Author : Jabin T. Jacob

Published on Feb 25, 2021 Updated 0 Hours ago

आखिर में आप क्या मिसाल खड़ी करते हैं, यह बात मायने रखती है. चीन ने ऐसा किया है. साथ ही, उसने चालाकी से दुनिया भर में दुष्प्रचार और झूठी सूचनाओं का अभियान भी चला रखा है

कोविड-19 के बाद चीन की CCP कैसे सुधारेगी अपनी छवि?

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव शी जिनपिंग अपने देश को फिर से महान बनाना चाहते हैं. ऐसा नहीं है कि उन्हें इस मक़सद को हासिल करने के रास्ते में आने वाली चुनौतियों का इल्म नहीं, लेकिन उन्हें लगता है कि चीन का इसे लेकर जिन देशों से मुकाबला है, वे ज़रूरत से ज्य़ादा ही सतर्क हैं. वे गलतियां कर रहे हैं. उनमें मुक़ाबले का दम नहीं या उनमें ये सारे ही दोष हैं. अपने मक़सद को पाने के लिए जिनपिंग ने जो जुआ खेला है, उसमें उन्हें जर्मनी से लेकर भारत और अमेरिका तक कुछ सफलता भी मिली है.

भारत में माना जा रहा है कि जिनपिंग ने अपनी करतूत के कारण चीन के खिलाफ़ कुछ देशों के गठजोड़ को मजबूत बनाया है. भारत के ऐसा मानने की अपनी वजहें भी हैं, लेकिन इसे कम से कम दो अलग तरीके से भी देखा जा सकता है. पहला, जिनपिंग ने देश की जनता और आलोचकों को अपने पीछे गोलबंद होने के लिए मजबूर कर दिया है. यानी चीन की विदेश नीति उसकी घरेलू नीति का औज़ार बन गई है. इसी वजह से चीन के राजनयिकों को इसकी परवाह नहीं है कि उनके बयानों और हरकतों से देश की छवि को नुकसान पहुंच रहा है. वे कोविड के दौर में ऐसा कर रहे हैं और इसके ख़त्म होने के बाद भी यह सिलसिला जारी रहेगा.

अपने मक़सद को पाने के लिए जिनपिंग ने जो जुआ खेला है, उसमें उन्हें जर्मनी से लेकर भारत और अमेरिका तक कुछ सफलता भी मिली है. 

दूसरा, भले ही चीन के खिलाफ़ दुनिया के कई देश गोलबंद हुए हैं और उनका गठजोड़ मज़बूत हुआ है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि जिनपिंग को दोस्तों या सहयोगियों की कमी है. यह एक तरह से पश्चिमी देशों की अगुवाई वाले उदारवादी वैश्विक व्यवस्था की नाकामी है, जिसने शीत युद्ध के बाद मिले मौके का इस्तेमाल तानाशाहों के खिलाफ़ दुनिया को एकजुट करने के लिए नहीं किया.

अगर चीन के बहुत दोस्त न भी हों तो कई देश उसके साथ मिलकर पश्चिम के खिलाफ़ वोट करने को तैयार हो जाएंगे. असल में तीसरी दुनिया में कई मुल्कों और उनके नेता पश्चिमी देशों को कहीं ज्य़ादा नापसंद करते हैं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के कारण भी अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चीन का पलड़ा भारी रहता है. यह ऐसी बुनियादी सच्चाई है, जिसके कारण उसके खिलाफ़ पाबंदी लगाने की वैश्विक पहल या उसकी आलोचना की कोशिश कामयाब नहीं हो पाती. चीन का आर्थिक रसूख़ ऐसा है कि वह दोस्त खरीद सकता है. महामारी के दौर में उसने दुनिया भर में इससे लड़ने के लिए इसका बख़ूबी इस्तेमाल भी किया है. भारत या अमेरिका जैसे चीन के प्रतिद्वंद्वी देशों का कोविड से लड़ने का अपना रिकॉर्ड ही बहुत बढ़िया नहीं रहा है. इसलिए वे इस क्षेत्र में चीन के आधिपत्य या दूसरे देशों को डराने-धमकाने से उसे रोकने में असफल रहे हैं. आख़िरकार, आप जो करते हैं, वही दूसरों के लिए मिसाल बनती है. चीन ने ऐसी मिसाल कायम करने के साथ बहुत चालाकी से दुष्प्रचार और झूठी सूचनाओं का अभियान भी चला रखा है.

चीन का आर्थिक रसूख़ ऐसा है कि वह दोस्त खरीद सकता है. महामारी के दौर में उसने दुनिया भर में इससे लड़ने के लिए इसका बख़ूबी इस्तेमाल भी किया है. 

इसलिए सिर्फ पश्चिमी देशों और लिबरल एलीट्स को चीन की छवि खराब होती दिख रही है. बाकी की दुनिया को उससे इस तरह की कोई शिकायत नहीं. इनकी संख्य़ा भी पश्चिम और लिबरल एलीट्स के मुकाबले कहीं ज्यादा है. सही कीमत और इंसेंटिव (प्रोत्साहन) मिले तो ये देश चीन की हर गलती या गुनाह भूलाने को तैयार हैं और जिनपिंग सरकार इन दोनों से उन्हें नवाज़ने के लिए हमेशा ही तैयार रहती है.

चीन के खिलाफ़ सख़्ती से बचाव

पश्चिमी एलीट्स की तरफ से चीन के खिलाफ़ सख्त़ी से बचने के भी मामले दिख रहे हैं. ख़ासतौर पर वहां की कंपनियां और पश्चिम के सहयोगी देशों की सरकारें चीन की राजनीतिक व्यवस्था, व्यापार और इंडस्ट्री के आकार तक पहुंच चुकी चोरी के खिलाफ़ सख्त़ी से बचने की कोशिश कर रही हैं. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसकी अच्छी मिसाल रहे हैं. उनके अलावा दूसरे लोग भी हैं और आने वाले वक्त में ऐसे और लीडर्स दिखेंगे.

चीन के लिए खराब छवि भले ही बड़ी समस्या न बनी हो, लेकिन इन देशों के लिए वह बड़ा सिरदर्द साबित होगी. 

एक और बात यह है कि कोविड-19 के बाद की दुनिया न सिर्फ़ लोकतांत्रिक देशों की अर्थव्यवस्था की मज़बूती का इम्तेहान लेगी बल्कि इन देशों की राजनीतिक पहचान और आदर्शों की भी अग्निपरीक्षा होगी. अगर वे अपनी राजनीतिक पहचान और आदर्शों को बरकरार नहीं रख पाते तो इससे उनकी छवि खराब होगी. चीन के लिए खराब छवि भले ही बड़ी समस्या न बनी हो, लेकिन इन देशों के लिए वह बड़ा सिरदर्द साबित होगी.

यही नहीं, अगर चीन यह दिखाने में सफल हो जाए कि छवि सुधारने की जरूरत तो पूरी दुनिया को है, तो इससे उसकी इमेज की चिंता खत्म हो जाएगी. ऐसा भी हो सकता है कि इस तरह से वह बाकी दुनिया से साफ-सुथरा दिखने लगे.

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