विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक़, ‘महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा[1] व्यापक स्तर पर फैली हुई है’ जिसका असर दुनिया भर की 73 करोड़ 60 लाख महिलाओं पर पड़ा है. निम्न और निम्न मध्यम आमदनी वाले देशों की महिलाओं पर हिंसा का सबसे ज़्यादा असर पड़ा है. ग़रीब देशों की क़रीब 37 प्रतिशत महिलाएं (15 से 49 वर्ष) हिंसा का शिकार हुई हैं. दक्षिण एशिया और सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित अफ्रीकी देशों में घरेलू हिंसा सबसे ज़्यादा- लगभग 33 से 51 प्रतिशत- फैली हुई हैं (आंकड़ा 1). महिलाओं के ख़िलाफ़ सबसे कम हिंसा (16-23 प्रतिशत) यूरोप, मध्य और पूर्वी एशिया में देखी गई है. महामारी ने महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा को और बढ़ाया है, ख़ास तौर पर घरेलू हिंसा में बढ़ोतरी देखी गई है. इसकी वजह रोज़गार चले जाने की वजह से आया तनाव, सामाजिक और रक्षात्मक जाल का टूटना, बेहद कम दूरी में लोगों का रहना और आने-जाने पर पाबंदी शामिल हैं. लैंगिक समानता पर टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) ‘सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में सभी महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ हर तरह की हिंसा जिसमें तस्करी, यौन और दूसरे तरह का शोषण शामिल हैं’ को ख़त्म करने का आह्वान करता है. लेकिन इसके बावजूद 49 देशों में घरेलू हिंसा पर कोई क़ानून नहीं है. कुछ देशों में कोविड-19 का नतीजा घरेलू हिंसा में 30 प्रतिशत बढ़ोतरी के रूप में सामने आया है.
महिलाओं के स्वास्थ्य- शारीरिक, यौन और प्रजनन के साथ-साथ मानसिक और व्यावहारिक-पर हिंसा का तुरंत असर होता है. हिंसा मातृत्व मृत्यु दर के जोख़िम और गर्भ से जुड़े प्रभाव- समय से पूर्व जन्म, मृत बच्चे का जन्म- को बढ़ाता है. निकारागुआ, बांग्लादेश, भारत और अमेरिका में हुए अध्ययन बताते हैं कि घरेलू हिंसा की वजह से समय से पूर्व बच्चे के जन्म की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है और गर्भवती महिलाओं की मौत के मामले भी बढ़े हैं. डब्ल्यूएचओ ने कई देशों को मिलाकर महिलाओं के स्वास्थ्य और महिलाओं के ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा पर एक अध्ययन किया जिससे पता चला कि हिंसा और महिलाओं की ख़राब सेहत के शारीरिक और मानसिक लक्षण के बीच गहरा संबंध है. घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के बच्चों का वज़न कम होने की संभावना 16 प्रतिशत ज़्यादा है. महिलाओं पर सीधा असर होने के अलावा घरेलू हिंसा बच्चों को भी प्रभावित करते हैं. अध्ययन से संकेत मिलता है कि बच्चों में कुपोषण का संबंध घरेलू हिंसा वाले घरों से है. निम्न और मध्यम आमदनी वाले 29 देशों में जनसांख्यिकीय और स्वास्थ्य सर्वे की समीक्षा अमीर और कम शिक्षित महिला- दोनों तरह के देशों में बच्चों की वृद्धि में रुकावट और घरेलू हिंसा के बीच मज़बूत संबंध को दिखाती है. घरेलू हिंसा के असर से खाद्य असुरक्षा, पोषक तत्वों की कमी और ग़रीबों के घरों में साफ़-सफ़ाई तक सीमित पहुंच और ज़्यादा छिप जाती है.
भारत में लैंगिक हिंसा को लेकर चिंता बढ़ रही है. इसकी वजह से काफ़ी ज़्यादा आर्थिक और सामाजिक क़ीमत चुकानी पड़ रही है. पहले के सर्वे संकेत देते हैं कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत घरेलू हिंसा के जुर्म होने के बावजूद भारत में ये बढ़ रही है.
महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा का जीडीपी पर असर
घरेलू हिंसा और बाल पोषण पर लैटिन अमेरिका के प्रमाण किसी बच्चे के दीर्घकालीन पोषण संबंधी स्थिति पर ख़राब असर का संकेत देते हैं. इस बात की कम संभावना है कि जन्म से पहले बच्चे को देखभाल मिलेगी और बच्चे को मां का दूध मिलेगा या उसे टीका लगेगा. लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की क़ीमत के बारे में एक अनौपचारिक अनुमान महिलाओं की सेहत के साथ एक नकारात्मक संबंध के बारे में बताता है जो अल्पकाल में सेहत के नतीजे और बच्चों की मानवीय पूंजी के संचय पर असर डालता है. लेकिन महिलाओं की शिक्षा और उम्र बच्चों की सेहत पर हिंसा के नकारात्मक असर के ख़िलाफ़ सुरक्षा में सहायक होती हैं. विश्व बैंक संकेत देता है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की क़ीमत जीडीपी के 3.7 प्रतिशत तक हो सकती है. बांग्लादेश और नेपाल के अध्ययन हिंसा और महिलाओं की पोषण संबंधी स्थिति के बीच संबंध के अलावा बढ़े हुए तनाव, अपनी ख़राब देखभाल और पोषण की संभावित कड़ी को दिखाता है. पाकिस्तान में मां-बच्चे के जोड़े पर एक अध्ययन दिखाता है कि घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं में सामान्य से कम वज़न वाले, अविकसित और कमज़ोर बच्चों में काफ़ी इज़ाफ़ा हुआ है. बांग्लादेश में एक जनसांख्यिकीय स्वास्थ्य सर्वे का नतीजा बताता है कि ज़िंदगी भर घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के बच्चों का विकास जोख़िम में पड़ता है और उनके अविकसित होने का ख़तरा ज़्यादा होता है.
