Expert Speak Digital Frontiers
Published on Aug 11, 2025 Updated 1 Hours ago

GEOINT और BIOINT का उपयोग जैविक ख़तरों की भविष्यवाणी और रोकथाम के तरीकों में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है, बशर्ते ज़रूरी नैतिक और कानूनी ढांचा बनाकर इनका इस्तेमाल हो. 

जैव-सुरक्षा में भू-स्थानिक इंटेलिजेंस का बढ़ता महत्व

Image Source: Getty Images

साल 2020 में, जब कोविड-19 महामारी शुरू हुई, तब वायरस के प्रसार और उससे प्रभावित लोगों पर नज़र रखना हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता बन गई थी. भू-स्थानिक तकनीक और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) का उपयोग इसका आसान समाधान था. उस समय वायरस के प्रसार और उसकी गति पर नज़र रखने में वह विज़ुअल डैशबोर्ड काफ़ी लोकप्रिय संसाधन बन गया, जिसे अमेरिका में जॉन्स हॉपकिंस मेडिकल सेंटर ने बनाया. यह विज़ुअल सहायता एनशेंग दोंग के GIS ट्रैकर की मदद से दी जा रही थी, जिसे उन्होंने चीन के शांक्सी प्रांत के ताईयुआन में रह रहे अपने परिवार को वायरस से सुरक्षित रखने के लिए विकसित किया था. उन्होंने COVID-19 वायरस की ख़बर सुनने के एक महीने के बाद यह ट्रैकर बनाया, जिसने दुनिया भर के अन्य ट्रैकर्स की भी भरपूर मदद की.

GIS ट्रैकर्स की इस सफलता के बावजूद, भू-स्थानिक तकनीक का अभी तक जैव-रक्षा, जैव-बचाव और समग्र जैव-सुरक्षा में पूरी तरह इस्तेमाल नहीं हो पाया है.

जाहिर है, भू-स्थानिक बुद्धिमत्ता (GEOINT), जो GIS, रिमोट सेंसिंग और उपग्रह सर्वेक्षण का संगम है, संक्रामक रोगों के प्रसार की निगरानी करने, जैविक कारकों से उत्पन्न आपात स्थितियों के खिलाफ तैयारी करने और जैव आतंकवाद जैसे ख़तरों का पता लगाने में मूल्यवान मदद करती है. हालांकि, GIS ट्रैकर्स की इस सफलता के बावजूद, भू-स्थानिक तकनीक का अभी तक जैव-रक्षा, जैव-बचाव और समग्र जैव-सुरक्षा में पूरी तरह इस्तेमाल नहीं हो पाया है.

 

भारत की जैव-सुरक्षा में GEOINT को शामिल करना

भारत के लिए ख़तरा बनने वाले निपाह वायरस या ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (HMPV) जैसे अन्य वायरसों के संबंध में यह ज़रूरी है कि हम इन रोगों के प्रसार का नक्शा बनाएं और गहराई से सर्वेक्षण करें. अभी इस मामले में जो निगरानी उपाय किए जाते हैं, वे सिर्फ़ मरीजों के घरों की जांच-पड़ताल करने और क्षेत्र में पाए जाने वाले पशुओं के नमूनों (निपाह वायरस के मामले में चमगादड़ की बीट भी) की जांच तक सीमित है.

महामारी की निगरानी के लिए नजदीकी संक्रमित व्यक्ति की पहचान करने का तरीका अपनाने के बजाय, GEOINT का उपयोग संक्रामक रोगों की ‘रियल-टाइम ट्रैकिंग’ (लोगों और हालात की निरंतर व लाइव निगरानी) में की जा सकती है, जिससे मौजूदा तरीकों को और बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है.

