भारत और पाकिस्तान के बीच उपजे हाल के तनाव ने अमेरिका की हथियार निर्यात नीतियों पर सवालिया निशान लगा दिया है। भारत और पाकिस्तान के बीच की नियंत्रण रेखा पर हुई हवाई लड़ाई में पाकिस्तान ने एक भारतीय मिग 21 बाइसन को गिरा दिया और उसके पायलट विंग कमांडर अभिनन्दन वर्तमान को पकड़ लिया। जबकि भारत ने एक पाकिस्तानी एफ-16 विमान को मार गिराया, जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जाकर गिरा। पाकिस्तान ने न सिर्फ भारतीय दावे का खंडन किया, बल्कि भारत के खिलाफ अमेरिका में निर्मित एफ-16 लड़ाकू विमानों के इस्तेमाल से भी इंकार किया। उसके बाद भारतीय वायु सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने एक संवाददाता सम्मेलन में भारतीय क्षेत्र से बरामद किए गए एक एडवांस मीडियम रेंज एयर टू एयर मिसाइल के अवशेष दिखाए। एफ-16 विमानों के इस्तेमाल पर बल देते हुए एयर वाइस मार्शल आर जी के कपूर ने कहा कि “यह मिसाइल केवल पाकिस्तान के एफ-16 विमान पर वहन किए जाने के लिए ही उपयुक्त है।”
इसी घटना ने शायद इस्लामाबाद में अमेरिकी दूतावास को यह घोषित करने के लिए मजबूर कर दिया कि “उन खबरों की पड़ताल की जा रही है जिनमें कहा गया है कि पाकिस्तान ने भारतीय पायलट को निशाना बनाने के लिए एफ-16 लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया है, जो पाकिस्तान द्वारा उन विमानों के इस्तेमाल को सीमित करने वाले अमेरिका के सैन्य बिक्री समझौतों का संभावित उल्लंघन हो सकता है।”
पाकिस्तानी उल्लंघन
पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमान बेचे जाने के मामले पर अमेरिका में 2008 में काफी विवाद के बीच विचार किया गया। सदन की विदेशी मामलों की समिति की पश्चिम एशिया और दक्षिण एशिया संबंधी उप समिति ने अल-कायदा की हवाई ताकत को परास्त करना: आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के आलोक में पाकिस्तान का एफ-16 कार्यक्रम विषय पर सुनवाई भी की। इस उपसमिति के अध्यक्ष गैरी एल एकरमैन ने इस बात पर चिंता प्रकट की थी, “हम इस बात पर कैसे भरोसा कर सकते हैं कि एफ-16 पाकिस्तान की भारत के खिलाफ परम्परागत युद्ध क्षमता में बढ़ोत्तरी का साधन होने की बजाए, आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों के साधन के तौर पर इस्तेमाल में लाया जाएगा?”
आखिरकार, इस बिक्री को मंजूरी दे दी गई ताकि “पश्चिमी सीमा से सटे इलाकों में आतंकवादियों से निपटने के साझा लक्ष्यों को हासिल करने” की दिशा में “पाकिस्तानी वायु सेना की क्लोज एयर सपोर्ट और नाइट प्रीसीजन अटैक मिशन्स की क्षमता में बढ़ोत्तरी की जा सके।”
जहां तक यह पता लगाने का सवाल है कि क्या पाकिस्तान द्वारा हाल में एफ-16 का इस्तेमाल किया जाना विमानों की बिक्री के आधार का उल्लंघन है, तो अमेरिका सरकार के विदेशी सैन्य बिक्री सम्बन्धी दिशानिर्देशों के अनुसार, अमेरिका-पाकिस्तान “उपयोगकर्ता समझौते” का ब्यौरा सार्वजनिक नहीं है।इतना ही नहीं, पाकिस्तान में अमेरिकी दूतावास ने यह भी घोषणा की है कि अमेरिका सरकार “इस तरह की लम्बित जांच के बारे में कोई टिप्पणी या उसकी पुष्टि नहीं करेगी।”
