Published on Feb 10, 2021 Updated 0 Hours ago

वर्तमान व्यापार परिदृश्य यह बताता है कि चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करके चीन को घुटनों पर लाने की राष्ट्रवादी धारणाएं बेअसर रही हैं.

भारत-चीन आर्थिक गठबंधन पर गलवान का प्रभाव

पिछले कुछ वर्षों में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंध, दोनों देशों के बीच मौजूद ऐतिहासिक दुश्मनी और सीमा विवादों की छाया में परिभाषित किए गए हैं. फिर भी, 2000 के दशक की शुरुआत के बाद से दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध लगातार बढ़े हैं, और भारत व चीन के बीच मौजूद इस आर्थिक आयाम ने द्विपक्षीय संबंधों का नेतृत्व किया है. इस रूप में व्यापार और निवेश ने भारत-चीन के इस अन्यथा मुश्किल रिश्ते को एक सहारा प्रदान किया है.

साल 2000 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार जहां तीन बिलियन अमेरिकी डॉलर था वह साल 2019 में बढ़कर 92.68 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक हो गया. चीन 2019 में भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था और वित्त वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में पहला सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया. इस बीच दुनिया भर में कोविड-19 की महामारी के चलते 2020-21 में समग्र व्यापार में 32.46 फीसदी की गिरावट हुई, जिस की तुलना में द्विपक्षीय व्यापार में केवल 15 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. साल 2019 में चीन, भारत के लिए 5 फीसदी निर्यात और 14 फीसदी आयात का गढ़ रहा. इसके चलते 2019 में 56.77 बिलियन अमेरिकी डॉलर का बड़ा व्यापार घाटा हुआ. द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से भारत और चीन व्यापार घाटे को कम करने का प्रयास किया गया है. उदाहरण के लिए, इस मुद्दे को महाबलिपुरम में हुए द्विपक्षीय अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में उठाया गया था, और दोनों पक्ष इस मुद्दे को हल करने के लिए एक नया व उच्च स्तरीय आर्थिक और व्यापार संवाद तंत्र स्थापित करने पर सहमत हुए.

चीन, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का एक अभिन्न हिस्सा है, और भारत भी कई प्रकार के कच्चे माल से लेकर महत्वपूर्ण घटकों तक के लिए बहुत हद तक चीनी आयात पर निर्भर है. साल 2019 के आंकड़ों के मुताबिक, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का 70 फीसदी, उपभोक्ताओं के इस्तेमाल से जुड़ी टिकाऊ वस्तुओं का 45 फीसदी, सक्रिय फार्मास्युटिकल अवयवों यानी एपीआई (Active Pharmaceutical Ingredients, APIs) का 70 फीसदी और चमड़े के सामान का 40 फीसदी हिस्सा चीन से आता है. राज्यसभा में एक प्रश्न के जवाब में उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, भारत में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवा उद्योग है, जिसके लिए दो तिहाई सामग्री और कच्चा माल चीन से आता है.

चीन में लॉकडाउन के चलते व्यापार में, साल 2019 की समान अवधि की तुलना में, 2020 के पहले दो महीनों में लगभग 12.4 फीसदी की गिरावट के साथ 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक गिरावट देखी गई. वहीं आयात, अप्रैल और मई में 3.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर गिरा, जो भारत में कोविड-19 के चलते लगाए गए लॉकडाउन की अवधि थी. इस बीच, जून के मध्य में गलवान घाटी की घटना ने चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान किया. स्थानीय स्तर पर किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, 87 फीसदी भारतीय उपभोक्ता चीनी सामानों का बहिष्कार करने के लिए तैयार थे. इस दौरान सामने आए प्रमुख अभियानों में से एक दीपावली के लिए चीनी सामानों का बहिष्कार करने से जुड़ा था. हालांकि, यह देखा गया कि प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात में स्थित अहमदाबाद में भी, दुकानों में बेची गई 80 फीसदी सजावटी चीज़ें और दीपावली की रोशनी व एलईडी लाइट्स ‘मेड इन चाइना’ थीं. इस मायने में जुलाई में चीनी आयात बढ़कर 5.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन के पहले के स्तर जितना ही है.

