Author : Sabrina Korreck

Published on Jul 18, 2020 Updated 0 Hours ago

नई खोज को प्रोत्साहन और रोज़गार देने में स्टार्टअप की ज़बरदस्त संभावना को देखते हुए ये ज़रूरी है कि स्टार्टअप इकोसिस्टम में सक्रिय लोग और सरकार संकट से उनका बेड़ा पार करने के लिए रास्ते ढूंढे.

स्टार्टअप पर कोविड-19 महामारी का असर: बर्लिन के इकोसिस्टम की परख़

स्टार्टअप के लिए बर्लिन जर्मनी का प्रमुख केंद्र है. इस शहर में सबसे ज़्यादा स्टार्टअप की शुरुआत होती है (जर्मनी के 16.1% स्टार्टअप यहां मौजूद हैं), यहां के स्टार्टअप 37% फ़ाइनेंशियल राउंड में शामिल होते हैं और यूरो में निवेश का 59% हिस्सा इसे मिलता है. फाइनेंसिंग राउंड और वॉल्यूम की संख्या के मामले में वास्तव में बर्लिन यूरोप के टॉप तीन उद्यमी हॉटस्पॉट में शामिल है (लंदन और पेरिस के साथ). लेकिन कोरोना वायरस महामारी का बुरा असर हुआ है: एक सर्वे के मुताबिक़ जर्मनी में 91.1% स्टार्टअप कारोबार की गतिविधि पर असर पड़ा है और उनमें से 69.7% को लगता है कि अगर क़दम नहीं उठाए गए तो अगले छह महीनों में उनका अस्तित्व ख़तरे में आ जाएगा. नई खोज को प्रोत्साहन और रोज़गार देने में स्टार्टअप की ज़बरदस्त संभावना को देखते हुए ये ज़रूरी है कि स्टार्टअप इकोसिस्टम में सक्रिय लोग और सरकार संकट से उनका बेड़ा पार करने के लिए रास्ते ढूंढे.

ये साफ़ है कि जो स्टार्टअप बेहद मज़बूत और समय के साथ ख़ुद को बदल सकने वाले हैं वही बचेंगे. इसके लिए स्टार्टअप को अपने बिज़नेस मॉडल पर विचार करना होगा और जहां ज़रूरी हो वहां बदलाव करना होगा

महामारी को देखते हुए स्टार्टअप के लिए ज़रूरी है कि वो अपनी व्यावसायिक गतिविधियों और रोज़ाना के काम-काज के तरीक़ों में फेरबदल करें ताकि वो सरकार और स्वास्थ्य प्राधिकरणों की तरफ़ से उठाए गए क़दमों का पालन कर सकें. इन फेरबदल और आर्थिक अनिश्चितता में बढ़ोतरी की वजह से लोगों की मांग में कमी के कारण राजस्व घटने की आशंका है. स्टार्टअप, ख़ासतौर पर बेहद शुरुआती दौर वाले स्टार्टअप के पास जमा रक़म कम होती है और बैंक से कर्ज़ लेने में भी उन्हें दिक़्क़त होती है. प्रोफेशनल वेंचर कैपिटल इन्वेस्टर स्टार्टअप को वित्तीय मदद देने में अहम भूमिका अदा करते हैं लेकिन उथल-पुथल वाले आर्थिक माहौल में वो फिलहाल अपने मौजूदा पोर्टफोलियो में मौजूद कंपनियों की ही मदद कर रहे हैं. नया निवेश करने में वो काफ़ी सोच-समझकर फ़ैसला ले रहे हैं. इसकी वजह से 2020 की दूसरी तिमाही में लेन-देन की संख्या में 46% कमी आने की उम्मीद है. इसलिए महामारी प्रतिस्पर्धा में मौजूद स्टार्टअप कंपनियों के अस्तित्व पर भी संकट ला सकती है.

