Author : Dhaval Desai

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jun 19, 2025 Updated 0 Hours ago

बेंगलुरू में आईपीएल चैंपियन आरसीबी की विक्ट्री परेड के दौरान भगदड़ से हुई मौतें रोकी जा सकती थी. हालांकि इस त्रासदी ने भारत में भीड़ प्रबंधन की  दीर्घकालिक खामियों को उजागर किया है. आखिर इसे लेकर सुरक्षा नीति बनाने के लिए कितने और लोगों को मरना होगा?

भीड़, भगदड़ और व्यवस्थागत खामियां: सार्वजनिक जगहों में भीड़ का नियंत्रण कैसे हो?

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5 जून 2025 की शाम को, बेंगलुरु के एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर की सड़कों पर समर्थक खुशी से झूम रहे थे. रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) टीम पहली बार इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की चैंपियन बनी थी. अपनी टीम के चैंपियन बनने पर आरसीबी फ्रैंचाइज़ ने जीत का सार्वजनिक जश्न मनाने की बड़ी योजना बनाई थी. 35 हज़ार की क्षमता वाले स्टेडियम की हर सीट फैंस से भरी हुई थी. पूरा स्टेडियम खचाखच भरा था. अंदर तिल रखने की जगह भी नहीं थी. हज़ारों समर्थक बाहर खड़े थे और वो अंदर जाने का इंतज़ार कर रहे थे. जब स्टेडियम के गेट नहीं खुले तो भीड़ ज़बरदस्ती अंदर घुसने लगी. वहां भगदड़ मच गई और इस भगदड़ में ग्यारह लोगों की मौत हो गई, जिनमें से कई युवा थे. इसके अलावा लोग घायल भी हुए. इस घटना ने एक बार फिर, भगदड़ को लेकर भारत में भीड़ प्रबंधन क्षमताओं की घातक खामियों को उजागर कर दिया है.

इस लेख का उद्देशय बेंगलुरु में हुई त्रासदी के बहाने अतीत में हुई कई ऐसी घटनाओं और उन्हें रोकने के तरीकों की पहचान करना है. इस लेख में शासन, प्रशासनिक और कार्यकारी विफलताओं का विश्लेषण करने और ऐसी त्रासदियों को दोबारा होने से रोकने के लिए रास्ते सुझाए गए हैं.

इस लेख का उद्देश्य बेंगलुरु में मची भगदड़ के लिए जिम्मेदार विशिष्ट कारणों या शासन की नाकामी का मूल्यांकन करना नहीं है. घटना की वजह जानने के लिए राज्य सरकार जांच करा रही है और उसी से कारणों का पता चलेगा. इस लेख का उद्देशय बेंगलुरु में हुई त्रासदी के बहाने अतीत में हुई कई ऐसी घटनाओं और उन्हें रोकने के तरीकों की पहचान करना है. इस लेख में शासन, प्रशासनिक और कार्यकारी विफलताओं का विश्लेषण करने और ऐसी त्रासदियों को दोबारा होने से रोकने के लिए रास्ते सुझाए गए हैं.

ऐतिहासिक रूप से, दुनिया भर में भगदड़ में कई लोगों की जान चली गई है. अगर हाल के उदाहरणों की बात करें तो पिछले साल अगस्त में यमन के सना में एक चैरिटी कार्यक्रम के दौरान मची भगदड़ में 85 लोगों की मौत हो गई. 2015 में हज यात्रा के दौरान भगदड़ में 2,300 लोग मारे गए, जो अब तक का सबसे बुरा रिकॉर्ड है. 2022 में सियोल में हैलोवीन समारोह के दौरान 159 लोगों की मौत हो गई, जबकि 2022 में इंडोनेशिया के मलंग में फुटबॉल मैच के दौरान हुई हिंसा और उसके बाद मची भगदड़ में 135 लोगों की जान चली गई.

