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वरिष्ठ नागरिकों के लिए पैदल चलने की व्यवस्था को सुगम बनाकर ही समावेशी तथा टिकाऊ शहरों का निर्माण किया जा सकता है.
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वॉकाबिलिटी यानी पैदल चलने में सक्षमता, आसानी से उपलब्धता और पैदल चलने वाले यात्रियों की सुरक्षा ही नागरिकों की गतिशीलता को सुनिश्चित करती है. इसमें वे नागरिक शामिल हैं जो पैदल चलते हैं, दौड़ते हैं, टहलते हैं, तेजी से चलते हैं या फिर अपनी गतिशीलता के लिए व्हीलचेयर, स्कूटर अथवा लकड़ियों का सहारा लेते हैं. पैदल चलने से वेल-बिइंग यानी कल्याण में इज़ाफ़ा होने के साथ उत्सर्जन में कमी आती है. इसके अलावा जब इसे शहरी सार्वजनिक ट्रांजिट सिस्टम के साथ एकीकृत कर दिया जाता है तो यह फर्स्ट एंड लास्ट माइल कनेक्टिविटी को सुनिश्चित करने का काम करते हैं. इतना ही नहीं सतत विकास लक्ष्य 11.7 में महिलाओं, बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगों के लिए वॉकाबिलिटी को प्रोत्साहित करने के लिए सुरक्षित, समावेशी और सुगमता से उपलब्ध सार्वजनिक स्थल तक पहुंच को सार्वभौमिक बनाने पर बल दिया गया है. यह संयुक्त राष्ट्र के 2030 तक सड़क यातायात की वजह से होने वाली मौतों को आधा करने का लक्ष्य सामने रखकर तैयार किए गए डिकेड ऑफ एक्शन फॉर रोड सेफ्टी 2021–2030 से भी मेल खाता है.
पैदल चलने वाले 31 नागरिकों की हर घंटे मौत होती है. वैश्विक स्तर पर सड़क हादसों में मरने वाले लोगों में पैदल चलने वाले यात्रियों की हिस्सेदारी 21 प्रतिशत है. इस आंकड़े में मुख्यत: शहरी इलाकों में होने वाले हादसों का समावेश है. इतना ही नहीं तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण के कारण पैदल यात्रियों के मुकाबले मोटराइज्ड परिवहन को प्राथमिकता दी जा रही है. इसके चलते वरिष्ठ नागरिक प्रभावित हो रहे हैं. 2050 तक वैश्विक आबादी में 22 प्रतिशत हिस्सेदारी 60 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग की होगी. भारत में भी इस अवधि में इस वर्ग की हिस्सेदारी में 20 फीसदी का इज़ाफ़ा हो जाएगा. इतना ही नहीं 2022 में भारत में हुए पैदल यात्रियों की मृत्यु में वरिष्ठ नागरिकों की हिस्सेदारी 17.4 फीसदी थी. यह आंकड़ा देखकर सुरक्षित बुनियादी सुविधाओं और मिश्रित उपयोग के पास-पड़ोस की आवश्यकता साफ़ हो जाती है.
वरिष्ठ नागरिकों के समक्ष पैदल चलने की चुनौतियां
पैदल चलने के लिए उपयुक्त माहौल स्वस्थ, सक्रिय बुढ़ापा सुनिश्चित करता है. इसकी वजह से सोशल नेटवर्किंग और संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित होकर एकाकीपन में कमी आती है. इन सारी बातों की वजह से मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है. वरिष्ठ नागरिक अक्सर स्वास्थ्य सेवा तथा मनोरंजक गतिविधियों तक पहुंचने के लिए नॉन-मोटराइज्ड परिवहन यानी पैदल चलने के माध्यम का उपयोग करके ही अपनी पहुंच स्थापित करते हैं. लेकिन मोबिलिटी यानी गतिशीलता में कमी, कमजोर नज़र और सुनने की क्षमता, कॉग्निटिव डिक्लाइन यानी संज्ञानात्मक पतन और गिर जाने के डर या एकाकीपन की वजह से वरिष्ठ नागरिकों की चिंताएं और भी बढ़ जाती हैं. ऊपर से पैदल चलने वाले यात्रियों की मौत में कम और मध्यम आय वर्ग के देशों की हिस्सेदारी 92 फीसदी है. ग्लोबल साउथ के शहरों में यह चुनौतियां और भी अधिक है. इसका कारण है कि वहां का बुनियादी ढांचा कमज़ोर है और सामाजिक सुविधाएं अपर्याप्त है. इसे देखते हुए पैदल चलने वाले वरिष्ठ नागरिकों के लिए सुरक्षित बुनियादी ढांचे और गतिशीलता संबंधी सुविधाओं में तत्काल इज़ाफ़ा करने की आवश्यकता है.
