Published on Feb 08, 2021 Updated 0 Hours ago

शहरों को तबाही प्रूफ बनाने के लिए डिजिटल सॉल्यूशन को अपनाने, प्राथमिकता देने और सभी के लिए उपलब्ध कराने की ज़रूरत है.

शहरों को तबाहियों और महामारी से बचाने की जद्दोजहद: बनाएं उन्हें डिजिटल तौर पर सामर्थ्यवान

कोरोना वायरस महामारी ने न सिर्फ़ हमारे व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित किया है बल्कि शहरों के सामर्थ्य में कमी को भी बढ़ा दिया है. इन कमी को दुरुस्त करने का एक तरीक़ा डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को ठीक करना है. साथ ही ध्यान देना चाहिए कि उचित डिजिटल बदलाव के ज़रिए शहरों को भविष्य में कैसे महामारी प्रूफ किया जा सकता है. स्मार्ट सिटी की सीमा सक्षम तकनीक के साथ बुनियादी ढांचा स्थापित करने से आगे है. स्मार्ट सिटी का ये भी मतलब है कि तकनीक का इस्तेमाल करके हर नागरिक को आसानी हो और इसमें हर कोई सम्मिलित हो. डिजिटल सामर्थ्य का मतलब डिजिटल दूरी को ख़त्म करना है जिसके लिए सभी सामाजिक समूहों के बीच तकनीक मुहैया कराने और उसके इस्तेमाल की निगरानी में सरकार का सक्रिय होना ज़रूरी है.

भारत के डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में अंतर

कोविड-19 महामारी के हमले के साथ रोज़ाना की गतिविधियां जैसे शिक्षा, मनोरंजन, संचार और दूसरी चीज़ें ऑनलाइन हो गई हैं. लेकिन जब मार्च 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन का ऐलान किया गया तो भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की कम संख्य़ा ने ऑनलाइन परिवर्तन का काम मुश्किल कर दिया. रिपोर्ट के मुताबिक़, 50 प्रतिशत भारतीयों के पास इंटरनेट का कनेक्शन नहीं है. इंटरनेट तक पहुंच की इस कमी की वजह से न सिर्फ़ बड़ी संख्य़ा में लोगों की रोज़ की गतिविधियां छूट गईं बल्कि उनके दुनिया से जुड़े रहने और बढ़ती महामारी के बारे में जानकारी में भी समस्या आई. इसके अलावा बढ़ी हुई ऑनलाइन गतिविधि के लिए बैंडविड्थ का इस्तेमाल भी बढ़ जाता है. इसकी वजह से इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर पर दबाव बढ़ जाता है. जैसे ही मार्च में लॉकडाउन का ऐलान किया गया, वैसे ही ऊकला स्पीड टेस्ट इंडेक्स में भारत का दो पायदान नीचे गिरना इस बात का सबूत है.

रोज़गार जाने और वित्तीय कठिनाई की वजह से जिन छात्रों के पास डिजिटल साक्षरता की सुविधा नहीं है या जिनके पास गैजेट या इंटरनेट कनेक्शन नहीं है, उन्हें ऑनलाइन पढ़ाई में जूझना पड़ा है. 

ये ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि महामारी की वजह से डिजिटल दूरी और बढ़ी है, ख़ासतौर पर शिक्षा के मामले में. ई-लर्निंग कुछ विशिष्ट लोगों तक सीमित रह गई है और ये लंबे वक़्त के लिए नहीं है क्योंकि महामारी के हमले के समय से भारत में 32 करोड़ छात्र पढ़ाई से अलग हो गए हैं. इसकी वजह से न सिर्फ़ मानवीय पूंजी का नुक़सान होता है बल्कि भविष्य में आर्थिक अवसर भी कम मिलते हैं. रोज़गार जाने और वित्तीय कठिनाई की वजह से जिन छात्रों के पास डिजिटल साक्षरता की सुविधा नहीं है या जिनके पास गैजेट या इंटरनेट कनेक्शन नहीं है, उन्हें ऑनलाइन पढ़ाई में जूझना पड़ा है. बहुत से विद्यार्थी, ख़ास तौर पर लड़कियां, ऐसे भी हैं जिन्हें स्कूल या कॉलेज से अपना नाम कटवाना पड़ा.