भारत की आयात टोकरी में चीन की हिस्सेदारी, अप्रैल से अगस्त के दौरान बढ़कर 18.11 फीसदी हो चुकी है. जुलाई में आयात के ज़रिए हुई वसूली में मुख्य रूप से जैविक रसायन, विद्युत मशीनरी व उपकरण, दवा उत्पाद, और चिकित्सा उपकरण शामिल थे. सितंबर में जैविक रसायनों, विद्युत मशीनरी, बॉयलर और मशीनरी का मासिक व्यापार, पिछले वर्ष के मुक़ाबले तुलनीय स्तर पर पहुंच गया. फार्मास्युटिकल उत्पादों के आयात ने इस साल जुलाई में 30.12 मिलियन अमेरिकी डॉलर की बढ़ोत्तरी दर्ज की, जो पिछले वर्ष की तुलना में 50.32% की रिकॉर्ड वृद्धि दिखाते हुए भारत में चीनी निर्यात को बढ़ा रहा है. वहीं सर्जिकल यानी चिकित्सा उपकरणों सहित विभिन्न क्षेत्रों में भी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है.

खनिज अयस्कों, खनिज बाइ-प्रॉडक्ट, अन्य जैविक रसायन, साल 2019 से 2020 के बीच में भारत से चीन को निर्यात हुए सामानों का एक बड़ा हिस्सा रहे. गलवान घाटी में जारी संघर्ष के बाद भी चीन को हुआ निर्यात इस साल बढ़ा है. साल 2020 में कुल निर्यात में आई 21.13 फीसदी की कमी की तुलना में चीन को हुए निर्यात में 26.19 फीसदी की दर से बढ़ोत्तरी दर्ज की गई. जैविक रसायन उन क्षेत्रों में से एक है जहां चीन का मार्केट क्षेत्र 15 फीसदी है, जो 1.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर है. भारत से चीन को होने वाले प्लास्टिक का निर्यात भी 71.8 फीसदी बढ़कर 437.47 मिलियन अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले 751.58 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है. लेकिन चीन को होने वाले निर्यात में यह महत्वपूर्ण वृद्धि लोहे और इस्पात के निर्यात में हुई भारी वृद्धि के कारण हुई है, साल 2020 में जनवरी और सितंबर में हुआ निर्यात 2.147 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 348.35 मिलियन अमेरिकी डॉलर था. कुल निर्यात में चीन की हिस्सेदारी अप्रैल से अगस्त के बीच 9.1 फीसदी रही, जो साल 2019-2020 के 5.3 फीसदी से अधिक है.

महामारी के बाद, चीन की अर्थव्यवस्था एक सकारात्मक विकास दर के साथ पटरी पर लौटने में क़ामयाब रही है. घरेलू मांग में इस वृद्धि के कारण भारत से लोहे और इस्पात के निर्यात में भी तेज़ी आई है. एक बड़ा अंतर जो देखा गया है, वह यह है कि इस क्षेत्र में भारतीय निर्यात, खनिज अयस्कों जैसे कच्चे माल से आगे बढ़ कर अब तैयार और आंशिक रूप से तैयार (finished and semi-finished) माल तक चला गया है, जिससे भारतीय कंपनियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है. साल 2020 तक अप्रैल से सितंबर की अवधि के बीच भारत से होने वाले 1.92 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लौह अयस्क निर्यात में लगभग 90 फीसदी हिस्सेदारी चीन की रही, जो साल दर साल 83.91% की वृद्धि दर के साथ बढ़ी है.