पैदल चलने वाले 31 नागरिकों की हर घंटे मौत होती है. वैश्विक स्तर पर सड़क हादसों में मरने वाले लोगों में पैदल चलने वाले यात्रियों की हिस्सेदारी 21 प्रतिशत है.
गलत डिजाइन के फुटपाथ, उबड़-खाबड़ रैंप और फ़र्श के साथ फुटपाथ पर बैठे स्ट्रीट वेंडर्स और अनियंत्रित यातायात के कारण वरिष्ठ नागरिकों का आवागमन प्रभावित होता है. उदाहरण के लिए मैक्सिको के शहरों में रहने वाले बढ़ती वरिष्ठ आबादी पर वहां के असमतल इलाके, भारी ट्रैफिक और अपर्याप्त पैदल यात्री सुविधाओं के कारण मंडराने वाला ख़तरा बढ़ जाता है. मुंबई में घनी आबादी और अपर्याप्त पैदल यात्री सुविधाओं के कारण जहां दुर्घटनाओं की दर उच्च है, वहीं यह गतिशीलता को भी सीमित करती है. साओ पाउलो में फुटपाथ तक पहुंच में काफ़ी दिक्कतें हैं. इसी के अलावा यातायात नियमों पर अमल में कमी के कारण बाज़ार तक जाना या फिर किसी सड़क को पार करना एक चुनौती से कम नहीं होता. वरिष्ठ नागरिकों के लिए ये शहरी चुनौतियां और भी चुनौतीपूर्ण साबित होती हैं. जोहांसबर्ग में तेजी से बढ़ रहे शहर तथा इसके साथ देखी जा रही सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और दक्षिण अफ्रीका के पेरिफेरल इलाकों में पैदल यात्रियों के लिए सीमित बुनियादी सुविधाओं की वजह से वरिष्ठ नागरिकों के समक्ष बड़ी चुनौती खड़ी रहती हैं.
वॉकिंग और साइकिलिंग यानी पैदल चलना और साइकिल चलाना ही प्रदूषण-मुक्त गतिशीलता को हासिल करने के लिए अनिवार्य है. पैदल चलने वाले वरिष्ठ नागरिकों को तकनीक का उपयोग करके सुरक्षित पैदल मार्ग, मौसम और यातायात कंडीशन यानी भीड़भाड़ वाले इलाकों
का अलर्ट भेजा जा सकता है. यह सुरक्षा को लेकर उनकी धारणा को मजबूत बनाएगा. उदाहरण के लिए सिंगापुर की आबादी में 2030 तक वरिष्ठ नागरिकों की हिस्सेदारी 25 फीसदी हो जाएगी. वहां के र्स्माट नेशन इनिशिएटिव के तहत ऐसे र्स्माट ट्रैफिक सिग्नल्स लगाए गए हैं जो जियोग्राफिकल इंर्फोमेशन सिस्टम (GIS) का उपयोग करते हुए रियल टाइम ट्रैफिक मॉनिटरिंग यानी निगरानी करते हुए क्रॉसिंग टाइम को एडजस्ट करते हैं. इसके अलावा इस इनिशिएटिव के तहत सुरक्षित मार्ग, मौसम, भीड़भाड़ की जानकारी देकर सुरक्षा को पुख़्ता करने वाले सुविधाजनक वियरेबल डिवाइस यानी पहनने वाले उपकरण मुहैया करवाए जाते हैं. बुजुर्गों के इलाकों में सिल्वर जोंस यानी क्षेत्रों में रफ्तार पर लगाम लगाने के अलावा जेब्रा क्रॉसिंग और साइनेज में इज़ाफ़ा किया गया है.