कृषि सेक्टर पर भी अपर्याप्त मशीनरी और लॉजिस्टिक और परिवहन पर पाबंदियों की वजह से गहरा असर पड़ा है. इसका असर गांवों और शहरों के बीच सामानों की आवाजाही पर भी पड़ा है. सप्लाई चेन में बाधा सबसे कमज़ोर माने जाने वाले आदिवासी समुदाय के लिए नुक़सानदेह रहा है. बाज़ारों के बंद रहने से वो मज़दूर तबाह हो गए हैं जो प्राइमरी सेक्टर में काम करते हैं और ख़राब हो जाने वाले सामान बनाते हैं. रहने की जगह, खाने-पीने की चीज़ें और पैसे की कमी ने प्रवासी मज़दूरों पर भी बुरा असर डाला. ट्रेन और बसों के बंद होने से प्रवासी मज़दूरों को अपने घर लौटने में भी काफ़ी दिक़्क़त हुई.

महामारी ने भारतीय शहरों की समस्याओं को बड़ा कर दिया है, साथ ही महामारी के लिए शहरों की अधूरी तैयारी को भी उजागर किया है. छोटी व्यक्तिगत समस्याओं से लेकर बड़ी राष्ट्रीय चिंताएं तक- कई बधाएं खड़ी हो गई हैं. ये बाधाएं कहती हैं कि अपने नागरिकों की सुरक्षित और स्थायी ज़िंदगी सुनिश्चित करने के लिए शहरों को समर्थ होना पड़ेगा. सरकारों को निश्चित करना होगा कि ज़रूरी सेवाएं जैसे स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, परिवहन, बिजली, पानी, इत्यादि पर कम असर पड़े और बेहतर डाटा मैनेजमेंट, जागरुकता और तकनीक में निवेश के ज़रिए “इंटेलिजेंट” शहर बनाकर भविष्य के आर्थिक संकट को कम किया जाए.

सरकार की डिजिटल पहल: अभी तक क्या किया गया है?

ऐसा देश जहां इंटरनेट तक कम लोगों की पहुंच है, वहां भारत सरकार ने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप “आरोग्य सेतु” लॉन्च किया. इस ऐप में कई कमियां हैं क्योंकि इसको इंस्टॉल करने के लिए भी इंटरनेट कनेक्शन होना चाहिए और इस्तेमाल करने वाला स्मार्टफ़ोन की अच्छी समझ रखता हो. टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (टीआरएआई) के मुताबिक़, 2019 के अंत में 100 लोगों में 54 के पास इंटरनेट कनेक्शन था. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि भारत की 54 प्रतिशत आबादी तक इंटरनेट की पहुंच थी क्योंकि एक व्यक्ति के नाम पर कई इंटरनेट कनेक्शन हो सकते हैं. यही बात मोबाइल कनेक्शन के साथ भी है क्योंकि एक यूज़र के पास कई कनेक्शन हो सकते हैं. आरोग्य सेतु को अपनाने में सिर्फ़ इंटरनेट कनेक्शन की ही बाधा नहीं है. भारत के कुल मोबाइल यूज़र में से 55 करोड़ के पास फ़ीचर फ़ोन है जिसमें स्मार्टफ़ोन की सुविधा नहीं होती. वहीं स्मार्टफ़ोन इस्तेमाल करने वाले यूज़र 45 करोड़ ही हैं. इसके अलावा ये चिंता भी है कि आरोग्य सेतु ऐप कथित तौर पर यूज़र की प्राइवेसी में ख़लल डालता है क्योंकि आरोग्य सेतु ऐप ये नहीं बताता है कि वो सूचना तकनीक अधिनियम, 2000 और आईटी नियम, 2011 का पालन कैसे करता है.

