Author : Sameer Patil

Published on Jul 05, 2022 Updated 0 Hours ago

चूंकि वियतनाम अपनी हथियार ख़रीद में विविधता लाना चाहता है, लिहाज़ा भारत रक्षा उपकरणों के संभावित निर्यातक के रूप में उभर सकता है.

सामरिक संबंध: वियतनाम के साथ भारत की रक्षा साझेदारी की अहमियत

भारत और वियतनाम के मध्य समझौता 

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वियतनाम के साथ रक्षा व सुरक्षा संबंधों को मज़बूत करने के लिए हाल ही में हनोई की तीन-दिवसीय यात्रा (8-10 जून 2022) की. दोनों पक्षों ने क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर चर्चा की और अपनी रक्षा भागीदारी के विस्तार के लिए समझौतों पर दस्तख़त किये. चीन के साथ दो साल से क़ायम भारत के लद्दाख सीमा गतिरोध और वियतनाम की सुरक्षा को सीधे प्रभावित करने वाले दक्षिण चीन सागर में बीजिंग के आक्रामक क़दमों के मद्देनज़र ये संबंध अतिरिक्त महत्व रखते हैं. क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता को प्रतिसंतुलित करने और रूस व अमेरिका के साथ अपनी भागीदारी के ‘पुश एंड पुल डायनामिक्स’ को कम करने के लिए हनोई, नयी दिल्ली के साथ भागीदारी का उत्सुक है.

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वियतनाम के साथ रक्षा व सुरक्षा संबंधों को मज़बूत करने के लिए हाल ही में हनोई की तीन-दिवसीय यात्रा (8-10 जून 2022) की. दोनों पक्षों ने क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर चर्चा की और अपनी रक्षा भागीदारी के विस्तार के लिए समझौतों पर दस्तख़त किये.

यह द्विपक्षीय रिश्ता बीते दशक में गहरा हुआ है. जैसा प्रत्याशित है, समुद्री (मैरीटाइम) सुरक्षा आपसी सहयोग के एक बेहद अहम क्षेत्र के रूप में उभरी है. वियतनाम ने भारतीय नौसेना द्वारा आयोजित ‘मिलन’ नौसैनिक अभ्यास में नियमित रूप से हिस्सा लिया है. भारत ने हनोई में सैटेलाइट इमेजिंग और ट्रैकिंग केंद्र भी चालू किया है, जो क्षेत्र में चीन की नौसैनिक गतिविधियों पर नज़र रखने में सक्षम बनाता है. इसके अलावा, दोनों पक्षों ने नियमित सैन्य आदान-प्रदान किये हैं. यहां तक कि कोविड-19 महामारी ने भी इसमें व्यवधान नहीं डाला है. मार्च 2020 में वियतनाम, महामारी पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र की प्रतिक्रिया पर चर्चा के लिए सात देशों के चुनिंदा ‘क्वॉड प्लस’ समूह का हिस्सा था.

मंत्री राजनाथ सिंह की हालिया यात्रा के दौरान, भारत और वियतनाम ने दो मुख्य समझौतों पर दस्तख़त किये: 

पहला समझौता है, ‘2030 की दिशा में भारत-वियतनाम रक्षा साझेदारी पर संयुक्त दृष्टि वक्तव्य’. यह आपसी संबंधों पर दीर्घकालिक नज़रिये को पेश करता है. इस समझौते का कंटेंट सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है, लेकिन अधिकारियों के मुताबिक़, इसका लक्ष्य ‘मौजूदा रक्षा सहयोग के दायरे और पैमाने को बढ़ाना’ है. 

दूसरा समझौता, आपसी लॉजिस्टिक्स समर्थन पर केंद्रित एक एमओयू है. यह मरम्मत और रसद की पुन:पूर्ति के लिए दोनों देशों को एक दूसरे के सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल करने में सक्षम बनाता है. आधिकारिक बयान के मुताबिक़, यह ‘इस तरह का पहला बड़ा समझौता है जिस पर वियतनाम ने किसी देश के साथ दस्तख़त किया है.’ इस इंतज़ाम से मुख्यत: भारतीय नौसेना को फ़ायदा पहुंचेगा क्योंकि यह हिंद-प्रशांत में उसके क़द को बढ़ायेगा.

