Author : Premesha Saha

Published on Mar 05, 2021 Updated 0 Hours ago

द्विपक्षीय संबंधों को और मज़बूत किये जाने के बावजूद, क्वॉड देशों को इस विषय के बारे में सोचना होगा कि इंडो-पैसिफ़िक के  दायरे में कैसे ASEAN देशों को सम्मिलित किया जाए.

शक्ति समृद्ध देशों के बीच फंस कर – ASEAN कैसे इंडो-पैसिफ़िक में अपनी केंद्रीयता को क्रियाशील रखेगा?

अमेरिका और चीन के बीच वर्चस्व की जंग अतीत के उस पन्ने को पलटती है जो “दक्षिण पूर्व एशिया देशों की सामूहिक चेतना को उनकी बर्बर अतीत की काली यादों की याद दिलाती है.” और यही प्राथमिक वज़ह है कि दक्षिण पूर्व एशियाई देश तभी से ऐसे सत्ता के संघर्ष में बिना वज़ह घसीट लिए जाने को लेकर बेहद सजग रहते हैं. हालांकि, इस इलाक़े में कई लोगों की राय में यह कुछ नहीं बल्कि आक्रामक होते चीन को रोकने के लिए अमेरिका की इंडो-पैसिफ़िक रणनीति का एक हिस्सा है. दरअसल, ज़्यादातर आसियान (ASEAN) देशों के आर्थिक और कारोबारी दायरे में चीन एक अपरिहार्य सहयोगी है. बावज़ूद इसके कि फ्री एंड ओपन इंडिया-पैसिफ़िक (एफओआईपी) अवधारणा के चार प्रस्तावकों – अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया – ने बेहद मज़बूत तरीक़े से आसियान केंद्रीयता की वकालत की. हालांकि, आसियन के व्यापक निहितार्थ को लेकर गंभीर चिंता बनी हुई है कि कैसे इसकी केंद्रीयता क्षेत्रीय सुरक्षा के ढांचे की रूपरेखा तय कर पाएगी.

इंडो पैसिफ़िक को लेकर आसियान का दृष्टिकोण इस बात को रेखांकित करता है कि,  “आसियन दक्षिणपूर्व एशिया और इसके इर्द गिर्द के इलाक़े में तेज़ी से बदलते क्षेत्रीय ढांचे में अपनी केंद्रीय भूमिका को जारी रखने की कोशिश करता रहेगा. साथ ही आसियान प्रतिस्पर्धी हितों के रणनीतिक वातावरण के बीच एक सच्चे ब्रोकर की तरह अपनी सेवा मुहैया कराएगा”. लेकिन एक ऐसे वक्त में जबकि सदस्य देशों की गंभीर सुरक्षा मुद्दों जैसे, साउथ चाइना-सी को लेकर अलग-अलग रुख़ रखने की वज़ह से खुद ‘आसियान केंद्रीयता’ सवालों में उलझी हुई है, तो ऐसे में क्या ‘आसियान केंद्रीयता’ को एफओआईपी का आधार बनाया जा सकता है? ‘आसियान केंद्रीयता’ की ज़मीनी हक़ीकत और अनिश्चितता को लेकर अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया पूरी तरह जागरूक हैं, तो ऐसे में सवाल उठता है कि कब तक ये देश इंडो पैसिफ़िक दायरे में ASEAN की केंद्रीय भूमिका के लिए वकालत करते रहेंगे

आसियन दक्षिणपूर्व एशिया और इसके इर्द गिर्द के इलाक़े में तेज़ी से बदलते क्षेत्रीय ढांचे में अपनी केंद्रीय भूमिका को जारी रखने की कोशिश करता रहेगा. साथ ही आसियान प्रतिस्पर्धी हितों के रणनीतिक वातावरण के बीच एक सच्चे ब्रोकर की तरह अपनी सेवा मुहैया कराएगा

हाल के दिनों में मिनिलैट्रल्स और प्लुरिलैट्रल्स के प्रसार की घटना बहुत ज़्यादा हुई है. इसलिए दक्षिणपूर्व एशिया के विशेषज्ञ जैसे रिचर्ड हेडेरियन का सुझाव है कि “ASEAN कई मायनों में मिनिलैट्रलिज़्म को आगे बढ़कर अपना सकती है” जिससे एक तरह की सोच रखने वाले दक्षिण-पूर्व एशियाई देश साझा ख़तरों और बाहरी ताक़तों के सहयोग को लेकर व्यवहारिक और सुदृढ़ जवाब अपना सकें.”