भारत सरकार ने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप “आरोग्य सेतु” लॉन्च किया. इस ऐप में कई कमियां हैं क्योंकि इसको इंस्टॉल करने के लिए भी इंटरनेट कनेक्शन होना चाहिए और इस्तेमाल करने वाला स्मार्टफ़ोन की अच्छी समझ रखता हो. 

कोविड से पहले के दौर में सरकार ने “डिजिटल इंडिया” अभियान लॉन्च किया था. इसका मक़सद सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन मुहैया कराना था. इस अभियान का एक हिस्सा जिसने बैंक खाता (जनधन), आधार नंबर और मोबाइल को एक दूसरे से जोड़ा, उसे जैम (JAM) कहा गया. जैम कठिनाई के दौरान लोगों तक वित्तीय मदद पहुंचाने में मददगार साबित हुआ है. जैम का इस्तेमाल प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना के तहत पैसे पहुंचाने में किया गया. इस योजना में प्रधानमंत्री जनधन योजना की महिला खाताधारकों को तीन महीने तक 500 रुपये प्रति महीने और वरिष्ठ नागरिकों को 1000 रुपये देने का प्रस्ताव किया गया. राज्य सरकारों ने भी कई तकनीकी पहल की जैसे झारखंड में अस्पताल के बिस्तरों तक दवा और खाना पहुंचाने के लिए को-बोट्स का इस्तेमाल किया गया और बेंगलुरु नगर निगम ने ड्रोन के ज़रिए कीटाणुनाशक का छिड़काव किया.

एक शहर में अलग-अलग कामों और समुदायों के बीच दूरी को पाटने के लिए तकनीक का इस्तेमाल ज़रूरी है ताकि वो किसी आपदा के ख़िलाफ़ संभल सके. इसका एक बड़ा हिस्सा आर्थिक इंफ्रास्ट्रक्चर है जिसे डिजिटाइज़ करने की ज़रूरत है ताकि कमज़ोर समूहों और समुदायों तक वित्तीय मदद पहुंचाने को सुनिश्चित किया जा सके. महामारी पर असरदार नियंत्रण में नाकामी को कोविड-19 से पहले और कोविड-19 के दौरान आर्थिक इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में धीमी कार्रवाई से जोड़ा जा सकता है. कोरोना वायरस महामारी से पहले मज़बूत डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने में सरकार की सक्रियता की कमी भारतनेट कार्यक्रम में देखी जा सकती है. 2011 में शुरू इस कार्यक्रम का उद्देश्य ऑप्टिक फाइबर केबल नेटवर्क के ज़रिए 2,50,000 ग्राम पंचायतों को जोड़ना था लेकिन मार्च 2020 तक सिर्फ़ 1,50,000 ग्राम पंचायतों को जोड़ा गया था. इसकी अंतिम तारीख़ छह बार बदली जा चुकी है. इस देरी की वजह देर से शुरुआत, मंज़ूरी की समस्या और रास्ते के अधिकार के नियम हैं (जो ऑप्टिक फाइबर केबल लगाने के लिए ज़रूरी हैं).

निष्कर्ष: महामारी प्रूफ शहरों के लिए तकनीक का सही इस्तेमाल ज़रूरी

वैश्विक संकट ने शहरों को लाचार कर दिया है और अब शहर अपनी अर्थव्यवस्था और निवासियों को बचाने के लिए कई क़दम उठाने की भागदौड़ में लगे हैं. जब हम स्मार्ट सिटी की ओर बढ़ रहे हैं तो भौतिक और डिजिटल दुनिया का मिलना ज़रूरी है जिसकी शुरुआत साइबर सुधारों से हो सकती है. एयर क्वालिटी, ट्रैफिक, कार्बन उत्सर्जन और दूसरी चीज़ों को रियल टाइम मॉनिटर करने वाले सेंसर और डिवाइस तेज़ी से महत्वपूर्ण बनते जा रहे हैं. इंटरनेट की अपर्याप्त पहुंच के लिए यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (टेलीकॉम ऑपरेटर के राजस्व के ज़रिए इकट्ठा) का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके ज़रिए डाटा के ज़्यादा इस्तेमाल को प्रोत्साहन दिया जा सकता है या अपेक्षाकृत दूर-दराज़ इलाक़ों के लोगों को सब्सिडी दी जा सकती है. ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म पर विद्यार्थियों और शिक्षकों को न सिर्फ़ वास्तविक इंफ्रास्ट्रक्चर की ज़रूरत होती है बल्कि क्षमता निर्माण की भी ज़रूरत होती है ताकि दोनों पक्षों को हुनरमंद बनाया जा सके और डिजिटल साक्षरता को हासिल किया जा सके. इस तरह शिक्षा बदस्तूर जारी रह सके चाहे समय कितना भी ख़राब क्यों न हो.

