पश्चिम एशिया

इसी के साथ भारत सऊदी अरब, यूएई, ओमान, सीरिया और जॉर्डन में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन टैबलेट की आपूर्ति कर मध्य पूर्व के साथ संबंधों को मज़बूत कर रहा है. यूएई और सऊदी अरब, भारत के दो प्रमुख व्यापारिक साझेदार हैं. इसके अलावा, हाल ही में स्वास्थ्य और चिकित्सा क्षेत्रों में द्विपक्षीय साझेदारी को मज़बूत करने संबंधी समझौता ज्ञापन (MoU) पर भी हस्ताक्षर किए गए हैं. भारत ने जॉर्डन के साथ भी कोविड19 से निपटने संबंधी रणनीति और उपायों को लेकर चर्चा की है, जबकि कुवैत में चिकित्सा पेशेवरों को तैनात किया गया है.

अफ्रीका 

इस वर्ष अप्रैल में, ‘अफ्रीका-केंद्रित कार्य दिवस’ के तहत, भारतीय विदेश मंत्री ने नाइजीरिया, नाइजर, बुर्किना फासो, युगांडा और माली के अपने समकक्षों के साथ बातचीत की एक श्रृंखला आयोजित की और चिकित्सा क्षेत्र में सहायता और सहयोग का वादा किया. इसके बाद 20 अन्य अफ्रीकी देशों को भी चिकित्सा सहायता प्रदान की गई. भारत, जो कोरोनोवायरस महामारी से पहले भी अफ्रीका को दवाओं का एक प्रमुख निर्यातक रहा है, मानवीय आधार पर दवाओं और चिकित्सा उपकरणों का निर्यात करता रहा है. इसने भारत को “विश्व की फार्मेसी” होने का ख़िताब दिया है. इसके अलावा, भारतीय प्रधानमंत्री ने महामारी से निपटने के लिए हर संभव समर्थन का आश्वासन देने के लिए, मिस्र, युगांडा और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्राध्यक्षों से बात करने की व्यक्तिगत पहल की. यह भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन के परिप्रेक्ष्य में विशेष रूप से प्रासंगिक है.

लैटिन अमेरिका और कैरेबियन 

कैरेबियन और लैटिन अमेरिकी देशों को सहयोग देने के भारत के प्रयासों के तहत, भारत ने अनुदान के रूप में 28 देशों के लिए पांच मिलियन हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन टैबलेट की पेशकश की थी. साथ ही ब्राज़ील, अर्जेंटीना और कोलंबिया ने अस्थाई रूप से भारत से आयात किए जाने वाले विशिष्ट श्वसन उपकरणों (Respiratory Medical Devices) पर आयात शुल्क को समाप्त कर दिया है, जबकि कोलंबिया, पैराग्वे और इक्वाडोर ने गैस मास्क और ऑक्सीजन थेरेपी जैसे चिकित्सा उपकरणों के लिए ऐसा किया है.

रिपोर्ट कहती हैं कि भारत अनुदान के रूप में लगभग 4000 हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन टैबलेट जमैका को देगा और 19,200 टैबलेट बेचेगा. इससे पहले भारत ने साल 2019 के कैरिकॉम (CARICOM) शिखर सम्मेलन में जमैका में सामुदायिक विकास परियोजनाओं के लिए एक मिलियन अमेरिकी डॉलर की अनुदान राशि देने का निर्णय लिया था.

अनुदान और वित्तीय साधनों के ज़रिए चिकित्सा सामग्री उपलब्ध करवाने के अलावा भारत, दक्षिण-दक्षिण सहयोग के तहत, क्षमता निर्माण और चिकित्सा पेशेवरों के लिए कौशल और प्रशिक्षण की सुविधा भी प्रदान कर रहा है. भारतीय चिकित्साकर्मी दक्षेस, कैरिबियन और लैटिन अमेरिकी देशों के अपने समकक्षों के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण आयोजित कर रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र के दक्षिण-दक्षिण सहयोग के कार्यालय के अनुसार, भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका का, गरीबी और भुखमरी उन्मूलन कोष (IBSA फंड), जो उत्तरी वियतनाम में स्वास्थ्य देखभाल और गुणवत्ता में सुधार के लिए, प्रमुख ई-लर्निंग परियोजना चलाने का काम करता है, दूरदराज़ इलाक़ो में मौजूद स्वास्थ्य केंद्रों और चिकित्साकर्मियों तक मदद पहुंचाने में महत्वपूर्ण रहा है.

