व्यापारिक वस्तुएं या बिकाऊ माल के एक स्थान से दूसरे स्थानों में लाए एवं ले जाए जाने की प्रक्रिया को माल परिवहन कहते हैं. वाणिज्यिक माल, वस्तुएं, एवं थोक माल आदि मिलकर एक आदर्श अथवा मानक माल ढुलाई बनाते है. ऐसे सामानों को पानी वाले जहाज़, हवाई जहाज़, रेल या फिर सड़क मार्ग द्वारा लाया और ले जाया जा सकता है. वैश्विक स्तर पर, 90 प्रतिशत व्यापारिक वस्तुओं के लाने-ले जाने की गतिविधि को करने में समुद्री शिपिंग मुख्य तौर पर ज़िम्मेदार है. किसी देश के भीतर माल की ढुलाई में हवाई माध्यम तीव्र परंतु काफी महंगा परिवहन माध्यम है. रेलवे द्वारा बिकाऊ माल की ढुलाई, परिवहन का एक सुलभ और कम लागत वाला काफी लाभकारी माध्यम है. हालांकि, ये सेवा कभी-कभी काफी ज्य़ादा समय ले लेती है और कभी-कभार तो प्रतीक्षा कतार भी काफी लंबी हो जाती है.
सड़क मार्ग से होने वाली माल की ढुलाई की न्यूनतम लागत और आसान उपलब्धता काफी फायदेमेंद साबित होते हैं. हालांकि, सभी सड़कों के पास बड़े ट्रकों और कंटेनरों को सुचारू रूप से आसान रास्ता देने की क्षमता नहीं होती है. शहरों के परिप्रेक्ष्य में, शहरी माल ढुलाई, व्यावसायिक वस्तुओं और सामानों को शहरों में उनके नियत जगह से उठाने एवं डिलीवरी देने की सेवा प्रदान करती है जहां से नागरिक एवं व्यापार चलाए जा रहे हैं. ऐसी वस्तुओं को ट्रैफिक, सड़कों की गुणवत्ता, चुनौतीपूर्ण मार्गों एवं स्थानीय यातायात नियमों से भी जूझना पड़ता है.
शहरी माल ढुलाई के परिवहन में कई मुद्दे भी उलझे हुए हैं, और इनके धागे एक दूसरे से अंदर ही अंदर जुड़े हुए हैं. सबसे पहले तो, शहरीकरण के बढ़ने से शहरों में आर्थिक गतिविधियां बढ़ती जायेंगी औक एकाग्र होंगी. इस वजह से अगले दशक तक शहरी माल ढुलाई परिवहन की मांग में 140 प्रतिशत तक की बढ़त होने की आशा है. दूसरा, भारत के बढ़ते ई-कॉमर्स आपूर्ति शृंखला के कुल लॉजिस्टिक कीमत का 50 प्रतिशत हिस्सा, भारतीय शहरों के पहले और अंतिम चरण में होने वाली गतिविधियां में खर्च होता है. जबकि सच्चाई ये है कि, शहरी आपूर्ति, परिवहन के समस्त चरणों में दूरी के आधार पर सबसे छोटे चरण पर है. पर, शहरी माल ढुलाई, शहरी अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण है. ये यहां के नागरिकों को उपभोग और व्यापार करने के लिए ज़रूरी सामान उपलब्ध कराने का काम करती है.
सड़क मार्ग से होने वाली माल की ढुलाई की न्यूनतम लागत और आसान उपलब्धता काफी फायदेमेंद साबित होते हैं. हालांकि, सभी सड़कों के पास बड़े ट्रकों और कंटेनरों को सुचारू रूप से आसान रास्ता देने की क्षमता नहीं होती है.