हालांकि, इससे भी ज़्यादा चिंताजनक तथ्य ये है कि पूरे भारत में भगदड़ की घटनाएं बहुत अधिक होती हैं. पिछले 20 साल में भारत में भगदड़ की 18 घटनाओं में 1,200 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. उत्तर प्रदेश और बिहार के शहरों में ऐसी कई त्रासदियां हुई हैं. इस तरह की हर घटना के बाद सदमे और शोक जताया जाता है., राजनीतिक बलि का बकरा खोजा जाता है. जांच के एक औपचारिक तरीके के बाद आखिरकार चुप्पी का दौर आता है. भगदड़ किसकी गलती से हुई? इसका जिम्मेदार कौन है, इस पर कोई बात नहीं होता. बाद में मामला ठंडा पड़ जाता है और फिर एक नई त्रासदी का इंतज़ार करते हैं.

बार-बार होने वाली भगदड़ के कारण क्या हैं?

जिस भी जगह ज़्यादा भीड़-भाड़ होती है, वहां भीड़ अनियंत्रित अराजकता की शिकार हो सकती है. इससे भगदड़ की आशंका बनी रहती है. हालांकि, योजना बनाने, सीखने और कार्रवाई करने में विफलता इन कमज़ोरियों को त्रासदियों में बदल देती है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के भीड़ प्रबंधन दिशा-निर्देशों को छोड़कर दें तो भारत के किसी भी राज्य या शहर में भीड़ प्रबंधन को लेकर एक समान प्रोटोकॉल नहीं है. ऐसा कोई कानून नहीं है, जो बड़े सार्वजनिक आयोजनों की योजना बनाने, उन्हें क्रियान्वित करने और प्रबंधित करने के तरीके को अनिवार्य बनाता हो. इसके अलावा, एनडीएमए और राज्य एवं जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन प्राधिकरण नीति निर्माण और समन्वय निकाय हैं. हालांकि प्राकृतिक आपदाओं के दौरान एनडीएमए और एसडीएमए की सेवाएं ली जाती हैं, लेकिन ये दोनों प्राधिकरण उन आपदाओं के लिए व्यावहारिक हैं, जहां तबाही कई दिनों या हफ़्तों तक रहती है. भगदड़ जैसी स्थिति को संभालने के लिए ये शायद उतने उपयुक्त नहीं हो सकते, क्योंकि भगदड़ अचानक कुछ ही मिनटों में मच जाती है. एकदम से हालात बेकाबू हो जाते हैं. इसका नतीजा ये होता है कि भीड़ प्रबंधन का भार आम तौर पर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर पड़ता है, जबकि ये पहले से ही बहुत ज़्यादा तनावग्रस्त होते हैं. इनमें से कई के पास भगदड़ के नियंत्रण के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण और ज़रूरी उपकरण नहीं होते हैं.

भगदड़ की ज़्यादातर घटनाएं भीड़ पर नियंत्रण की कमी और लोगों की संख्या का अनुमान ना लगा पाने के कारण होती है. उदाहरण के लिए, 4 जून 2025 की रात को बेंगलुरु की सड़कों पर हुए जश्न से साफ संकेत मिल रहे थे कि विक्ट्री परेड और जीत के कार्यक्रम के दौरान क्षमता से कहीं ज़्यादा भीड़ उमड़ेगी. फिर भी, लोगों के प्रवेश की कोई सीमा तय नहीं की थी. किसी तरह के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था नहीं थी. ये तैयारी नहीं की गई थी कि अगर हालात या कार्यक्रम में गड़बड़ हो गई तो फिर उसे संभाला कैसे जाएगा. किसी तरह की कोई योजना नहीं थी. स्वाभाविक रूप से, जब लाखों प्रशंसक वहां पहुंचे तो वो स्टेडियम के अंदर जाने के लिए धक्का-मुक्की करने लगे.

भगदड़ से मौत का हालिया इतिहास

इसी तरह, जुलाई 2024 में हाथरस में हुई भगदड़ में 120 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई. मरने वालों में ज़्यादातर महिलाएं और बच्चे थे. ये एक बाबा के सत्संग में आए थे. कथा के बाद हज़ारों लोगों ने संकीर्ण, अनियमित रास्तों से धार्मिक समारोह से बाहर निकलने की कोशिश की, जिससे एक चोक प्वाइंट बन गया. आयोजकों को सिर्फ़ 80 हज़ार लोगों को बुलाने की अनुमति दी गई थी. तैयारी भी उसी हिसाब से थी, फिर भी 250,000 से ज़्यादा लोग वहां इकट्ठा हो गए और आखिर में भगदड़ मच गई.

