Author : Shoba Suri

Expert Speak Health Express
Published on Jan 03, 2025 Updated 21 Hours ago

भारत में ज़्यादातर बुजुर्गों में पौष्टिक भोजन को लेकर जागरूकता की कमी है. हालांकि कई लोगों की कमज़ोर आर्थिक स्थिति भी इसकी राह में बाधा बन रही है. इसका बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव दिख रहा है.

बुजुर्गों की देखभाल में कैसे हो सुधार?

भारत की बुजुर्गों की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है. 2031 तक भारत में 60 साल से ज़्यादा उम्र वाले लोगों की की संख्या 193.4 मिलियन यानी करीब 19 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है. जनसंख्या में जैसे-जैसे बुजुर्गों की संख्या में विस्तार हो रहा है, वैसे-वैसे उनके स्वास्थ्य और पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करना एक बड़ी चुनौती बन गया है. हालांकि दक्षिण एशिया के कई देशों की तुलना में भारत में उम्र बढ़ने दर उतनी तेज़ नहीं है. इसे मध्यम माना जा सकता है. 2050 तक भारत की जनसंख्या में बुजुर्गों का अनुपात 20 प्रतिशत और 2100 तक 36.1 प्रतिशत तक पहुंचने की उम्मीद है. (आंकड़ा नीचे चित्र में हैं)

How To Take Care Of The Elderly Old Age Care Health

दक्षिण एशियाई देशों में बुजुर्गों की जनसंख्या का प्रतिशत (1950-2100)

बुजुर्गों की सबसे बड़ी समस्याएं क्या हैं?

भारत में बुजुर्गों के स्वास्थ्य को लेकर सबसे बड़ी चिंता पुरानी बीमारियों के प्रसार की उच्च दर है. बुजुर्गों के स्वास्थ्य देखभाल के राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPHCE) के आंकड़ों के मुताबिक ये पुरानी बीमारियां वृद्ध लोगों की खराब सेहत और मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में से हैं. इसमें भी शहर और गांव के आंकड़े अलग हैं. गांवों में 17 प्रतिशत और शहरों में करीब 29 प्रतिशत बुजुर्ग कम से कम एक पुरानी बीमारी से परेशान हैं. ऐसे में अगर बुजुर्गों की स्वास्थ्य देखभाल करनी है तो फिर उन्हें इन बीमारियों से बचाने के इंतजाम करने ज़रूरी हैं. पुरानी बीमारियों के अलावा बुजुर्गों में एक बड़ी समस्या चलने-फिरने में आनी वाली दिक्कतें हैं. विकलांगता भी बड़ी चुनौती बनती जा रही है. भारत में वृद्ध आबादी को लेकर किए गए लॉन्गिट्यूडनल एजिंग स्टडी (LASI) में भी ये बात प्रमुखता से उभरकर सामने आती है कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ बुजुर्गों में शारीरिक गिरावट तेज़ी से आती है. बुजुर्गों में गिरने और फ्रैक्चर का ख़तरा ज्यादा होता है. इस स्टडी के मुताबिक जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे मांसपेशियों की ताकत कम होती है. संतुलन कमज़ोर होता है और हड्डियों के घनत्व (बोन डेंस्टिटी) में कमी महसूस होती है. इसका असर ये होता है कि बुजुर्गों के गिरने और इससे संबंधित चोटों की आशंका बढ़ जाती है. एलएएसआई की स्टडी में ये सलाह दी गई है कि इन समस्याओं से निपटने के लिए बुजुर्गों की फोक्सड मदद करनी चाहिए. उन्हें शारीरिक रूप से मज़बूत बनाने की कोशिश होनी चाहिए. उन्हें बताया जाना चाहिए कि चलने-फिरने के दौरान गिरने से बचने के लिए वो सावधानी बरत सकते हैं. इसके अलावा बेहतर स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को उन तक पहुंचाना भी ज़रूरी है. एक अध्ययन के अनुसार, बुजुर्गों में एक बड़ी संख्या ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित हैं, विशेषकर महिलाएं. इससे उनमें हड्डी टूटने और दूसरी तरह की चोटों का ज़्यादा ख़तरा होता है. स्टडी के मुताबिक मीनोपॉज के बाद करीब 35-40 प्रतिशत महिलाओं और 20-30 प्रतिशत वृद्ध पुरुषों में ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या ज़्यादा दिखती है. इसके असर से रीढ़, कूल्हे और कलाई में फ्रैक्चर का ख़तरा बढ़ जाता है.

एक अध्ययन के अनुसार, बुजुर्गों में एक बड़ी संख्या ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित हैं, विशेषकर महिलाएं. इससे उनमें हड्डी टूटने और दूसरी तरह की चोटों का ज़्यादा ख़तरा होता है. 