पशुओं की आवाजाही व प्रवासन, और थर्मल आधारित इमेजिंग से उनकी पहचान करने के लिए सरकारें और स्वास्थ्य एजेंसियां उपग्रह से मिलने वाली जानकारियों का इस्तेमाल कर सकती हैं. इसके साथ ही, GIS सॉफ्टवेयर रोग के प्रसार का नक्शा बनाने, जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करने, और रोग को बढ़ाने वाले पर्यावरणीय कारकों का पता लगाने में मदद कर सकता है. इसका एक सफल उदाहरण पश्चिम अफ्रीका में 2014 में आया इबोला प्रकोप है, जिसमें GIS और रिमोट सेंसिंग ने प्रभावित क्षेत्रों का नक्शा तैयार करने और बुनियादी ढांचे के मूल्यांकन में मदद की। मेडागास्कर में मलेरिया की चपेट में आने वालों की ट्रैकिंग भी इसका एक अन्य सफल उदाहरण है. उपग्रह से मिलने वाली तस्वीरें विस्थापन के प्रवाह, जनसंख्या दबाव और पर्यावरणीय कारकों पर नज़र रखने में मदद करती हैं, जिनसे covid-19 और इबोला जैसी बीमारियों के संक्रमण के बारे में ज़रूरी जानकारियां मिल जाती हैं.

GEONIT का उपयोग और BIONET का वायदा

हालांकि, भू-स्थानिक तकनीक का उपयोग केवल जैव-सुरक्षा और आपदा प्रबंधन तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, ऐसी तकनीकों की मदद से निवारण के उपाय भी किए जा सकते हैं. उपग्रह निगरानी से संभावित जैव हथियारों सहित तमाम जैविक ख़तरों को पहचानने में मदद मिलती है. पशुओं के प्रवासन, मल और मृत्यु दर पर नज़र रखकर, रासायनिक इकाइयों के पास जल स्रोतों की निगरानी करके और जैव सुरक्षा प्रयोगशालाओं को स्थापित करके हम बचाव कर सकते हैं. इन आंकड़ों को सार्वजनिक ट्रैकर्स के माध्यम से सभी तक पहुंचाना चाहिए. ऐसे ट्रैकर्स वैश्विक जवाबदेही तंत्र बेहतर बना सकते हैं, जिससे जैविक हथियारों के विकास को रोकने और संभावित जैविक ख़तरों का तुरंत जवाब देने में मदद मिल सकती है. 

पशुओं के प्रवासन, मल और मृत्यु दर पर नज़र रखकर, रासायनिक इकाइयों के पास जल स्रोतों की निगरानी करके और जैव सुरक्षा प्रयोगशालाओं को स्थापित करके हम बचाव कर सकते हैं. इन आंकड़ों को सार्वजनिक ट्रैकर्स के माध्यम से सभी तक पहुंचाना चाहिए.

इसका एक बड़ा उदाहरण लॉस एलामोस राष्ट्रीय प्रयोगशाला में किया जा रहा अध्ययन है, विशेष रूप से बायोवॉच सिस्टम, जिसमें भू-स्थानिक उपकरणों का इस्तेमाल एरोसोलयुक्त जैविक कारकों के व्यवहार को पहचानने में किया जाता है. हवा का नमूना लेने वाले उपकरणों का उपयोग और वायुमंडलीय फैलाव का मॉडल लागू करके, अधिकारी संभावित जैविक उत्सर्जन का पता लगा सकते हैं, उनके प्रसार का खाका खींच सकते हैं और समय पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं. सक्रिय निगरानी और प्रतिक्रियाशील मॉडलिंग का यह मिश्रण बताता है कि भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों को वैश्विक जैव सुरक्षा ढांचे में शामिल करना कितना ज़रूरी है.

इसी तरह, BIONET (जैविक बुद्धिमत्ता) पारिस्थितिक तंत्रों की निगरानी में पर्यावरणीय डीएनए (eDMA) और RNA के विश्लेषण को शामिल करके GEONIT की क्षमताएं बढ़ा देता है. पारंपरिक जैव सुरक्षा निगरानी के विपरीत, जिसमें रोगों के निवारण के बजाय उसके प्रसार को रोकने पर अधिक ध्यान दिया जाता है, BIONET लगातार निगरानी पर ज़ोर देता है, और वैश्विक पारिस्थितिक तंत्रों के लिए उभरते ख़तरों की समय-पूर्व चेतावनी देता है. BIONET जैव सुरक्षा पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान दिलाने का एक मौका है और चूंकि इसमें निरंतरता पर ज़ोर दिया जाता है, इसलिए यह कहीं अधिक मूल्यवान है. यह निरंतरता इसे मौजूदा पर्यावरणीय नमूनों के माध्यम से मिलती है, जो हर स्थान पर ख़तरे के स्तर को बताकर ऐसी सीमा-रेखाएं बनाता है, जिनसे विसंगतियों की जल्द पहचान हो जाती है.   