इवान लक्शमाना जैसे विद्वान ने भी इस बात की ओर इशारा किया है कि सामान्य तौर पर नीति निर्धारकों की राय में मिनिलैट्रलिज़्म काफी अपीलिंग होती है, क्योंकि इसमें लचीलापन निहित होता है और इसके लेनदेन में कम कीमत शामिल होती है, और इसमें आवश्यक प्रतिबद्धताएं शामिल होती हैं. हालांकि, इंडो पैसिफ़िक क्षेत्र में मिनिलैट्रल सहयोग पहले से मौज़ूद मल्टीलैट्रल प्रतिबद्धताओं (जैसे, ASEAN) और द्विपक्षीय गठजोड़ (अमेरिका के साथ जैसे) को पूरी तरह हटाने की कोशिश नहीं करता है.” लंबे समय तक अस्तित्व में रहने वाले ट्राइलैट्रल पहल जैसे भारत-इंडोनेशिया-ऑस्ट्रेलिया को लेकर भी बेहद ज़रूरी क़दम उठाने की ज़रूरत है.

आसियान सहयोगी देशों के साथ दोस्ती

जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका जैसे देश एक सी राय रखने वाले ASEAN सहयोगी देशों जैसे वियतनाम, इंडोनेशिया और फिलिपींस के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूती देने में लगे हैं. जापान में नव-निर्वाचित प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने अक्टूबर 2020 में हनोई का दौरा किया था क्योंकि ये देश “जापान की FOIP रणनीति के लिए बेहद अहम ” माने जाते हैं. ASEAN में ख़ास कर वियतनाम और इंडोनेशिया मुख़र आवाज़ के तौर पर इंडो पैसिफ़िक साझेदारी के साथ जुड़ने की वकालत करते रहे हैं जिससे क्वॉड देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूती प्रदान किया जा सके. हालांकि, इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे देशों ने साउथ चाइना-सी से जुड़े विवाद को लेकर अपना रूख़ तय किया है और ये देश इंडो – पैसिफ़िक की अवधारणा को लेकर भी काफी सक्रिय सदस्य रहे हैं. और यही वज़ह है कि ASEAN उनकी विदेश नीति के समीकरण में काफी अहमियत रखता है. इंडोनेशियाई विद्वान जैसे रिजाल सुकमा ने हमेशा से यह प्रस्ताव दिया है कि इंडोनेशिया को “ASEAN के बाद की विदेश नीति” की बेहद आवश्यकता है. लेकिन अभी भी आधिकारिक रूख़ यही है कि ASEAN केंद्रीयता को मज़बूती से समर्थन दिया जाए और पूर्वी एशिया सम्मेलन जैसी ASEAN, प्रक्रियाओं को इंडो पैसिफ़िक क्षेत्र के लिए वैकल्पिक क्षेत्रीय आर्किटेक्चर प्लेटफॉर्म के रूप में पहचान दिलाई जाए.

वियतनाम के लिए जो मौज़ूदा समय में ASEAN की अध्यक्षता कर रहा है, उसका लक्ष्य तमाम बढ़ रही चुनौतियों के बीच इस संगठन की एकता और समन्वयता को अक्षुण्ण रखना है.

यहां तक कि वियतनाम के लिए जो मौज़ूदा समय में ASEAN की अध्यक्षता कर रहा है, उसका लक्ष्य तमाम बढ़ रही चुनौतियों के बीच इस संगठन की एकता और समन्वयता को अक्षुण्ण रखना है. इसके साथ ही क्षेत्रीय और अतिरिक्त क्षेत्रीय हितों को सुनिश्चित करने के लिए आसियान  की प्रो-एक्टिविज़्म को बढ़ावा देना भी मक़सद है.” इसलिए द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूती देने की कोशिश के बावज़ूद क्वॉड देशों को अभी भी इसके लिए तरीके तलाशने होंगे जिससे कि इंडो पैसिफ़िक दायरे में ASEAN देशों को शामिल किया जा सके, और इंडो पैसिफ़िक क्षेत्र की उभरती व्यवस्था के बीच ये सक्रिय भूमिका निभा सके. हालांकि, बहुत कुछ ASEAN देशों पर यह निर्भर करेगा कि कैसे ये देश “ASEAN केंद्रीयता और एकता” की वापसी के लिए काम करेंगे. क्या इसके लिए आसियान देश ASEAN तरीकों में बदलाव लाएंगे या फिर कोई “वैकल्पिक और ज़्यादा बेहतर फैसले लेने योग्य तरीक़ा अपनाने”पर विचार कर रहे हैं.

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