इसलिए ये काफी ज़रूरी हो जाता है कि शहरी माल ढुलाई परिवहन को वर्तमान समय की तुलना में और भी ज्य़ादा सक्षम और प्रभावी बनाया जाना चाहिए. घरेलू एवं निर्यात बाज़ार दोनों ही क्षेत्र में भारतीय सामानों की प्रतिस्पर्धा में सुधार के संबंध में भी इसका काफी अहम मूल्य है. इससे भारत सरकार (GOI) की पहल, ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ को भी सहायता प्राप्त होती है. दुर्भाग्यवश, शहरी माल ढुलाई परिवहन पर्यावरण में होने वाले प्रदूषण के लिये ज़िम्मेदार है. एक अनुमान के अनुसार, शहरी माल ढुलाई, भारत में माल ढुलाई के कारण पैदा होने वाले CO2 उत्सर्जन के 10 प्रतिशत हिस्से के लिये ज़िम्मेदार है और साथ ही ‘इन-सिटी’ ट्रांसपोर्ट यानी शहरों के भीतर माल ढोने से पैदा होने वाले नॉक्स और पीएम उत्सर्जन क्षेत्र में सबसे बड़ा योगदानकर्ता है.
इसलिए, शहरी पर्यावरण के संरक्षण की आवश्यकता, शहरी माल ढुलाई परिवहन के व्यवस्थित होने की मांग करती है. इसलिए, शहरी माल ढुलाई की जो नीति है उसका मुख्य उद्देश्य ही ये है कि वो बिकाऊ माल की डिलीवरी जल्द से जल्द एवं यथासंभव सस्ती कीमत पर करें और माल ढुलाई की गतिविधि को जितना संभव हो सके प्रदूषण रहित, ग़ैर भीड़-भाड़ एवं यथासंभव रूप से सुरक्षित बनाने की है.
फ्राइट स्मार्ट सिटीज़
भारत में शहरी माल ढुलाई परिवहन में सुधार के लिए, भारत सरकार ने साल 2021 में उन 10 शहरों की पहचान करने का निर्णय लिया जिसे ‘फ्राइट स्मार्ट सिटीज.’ के रूप में विकसित किया जा सके. इसी वक्त में, राज्य एवं शहरी प्रशासनों को पेरी-अर्बन माल ढुलाई केंद्रों और रात्री समय में होने वाली डिलीवरी, ट्रक रूटों का निर्माण, इंटेलिजेंट परिवहन प्रणाली और आधुनिक टेक्नोलॉजी, और शहरी माल ढुलाई के विद्युतीकरण एवं पार्सल डिलीवरी टर्मिनलों की स्थापना के लिए प्रोत्साहित किया गया. समय के साथ-साथ, भारत सरकार ने माल ढुलाई युक्त स्मार्ट शहरों की संख्या को 75 तक बढ़ाये जाने की भी योजना बनाई है और अंततः सभी राज्यों की राजधानी और सभी महानगरीय शहरों को भी इसमें शामिल करने की योजना है जिनमें 1 मिलियन आबादी और उससे अधिक आबादी वाली शहरी बस्तियों हैं.
सितंबर 2022 में, प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP) को लॉन्च किया. इस पॉलिसी का प्रमुख उद्देश्य, लॉजिस्टिक्स में आने वाली लागत को कम करना एवं देश के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक (नैशनल लॉजिस्टिक्स इंडेक्स) में सुधार करना है. उनके प्रमुख उद्देश्यों में से एक संस्थानिक फ्रेमवर्क के साथ-साथ, शहर स्तरीय लॉजिस्टिक्स योजनाओं के विकास में सहयोग करना है. एनएलपी ने एक व्यापक लॉजिस्टिक्स (रसद) योजना तैयार की है. इसने काफी समस्याग्रस्त मुद्दों एवं इसके प्रस्तावित समाधानों की पहचान की है. इनके महत्वपूर्ण प्रस्तावों में विभिन्न डेटा स्रोतों को जोड़ने और रसद हितधारकों के लिए क्रॉस सेक्टोरल उपयोग के मामलों का विकास, इंटर-ऑपरेबिलिटी को बढ़ावा, जोख़िमों से निपटारण, प्रक्रिया अनुकूलन और व्यापार करने के सहूलियत में सुधार, प्रक्रिया आदि जैसे प्रणाली के विकास को एकीकृत रसद इन्टरफेस के द्वारा उचित अनुपात में शामिल करना है. शहरों के विशिष्ट दृष्टिकोण के आधार पर, एनएलपी ने ऐसी सलाह दी है कि सभी शहरों को एक शहरी रसद योजना (CLP) तैयार करनी चाहिए और उसकी मदद से शहर के स्तर पर एक सांस्थानिक फ्रेमवर्क की स्थापना कर शहरों की स्तरीय निगरानी एवं माप करनी चाहिए.