बाहर निकलने के संकीर्ण रास्ते, संकेत यानी साइन बोर्ड्स का ना होना और भीड़ को निकालने की तैयारी की कमी इस तरह के कार्यक्रमों में स्पष्ट रूप से दिखती है. फिर चाहे ये समारोह खुले में हों या बंद जंगह पर. नतीजा ये होता है कि ये जगहें कुछ ही मिनटों में मौत का जाल बन जाती हैं.

भारत में प्रशासनिक अधिकारी अभी भी मुख्य रूप से मानवीय निगरानी पर निर्भर रहते हैं. एआई और ड्रोन के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति के बावजूद अभी तक बड़े पैमाने पर उनका उपयोग नहीं हो रहा है. यहा तक कि मुंबई में गणपति विसर्जन के दौरान ड्रोन की तैनाती और दिल्ली में उच्च सुरक्षा वाले गणतंत्र दिवस परेड जैसे समारोह में भी इनका उपयोग सीमित है.

आज दुनिया भर में स्टेडियम और अन्य बड़े आयोजन स्थलों में भीड़ की आवाजाही पर नज़र रखने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और उनके घनत्व को ट्रैक करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि, भारत में प्रशासनिक अधिकारी अभी भी मुख्य रूप से मानवीय निगरानी पर निर्भर रहते हैं. एआई और ड्रोन के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति के बावजूद अभी तक बड़े पैमाने पर उनका उपयोग नहीं हो रहा है. यहा तक कि मुंबई में गणपति विसर्जन के दौरान ड्रोन की तैनाती और दिल्ली में उच्च सुरक्षा वाले गणतंत्र दिवस परेड जैसे समारोह में भी इनका उपयोग सीमित है. यही वजह है कि शुरुआती चेतावनी, लाइव अलर्ट और रीयल टाइम पर फैसले लेने जैसी क्षमताओं को अभी भी सार्थक रूप से एकीकृत किया जाना बाकी है.

भगदड़ अक्सर घबराहट के कारण होती है. ये खराब संचार और अपर्याप्त योजना का परिणाम है. कल्पना कीजिए कि अगर बेंगलुरु में होने वाले कार्यक्रम के लिए पहले से पंजीकरण करवाना ज़रूरी होता तो शायद उसी हिसाब से तैयारी की जाती. अगर रीयल टाइम की निगरानी और संचार होता तो अधिकारियों को भीड़भाड़ वाले हॉटस्पॉट के बारे में पहले से सचेत कर दिया जाता. अगर प्रशंसकों को बारी-बारी से स्टेडियम में इंट्री दी गई होती. अगर उचित चिकित्सा किट और स्ट्रेचर के साथ आपातकालीन मेडिकम टीम वहां पहले से ही तैनात कर दी गई होती. मान लीजिए कि इंट्री और एक्ज़िट गेट पर पर्याप्त एम्बुलेंस तैनात की गई होती, और सभी मुख्य सड़कों पर यातायात को नियंत्रित किया गया होता. जश्न और त्रासदी के बीच का अंतर अक्सर कुछ ही फैसलों का होता है. अगर समय रहते और समझदारी से कुछ निर्णय ले लिए जाएं तो इस तरह की घटनाओं को रोका जा सकता है. कभी-कभी, ज़िंदगी को बचाने के लिए बस कुछ और फीट की जगह, एक अतिरिक्त निकास या समय पर की घोषणा की ज़रूरत होती है.

भगदड़ को कैसे रोकें

निम्नलिखित कुछ उपाय भगदड़ को रोकने और जीवन बचाने में मदद करेंगे. ये तरीके तैयारी, प्रतिक्रिया और भगदड़ होने पर कम नुकसान सुनिश्चित करते हैं.