लेकिन वो कैसे बचेंगे? पहली बात, ये साफ़ है कि जो स्टार्टअप बेहद मज़बूत और समय के साथ ख़ुद को बदल सकने वाले हैं वही बचेंगे. इसके लिए स्टार्टअप को अपने बिज़नेस मॉडल पर विचार करना होगा और जहां ज़रूरी हो वहां बदलाव करना होगा. कई मामलों में ख़र्च में कटौती ज़रूरी होगी लेकिन वो अपने ऑफर को बढ़ाकर और डिस्ट्रीब्यूशन के नये रास्ते तलाश कर ख़ुद भी आगे क़दम बढ़ा सकते हैं.

इसके आगे इकोसिस्टम में मौजूद दूसरे लोगों या संस्थानों से ज़रूर समर्थन मिलना चाहिए. किसी तरह के इवेंट की मेज़बानी के लिए ऑफिस की जगह या कमरे का प्रावधान स्टार्टअप समर्थन का एक मुख्य तत्व है लेकिन मौजूदा दौर के लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि फिलहाल ज़्यादातर लोग घर से काम कर रहे हैं. लेकिन स्टार्टअप की मदद करने वाले संगठन जैसे इनक्यूबेटर और एक्सेलरेटर अपने ग्राहकों तक पहुंचकर वर्चुअल मीटिंग करवा सकते हैं. वो स्टार्टअप के बीच एक-दूसरे से सीखने-सिखाने को बढ़ा सकते हैं जो इस अभूतपूर्व चुनौती के समय महत्वपूर्ण है. स्टार्टअप की मदद का दूसरा मुख्य तत्व है व्यावसायिक सलाह. इस मक़सद के लिए मदद करने वाले संगठन और निवेशक जमा होकर ज़रूरी सूचना और सर्वश्रेष्ठ परंपरा को एक-दूसरे से बांट सकते हैं या उन्हें बाहरी विशेषज्ञों से जोड़ सकते हैं. स्टार्टअप को फ़ोन और वेबिनार के ज़रिए सलाह दी जा सकती है. स्टार्टअप की मदद का तीसरा तत्व है फंडिंग का प्रावधान और फंड जुटाने में मदद लेकिन निवेशकों के सावधानी बरतने की वजह से फिलहाल फंडिंग ज़रूरत से कम है.

इसलिए कोविड-19 महामारी ने जर्मनी की संघीय और राज्य सरकारों को नीतिगत जवाब के लिए तैयार किया है. अप्रैल में संघीय सरकार ने 2 अरब यूरो के राहत पैकेज का एलान किया जिसका लक्ष्य मुख्य रूप से स्टार्टअप की मदद करना है. ये राहत पैकेज दो बुनियादों पर है. पहली बुनियाद को ‘कोरोना मैचिंग फैसिलिटी’ कहा गया जहां सरकारी विकास बैंकों (यानी KfW कैपिटल, IBB) और यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक की निवेश कंपनियों को वेंचर कैपिटल इन्वेस्टर को निवेश करने का अवसर मुहैया कराया गया. भरोसा जगाने वाले स्टार्टअप को फंडिंग सुनिश्चित करने के लिए एक फ़ाइनेंशियल राउंड के 70% वैल्यू तक सरकारी फंड से निवेश किया गया. ये इस सिद्धांत पर था कि निवेशक बाज़ार को लेकर अपनी विशेषज्ञता के आधार पर तय करेंगे कि कौन सा निवेश फ़ायदेमंद है. इसके बदले सार्वजनिक निवेश संस्थानों को कन्वर्टिबल लोन मिला जिसके ज़रिए बाद में कंपनी की वैल्यू बढ़ने पर उन्हें फ़ायदा हो सकता है.

संघीय सरकार की तरफ़ से बड़े पैकेज के एलान के अलावा स्टार्टअप के लिए जर्मनी में दो और आपात मदद कार्यक्रम हैं. इन कार्यक्रमों को सरकारी इन्वेस्टिशन्सबैंक बर्लिन के ज़रिए चलाया जाता है