जैसे-जैसे शहर पुराने होते हैं वहां ऊपर दिए गए तरीके से तकनीक का उपयोग करते हुए वरिष्ठ नागरिकों के लिए सुरक्षित और पहुंच को अधिक सुगम बनने वाले शहरी माहौल को सुनिश्चित करना आवश्यक है. मसलन, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के ग्लोबल नेटवर्क फॉर एजे-फ्रेंडली सिटीज एंड कम्युनिटिज(GNAFCC) के साथ जुड़ने वाला पहला भारतीय शहर कोच्चि है. वहां अब मरीन ड्राइव फुटपाथ का नवीनीकरण करने के साथ सीसीटीवी लगा दिए गए हैं. वहां ओपन सीटिंग, LED लाइटिंग, ड्रेनेज और पेड़ों का एक इलाका तैयार किया गया है. इस वजह से नागरिकों को एक सुरक्षित, समावेशी और हरित वॉकिंग क्षेत्र उपलब्ध हो सका है.
जैसे-जैसे शहर पुराने होते हैं वहां ऊपर दिए गए तरीके से तकनीक का उपयोग करते हुए वरिष्ठ नागरिकों के लिए सुरक्षित और पहुंच को अधिक सुगम बनने वाले शहरी माहौल को सुनिश्चित करना आवश्यक है.
यूनाइटेड स्टेट्स का विजन ज़ीरो इनिशिएटिव वरिष्ठ नागरिकों की पैदल गतिशीलता में इज़ाफ़ा करने के लिए मार्गदर्शन करता है. पुराने होते बुनियादी ढांचे, वित्त पोषण संबंधी चुनौतियों और स्थानीय विरोध के कारण धीमे पड़े विकास के बावजूद न्यूयॉर्क सिटी ने 2014 से 2023 के बीच हादसों का शिकार होने वाली पैदल चलने वाले यात्रियों की संख्या में 29 प्रतिशत की कमी देखी. यह उसने ट्रैफिक-कामिंग मेजर्स यानी ट्रैफिक को धीमा करते हुए हासिल किया था. इसके विपरीत इसी अवधि में लॉन एंजेल्स में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या में 32 फीसदी का इज़ाफ़ा हुआ था. भारत में भी चेन्नई में नॉन-मोटराइज्ड ट्रांसपोर्ट (NMT) पॉलिसी को वरिष्ठ नागरिक और दिव्यांगजनों को होने वाली दिक्कत दूर करने की दृष्टि से तैयार किया गया था. लेकिन इस पर लचर अमल और बिखरे हुए फुटपाथ नेटवर्क के कारण इसे अपेक्षित सफ़लता नहीं मिल सकी. दूसरी ओर टोक्यो में बैरियर-फ्री साइडवॉक यानी रुकावट रहित फुटपाथ, र्स्माट ट्रैफिक सिग्नल्स, एनर्जी-जनरेटिंग वॉकवेज्स और बार्सिलोना के “सुपरब्लॉक्स” पैदल यात्रियों के लिए उपयुक्त क्षेत्र मुहैया कराते हैं. इन क्षेत्रों में रफ्तार की सीमा को नियंत्रित करने के साथ ही मोटर यानी वाहनों के आवागमन को विनियमित किया जाता है.
बेस्ट-प्रैक्टिसेज यानी श्रेष्ठ-अभ्यास साझाकरण
भारत के नेशनल पॉलिसी फॉर सीनियर सिटीजंस 2011 के साथ चलने वाली एज-इंटीग्रेटेड सोसाइटी यानी आयु-एकीकृत समाज में सफ़ल रणनीतियों और अनुभवों को साझा करने वाले बहु हितधारक गठजोड़ को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. ऐसे समन्वय में सरकार, नागरिक समुदाय तथा वरिष्ठ नागरिक संगठनों की ओर से वरिष्ठ व्यक्तियों, विशेषत: महिलाओं, की चिंताओं को लेकर स्थापित मेकैनिज्म यानी प्रक्रियाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. वैश्विक नेटवर्क जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के ग्लोबल नेटवर्क ऑफ एज-फ्रेंडली सिटीज्, द यूरोपीयन इनोवेशन पार्टनरशिप ऑन एक्टिव एवं हेल्दी ऐजिंग एंड C40 सिटीज् में वॉकाबिलिटी और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए सिटी पार्टनरशिप्स यानी शहर साझेदारियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. चौड़े और रुकावट रहित फुटपाथ वाले पुणे के कम्पलीट स्ट्रीट इनिशिएटिव तथा भुवनेश्वर का MaaS-इंटीग्रेटेड पेडेस्ट्रियन-फ्रेंडली प्रोजेक्ट के तहत बने र्स्माट जनपथ के मॉडल को अपनाया जा सकता है.
