Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

रक्षा अनुसंधान एवं विकास के लिए आवंटित बज़ट के मामले में भारत चीन से काफी पीछे है.

रक्षा अनुसंधान और विकास में कम निवेश: भारत की कमज़ोर रक्षा स्वदेशीकरण का मुख्य कारण
रक्षा अनुसंधान और विकास में कम निवेश: भारत की कमज़ोर रक्षा स्वदेशीकरण का मुख्य कारण

फरवरी 2022 की शुरुआत में केंद्रीय वित्त मंत्री (एफएम) निर्मला सीतारमण के द्वारा पेश किए गए साल 2022 के बज़ट में वर्ष 2022-23 के लिए रक्षा बज़ट में कुल 70,23 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आवंटन किया, जो कि राष्ट्रीय बज़ट का लगभग 13.3 प्रतिशत है. इस बज़ट में अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) के लिए आवंटित हिस्सा 1.24 बिलियन अमेरिकी डॉलर है जो बेहद छोटी राशि है, और कुल रक्षा बज़ट का 1.7 प्रतिशत है. महज़ 310 मिलियन राशि के साथ अनुसंधान और विकास पर 25 फ़ीसदी का आवंटन वो भी निजी क्षेत्र के उद्योगों, स्टार्ट-अप और शैक्षणिक संस्थानों के लिए ना सिर्फ चिंताजनक है बल्कि हास्यास्पद भी है. इस आंकड़े के समेत अनुसंधान और विकास के लिए आवंटित बजट को बजट में बेहद महत्वपूर्ण आवंटन बताया जा रहा है. यहां तक कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण के बाद सोशल मीडिया पर रक्षा मंत्री (डीएम) राजनाथ सिंह के बयान पर गौर फ़रमाइए : “रक्षा सहित कई क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास के लिए पर्याप्त राशि आवंटित की गई है. स्टार्टअप्स और निजी संस्थाओं के लिए आरएंडडी बजट का 25 प्रतिशत आरक्षित करने का प्रस्ताव भी बेहतर कदम है”.

निश्चित रूप से, 1.24 बिलियन परमाणु और मिसाइल से संबंधित अनुसंधान एवं विकास जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में ख़र्च करने की संभावना है. फिर भी दुनिया भर में प्रमुख सैन्य बज़ट वाले देशों के मुक़ाबले में भारत की आर एंड डी बज़ट किसी भी मानक से बहुत ही कम है.

भारत सरकार ने आश्वस्त करते हुए, निजी उद्योग की आशंकाओं को भी दूर करने का प्रयास किया है कि सरकार इनके लिए ऑर्डर्स की गारंटी को बढ़ाने के साथ ही सोर्स उपकरणों को भी विस्तार देगी. सरकार के अधिग्रहण की योजना से जिन निजी औद्योगिक उद्यमों को फायदा होने की संभावना है उनमें टाटा समूह, महिंद्रा डिफेंस, कल्याणी समूह, लार्सन एंड टुब्रो, अदानी एयरोस्पेस एंड डिफ़ेंस, वीईएम टेक्नोलॉजी, तारा सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजीज़, एसईसी इंडस्ट्रीज़, साइएंट, अल्फ़ा डिज़ाइन, एस्ट्रा माइक्रोवेव उत्पाद, सिग्मा इलेक्ट्रो सिस्टम, आर्थिक विस्फ़ोटक, एमकेयू, एसएसएस डिफ़ेंस और इंडो-एमआईएम शामिल हैं.