दूसरी बुनियाद उन स्टार्टअप के लिए है जिन्हें वेंचर कैपिटल के ज़रिए फंडिंग नहीं मिलती है और इस तरह उनकी पहुंच मैचिंग फैसिलिटी तक नहीं है. सरकारी संस्थानों के सहयोग से (ख़ासतौर पर सरकारी विकास बैंक) संघीय सरकार कर्ज़ के ज़रिए उन्हें पैसा मुहैया कराती है ताकि वो अपनी मौजूदा पहल को बढ़ा सकें जैसे कि बर्लिन में “ग्रन्डंग्सबोनस” और “स्टार्टअप स्टाइपेंड” कार्यक्रम. पहले कार्यक्रम के लिए योग्यता की शर्तें आसान कर दी गई हैं और स्टार्टअप को अग्रिम भुगतान के साथ कोरोना बोनस के तौर पर 5,000 यूरो अतिरिक्त मिले. बाद के कार्यक्रम के तहत स्टार्टअप सेंटर और इनक्यूबेटर को अपनी मदद बढ़ाने के लिए आवंटन किया गया. दोनों कार्यक्रम तकनीकी खोज के साथ-साथ पर्यावरण को बेहतर करने और चैरिटेबल मक़सद वाले स्टार्टअप पर ध्यान देते हैं.

संघीय सरकार की तरफ़ से बड़े पैकेज के एलान के अलावा स्टार्टअप के लिए जर्मनी में दो और आपात मदद कार्यक्रम हैं. इन कार्यक्रमों को सरकारी इन्वेस्टिशन्सबैंक बर्लिन के ज़रिए चलाया जाता है और इनका मक़सद महामारी की वजह से स्टार्टअप के पास पैसे की जो कमी है, उसे पूरा करना है. एक कार्यक्रम छोटे और मध्यम उद्योगों को “कोरोना रेस्क्यू लोन” मुहैया कराता है जिसके तहत अधिकतम 5,00,000 यूरो दिया जा सकता है. इस रक़म का इस्तेमाल स्टार्टअप अपना किराया, व्यक्तिगत ख़र्च और दूसरे दायित्वों को पूरा करने में कर सकते हैं. दूसरा कार्यक्रम स्वरोज़गार में लगे लोगों और छोटे कारोबारियों को “कोरोना ग्रांट” मुहैया कराता है. अनुदान की रक़म, जिसका मक़सद व्यक्तिगत ख़र्च और वेतन देने के साथ-साथ कारोबार चलाने के ख़र्च को शामिल करना है, कर्मचारियों की संख्या पर निर्भर है और ये 9,000 से 25,000 के बीच हो सकती है.

नीतिगत जवाब के तहत स्टार्टअप को पैसे मुहैया कराने के अलावा कई स्टार्टअप कम वक़्त के लिए अलग-अलग क़दम भी उठा रहे हैं. इन क़दमों के तहत कर्मचारियों के काम-काज के घंटे कम कर दिए गए हैं. इसकी वजह से कर्मचारियों की आमदनी में कमी को सरकार पूरी करती है. इसका मक़सद आर्थिक सुस्ती के दौरान कर्मचारियों की छंटनी से परहेज करना है.

सार ये है कि सूचनाओं का आदान-प्रदान और सर्वश्रेष्ठ तौर-तरीक़े के साथ-साथ पैसे का प्रावधान इस वक़्त स्टार्टअप की मदद के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं. वित्तीय समर्थन को अलग-अलग स्टार्टअप की ज़रूरत के हिसाब से तैयार करना चाहिए ताकि वो असरदार हो सकें. साथ ही सरकारी फंड इस ढंग से मुहैया कराना चाहिए कि भरोसा जगाने वाले बिज़नेस मॉडल के स्टार्टअप को मदद मिल सके. इस तरह हालात को ख़ासतौर पर स्टार्टअप की मदद के मौक़े के तौर पर लिया जा सकता है जो नई सामाजिक पद्धति को विकसित करने और जलवायु की रक्षा और उसे मज़बूत करने में मदद देते हैं. आख़िरकार स्टार्टअप में भी महामारी से लड़ने में योगदान की संभावना है जैसा कि “स्टार्टअप अगेंस्ट कोरोना” (ऐसा मंच जहां मौजूदा कंपनियों को कोरोना से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए स्टार्टअप से जोड़ा जाता है)  पहल प्रदर्शित करती है.

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