वरिष्ठ नागरिकों के साथ बातचीत
कम्युनिटी-लेड ट्रांसपोर्ट सर्विसेस यानी समुदाय की अगुवाई में चलने वाली परिवहन सेवाओं जैसी जमीनी पहल वरिष्ठ नागरिकों की शारीरिक और मानसिक चिंताओं का ध्यान रख सकती है. उदाहरण के लिए मनीला का एज-फ्रेंडली सिटी प्रोग्राम ओवरपास, चौड़े फुटपाथ और आसान पहुंच वाले सार्वजनिक परिवहन के साथ पैदल चलने वाले नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए पैदल चलने वाले वर्गों को पार्क और हरित इलाकों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता है. जकार्ता का पेडेस्ट्रियन प्रोग्राम एलिवेटेड वॉकवेज यानी ऊंचे फुटपाथ पर ध्यान केंद्रित करता है, जहां लोगों के बैठने की व्यवस्था और लो-एंट्री बस की व्यवस्था की गई है. कोपनहेगन ने अपने यहां शेयर्ड स्ट्रीट्स यानी साझा सड़कों या “woonerfs” (“वुर्नफ्स”) बनाते हुए ट्रैफिक को धीमा करते हुए पैदल यात्रियों के लिए सुरक्षित माहौल तैयार किया है. इस तरह की पहलों के कारण वरिष्ठ नागरिकों और अर्बन प्लानर के बीच एक आपसी भरोसा विकसित होता है, जिसकी वजह से सर्वसमावेशी माहौल हासिल किया जा सकता है. इसी प्रकार स्थानीय स्तर पर लिए जाने वाले फ़ैसलों की प्रक्रियाओं तथा सस्टेनेबल अर्बन मोबिलिटी प्लान को विकसित करने में वरिष्ठ नागरिकों को शामिल करने वाले सामाजिक कार्यक्रम से उनकी आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जा सकेगी. ऐसे में वरिष्ठ नागरिकों में भी अपनत्व की भावना विकसित होगी और उन्हें लगेगा कि उनकी उपेक्षा नहीं की जा रही है.
आकलन के लिए मानकीकृत मापदंडो को अपनाना
शहरों को पैदल चलने वाले वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा और पहुंच का आकलन करने के लिए एक स्टैंडर्डाइज्ड मैट्रिक्स यानी मानकीकृत मापदंड अपनाना चाहिए. इसके लिए पेडेस्ट्रियन लेवल ऑफ सर्विस (PLOS) जैसे ढांचे का उपयोग किया जा सकता है. इसका उपयोग करते हुए क्रॉसिंग टाइम की अवधि को बढ़ाने, रेस्टिंग एरिया यानी आराम करने वाले स्थान, ऑडिटोरी सिग्नल्स यानी श्रवणीय सिग्नल्स, टैक्टाइल मार्किंग यानी स्पर्श योग्य चिह्निकरण और सुविधाओं तक पहुंच का समावेश किया जा सकता है. वॉकाबिलिटी इंडेक्स यानी पैदल चलने के सूचकांक में आवश्यक सुविधाओं की नज़दीकी और निरंतर तथा वेल-लिट अर्थात अच्छी तरह से रोशनी की व्यवस्था वाले फुटपाथ को भी शामिल किया जाना चाहिए. मोबिलिटी-एस-ए-सर्विस (MaaS) का उपयोग करके यूजर-फ्रेंडली इंटरफेसेस और एलिवेटर्स यानी लिफ्ट्स पर रियल टाइम डाटा तथा पैदल चलने की सुविधाएं मुहैया करवाई जा सकती हैं. परर्फोंमस रिकग्निशन स्कीम्स यानी प्रदर्शन की शिनाख़्त करने वाली योजनाओं पर अमल करके शहरों की बुनियादी सुविधाओं में इज़ाफ़ा किया जा सकता है. इसी प्रकार IoT और कनेक्टेड डिवाइस का उपयोग करते हुए रियल टाइम अपडेट्स उपलब्ध कराकर सुविधाओं तक रिमोट यानी दूरस्थ पहुँच सुनिश्चित की जा सकती है. ऐसा होने पर वरिष्ठ नागरिक तथा दिव्यांगों की सुरक्षा में और सुधार किया जा सकेगा. भारत में NMT पहल की वजह से वरिष्ठ नागरिकों की गतिशीलता में सुधार किया जा सकता है, लेकिन इसे सावधानीपूर्वक तैयार किया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए सुधार के बावजूद अहमदाबाद के साबरमती रिवरफ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में पहुंच संबंधित मसले, सुरक्षा से जुड़े ख़तरे और जागरूकता का अभाव देखा जा सकता है.