गलवान घाटी में हुई गतिविधियों का प्रभाव

चीनी वस्तुओं पर भारत की निर्भरता को कम करने को लेकर लगातार प्रयास किए गए हैं. उदाहरण के लिए, भारतीय रेलवे ने एक चीनी फर्म के साथ भारतीय मुद्रा में 471 करोड़ रुपए का सौदा रद्द कर दिया. इसी तरह, राज्य के स्वामित्व वाली दूरसंचार कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड यानी बीएसएनएल को निर्देश दिया गया था कि वह नेटवर्क अपग्रेड के लिए चीनी फर्म हुआवेई के उपकरणों का इस्तेमाल न करे. सरकार ने चीनी मूल के सामानों की पहचान करने के प्रयास में सरकारी ई-मार्केटप्लेस यानी इंटरनेट माध्यमों पर खोले गए ई-बाज़ारों पर बेचे जाने उत्पादों के विवरण में, मूल उत्पत्ती से जुड़े देश का टैग यानी कंट्री ऑफ ओरिजिन का टैग अनिवार्य कर दिया है. जुलाई 2020 की शुरुआत में, बिजली मंत्रालय ने साइबर और सुरक्षा ख़तरों का हवाला देते हुए चीन से बिजली आपूर्ति प्रणाली और नेटवर्क उपकरणों संबंधी आयात पर भी प्रतिबंध लगा दिया, जो भारत में चीन से किए जाने वाले कुल आयात का लगभग 30% है. पिछले 10 साल में, 22,420 मेगावाट के अति महत्वपूर्ण यानी सुपरक्रिटिकल पावर प्लांटों में से 12,540 मेगावाट का निर्माण चीनी उपकरणों का उपयोग कर के किया गया था. इसके अलावा भारत ने सोलर सेल (solar cells) और मॉड्यूल के आयात पर सुरक्षित कर लगाने का क़दम भी उठाया है. इसके साथ साथ कई वस्तुओं पर एंटी-डंपिंग (anti-dumping) शुल्क भी लगाया है, जो घरेलू सरकार द्वारा विदेशी आयात पर लगाए जाने वाला संरक्षणवादी टैरिफ है, और उस स्थिति में लगाया जाता है जब सरकार यह मानती है कि उत्पादों की कीमत, उचित बाज़ार मूल्य से कम है. जुलाई में, भारत ने रंगीन टेलीविज़न सेट के आयात को प्रतिबंधित श्रेणी में डाल दिया. इस प्रकार के आयात के लिए लाइसेंस की आवश्यकता होती है; साथ ही घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और ग़ैर-आवश्यक सामान के आयात में कमी लाने के मकसद से एयर कंडीशनर को निषिद्ध श्रेणी में डाला गया. सरकार के इन क़दमों के प्रभावों को तुरंत नहीं मापा जा सकता है.

यह तालिका उन आयातित वस्तुओं की सूची दिखाती है जिनके लिए भारत चीन पर सबसे अधिक निर्भर है.

लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था का चीनी निर्यात के साथ गहरा संबंध है. मध्यवर्ती वस्तुओं, पूंजीगत वस्तुओं और अंतिम उपभोक्ताओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं के लिए भारतीय आयात में चीन की हिस्सेदारी, इसी क्रम में: 12 फीसदी, 30 फीसदी और 26 फीसदी है. भारत, इलेक्ट्रिकल मशीनरी और उपकरणों से लेकर फार्मास्यूटिकल ड्रग एपीआई तक, कई प्रमुख उद्योगों के लिए चीन पर निर्भर है. हाल के वर्षों में, कुछ मोबाइल कंपनियां अपनी असेंबली लाइनों को भारत में स्थानांतरित कर रही हैं, जो सही दिशा में एक क़दम है, लेकिन फिर भी, डिस्प्ले, चिपसेट, और मेमोरी चिप व कार्ड जैसे सभी संवेदनशील, प्रमुख व उच्च तकनीक वाले विनिर्माण घटकों को चीन से आयात किया जा रहा है. भारत ने घरेलू प्रौद्योगिकी की उपलब्धता का हवाला देते हुए विद्युत मशीनरी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपकरणों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन यह देखना ज़रूरी होगा कि यह कितना प्रतिस्पर्धी साबित होता है, गुणवत्ता और लागत दोनों के लिहाज़ से.