राज्य सरकारों ने भी कई तकनीकी पहल की जैसे झारखंड में अस्पताल के बिस्तरों तक दवा और खाना पहुंचाने के लिए को-बोट्स का इस्तेमाल किया गया और बेंगलुरु नगर निगम ने ड्रोन के ज़रिए कीटाणुनाशक का छिड़काव किया. 

प्राइमरी सेक्टर में काम करने वाले लोगों की आजीविका बचाने के लिए कुछ क़दम उठाना ज़रूरी है क्योंकि ग्रामीण कृषि जीवन शहरों की जीविका को सीधे प्रभावित करता है. संकट के समय सप्लाई चेन का प्रबंधन और उसे प्रोत्साहन देना और कृषि उपजों की बाज़ार तक पहुंच एक ज़रूरत है. ख़राब होने वाले उत्पादों के लिए सोच-समझकर एक प्लेटफॉर्म स्थापित करने की ज़रूरत है. इसके साथ सोशल डिस्टेंसिंग के दौरान गतिविधियों को जारी रखने के लिए ज़रूरी मशीनरी भी मुहैया कराने की ज़रूरत है. औपचारिक कर्ज़ के संसाधन तक पहुंच होनी चाहिए ताकि इधर-उधर के कर्ज़ से परहेज़ किया जा सके. साथ ही बैंक ट्रांसफर, कम ब्याज़ दर और माफ़ी वाली आर्थिक मदद हर वक़्त उपलब्ध होनी चाहिए.

ज़्यादा डिजिटाइज़ेशन के साथ बहुत ज़्यादा डाटा भी आता है. किसी शहर के डिजिटल नर्वस सिस्टम को साइबर हमलों के ख़िलाफ़ सुरक्षित करने की ज़रूरत होती है. ये किसी नागरिक की प्राइवेसी और संवेदनशील जानकारी की गोपनीयता को हर वक़्त सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी है. इसके अलावा, सरकार और नागरिकों के बीच भरोसा बरकरार रखने के लिए पारदर्शिता ज़रूर होनी चाहिए. इसके लिए सुझाव, आलोचना और डिजिटल सिस्टम की कमियों में सुधार ज़रूरी है.

अभी दुनिया में और भी महामारियों की आशंका है. ऐसे में सरकार को सुरक्षित और विकसित तकनीक अपनाने का काम तेज़ करना चाहिए ताकि महामारी के दौरान सही में बचा जा सके. 

अभी दुनिया में और भी महामारियों की आशंका है. ऐसे में सरकार को सुरक्षित और विकसित तकनीक अपनाने का काम तेज़ करना चाहिए ताकि महामारी के दौरान सही में बचा जा सके. डिजिटाइज़ेशन नागरिकों को सुरक्षित, निरोधक और मज़बूत भविष्य प्रस्तुत करने में उत्प्रेरक का काम करता है. साथ ही शहरों को तरक़्की के साथ ज़्यादा सामर्थ्यवान बनाने में मदद करता है. डिजिटाइज़ेशन बर्बादी की हालत में न्यू नॉर्मल के अनुकूल बनाने में मदद करता है. साथ ही किसी ख़तरनाक स्थिति का अंदाज़ा पहले लगा लेता है. डिजिटाइज़ेशन भविष्य की महामारियों से लड़ने के लिए ज़रूरी है और उससे निपटने के लिए सोच-समझकर योजना बनाता है.

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