BIONET को बड़े पैमाने पर और दुनिया भर में इस्तेमाल करने की ज़रूरत है. जिन क्षेत्रों में प्रत्यक्ष डेटा संग्रह को राजनीतिक और भौगोलिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, वहां भी BIONET सीमा पार पारिस्थितिक तंत्रों और राष्ट्रीय सीमाओं को साझा करने वाले जलमार्गों का लाभ उठाकर काम कर सकता है. पर्यावरणीय जीनोमिक विश्लेषण- BIONET- के साथ GEONIT का मिलन अभूतपूर्व जैव सुरक्षा दे सकता है, विशेष रूप से महामारी नियंत्रण और जैव हथियारों का पता लगाने में. बेशक GEONIT पहले से ही महत्वपूर्ण साबित हो रहा है, BIONET तात्कालिक समय में पर्यावरण निगरानी के माध्यम से अतिरिक्त लाभ देता है, क्योंकि यह उभरते जैविक ख़तरों को समस्या बनने से पहले ही पहचानने में सक्षम है.

जब ये तकनीकें विकसित कर ली जाएंगी, तो इनके जिम्मेदाराना उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए नैतिक और कानूनी ढांचे को बनाना अनिवार्य है. ऐसे सुरक्षा उपाय जैविक ख़तरों को रोकने और उनका मुकाबला करने में BIONET का पूरी क्षमता के साथ इस्तेमाल सुनिश्चित कर सकते हैं, जिनसे अंततः जन-स्वास्थ्य की रक्षा और वैश्विक सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी. BIONET का लगातार विकास भविष्य की तैयारियों और उभरते जैविक ख़तरों से निपटने के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.

 

जैव सुरक्षा में उपग्रह निगरानी के नैतिक और कानूनी पहलू

हालांकि, भू-स्थानिक बुद्धिमत्ता का प्रयोग जैव-सुरक्षा के लिए अहम है, लेकिन इससे जुड़ी कई महत्वपूर्ण नैतिक और कानूनी चुनौतियां भी हैं. मानव जीव विज्ञान और स्वास्थ्य से संबंधित संवेदनशील आंकड़ों के संग्रह से उनकी निजता, नागरिक स्वतंत्रता और अंतरराष्ट्रीय कानून जैसे मुद्दे जुड़े हुए हैं.

सबसे गंभीर नैतिक मुद्दों में एक है- किसी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन करने के लिए GEONIT का उपयोग. ख़ास तौर से, कॉन्टैक्ट ट्रैसिंग, यानी संपर्क तलाशने और उसके बाद GIS मानचित्र में व्यक्तिगत जानकारी के सार्वजनिक होने का ख़तरा है. इससे कुछ ख़ास बीमारियों से पीड़ित लोगों के साथ भेदभाव हो सकता है और बिना सहमति के उनकी संवेदनशील जानकारी जारी होने से निजता का उल्लंघन हो सकता है. सरकारी अतिक्रमण और आंकड़ों के दुरुपयोग को देखते हुए इस तरह की चिंताएं कहीं अधिक बढ़ जाती हैं.

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, GEONIT के संग्रह, भंडारण और उपयोग को लेकर स्पष्ट सीमा तय की जानी चाहिए. भारतीय डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA) और इससे संबंधित नियम अभी भू-स्थानिक आंकड़ों के बारे में बहुत ज्यादा नहीं कहते. इन नियमों के मुताबिक, डेटा फ़िड्यूशरीज (ये व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण का उद्देश्य और साधन तय करते हैं) तब तक व्यक्तिगत आंकड़ों का उपयोग कर सकते हैं, जब तक कि संबंधित व्यक्ति अपनी सहमति वापस नहीं ले लेता. भविष्य में, संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी, विशेष रूप से व्यक्तियों के स्वास्थ्य और जैविक डेटा और रोग के प्रति उनकी संवेदनशीलता पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है. इस तरह के डेटा से सार्वजनिक नीति बनाई जा सकती है, लेकिन इससे व्यक्तियों की पहचान या उनकी निजता से समझौता नहीं होना चाहिए.