ज़ोखिम का मूल्यांकन और उसे रोकने के उपाय: हर बड़ी सभा, फिर चाहे वो धार्मिक, सांस्कृतिक, वाणिज्यिक या राजनीतिक रैली हो. उसे मंजूरी देने के लिए पूर्व शर्त के रूप में भीड़ के ज़ोखिमों का मूल्यांकन अनिवार्य किया जाना चाहिए. इसमें निम्नलिखित बातें शामिल होनी चाहिए:

  • पिछले आंकड़ों और वर्तमान रुझानों के आधार पर भीड़ का अनुमान: अगर अधिकारियों ने पिछले अनुभवों से सबक लिया होता तो शायद बेंगलुरु की त्रासदी को टाला जा सकता था. टी-20 वर्ल्ड कप में जीत के बाद मुंबई में भारतीय क्रिकेट टीम का विजय जुलूस निकाला गया था. तीन लाख से ज़्यादा प्रशंसक इस विक्ट्री परेड में आए थे और इस भीड़ को सफलतापूर्वक संभाला गया था.

  • भीड़ वाली जगह पर विशिष्ट एआई सिमुलेशन और लोगों के व्यवहार का अनुमान लगाना.

  • दबाव के बिंदुओं और संभावित ख़तरों की पहचान और उसे चिन्हित करना. 

 एसओपी और मल्टी-एजेंसी प्रोटोकॉल: स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) को लेकर पूरे भारत में एकरूपता लानी चाहिए और उन्हें कानूनी रूप से लागू किया जाना चाहिए. हर एजेंसी (पुलिस, फायर ब्रिगेड, स्वास्थ्य, नागरिक निकाय, कार्यक्रम आयोजक) की भूमिकाएं तय होनी चाहिए. प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में अधिकतम स्वीकार्य भीड़ और निकासी के रास्तों को परिभाषित किया जाना चाहिए. ये स्पष्ट रूप से पता होना चाहिए कि अगर अचानक भीड़ जमा हो जाए,  भीड़ बैरिकेड तोड़ने पर उतारू हो या गुंडागर्दी करे तो फिर उस सूरत में क्या किया जाए. उदाहरण के लिए, न्यूयॉर्क में भीड़ प्रबंधन के लिए एक राज्य-व्यापी एसओपी है, जिसके तहत 1,000 या उससे ज़्यादा लोगों की मेजबानी करने वाले किसी भी प्रतिष्ठान, स्थल या कार्यक्रम के लिए प्रशिक्षित भीड़ नियंत्रण प्रबंधकों की ज़रूरत होती है.

तकनीक से संचालित निगरानी: तकनीक और रीयल टाइम एआई-संचालित ऐप्स, जैसे कि हीट मैप्स का इस्तेमाल करके, मानवीय त्रुटि को नाटकीय रूप से कम किया जा सकता है. ड्रोन-आधारित निगरानी भीड़ के समूहों और उनके जमा होने का लाइव वीडियो प्रदान कर सकती है. इस काम के लिए रेडियो फ़्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (आरएफआईडी) टैग की भी मदद ली जा सकती है. इससे कार्यक्रम की जगह पहुंचे हर व्यक्ति की इंट्री को कंट्रोल किया जा सकता है. जियो-फ़ेंस्ड डिजिटल पास जारी करके अनाधिकृत भीड़ को कम किया जा सकता है.

सभी प्रमुख घटनाओं का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया जाना चाहिए. भीड़ के पैटर्न, निकासी समय और लॉजिस्टिक संबंधी कमियों का पता लगाना जाना चाहिए. पूर्वानुमान की सटीकता और योजना दक्षता में सुधार के लिए इस डेटा को एआई मॉडल में डाला जाना चाहिए.

बाहर निकालने के तय रास्ते और उसे दिखाने वाले संकेत: किसी भी बंद जगह, स्टेडियम या खुले मैदान में आपातकालीन द्वार, बहुभाषी संकेत (साइन बोर्ड) होने चाहिए. सार्वजनिक संबोधन प्रणाली के साथ प्रवेश और निकास के कई बिंदु होने चाहिए. अगर भीड़ अनुमान से बहुत ज़्यादा हो गई हो तो उसे तितर-बितर करने के लिए पुलिस-प्रशासन के पास पहले से नियोजित और दबाव-मुक्त रास्ते भी होने चाहिए.