सितंबर 2022 में, प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP) को लॉन्च किया. इस पॉलिसी का प्रमुख उद्देश्य, लॉजिस्टिक्स में आने वाली लागत को कम करना एवं देश के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक (नैशनल लॉजिस्टिक्स इंडेक्स) में सुधार करना है.
एक शहर की सीएलपी, स्थानीय निकाय को शहरी लॉजिस्टिक्स की बारीकियों की सराहना करने को प्रेरित करेगी एवं उसमें मौजूद ख़ामियों की पहचान कर पाने में सक्षम बनाएगी. संभावित घाटों की पहचान, शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को बुनियादी ढांचों, टेक्नोलॉजी इनपुट और माल ढुलाई परिवहन सक्षमता में सुधार के लिए ज़रूरी पर्यावरणीय योजनाओं में सुधार की अनुमति प्रदान करेगी. यूएलबी के लिए ये काफी संवेदनशील होगा कि वो अपने लोगों, क्षेत्र में स्थित निजी खिलाड़ियों और व्यापक पैमाने पर स्थित प्रति व्यक्तियों एवं व्यापारिक उपभोक्ताओं को भी परामर्श में शामिल करें.
शहरी परिवहन में, शहरों ने अपना सारा ध्यान सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट एवं कार यातायात अथवा ट्रैफिक पर केंद्रित कर रखा है. सड़क माल परिवहन और उनसे संबंधित अवश्यकताएं, एक उपेक्षित क्षेत्र रही है. जैसे कि पहले उल्लेख किया जा चुका है, तथ्य यह है कि, शहरी माल परिवहन अति महत्वपूर्ण है. एक तरफ, जहां वो शहरों में उत्पादकता एवं जीवन को बनाए रखता है एवं औद्योगिक एवं शहरी संपत्ति का सृजन करने वाली व्यापारिक गतिविधियों की सेवा में, महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. उसका उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की लागत और औद्योगिक प्रतिस्पर्धा के लिए ज़रूरी दक्षता में बढ़त बढ़ाने में गहरा प्रभाव होता है. दूसरी तरफ, प्रदूषण एवं ध्वनि पर पड़ने वाले पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य दुष्प्रभावों को भी संबोधित किया जाना चाहिए.
टेक्नोलॉजी की भूमिका
शहरी परिवहन को दक्षता प्रदान किए जाने के संदर्भ में, टेक्नोलॉजी की काफी अहम भूमिका रही है. टेक्नोलॉजी वाहनों के मार्ग एवं समय निर्धारण में सहायता प्रदान कर सकती है. इसकी मदद से उस दूरी को कम किया जा सकता है जिससे गाड़ियों समझौता करना चाहती हैं. इनकी मदद से लोड प्लानिंग सिस्टम को मदद किया सकता है जो कि गाड़ियों के लोड स्पेस में सुधार ला सकते हैं. इस टेक्नोलॉजी की मदद से आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन प्रणाली को व्यवस्थित करने में सहायता प्राप्त हो सकती है जो माल ढुलाई के वेग का बड़े स्तर पर एकत्र करने की गारंटी दे सकती है. ऑनलाइन शॉपिंग और होम डिलीवरी सेवाओं को प्रोत्साहित करने की दिशा में टेक्नोलॉजी की भूमिका काफी महत्वपूर्ण साबित होगी.