इसी से जुड़ा दूसरा नैतिक मुद्दा है- व्यक्तियों और/या समुदायों की निगरानी के लिए सहमति लेना. उपग्रह निगरानी और GIS संचालन आमतौर पर संबंधित आबादी की जानकारी या सहमति के बिना किए जाते हैं, जिससे पारदर्शिता को लेकर चिंताएं पैदा होती हैं. GEONIT को नैतिक बनाने के लिए, आबादी को यह बताना चाहिए कि उनके क्षेत्र की निगरानी हो रही है, ख़ासकर जब पर्यावरणीय डेटा के बजाय मानव स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़े जमा किए जा रहे हो. चूंकि डेटा, विशेषकर मानव स्वास्थ्य, बायोमेट्रिक और जैविक डेटा- इस तरह ख़त्म नहीं किए जा सकते कि संबंधित व्यक्ति की उससे पहचान न हो सके, इसलिए पारदर्शिता और उनके उपयोग, संग्रह व पहचान के मानकों पर चर्चाएं होनी चाहिए.

भविष्य में, संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी, विशेष रूप से व्यक्तियों के स्वास्थ्य और जैविक डेटा और रोग के प्रति उनकी संवेदनशीलता पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है. इस तरह के डेटा से सार्वजनिक नीति बनाई जा सकती है, लेकिन इससे व्यक्तियों की पहचान या उनकी निजता से समझौता नहीं होना चाहिए.

उपग्रह निगरानी, राष्ट्रीय संप्रभुता को लेकर भी चिंताएं पैदा करती हैं, ख़ासकर जब निगरानी भौगोलिक सीमा को पार कर जाए. इस समस्या के समाधान के लिए, GIONET सिस्टम को कहीं अधिक जवाबदेह बनाने के लिए वैश्विक तंत्रों के साथ जोड़ देना चाहिए. हालांकि, यह भी सच है कि जैविक हथियारों के उपयोग और महामारी-प्रतिक्रिया से संबंधित अंतरराष्ट्रीय नियम अब भी साफ नहीं हैं, ख़ासकर जब बात देशों के बीच निगरानी डेटा को साझा करने की आती है.

अभी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की जियोलोकेटेड हेल्थ फैसिलिटीज़ डेटा इनिशिएटिव (GHFDI) एक ऐसा डेटाबेस है, जो दुनिया भर में स्वास्थ्य सुविधाओं के स्थानों और उनकी क्षमताओं से जुड़े आंकड़े जमा करता है. इसी मॉडल पर आधारित और WHO की निगरानी में तैयार डेटाबेस वैश्विक जैव सुरक्षा को काफ़ी मज़बूत बना सकता है. इसमें जैव सुरक्षा जोखिम के संबंध में जानकारी उपलब्ध होनी चाहिए और उनके विश्लेषण की सुविधा मिले. ऐसी व्यवस्था कहीं अधिक समझदारी वाले फ़ैसले लेने में मदद कर सकेगी और WHO जैसे वैश्विक मंच के प्रति सभी देशों की जवाबदेही सुनिश्चित करेगी.

 

निष्कर्ष

GIONET- और BIONET के साथ मिलकर- वैश्विक जैव सुरक्षा को आगे बढ़ाने में काफ़ी कारगर है. यह प्रतिक्रियात्मक उपायों से आगे बढ़कर पूर्वानुमान और निवारण क्षमताओं पर ध्यान देता है, जो महामारियों, जैव हथियारों और व्यापक जैव सुरक्षा जोखिमों के प्रति विश्व के नज़रिये को बेहतर बना सकता है. हालांकि, किसी भी दूसरी तकनीक की तरह, इसके साथ मज़बूत नैतिक मानक और कानूनी ढांचे का वायदा भी होना चाहिए, ताकि लोगों की निजता की रक्षा हो सके, उनसे पूर्व सहमति ली जा सके और संप्रभुता व जवाबदेही से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय चिंताओं को दूर हो सके. एक ज़रूरी व्यवस्था बनाने के बाद, GIONET और BIONET न सिर्फ़ स्वास्थ्य और पर्यावरण निगरानी का महत्वपूर्ण साधन बन सकता है, बल्कि जैविक ख़तरों को देखते हुए वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और नैतिक शासन के एक मज़बूत स्तंभ के रूप में भी काम कर सकता है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.