सहायक तकनीकों का इस्तेमाल
डिजाइन स्तर से ही असिस्टिव टेक्नोलॉजी यानी सहायक तकनीकों के एकीकरण से वरिष्ठ नागरिकों तथा दिव्यांगों का मार्गदर्शन करने में सहायता मिल सकेगी. इसमें टैक्टाइल पेविंग, क्रॉसिंग पर ऑडियो सिग्नल्स और र्स्माट ट्रैफिक सिस्टम्स का समावेश किया जा सकता है. र्स्माट वॉकिंग केंस यानी र्स्माट चलने वाली छड़ी, आय-ट्रैकिंग टेक्नोलॉजी, GPS-सक्रिय वियरेबल्स यानी GPS-सक्रिय पहनने योग्य उपकरण और मोबिलिटी एप्स से फिजिकल सपोर्ट यानी शारीरिक सहयोग, रुट गाइडंस यानी मार्ग मार्गदर्शन और रियल टाइम अपडेट्स को भी बढ़ावा दिया जा सकता है. लेकिन इसके लिए डिजिटल लिटरेसी यानी डिजिटल साक्षरता और सिटी सर्विसेस यानी शहरों में उपलब्ध सुविधाओं तक पहुंच को सुनिश्चित करके ही ऊपर दिए गए उपायों में व्यापक सहभागिता हासिल की जा सकती है.
सिंगापुर में कस्टमाइजेबल डिजिटल इंटरफेसेस यानी अनुकूलन डिजिटल इंटरफेसेस तथा तकनीक का सार्वजनिक परिवहन, सांस्कृतिक केंद्रों, सार्वजनिक क्षेत्रों में एकीकरण किया जा रहा है, जिससे सभी के लिए पहुंच सुनिश्चित की जा रही है. हेलसिंकी के सबवे में ऑडियो बीकंस यानी प्रकाश स्तंभ का उपयोग करके नेत्रहीन और दृष्टिबाधित व्यक्तियों को ऑडियो क्यूस् यानी सुनने योग्य संकेत मुहैया करवाए जा रहे हैं. इस वजह से इन लोगों को विभिन्न स्टेशंस एवं सार्वजनिक परिवहन की अलग-अलग पहचान करना आसान हो रहा है. भारत में भी बंगलुरु ने र्स्माट ट्रैफिक सिग्नल्स लगाए हैं जो पैदल चलने वाले लोगों की संख्या को देखकर अपनी टाइमिंग को नियंत्रित करते हैं. इसकी वजह से वरिष्ठ नागरिकों के लिए धीमे चलने में सुविधा होती है.
वरिष्ठ नागरिकों को स्वतंत्र होकर जीवन जीने और अपने समुदाय के साथ जोड़ने में सक्षम बनाने के लिए ऐसी कांप्रिहेंसिव अर्बन प्लानिंग यानी विस्तृत शहरी नियोजन की आवश्यकता है जो पैदल चलने वाली बुनियादी सुविधाओं को प्राथमिकता देने का काम कर सके.