हालांकि, इन सारे परेशानियों की जड़ में शहरी माल परिवहन में दक्षता समाहित करना निहित है. भारतीय शहरें, सड़कों के नीचे इस्तेमाल किए जाने के लिए तय ज़मीनों पर कंजूसी के लिए कुख्य़ात है. ज्य़ादातर शहरों के पास, औसतन 10 से 12 प्रतिशत ज़मीन, (18 प्रतिशत के अपवाद के साथ, दिल्ली जैसे शहर को छोड़कर) सड़कों के तहत इस्तेमाल की गयी है. वैश्विक मानक का ये लगभग आधा है. विकास के बाद और ज्य़ादा ज़मीन को सड़क के अंतर्गत लाना काफी जटिल एवं अधिक महंगा साबित होगा. भारतीय शहरी सड़कों पर बड़े स्तर पर मानव और वाहनों के चलने के कारण उत्पन्न घनी आबादी का पहला ख़ामियाज़ा शहरी माल परिवहन का काम करने वाली बड़ी गाड़ियों पर पड़ता है, क्योंकि वाहनों की इस भीड़ को स्थानीय तौर पर माल परिवहन की आवाजाही को समय पर प्रतिबंध लगाने के द्वारा, वाहनों के आकार की सीमा तय करके और परिवहन वाहकों द्वारा ले जाये जाने वाले माल की वजन सीमा तय करके प्रबंधित किया जाता है.
भारतीय शहरी सड़कों पर बड़े स्तर पर मानव और वाहनों के चलने के कारण उत्पन्न घनी आबादी का पहला ख़ामियाज़ा शहरी माल परिवहन का काम करने वाली बड़ी गाड़ियों पर पड़ता है,
अधिक ईंधन दक्षता एवं इस्तेमाल में लाये गये गाड़ियों के उत्सर्जन के माध्यम से वाहनों की उत्पादकता में सुधार द्वारा ऑटोमोबाइल क्षेत्र में किसी प्रकार के सुधार की संभावना की भरपाई करता है. इस प्रकार के प्रतिबंध लागत को कम करने और माल ढुलाई दक्षता में सुधार लाने में मदद नहीं करती है. शहरों के समक्ष सबसे मुश्किल काम है उनके माल ढुलाई के बुनियादी ढांचों को बेहतर बनाने के लिए ज़रूरी धन का आयोजन करना. जिस प्रकार से अधिकांश शहरों की आर्थिक स्थिती हाथ से मुंह तक के अस्तित्व स्थिति में होते हैं, ऐसे में शहरी माल ढुलाई संबंधित कामों में लगने वाले संसाधन जुटा पाना उनके लिए शायद ही संभव हो पाए.
निष्कर्ष
ऐसी स्थिति में, जहां शहरों में माल-ढुलाई की दक्षता का राष्ट्रीय आर्थिक महत्व है एवं अधिक शहरीकरण की संभावनायें नज़र आती हैं, इनके मद्देनज़र, ये सलाह दी जाती है कि भारत सरकार, शहरी संसाधनों की मदद से, शहरों का समर्थन करे. ऐसे किसी समर्थन के अभाव में, यूएलबी के सफल और सक्षम होने की उम्मीत काफी कम होती है. यह भी सलाह दी जाती है कि राज्यों को भूमि उपयोग योजना में स्थानीय प्रावधानों के लिए, एक न्यूनतम मानदंड निर्धारित करना चाहिए. कोई भी शहर जो इन दिए गए परामर्शों का अनुपालन नहीं करता है, उसके मास्टरप्लान को स्वीकृति नहीं दी जाये. इन तरह के उपायों के बग़ैर, ज्यों-ज्यों भारतीय शहरों में वाहनों का घनत्व बढ़ता है, यातायात कि भीड़ के कम होने की काफी क्षीण संभावना है. स्थानीय प्रतिबंधात्मक नीतियां सतत् जारी रहेंगी और शहरी माल ढुलाई क्षेत्र को, समय एवं लागत की चुनौती का सामना लगातार करना पड़ेगा.
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