रीयल टाइम कम्युनिकेशन: रीयल टाइम अपडेट के लिए पुश नोटिफिकेशन से लेकर लाउडस्पीकर अलर्ट की सुविधा होनी चाहिए. लोगों को देरी, रास्तों में बदलाव और किसी भी संभावित ख़तरे के बारे में सूचित किया जाना चाहिए.

चिकित्सा तत्परता: रैपिड एक्शन मेडिकल टीमें (आरएएमटी) रणनीतिक रूप से तैनात होनी चाहिए. हर प्रवेश और निकास द्वार के पास एम्बुलेंस होनी चाहिए. बेरोकटोक और तेज़ आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए कनेक्टिंग सड़कों पर यातायात की निगरानी की जानी चाहिए. हर सभा स्थल पर तत्काल प्राथमिक चिकित्सा क्षमता वाली मोबाइल ट्राइएज यूनिट भी होनी चाहिए. ट्राइएज यूनिट का अर्थ उस जगह से है, जहां मरीज को प्राथमिक चिकित्सा दी जाती है और उसकी स्थिति के हिसाब से तय किया जाता है कि मरीज का क्या इलाज होना चाहिए. इसके अलावा स्थानीय अस्पतालों को पहले से ही इमरजेंसी अलर्ट पर रखा जाना चाहिए. 2024 में म्यूनिख में हुए ओकटोबरफेस्ट से सबक लिया जा सकता है, जिसने 67 लाख लोगों की अगवानी की थी.

हर सभा स्थल पर तत्काल प्राथमिक चिकित्सा क्षमता वाली मोबाइल ट्राइएज यूनिट भी होनी चाहिए. ट्राइएज यूनिट का अर्थ उस जगह से है, जहां मरीज को प्राथमिक चिकित्सा दी जाती है और उसकी स्थिति के हिसाब से तय किया जाता है कि मरीज का क्या इलाज होना चाहिए. इसके अलावा स्थानीय अस्पतालों को पहले से ही इमरजेंसी अलर्ट पर रखा जाना चाहिए. 

पुलिसिंग और ग्राउंड कंट्रोल: पुलिस बलों को प्रतिक्रियात्मक नियंत्रण से सक्रिय समन्वय की ओर बढ़ना चाहिए. उनके पास भीड़ नियंत्रण उपायों और बिना बल का प्रयोग किए भगदड़ की स्थिति को काबू करने में सक्षम प्रशिक्षित कर्मियों की एक अलग डिवीजन होनी चाहिए. ये याद रखना ज़रूरी है कि जब इतनी बड़ी भीड़ में दहशत फैलती है तो उसे सिर्फ डंडे और बैरिकेड्स से नियंत्रित नहीं किया जा सकता. हर भीड़ वाली जगह पर ग्राउंड फोर्स, कमांड सेंटर, मेडिकल टीमों और आयोजकों को जोड़ने वाला एक लाइव कम्युनिकेशन ग्रिड होना चाहिए.

नागरिक सुरक्षा और स्वयंसेवी बल: सभी सामूहिक आयोजनों में नागरिक समाज के स्वयंसेवकों (राष्ट्रीय कैडेट कोर, राष्ट्रीय सामाजिक सेवा, आपदा प्रतिक्रिया एनजीओ) को जुटाना चाहिए. इन्हें बुनियादी आपदा प्रतिक्रिया, भीड़ के मनोविज्ञान, प्राथमिक चिकित्सा और निकासी के तरीकों का प्रशिक्षण दिया गया हो. हर आयोजन से पहले उनका क्षेत्र और भूमिकाए निर्धारित की गई हों. उन्हें वॉकी-टॉकी, फर्स्ट एड किट, रिफ्लेक्टिव इमरजेंसी जैकेट और स्ट्रेचर दिए जाने चाहिए.