लागत एक ऐसा महत्वपूर्ण कारण है जिस के चलते चीनी उत्पाद पूरी दुनिया में लगभग सभी क्षेत्रों और बाज़ारों पर हावी हैं. उदाहरण के लिए उर्वरक यानी फ़र्टिलाइज़र जैसे उत्पाद 76 फीसदी, इलेक्ट्रॉनिक सर्किट 23 फीसदी, और डाटा प्रोसेसिंग इकाइयां लगभग 10 फीसदी सस्ती रहती हैं, अगर उन का उत्पादन चीन में किया जाए. इन कीमतों और महत्वपूर्ण उत्पादों के चीनी विकल्पों को बदलना या उन से प्रतिस्पर्धा करना बेहद कठिन होगा. कोविड-19 की महामारी के बाद से दुनियाभर में आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने की बात की जा रही और इस पर ज़ोर दिया जा रहा है. इंडो-अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स के मुताबिक लगभग 1,000 कंपनियां चीन छोड़ने की योजना बना रही थीं, लेकिन दूसरा तथ्य यह है कि उनमें से केवल 300 कंपनियों ने ही भारत में निवेश करने के बारे में गंभीरता दिखाई.

एलईडी (LED) जैसे छोटे से छोटे से उत्पाद व उपकरण भी अपने चीनी रूप में भारतीय विकल्पों की तुलना में लगभग 50 फीसदी सस्ते हैं. यह तब, जब कि चीनी उत्पाद आमतौर पर 40 फीसदी बढ़े हुए दामों के साथ भारतीय बाज़ारों में बिकते हैं.

भारत को क्या करना चाहिए

वर्तमान व्यापार परिदृश्य बताता है कि चीनी वस्तुओं का बहिष्कार कर के चीन को अपने घुटनों पर लाने की राष्ट्रवादी धारणा लगभग पूरी तरह से फ्लॉप रही है. इसका सब से सरल उदाहरण है कि एलईडी (LED) जैसे छोटे से छोटे से उत्पाद व उपकरण भी अपने चीनी रूप में भारतीय विकल्पों की तुलना में लगभग 50 फीसदी सस्ते हैं. यह तब, जब कि चीनी उत्पाद आमतौर पर 40 फीसदी बढ़े हुए दामों के साथ भारतीय बाज़ारों में बिकते हैं. यह इंगित करता है कि भारत को विकास और निवेश को बढ़ावा देने के लिए भूमि और श्रम सुधार जैसे क्रायक्रमों व कोशिशों की एक पूरी श्रृंखला तैयार करनी होगी व उसे अमल में लाना होगा. भारत को इलेक्ट्रिकल मशीनरी और फार्मास्यूटिकल्स सहित प्रमुख क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन को बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि वह आयात की उन मुख्य व महत्वपूर्ण श्रेणियोंमें बदलाव ला सके जिनमें भारत अब भी चीन पर निर्भर है. इन प्रमुख सुधारों के बिना, भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का ‘आत्मनिर्भर भारत’ का आह्वान केवल एक नारा बनकर रह जाएगा, जैसा कि वर्तमान में प्रतीत हो रहा है. यही वजह है कि गलवान घाटी की घटना के बाद भारत और चीन के बीच व्यापार संबंधों में बढ़ोत्तरी देखी गई है और इस बात की उम्मीद है कि निकट भविष्य में चीन पर यह महत्वपूर्ण निर्भरता बनी रहेगी.


लेखक ORF में रिसर्च इंटर्न है.

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