अंतरराष्ट्रीय मानदंड से तुलना

निश्चित रूप से, 1.24 बिलियन परमाणु और मिसाइल से संबंधित अनुसंधान एवं विकास जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में ख़र्च करने की संभावना है. फिर भी दुनिया भर में प्रमुख सैन्य बज़ट वाले देशों के मुक़ाबले में भारत की आर एंड डी बज़ट किसी भी मानक से बहुत ही कम है और यह बताने को काफी है कि भारत एक भरोसेमंद और सक्षम घरेलू रक्षा उद्योग को विकसित करने में अभी तक पीछे क्यों है. भारत के लिए सबसे अहम परीक्षा यह होगी कि चीन के मुक़ाबले अनुसंधान एवं विकास पर भारत कितना ख़र्च करता है. पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (पीआरसी) के रक्षा अनुसंधान और विकास पर ख़र्च को लेकर तालिका-1 पर नज़र डालने पर पाठक को इस बात का पता चलेगा कि भारत दुनिया की प्रमुख सैन्य शक्तियों में से एक चीन और एक ऐसे पड़ोसी के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए संघर्ष कर रहा है जिससे भारत को गंभीर सैन्य चुनौतियां मिल रही हैं. वर्ष 2017 और 2019 के बीच चीन ने अपने रक्षा बज़ट का लगभग 9 से 10 प्रतिशत रक्षा अनुसंधान एवं विकास पर ख़र्च किया, जैसा कि तालिका 1 में दिखाया गया है. नीचे दिए गए आंकड़े साल 2017-2019 के बीच तीन वर्षों के लिए स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की 2020-21 रिपोर्ट से लिये गये हैं. तालिका-1 में सभी आंकड़ों को विशेष रूप से लेखक द्वारा राउंड फिगर में परिवर्तित कर दिया गया है, जिसमें सिपरी (एसआईपीआरआई) द्वारा, “चीन के सैन्य व्यय का एक नया अनुमान”  जिसे नान तियान और फे सु द्वारा लिखा गया है, इसके आंकड़ों में कुछ तब्दीलियां की गई हैं. वर्ष 2020 से 2021 तक लेखक आंकड़े तक पहुंच पाने में असमर्थ थे. इस सीमा के बावजूद, पाठकों को ध्यान देना चाहिए कि पीआरसी द्वारा आर एंड डी पर ख़र्च की गई राशि में अंतर तालिका-1 में दिखाए गए आंकड़ों से वर्ष 2020 और 2021 के लिए बहुत अधिक होने की संभावना नहीं है.

यहां तक कि अगर तालिका-1 के एसआईपीआरआई डेटा को लेकर कम से कम अनुमान लगाया जाए तो भी भारत अभी भी आर एंड डी पर रक्षा ख़र्च के संबंध में चीन के मुक़ाबले ख़राब स्थिति में है और अगर भारतीय आंकड़ों की बात करें तो चीन के रक्षा अनुसंधान और विकास के लिए एसआईपीआरआई के आंकड़े के अनुमान से भी यह बदतर है. दरअसल, साल 2019-2020 में रक्षा पर लोकसभा की स्थायी समिति द्वारा प्राप्त आंकड़ों ने पीआरसी के आरएंडडी को चीनी रक्षा बज़ट के 20 प्रतिशत पर रखा. यह आंकड़ा सिपरी के अनुमान से दोगुना है जैसा कि तालिका-1 में दिखाया गया है. साल 2019 – 20 में रक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट में बताया गया था कि डीआरडीओ – भारत के अग्रणी रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन को बज़ट में लगातार 5-6 प्रतिशत (मुमकिन है कि रक्षा मंत्रालय रक्षा बज़ट की “रणनीतिक योजनाएं” या रणनीतिक क्षेत्र को लेकर जो कहता है, उसे हटाकर) आवंटित किया गया था. यह आंकड़ा अभी भी एसआईपीआरआई के अनुमान से लगभग दो गुना कम और रक्षा अनुसंधान एवं विकास के लिए चीन के आवंटन पर लोकसभा की स्थायी समिति के अनुमान से चार गुना कम होगा.

साल 2022-23 के मौजूदा रक्षा बज़ट में आर एंड डी पर आवंटन कुल रक्षा बज़ट के 2 प्रतिशत से भी कम है, जो और भी अधिक अंतर की ओर इशारा करते हैं. रक्षा अनुसंधान एवं विकास के लिए ज़्यादा बज़टीय सहायता नहीं होने की स्थिति में सरकार और रक्षा मंत्रालय अब अन्य विकल्पों पर विचार कर रहा है.