संस्थागत सुधार: राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय कानूनों में शहरी नियोजन और आपदा प्रतिक्रिया के लिए एक एकीकृत ढांचा होना चाहिए. कानूनी और संवैधानिक जनादेश के रूप में भीड़ के ज़ोखिम प्रबंधन को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए. इसके साथ ही भारत को एक केंद्रीकृत ढांचे की आवश्यकता है. एक सामूहिक सभा सुरक्षा संहिता बनाई जा चाहिए. ये संहिता नियोजन, ज़ोखिम मूल्यांकन और भीड़ के प्रवाह के लिए मानक प्रक्रियाएं निर्धारित करती है. इतना ही नहीं ये आपातकालीन प्रतिक्रिया और सामूहिक समारोहों के सभी ख़तरों के ज़ोखिम आकलन उपकरण के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ समन्वय भी करेगी. भारत को सभी महानगरों और टियर-वन शहरों में ज़ोखिम शासन को संस्थागत बनाने के लिए इवेंट सुरक्षा प्राधिकरण की तत्काल स्थापना करनी चाहिए.

बुनियादी ढांचे में सुधार: स्टेडियमों, मंदिरों, घाटों और सार्वजनिक मैदानों में भीड़ की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उनमें नए सिरे से निर्माण या बदलाव करने की ज़रूरत है. इसमें चौड़े गेट, लाइट से जगमग साइन बोर्ड, दबाव-मुक्त निकास रास्ते और ज़्यादा भीड़ होने पर उन्हें रोकने के लिए तय जगह निश्चित करना शामिल है.

जवाबदेही तय करना: भगदड़ शासन की विफलता है. ऐसे में ये संदेश दिया जाना चाहिए कि अगर किसी अधिकारी ने सुरक्षा प्रोटोकॉल की अनदेखी की है तो फिर उसके परिणाम भुगतने होंगे. हादसे के बाद जांच और जवाबदेही तय करने का काम एक स्वतंत्र और तटस्थ मल्टी-एजेंसी जांच पैनल को सौंपा जाना चाहिए. जांच एजेंसी की सिफारिशों पर कार्रवाई होनी चाहिए. जांच रिपोर्ट के आधार पर दंड, निलंबन और अभियोजन की कार्रवाई होना चाहिए. जांच रिपोर्ट को सरकारी अलमारियों में रद्दी के तौर पर बंद नहीं कर देना चाहिए.

मुआवजा और पीड़ितों की सहायता: यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) अब काफी प्रचलित हो चुका है. ऐसे में मुआवजे की राशि एक हफ्ते के भीतर मृतकों परिजनों तक पहुंच जानी चाहिए. घायलों को तो घटना के 72 घंटों के भीतर मदद मिलनी चाहिए. हादसे में बचे लोगों और उनके परिवार के लिए सरकार को मनोवैज्ञानिक और ट्रॉमा काउंसलिंग सुनिश्चित करनी चाहिए. लापता लोगों के लिए ट्रैकिंग सिस्टम को रीयल टाइम पर अपडेट किया जाना चाहिए और इसकी जानकारी आसानी से लोगों तक पहुंचानी चाहिए.

अगर अगले हादसे को रोकने के लिए कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं की जाती तो ये माना जाना चाहिए बेंगलुरु में भगदड़ आखिरी नहीं थी. भविष्य में भी इस तरह की घटनाएं होंगी.

संकट से प्रतिबद्धता तक

भारत भीड़-भाड़ वाला देश है. जुलूसों, तीर्थयात्राओं, क्रिकेट और समुदाय के स्तर पर यहां लोकतंत्र का खुलकर पालन किया जाता है. भारत अपने लोकतंत्र के पैमाने, अपने त्योहारों के रंग और अपने स्टेडियमों के जोश पर गर्व करता है, लेकिन जब तक सार्वजनिक समारोहों का दूरदर्शिता और जिम्मेदारी के साथ प्रबंधन नहीं किया जाएगा, इस तरह की हादसे होते रहेंगे. हादसों पर शोक मनाना और फिर बार-बार इस तरह की घटनाओं की वास्तविकता बनी रहेगी. अगर अगले हादसे को रोकने के लिए कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं की जाती तो ये माना जाना चाहिए बेंगलुरु में भगदड़ आखिरी नहीं थी. भविष्य में भी इस तरह की घटनाएं होंगी.


(धवल देसाई ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो और उपाध्यक्ष हैं.)

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