इसके अलावा, दोनों देश 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट (एलओसी) के हनोई तक विस्तार का काम तेज़ करने के लिए भी सहमत हुए. यह एलओसी भारतीय हथियारों की वियतनाम की ख़रीद के लिए है, जिसकी घोषणा सितंबर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वियतनाम यात्रा के दौरान हुई थी जब आपसी रिश्ते को ‘व्यापक रणनीतिक साझेदारी’ के स्तर तक उन्नत किया गया. हालांकि, एलओसी के इस्तेमाल में देरी हुई, क्योंकि दोनों पक्षों में इसके फ्रेमवर्क पर वार्ता ही जाकर जनवरी 2021 में हुई.

दोनों देश 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट (एलओसी) के हनोई तक विस्तार का काम तेज़ करने के लिए भी सहमत हुए. यह एलओसी भारतीय हथियारों की वियतनाम की ख़रीद के लिए है, जिसकी घोषणा सितंबर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वियतनाम यात्रा के दौरान हुई थी

वियतनाम ने इससे पहले 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर की भारतीय रक्षा एलओसी (जिसकी पेशकश लगभग एक दशक पहले 2013 में की गयी थी) का इस्तेमाल अपनी नौसेना के लिए 12 अपतटीय उच्च-गति गश्ती नौकाएं ख़रीदने में किया. भारत ने इन नौकाओं को मंत्री सिंह की यात्रा के दौरान सौंपा. एलओसी के इस्तेमाल में देरी इस मज़बूत द्विपक्षीय रक्षा सहयोग में एकमात्र बेमेल सुर है. 

50 करोड़ डॉलर की एलओसी के हिस्से के रूप में, भारत ने वियतनाम को ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल, आकाश मिसाइल वायु रक्षा प्रणाली, वरुणास्त्र पनडुब्बी-रोधी टारपीडो और तटीय रडार की पेशकश की है.

दोनों देश आकाश प्रणाली को लेकर 2017 से बातचीत करते रहे हैं, क्योंकि वियतनाम अपनी पुरानी पड़ रही, मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली सोवियत-युगीन एस-125/एस-75  मिसाइल प्रणालियों को बदलना चाहता है. रिपोर्टों के मुताबिक़, वियतनाम आकाश-एनजी वेरिएंट (70-80 किमी रेंज के साथ) के स्थानीय उत्पादन की संभावना देख रहा है और इसलिए, इस प्रणाली की तकनीक के हस्तांतरण और संयुक्त उत्पादन का अनुरोध किया है. हालांकि, इस सौदे को अमलीजामा पहनाये जाने में कुछ देरी है क्योंकि यह मिसाइल प्रणाली अब भी परीक्षण से गुज़र रही है. 

भारत और रूस द्वारा मिलकर विकसित की गयी ब्रह्मोस मिसाइलों की ख़रीद की संभावना अधिक है. इस साल ब्रह्मोस मिसाइल के लिए फिलीपीन्स से पहला निर्यात ऑर्डर मिलने के बाद, भारत इस मिसाइल प्रणाली को हनोई को बेचने के लिए पूरा ज़ोर लगाकर आवेग को बनाये रखना चाहता है. यह निर्यात भारत के रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने तथा चीन को तनावग्रस्त रखने वाले एक प्रमुख दक्षिण-पूर्वी देश को हथियारबंद करने के दोहरे उद्देश्य को पूरा करेगा. यहां बता दें कि, एलएंडटी शिपयार्ड ने वो अपतटीय नौकाएं बनायी थीं जिन्हें भारत ने वियतनाम को 10 करोड़ डॉलर की एलओसी के तहत सौंपा. इस तरह के मौक़े निजी क्षेत्र के लिए भारत के बढ़ते रक्षा निर्यात का हिस्सा बनने की संभावनाओं को खोलते हैं.