निकारागुआ और बांग्लादेश में सामुदायिक अध्ययन बताते हैं कि महिलाओं की स्थिति में सुधार का गहरा संबंध बच्चों की सेहत में सुधार और पोषण संबंधी स्थिति से है. बांग्लादेश के आंकड़े के प्रतिगमन विश्लेषण से पता चला कि अन्य बातों के अलावा घरेलू हिंसा एक ऐसा जोखिम है जो बच्चों के विकास को रोकने में योगदान देता है. महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा का असर कई पीढ़ियों तक रहता है जिसका गंभीर जनसांख्यिकीय नतीजा होता है और जिसकी वजह से शैक्षणिक योग्यता हासिल करने और कमाई की संभावना में दिक़्क़त आती है.
लैंगिक असमानता में सुधार बच्चों के विकसित होने से रोक देने की मौजूदा दर में 10 प्रतिशत कमी कर सकता है. साथ ही बच्चों में कुपोषण में कमी के लिए पोषण से जुड़े उपायों को महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए उठाए गए क़दमों से जोड़ना ज़रूरी है.
भारत में लैंगिक हिंसा को लेकर चिंता बढ़ रही है. इसकी वजह से काफ़ी ज़्यादा आर्थिक और सामाजिक क़ीमत चुकानी पड़ रही है. पहले के सर्वे संकेत देते हैं कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत घरेलू हिंसा के जुर्म होने के बावजूद भारत में ये बढ़ रही है. एक अध्ययन उन बच्चों के विकास में रोक, उनका वज़न सामान्य से कम होने और कमज़ोरी की ज़्यादा संभावना का संकेत देता है जिनकी मां को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ा है. 2019-20 में राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वे-5 के नतीजे संकेत देते हैं कि कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की दरों में कमी आई है (आंकड़ा 2). लेकिन कर्नाटक, असम, महाराष्ट्र, लद्दाख, सिक्किम और हिमाचल प्रदेश में घरेलू हिंसा में बढ़ोतरी हुई है.
अत्रेयी सिन्हा और अपराजिता चट्टोपाध्याय ने एक वैचारिक रूप-रेखा (आंकड़ा 3) के ज़रिए घरेलू हिंसा और बच्चों की पोषण की स्थिति के बीच आपसी संबंधों को निकाला है. इसमें बताया गया है कि कैसे बच्चों का स्वास्थ्य मां के अधिकारों और उसके स्वास्थ्य की स्थिति पर निर्भर करता है और घरेलू हिंसा बच्चों की सेहत पर असर डालने वाला एक महत्वपूर्ण मध्यवर्ती कारक है.
साक्ष्य घरेलू हिंसा और बच्चों के विकास के बीच सीधे अनौपचारिक संबंध का संकेत देते हैं जिसका बच्चों की वृद्धि और उनके सामान्य से कम वज़न होने पर महत्वपूर्ण असर पड़ता है. हिंसा का असर कामकाजी और सशक्त महिलाओं के मुक़ाबले उन महिलाओं में ज़्यादा दिखता है जो कामकाजी नहीं हैं. घरेलू हिंसा एक मानवाधिकार का मुद्दा है और इसमें कमी लाना स्वास्थ्य से जुड़े फ़ायदों को सुनिश्चित करने में योगदान देना है. इससे भी बढ़कर, महामारी ने किशोरावस्था की लड़कियों (10-19 वर्ष) की ज़रूरी सेवाओं तक पहुंच की चुनौतियों में इज़ाफ़ा कर दिया है. कोविड-19 का सामाजिक और आर्थिक असर ग्रामीण महिलाओं के लिए बेहद गंभीर रहा है और इसकी वजह से उन्हें और ज़्यादा घरेलू हिंसा, दुर्व्यवहार और आधे पेट खाना मिलने का सामना करना पड़ा है. इसी तरह के नतीजे दक्षिण भारत में ग्रामीण और आदिवासी समुदाय से मिले हैं.
लैंगिक असमानता में सुधार बच्चों के विकसित होने से रोक देने की मौजूदा दर में 10 प्रतिशत कमी कर सकता है. साथ ही बच्चों में कुपोषण में कमी के लिए पोषण से जुड़े उपायों को महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए उठाए गए क़दमों से जोड़ना ज़रूरी है. मुंबई की झुग्गियों में एक प्रयोग बताता है कि महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा का सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बोझ घटाने के लिए समुदायों को संगठित करना ज़रूरी है. घरेलू हिंसा कम करने के लिए एक व्यवस्थात्मक समीक्षा असरदार संचार और समुदाय आधारित हस्तक्षेप की बात करती है.
कुपोषण घटाने, महिलाओं के पोषण और शिक्षा में सुधार लाने, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, महिलाओं को सशक्त बनाने और कुपोषण कम करने के लिए महिलाओं के ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा को ख़त्म करने की दिशा में क़दम तेज़ करने और निवेश बढ़ाने की तत्काल ज़रूरत है.
[1] Defined as physical and/or sexual violence
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