डाटा प्लेटफॉर्म का विकास
शहरों को आयु तथा लिंग संबंधी डाटा यानी जानकारी को अलग-अलग एकत्रित करने को प्राथमिकता देनी चाहिए. इसका उपयोग करते हुए पैदल चलने वाले वरिष्ठ नागरिकों के मूवमेंट यानी आवागमन पर नज़र रखकर इसे बुनियादी सुविधाओं की गुणवत्ता और एक्सीडेंट हॉटस्पॉट के साथ प्रभावी रूप से मैप किया जा सकता है. सीसीटीवी सर्विलांस और स्पीड कैमरों के सहयोग से बार्सिलोना में उच्च ख़तरे वाले पैदल चलने के क्षेत्रों पर निगरानी करता है. इसके अलावा विभिन्न शहरों को जियो-टैग्ड रिपोर्टिंग सिस्टम्स को लागू करते हुए बुनियादी सुविधाओं संबंधी मसलों जैसे असमतल फुटपाथ, अपर्याप्त क्रॉसिंग की पहचान करनी चाहिए. ऐसा होने पर इन मसलों को तत्काल हल करने का काम किया जा सकेगा. जॉर्जिया टैक्स ऑटोमेटिक साइडवॉक क्वालिटी असेसमेंट सिस्टम में एंड्रॉइड एप्प का उपयोग करके साइडवॉक की स्थितियों का मूल्यांकन किया जाता है. यह मूल्यांकन GPS-टैग्ड वीडियो तथा सेंसर डाटा पर आधारित होता है. इस सेमी-ऑटोमेटिक यानी अर्ध-स्वचालित प्रणाली में फुटपाथ की दरारों, गड्ढों और रुकावटों की शिनाख़्त होती है. इस प्रणाली के सहयोग से श्रम को हटाकर नियमित समीक्षा सुनिश्चित की जा सकती है. ऐसे ढांचों से स्थानीय प्रशासन को समीक्षा करने में सहायता होती है. इस वजह से वे अपने फुटपाथ से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं पर निरंतर निगरानी करके उसमें सुधार करने में सफ़ल होते हैं.
वित्त पोषण एवं अनुसंधान को प्राथमिकता
शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) के पास सीमित क्षमता और संसाधनों की कमी होती है. ऐसे में ULBs को तत्काल संसाधन उपलब्ध करवाते हुए क्षमता-वृद्धि कार्यक्रम पर काम करना चाहिए. ऐसा होने पर ही म्युनिसिपल डिपार्टमेंट अर्बन मोबिलिटी को लेकर अपना दृष्टिकोण बदल सकेंगे. ULBs को रैंप स्थापित करने, चौड़े फुटपाथ बनाने और अच्छे साइनेज यानी चिह्नीकरण के लिए निधि का प्रावधान करना चाहिए. भारत सरकार की अटल मिशन फॉर रिजुवनेशन एंड अर्बन ट्रांसर्फोमेशन (AMRUT) जैसी पहल में भी वरिष्ठ नागरिकों की पेडेस्ट्रियन मोबिलिटी यानी गतिशीलता को ध्यान में रखा जाना चाहिए. पैदल चलने वाले वरिष्ठ नागरिकों की विशेष ज़रूरतों का अनुसंधान किया जाए तो बुनियादी सुविधाओं की कमियों को आसानी से पहचाना जा सकेगा. बेहतर क्रॉसिंग और बैठने की व्यवस्था करने वाले अहमदाबाद जैसे शहरों ने एज-फ्रेंडली सुविधाओं की व्यवस्था की है. वहां की व्यवस्थाओं को मॉडल के रूप में देखा जा सकता है.
वरिष्ठ नागरिकों के लिए पैदल चलने की व्यवस्था को सुगम बनाकर ही समावेशी तथा टिकाऊ शहरों का निर्माण किया जा सकता है. वरिष्ठ नागरिकों को स्वतंत्र होकर जीवन जीने और अपने समुदाय के साथ जोड़ने में सक्षम बनाने के लिए ऐसी कांप्रिहेंसिव अर्बन प्लानिंग यानी विस्तृत शहरी नियोजन की आवश्यकता है जो पैदल चलने वाली बुनियादी सुविधाओं को प्राथमिकता देने का काम कर सके. उपलब्ध ढांचों से सबक लेकर उन्हें लागू करते हुए विशेष चुनौतियों को हल करके ही शहरों में सुरक्षित और आसानी से पहुंच वाला माहौल तैयार किया जा सकता है. ऐसा होने पर ही वरिष्ठ नागरिकों के शारीरिक और मानसिक वेल-बिइंग यानी कल्याण को सुनिश्चित किया जा सकेगा. समन्वय, नवाचार और लक्षित निवेश के माध्यम से ही विभिन्न शहर अपनी वृद्धि होती आबादी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाकर अधिक न्यायसंगत, समावेशी और टिकाऊ शहरी इलाके तैयार कर सकते हैं.
अनुषा केसरकर-गवाणकर, ऑर्ब्जवर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फैलो हैं.
सिद्धि जोशी, ऑर्ब्जवर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.
लेखक, ORF के उपाध्यक्ष एवं सीनियर फैलो धवल देसाई की ओर से मिले मार्गदर्शन के लिए आभारी हैं.
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