दक्षिण चीन सागर में चीन की भूमिका

मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व के चीन-समर्थक रुझान के बावजूद, वियतनाम की सैन्य तैयारी की एक प्रमुख चालक शक्ति चीन के साथ सुरक्षा प्रतिद्वंद्विता है. दक्षिण चीन सागर में अपने क्षेत्रीय दावों को आगे बढ़ाने के लिए बीजिंग की बढ़ी हुई आक्रामकता हनोई के लिए एक बड़ा सिरदर्द है. इस विवाद को लेकर दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के बीच वियतनाम सबसे ज़्यादा मुखर रहा है. मई 2014 में विवादित पार्सल आइलैंड में वियतनामी नौसैनिक जहाज़ों और मछली पकड़ने की नौकाओं के साथ चीनी जलपोतों की तनातनी के बाद से, दोनों के बीच झड़पें बढ़ गयी हैं. एक घटना में, मछली पकड़ने की एक वियतनामी नौका चीनी जहाज़ के साथ टक्कर के बाद रिग के पास डूब गयी.

पारंपरिक रूप से वियतनाम हथियारों के लिए रूस पर निर्भर रहा है. हालांकि, अमेरिका के साथ उसकी दोबारा बनी निकटता और रूसी रक्षा उद्योग के ख़िलाफ़ अमेरिकी प्रतिबंधों को देखते हुए, हनोई ने अपनी हथियार ख़रीद में विविधता लाने की कोशिश की है, जैसा कि चित्र 1 में देखा जा सकता है.

दक्षिण चीन सागर में अपने क्षेत्रीय दावों को आगे बढ़ाने के लिए बीजिंग की बढ़ी हुई आक्रामकता हनोई के लिए एक बड़ा सिरदर्द है. इस विवाद को लेकर दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के बीच वियतनाम सबसे ज़्यादा मुखर रहा है.

चित्र1 : वियतनाम के हथियार आयात की ट्रेंड इंडीकेटर वैल्यू (2011-2021, आंकड़े मिलियन अमेरिकी डॉलर में)

स्त्रोत: SIPRI आर्म्स ट्रांसफर डेटाबेस

दक्षिण चीन सागर में झड़पों के बाद से, वियतनाम ने अपना रक्षा ख़र्च बढ़ाया है, जो 2014 से 2018 के बीच औसतन 4.8 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष रहा. लेकिन, चीन की ओर से दरपेश ख़तरे और उसकी सैन्य ज़रूरतों की तुलना में, यह ख़र्च अपर्याप्त है. लिहाज़ा, हनोई इस दरम्याने रक्षा ख़र्च के साथ ज़्यादा वहनीय रक्षा आपूर्तिकर्ताओं की तलाश में है.

एक ऐसा स्रोत बनने की संभावना भारत में है. भारतीय सेना को फ़ायदा यह है कि वह वियतनाम के जैसे प्लेटफॉर्मों पर ही काम करती है. उसने सुखोई-30 लड़ाकू विमानों के प्रशिक्षण और किलो-क्लास पनडुब्बी के संचालन के लिए प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण में हनोई की मदद के ज़रिये इसका फ़ायदा उठाया है.

अमेरिका के साथ सुरक्षा संबंधों को लेकर दोनों देशों की सकारात्मक दिशा, एकरूपता का एक और बिंदु है. हालांकि, इस सहयोग से हासिल लाभों को ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ाने और क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान देने के लिए, नयी दिल्ली और हनोई को ठोस प्रगति दिखानी होगी.

आगे की राह 

क्षेत्र में लगातार क़ायम चीनी शत्रुता यह सुनिश्चित करेगी कि भारत और वियतनाम सहयोग के रास्ते पर चलते रहें. इसके अलावा, अमेरिका के साथ सुरक्षा संबंधों को लेकर दोनों देशों की सकारात्मक दिशा, एकरूपता का एक और बिंदु है. हालांकि, इस सहयोग से हासिल लाभों को ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ाने और क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान देने के लिए, नयी दिल्ली और हनोई को ठोस प्रगति दिखानी होगी. शायद, रक्षा एलओसी का तेज़ गति से इस्तेमाल दोनों पक्षों के लिए ‘वैल्यू प्रोपोजिशन’ को खोलेगा (अनलॉक करेगा). इसके अलावा, रक्षा सहयोग के विस्तार के परोक्ष प्रभाव से उच्च-तकनीकी विनिर्माण और कृषि संबंधी उत्पादन जैसे दूसरे क्षेत्रों में भी सहयोग मज़बूत होगा.

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