मानसिक स्वास्थ्य भी भारत में बुजुर्गों की सेहत की चिंता का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है. इसमें अवसाद, घबराहट और याददाश्त में कमी आम है. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-16) के मुताबिक भारत की 13.7 प्रतिशत बुजुर्ग आबादी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित है. इसमें अवसाद यानी डिप्रेशन के मामले सबसे ज़्यादा हैं. सर्वेक्षण से ये बात भी सामने आई है कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित बुजुर्ग इसके साथ जुड़े कलंक (स्टिग्मा) की वजह से स्वास्थ्य संबंधी मदद नहीं लेते. इसके अलावा मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता की कमी और इलाज की अपर्याप्त व्यवस्था जैसी समस्याएं तो अपनी जगह हैं हीं. अध्ययन में एक और चौंकाने वाली बात ये सामने आई कि ग्रामीण मध्य भारत में बुजुर्गों के बीच डिप्रेशन के लक्षण सबसे ज़्यादा (75.6 प्रतिशत) देखे गए. महिलाएं इससे अधिक पीड़ित हैं. 70 साल से ज़्यादा की उम्र, कम पढ़ा-लिखा होना, दूसरों पर वित्तीय निर्भरता और इसके साथ कुछ और बीमारियों का होना भी अवसाद की बड़ी वजह हैं. एलएएसआई के आंकड़ों के आधार पर ही किए गए एक अध्ययन में ये सामने आया है कि 45 साल से ज़्यादा उम्र वालों में डिप्रेशन का प्रसार 5.7 प्रतिशत है. इसमें भी पुरुषों (4.3 प्रतिशत) की तुलना में महिलाओं में अवसाद की उच्च दर (6.3 प्रतिशत) देखी गई है. अगर बुजुर्गों में अवसाद की बात करें तो गांवों में अकेला जीवन, विधवापन, कम शिक्षा और कम आय जैसे कारक मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की सबसे बड़ी वजह हैं. एक विश्लेषण के मुताबिक भारत में बुजुर्गों के बीच याददाश्त जाने का राष्ट्रीय प्रसार 7.4 प्रतिशत है. इससे ये साबित होता है कि देश की बहुत बड़ी आबादी इसका नुकसान झेल रही है.



पौष्टिक भोजन की कमी क्यों?


पोषण संबंधी समस्याएं भी भारत में बुजुर्गों के स्वास्थ्य की चिंता की बड़ी वजह हैं. खासकर ग्रामीण इलाकों में पोषक तत्वों से भरपूर खाने तक लोगों की पहुंच नहीं होती. इससे उन्हें कुपोषण का सामना करना पड़ता है. कमज़ोर आर्थिक स्थिति की वजह से भी बुजुर्गों को ताज़ा और पोषण वाला भोजन हासिल नहीं हो पाता. इससे उनके खाने की मात्रा भी कम हो जाती है. केरल के ग्रामीण इलाकों में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 14.3 प्रतिशत बुजुर्ग कुपोषित थे. 44.1 प्रतिशत को कुपोषण का खतरा था. ये बहुत बड़ी आबादी है और ये बताती है कि भारत में पोषण संबंधी समस्या कितनी बड़ी चुनौती है. इसी तरह ग्रामीण पुडुचेरी में शोध से ये सामने आया कि 17.9 प्रतिशत बुजुर्ग कुपोषित थे. करीब 60 फीसदी पर कुपोषण का ख़तरा था. शिक्षा की कमी, बेरोजगारी और उम्र बढ़ने के पैदा होने वाली शारीरिक बाधाएं भी कुपोषण का ख़तरा बढ़ाते हैं. इतना ही नहीं एक स्टडी से पता चला है कि ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 45 प्रतिशत बुजुर्ग पर्याप्त खाद्य सुरक्षा से दूर हैं. इसका असर ये है कि इस आबादी का एक बड़ा हिस्सा कुपोषण का शिकार है. कई कम वजन तो कुछ अधिक वजन की समस्या से जूझ रहे हैं. चूंकि लोगों के पास खाने को अनाज ही नहीं है. ऐसे में उनसे ये उम्मीद करना बेमानी होगी कि उन्हें उम्र के हिसाब से लिए जाने वाले पौष्टिक भोजन की जानकारी होगी. इस कारण उन्हें पोषक तत्वों से भरपूर खाना नहीं मिल पाता. ये समस्या उन बुजुर्गों में ज़्यादा दिखती है तो चलने-फिरने में लाचार या फिर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों से पीड़ित हैं.

70 साल से ज़्यादा की उम्र, कम पढ़ा-लिखा होना, दूसरों पर वित्तीय निर्भरता और इसके साथ कुछ और बीमारियों का होना भी अवसाद की बड़ी वजह हैं. 