ग्लोबल साउथ देशों को समर्थन देने के अलावा, भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका, स्पेन, बहरीन, जर्मनी और यूके जैसे विकसित देशों में भी भारतीय दवा कंपनियों के साथ वाणिज्यिक समझौतों के तहत चिकित्सा सुविधाएं पहुंचाई हैं. यह उल्लेखनीय है कि भारत ने इन देशों द्वारा निर्धारित कड़े दवा मानकों के बावजूद ऐसा करने में सफलता पाई है.

भारत की चिकित्सा कूटनीति ऐसे समय में भारत को एक ज़िम्मेदार और विश्वसनीय खिलाड़ी के रूप में उभरने में मदद कर रही है, जब कई स्थापित अंतरराष्ट्रीय इकाईयां ऐसा करने में असमर्थ रही हैं.

सीमित संसाधनों और भारी घरेलू मांग को देखते हुए, महामारी के दौरान वैश्विक स्तर पर भारत ने जिस तरह का नेतृत्व दिखाया है उससे भारत को सद्भावना मिली है, और विश्व स्तर पर सराहना भी. इन प्रयासों को चीन द्वारा ऐसे परीक्षण किट और चिकित्सा उपकरण दिए जाने के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है, जो कई मौक़ों पर प्रभावी नहीं रहे. इस परिप्रेक्ष्य में भारत की चिकित्सा कूटनीति ऐसे समय में भारत को एक ज़िम्मेदार और विश्वसनीय खिलाड़ी के रूप में उभरने में मदद कर रही है, जब कई स्थापित अंतरराष्ट्रीय इकाईयां ऐसा करने में असमर्थ रही हैं.

कोविड19 के बाद की दुनिया में, वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक वस्तुएं और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने की दिशा में भारत एक विश्वसनीय प्रदाता के रूप में उभरने की क्षमता रखता है. भारत का फार्मा उद्योग दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा उद्योग है. भारत सरकार के अनुसार, दुनिया की 18 फ़ीसदी जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति भारत द्वारा की जाती है. भारत दुनिया में टीकों का प्रमुख उत्पादक भी है और वैश्विक स्तर पर वैक्सीन की लगभग 50 फ़ीसदी मांग को पूरा करने में योगदान रखता है. भारतीय दवाओं की यह उच्च मांग, उनके कम मूल्य के चलते है. बड़े पैमाने पर दवाओं का उत्पादन करने की भारत की मौजूदा क्षमता, उसे एसएससी के तहत अन्य देशों में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों के विकास में अहम भूमिका निभाने और अपनी पहल का लाभ उठाने में सक्षम बनाती है. ऐसे में भारत कई रुप में इससे लाभान्वित हो सकता है:

  • दवाओं के निर्यात में बढ़ोत्तरी के ज़रिए.
  • सस्ती और गुणवत्ता वाली माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं की मांग करने वालों के लिए, एक पसंदीदा चिकित्सा-पर्यटन स्थल के रूप में खुद को बढ़ावा देकर.
  • आईटीईसी के ज़रिए क्षमता बढ़ाने और तकनीकी विशेषज्ञता साझा करने की दिशा में योगदान देकर.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के कार्यकारी बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किए जाने के साथ, अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देकर, भविष्य की महामारियों से निपटने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका को अहम बनाने में, भारत की महत्वपूर्ण भूमिका होने की उम्मीद है.

भौगोलिक सीमाओं को पार करते हुए, दुनिया भर में जिस तेज़ी से महामारी फैल रही है, इसने मानव जाति को आत्मनिर्भरता की आवश्यकता समझाई है. ये वही है जिसका ज़िक्र प्रधानमंत्री ने अपने राष्ट्रीय संबोधन में भी किया था. ये आत्मनिर्भरता स्व-केंद्रित नहीं है, लेकिन विश्व के सभी देशों को अपने भीतर अपनी शक्ति खंगालने की ओर प्रेरित करती है, ताकि उनके श्रम का फल दुनिया के लिए एक वरदान साबित हो सके.

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