हालांकि, साल 2022-23 के मौजूदा रक्षा बज़ट में आर एंड डी पर आवंटन कुल रक्षा बज़ट के 2 प्रतिशत से भी कम है, जो और भी अधिक अंतर की ओर इशारा करते हैं. रक्षा अनुसंधान एवं विकास के लिए ज़्यादा बज़टीय सहायता नहीं होने की स्थिति में सरकार और रक्षा मंत्रालय अब अन्य विकल्पों पर विचार कर रहा है. 2020 – 21 में लोकसभा की स्थायी समिति की रिपोर्ट में रक्षा मंत्रालय ने एक बार फिर ज़्यादा तकनीक हासिल करने पर जोर दिया, तब साल 2000 में मोदी सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए ऑटोमेटिक रूट अपनाया और इसे बढ़ावा दिया जिससे उम्मीद की जा रही है कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास के लिए जो बजटीय राशि की कमी होगी उसे पूरा किया जा सकेगा और “अत्याधुनिक रक्षा तकनीक” को प्रोत्साहित किया जा सकेगा. हालांकि, इससे कैसे फायदा होगा यह अभी साफ नहीं है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 49 फ़ीसदी से बढ़ाकर 74 फ़ीसदी करने के फैसले से कितना लाभ होगा इसे समझने में भी समय लग सकता है या फिर जैसा कि रक्षा मंत्रालय का दावा है कि यह विदेशी वेंडर्स के लिए हाई-एंड टेक्नोलॉजी के प्रति रूचि बढ़ाएगा.

वित्तीय मदद के लिये निजी क्षेत्रों को बढ़ावा

अगर भारत सरकार अपनी सरकार द्वारा संचालित रक्षा अनुसंधान संस्थानों के ज़रिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास पर उतना ख़र्च नहीं करती है तो सवाल पैदा होते हैं कि ऐसे में क्या भारतीय निजी क्षेत्र की कंपनियां सरकारी निवेश की कमी को पूरा करेंगी ? इसे लेकर जो आंकड़ा उपलब्ध है वो या तो कम है या फिर अस्पष्ट है. भारतीय निजी क्षेत्र की कंपनियां आंतरिक रक्षा अनुसंधान एवं विकास में कितना निवेश कर रही हैं इसके बारे सही जानकारी मुश्किल है. मसलन, भारत की सबसे बड़ी निजी क्षेत्र की इंजीनियरिंग कंपनी और रक्षा हार्डवेयर विकास और निर्माण में अग्रणी कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के पास अपने द्वारा अर्जित राजस्व के आधार पर इन-हाउस आरएंडडी निवेश के आंकड़े हैं, इससे बाद भी सही राशि का पता नहीं चलता है. इसके अलावा इन-हाउस आरएंडडी के लिए प्रोत्साहन- विशेष रूप से रक्षा में- के बारे में  एक वरिष्ठ एलएंडटी अधिकारी दावे के तौर पर कहते हैं कि इसमें टैक्स में छूट मिलनी चाहिए और सरकार द्वारा वित्त पोषित रक्षा से जुड़े आरएंडडी कार्यक्रमों के समान माना जाना चाहिए, वो भी तब अगर रक्षा स्वदेशीकरण के लक्ष्य को लंबे समय के लिए आगे बढ़ाना है और सरकार की रक्षा अनुसंधान एवं विकास के लिए वित्त आवंटन करने में ढीले रवैए को लेकर निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना है.

अगर रक्षा स्वदेशीकरण के लक्ष्य को लंबे समय के लिए आगे बढ़ाना है और सरकार की रक्षा अनुसंधान एवं विकास के लिए वित्त आवंटन करने में ढीले रवैए को लेकर निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना है.

हालांकि, यह पूरी तरह से संभव है, रक्षा उपकरणों के उत्पादन और विकास में शामिल एलएंडटी और दूसरी भारतीय निजी कंपनियां कॉर्पोरेट गोपनीयता के हितों को ध्यान में रखते हुए अपने आंतरिक अनुसंधान एवं विकास निवेश का खुलासा नहीं करना चाहते हैं. इस तरह जब तक सार्वजनिक क्षेत्र में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं होती है तब तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास के लिए निजी क्षेत्र कितना निवेश कर रहे हैं, उसका दायरा क्या होगा, प्रकृति और पैटर्न क्या होंगे इस पर सिर्फ कयास लगाए जा सकते हैं और यह हमेशा अनिश्चित ही रहेगा.

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