नेशनल न्यूट्रिशन मॉनिटरिंग ब्यूरो (NNMB) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में बुजुर्गों की एक बड़ी संख्या ऐसी है, जिन्हें वैसा खाना नहीं मिल पाता, जो उनके लिए ज़रूरी होता है, जिसे खाने की उन्हें सलाह दी जाती है. इससे उनमें कैल्शियम, विटामिन डी और विटामिन बी-12 जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की कमी हो जाती है. इन ज़रूरी पोषक तत्वों की कमी स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं पैदा करती है. इसमें हड्डी टूटना, याददाश्त की कमी और पुरानी बीमारियां शामिल हैं. भारत के गांवों में इस लेकर एक स्टडी की गई. "बुजुर्ग होते ग्रामीण भारतीय समुदाय में विटामिन डी, विटामिन बी-12 और फोलिक एसिड की कमी का बोझ" शीर्षक से हुए इस अध्ययन से पता चला कि 75.7 प्रतिशत वृद्धों में विटामिन डी का स्तर कम था. 39.1 प्रतिशत में विटामिन डी, 42.3 प्रतिशत में विटामिन बी-12 और 11.1 प्रतिशत में फोलिक एसिड की कमी थी. बुजुर्गों में विटामिन की कमी चिंता की एक बड़ी वजह है, क्योंकि इससे उनकी रोग से लड़ने की प्रतिरोधक शक्ति तो कम होती ही है, साथ ही उनकी याददाश्त पर भी नकारात्मक असर दिखता है. इसे लेकर एक व्यवस्थित समीक्षा और मेटा-एनालिसिस भी किया गया. इसमें ये अनुमान लगाया गया कि उम्र के हिसाब से वो कौन से सूक्ष्म पोषक तत्व हो सकते हैं, जिनसे स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को हल किया जा सकता है. इस अध्ययन ने ये बताया कि बुजुर्गों में विटामिन की कमी को पूरा करने के लिए सूक्ष्य पोषक की उपलब्धता कितनी ज़रूरी है.



बुजुर्गों की समस्याओं का समाधान कैसे हो?



ग्रामीण क्षेत्रों से आ रही जानकारी भी ये बताती है कि बुजुर्गों में कुपोषण की समस्या क्यों है? इसकी एक बड़ी वजह तो ये है कि ताज़ी उपज तक उनकी पहुंच नहीं होती. इसके अलावा हर किसी की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं होती कि इन्हें खरीद सकें. ऐसे में ये ज़रूरी है कि सभी को पौष्टिक खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने की कोशिश की जाए, विशेषरूप से आबादी का वो हिस्सा, जो आर्थिक तौर पर कमज़ोर है. 2022 तक करीब 56 प्रतिशत भारतीय ऐसे थे, जो महंगाई, कम आय और आर्थिक असमानताओं के कारण पौष्टिक आहार नहीं ले सकते थे. हालांकि सरकार ने जो सरकारी आहार कार्यक्रम चलाए हैं, उनके ज़रिए सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने की कोशिश की जा रही है. इसके अलावा मिड डे मील योजना (प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण) से भी काफ़ी फायदा हुआ है. इस योजना को लेकर की गई केस स्टडी से पता चला है कि आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर भोजन देने से बच्चों की पोषण गुणवत्ता में बहुत सुधार हुआ है. एक समीक्षा में ये सामने आया है कि बच्चों में पोषक तत्वों की कमी से निपटने के लिए चलाई जा रही इस योजना जैसी ही कोई पूरक योजना अगर बुजुर्गों के लिए भी चलाई जाई तो इससे उन्हें काफ़ी फायदा हो सकता है.

केरल के ग्रामीण इलाकों में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 14.3 प्रतिशत बुजुर्ग कुपोषित थे. 44.1 प्रतिशत को कुपोषण का खतरा था. ये बहुत बड़ी आबादी है और ये बताती है कि भारत में पोषण संबंधी समस्या कितनी बड़ी चुनौती है. 


भारत में बुजुर्गों की पोषण संबंधी ज़रूरतों पर कई वजह से कम ध्यान दिया जाता है. इसमें जागरूकता की कमी, पौष्टिक भोजन तक सीमित पहुंच और पोषक तत्व वाले खाद्य पदार्थों को ना खरीद पाने की क्षमता मुख्य वजह है. नेशनल न्यूट्रिशन मॉनिटर ब्यूरो (एनएनएमबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि कई बुजुर्ग वो भोजन हासिल कर पाने में नाकाम रहते हैं, जिसे खाने की उन्हें सलाह दी जाती है. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने भारतीयों के लिए जारी अपने भोजन संबंधी  दिशानिर्देशों में कुछ बदलाव किए हैं. आईसीएमआर ने "स्वास्थ्य और कल्याण के लिए बुजुर्गों के खाने में पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल करने" की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है. भारत सरकार ने अपने अलग-अलग मंत्रालयों और विभागों के ज़रिए बुजुर्गों की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कई कार्यक्रम चलाए हैं. इनके ज़रिए बुजुर्गों के कल्याण, वित्तीय और पोषण संबंधी ज़रूरतें तो पूरी की ही जाती है, साथ ही उनके डिजिटल समावेशन पर भी ज़ोर दिया गया है. हालांकि सबसे ज़रूरी ये है कि इसे लेकर जागरूकता बढ़ाई जाए. पौष्टिक भोजन और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच हो. इन कार्यक्रमों में स्थिरता हो. अगर भारत की बुजुर्ग आबादी की दशा सुधारनी है तो ये सब कदम उठाना महत्वपूर्ण होगा, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में. 


शोभा सूरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन की स्वास्थ्य पहल में सीनियर फेलो हैं.

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