हालांकि यदि उपयोगकर्ता समझौता आतंकवाद विरोधी अभियानों के अलावा इन विमानों के किसी अन्य तरह के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाता है, तो ऐसे में हो सकता है कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ एफ-16 का इस्तेमाल करके उन्हीं प्रतिबंधों की हद पार करने की कोशिश की हो है, जो आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के चरम दौर में इन विमानों के इस्तेमाल के बारे में उस पर लगाए गए थे।
एक मिसाल कायम कर उन प्रतिबंधों में लगातार कमी कराने का पाकिस्तान का यह प्रयास भारत के 15 बिलियन डॉलर के लड़ाकू विमानों के बाजार पर पकड़ बनाने की अमेरिका की योजना को भी उलझा सकता है।
भारतीय क्षमताएं
2008 से, भारत-अमेरिका रक्षा व्यापार 1 बिलियन डॉलर से बढ़कर अब 18 बिलियन डॉलर के पार पहुंच चुका है — 2013-17 के दौरान भारत को अमेरिकी हथियारों का निर्यात बढ़कर 550 प्रतिशत से ज्यादा हो गया। विशेषकर लड़ाकू विमानों के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक है — और इसके दुनिया के सबसे बड़े हथियार निर्माता और निर्यातक — अमेरिका के लिए तेजी से बढ़ता बाजार बन जाने की संभावना है। उदाहरण के लिए, अमेरिका की रक्षा फर्म लॉकहीड मार्टिन “भारतीय वायु सेना को 114 लड़ाकू विमानों की आपूर्ति करने के लिए — जो अनुमानित रूप से 15 बिलियन डॉलर से अधिक धनराशि का सौदा होगा, के लिए मुख्य रूप से बोइंग के एफ/ए-18, साब के ग्रिपेन, दसॉ एविएशन के राफेल और यूरोफाइटर टाइफून से प्रतिस्पर्धा कर रही है।
इतना ही नहीं, डिफेंस टेक्नोलॉजी एंड ट्रेड इनिशिएटिव (डीटीटीआई) ने भारत और अमेरिका को परम्परागत “क्रेता-विक्रेता” सम्बन्धों से आगे ले जाते हुए उनमें सह-उत्पादन और सह-विकास का सम्बन्ध बना दिया है। डीटीटीआई के अंतर्गत यह सहयोगपूर्ण दृष्टिकोण मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ और ट्रम्प के ‘अमेरिका फर्स्ट’ के बेमेल होने से संबंधित चिंताओं को दूर करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसी के अनुरूप, लॉकहीड मार्टिन ने एफ-16 की प्रोडक्शन लाइन को टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स के साथ साझेदारी के जरिए भारत ले जाने की पेशकश की है। समय के साथ, भारत विदेशी बाजारों की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी एफ-16 का अकेला वैश्विक उत्पादन केंद्र बन जाएगा।
पिछले साल, लॉकहीड ने यहां तक घोषणा की थी कि उसका संयुक्त उद्यम भारत में लड़ाकू विमान के पंखों का निर्माण कार्य शुरू कर देगा “भले ही भारतीय सेना का ऑॅर्डर उसे मिले या नहीं।” यह कहा जा सकता है कि यह घोषणा अमेरिकी कम्पनी द्वारा आखिरकार उसी बात को स्वीकार कर लेने का परिणाम है, जिसकी चेतावनी अनेक लोग वर्षों से दे रहे थे: कि “भारतीय वायु सेना कभी ऐसे लड़ाकू विमान नहीं खरीदेगी, जिनका नाम भारत की सरहद पार पाकिस्तानी वायुसेना के साथ जुड़ा है और जो 1980 के दशक से एफ-16 का इस्तेमाल करती आ रही है।”
एफ-21 — पुराने एयरफ्रेम में नया विमान?
एफ-16 के नाम पर लगे धब्बे से निपटते हुए, लॉकहीड मार्टिन ने हाल ही में बेंगलुरु में एयरो इंडिया में एफ-21 को प्रस्तुत किया। भले ही यह लड़ाकू विमान विशेष तौर पर भारतीय वायु सेना की जरूरतों के मुताबिक बनाया गया दिखाई दे रहा था, लेकिन विशेषज्ञों ने पाया कि “एफ-21 और एफ-16 ब्लॉक 70 के बीच ज्यादा अंतर नहीं है।”
विवेक लॉल (लॉकहीड मार्टिन के लिए स्ट्रेटेजी एंड बिज़नेस डेवलेपमेंट के वाइस प्रेसीडेंट)ने एफ-21 को “पूरी तरह अलग” बताते हुए कहा है कि यह पूरी तरह एफ-16 का नया रूप है जबकि इसका एयरफ्रेम और इंजन “मोटे तौर पर उसी तरह का है।” हालांकि विशेष तौर पर भारत के लिए जोड़ा अंश है एफ-21 की डोरसल फेयरिंग “इस लड़ाकू विमान की वैमानिक क्षमता को बेहतर बनाने के लिए इसकी स्पाइन के साथ बनाए गए रिब के जरिए भविष्य में अतिरिक्त उपकरण साथ ले जाया जा सकता है।” भारतीय वायु सेना के पिछले मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बेट एयरक्राफ्ट कॉन्टेस्ट में एफ-16 को नामंजूर कर दिया गया था, क्योंकि इसके एयरफ्रेम को “भविष्य में एकीकृत विस्तार की क्षमता से युक्त नहीं माना गया था।”
भारत की 114 विमानों की आवश्यकता को लक्ष्य करते हुए एफ-21 को “भारत के लिए, भारत द्वारा” के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है। हालांकि इस विमान को एक देश विशेष तक सीमित किए जाने से जोखिम बढ़ गया है — और शायद मूल्य की दृष्टि से भी — विदेशी बाजारों की जरूरते पूरी करने के लिए इसका उत्पादन का स्तर बढ़ाकर लागत में कमी किए जाने की संभावना भी इस मामले में दिखाई नहीं दे रही है, क्योंकि जब तक बोली में जीत नहीं मिलती, तब तक टाटा एडवान्स्ड सिस्टम्स के साथ इसका सह-उत्पादन शुरू नहीं हो सकता। इतना ही नहीं,इस विमान के इस्तेमाल से संबंधित प्रतिबंधों में कमी लाने के लिए पाकिस्तान द्वारा हद पार करने का प्रयास किए जाने से भी भारत के लड़ाकू विमानों के बाजार पर कब्जा करने की एफ-21 की कोशिशों पर असर पड़ेगा।
हथियारों की प्राप्ति के बारे में पिछले भ्रष्टाचार के घोटालों और राफेल सौदे के बारे में हाल के राजनीतिक विद्वेष के कारण भारत में हथियारों की प्राप्ति अब बेहद ध्रुवीकरण वाले सार्वजनिक क्षेत्र में होती है। भारत में अपेक्षाकृत कम उन्नत मिग-21 बाइसन द्वारा पाकिस्तानी एफ-16 को मार गिराने के कारण एफ-21 विमानों की अलोकप्रियता यदि न भी बढ़े, तो भी एफ-16 विमानों के साथ उनकी व्यापक समरूपता को देखते हुए पाकिस्तान के साथ अनुभव-संबंधी समानता इसमें एक मुद्दा बनी रहेगी।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हाल ही में अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत से एफ-16 के दुरुपयोग के बारे में पूछा गया। जवाब में उन्होंने किसी भी तरह के उल्लंघन का खंडन करते हुए कहा, “मुझे लगता है कि सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान को उपयोगकर्ता समझौते के द्वारा ऐसी किसी कार्रवाई से रोका गया है।” राजदूत का बयान इस बारे में सवाल खड़े करता है कि क्या पाकिस्तान के समझौते में एफ-16 के इस्तेमाल को उचित ठहराने की कोई गुंजाइश है। उदाहरण के लिए, कुछ मामलों में अमेरिका के इस्राइल के साथ उपयोगकर्ता समझौतों में “उचित आत्मरक्षा” के अस्पष्ट आधारों पर उसको अमेरिकी हथियारों के इस्तेमाल की इजाजत दी गई है।
लम्बे अर्से से, अमेरिका के पाकिस्तान के साथ संबंध भारत-अमेरिकी संबंधों के विकास में रुकावट रहे हैं। हाल ही में, वित्तीय कार्रवाई कार्य बल — एफएटीएफ में पाकिस्तान को काली सूची में डालने के मामले में अमेरिका द्वारा किए गए समर्थन से इस अड़चन को दूर करने का काफी हद तक प्रयास किया गया है। यदि एफ-16 के इस्तेमाल संबंधी प्रतिबंधों को कम कराने की पाकिस्तान की कोशिशों को अमेरिका मान लेता है, तो इस मोर्चे पर हुई प्रगति खतरे में पड़ सकती है।
इसलिए, पाकिस्तान द्वारा एफ-16 के संभावित इस्तेमाल पर अमेरिका के उत्तर का व्यापक असर एफ-21 को भारत के लिए विशिष्ट विमान के तौर पर प्रस्तुत करने के उसके प्रयास पर पड़ेगा भले ही उन विमानों में विशिष्ट रूप से भारत के लिए किया गया डोरसल फेयरिंग जैसा मूल्य वर्धन हो और वे ‘मेक इन इंडिया’ को प्रोत्साहन देते हों। फिलहाल, 15 बिलियन डॉलर अधर में लटके हुए हैं।
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